न्यायपालिका भी भरतीय लोकतंत्र की व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है।
न्यायपालिका की क्या भूमिका है?
विवादों का निपटारा :- केंद्र व राज्य सरकारों के बीच पैदा होने वाले विवादों को हल करती है।
न्यायिक समीक्षा :- संविधान की व्याख्या का अधिकार मुख्य रुप से न्यायपालिका के पास ही होता है।
कानून की रक्षा :- किसी नागरिक को ऐसा लगता है कि उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ तो वह न्यायालय में जा सकता है।
अनुच्छेद 21 :- जीवन जीने का अधिकार
भारत का सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 26 जनवरी 1950 को की गई।
स्वतंत्र न्यायालय क्या होती है ?
भारतीय संविधान किसी भी तरह का दखलंदाजी को स्वीकार नही करता । इसलिए हमारे संविधान ने न्यायपालिका को पूरी तरह स्वतंत्र रखा गया है।
शक्तियों का बँटवारा :- विधायिका और कार्यपालिक न्यायपालिका के काम में दखल नही दे सकती।
बुनियादी पहलू :- अदालतें सरकार के अधीन नहीं हैं। न ही वे सरकार की ओर से काम करती हैं।
मौलिक अधिकारों की रक्षा :– न्यायपालिका देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में अहम भूमिका निभाती है।
भारत में अदालतों की संरचना कैसी है?
हमारे देश मे तीन अलग-अलग स्तर पर अदालतें होती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय :- यह देश की सबसे बड़ी अदालत है जो नई दिल्ली में स्थित है।
देश के मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय के मुखिया होते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले देश के बाकी सारी अदालतों को मानने होते हैं।
उच्च न्यायालय :- प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होता है। यह अपने राज्य की सबसे ऊँची अदालत होती है।
आज देश भर में 25 उच्च न्यायालय हैं।
उच्च न्यायालयों की स्थापना सबसे पहले 1862 में कलकत्ता , बंबई और मद्रास में की गई ये तीनों प्रेसिडेंसी शहर थे।
निचली अदालत :- जिन अदालतों से लोगों का सबसे ज़्यादा ताल्लुक होता है , उन्हें अधीनस्थ न्यायालय या जिला न्यायालय कहा जाता है।
ये अदालतें आमतौर पर ज़िले या तहसील के स्तर पर या शहर में होती हैं।
ये बहुत तरह के मामलों की सुनवाई करती हैं। प्रत्येक राज्य के जिलों में बँटा होता है। और हर जिले में एक ज़िला न्यायधीश होता है।
एकीकृत न्यायिक व्यवस्था :- अगर ऊपरी अदालतों के फैसले नीचे की सारी अदालतों को मानने होते हैं।
अपील :-किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि निचली अदालत द्वारा दिया गया फैसला सही नही है , तो वह उससे ऊपर बाकी अदालत में अपील कर सकता है।
अधीनस्थ अदालत के नाम – ट्रायल कोर्ट , अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश , प्रधान न्यायिक मजिस्ट्रेट , मेट्रोपॉलिन मजिस्ट्रेट , सिविल जज न्यायालय ।
विधि व्यवस्था की शाखाएँ :- समाज के विरुद्ध अपराध किस श्रेणी में आता है।
1. फ़ौजदारी कानून :- आपराधिक मामले जिसमें कानून का उल्लंघन माना गया है
उदाहरण – चोरी , हत्या , दहेज , आदि
2. सबसे पहले प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराई जाती है। फिर पुलिस अपराध की जाँच करती है।
3. अगर अगर व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है और उस पर जुर्माना भी किया जा सकता है।
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1. दीवानी कानून :- सिविल लॉ का उल्लंघन या अवहेलना करना।
उदाहरण – किराया , तलाक , जमीन की बिक्री , चीजों की खरीदारी विवाद आदि ।
2. प्रभावित पक्ष को ओर से न्यायालय में एक याचिका दायर की जाती है।
3. अदालत राहत की व्यवस्था करती है। किरायेदार मकान खाली कर और बकाया किराया चुकाए।
क्या हर व्यक्ति अदालत की शरण में जा सकता हैं ?
न्याय :- प्रत्येक नागरिक को अदालत के माध्यम से न्याय माँगने का अधिकार है।
जनहित याचिका :- 1980 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय ने जनहित याचिका पी.आई.एल. की व्यवस्था विकसित की थी।
न्यायालय किसी भी व्यक्ति या संस्था को ऐसे लोगों को ओर से जनहित याचिका दायर करने का अधिकार दिया है जिनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय तक ज्यादा से ज्यादा लोगो की पहुँच स्थापित करने के लिए प्रयास किया है।
1. बंधुआ मजदूरी से मुक्ति
2. मिड-डे मील की शुरुआत
3. गरीबों के लिए आवास