विश्व की 90 प्रतिशत जनसंख्या भूमि क्षेत्र के 30 प्रतिशत भाग पर ही रहती है। शेष 70 प्रतिशत भूमि पर या तो विरल जनसंख्या है या वह निर्जन है।
भूमि :- सभी महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में भूमि भी शामिल है। भूपृष्ठ के कुल क्षेत्रफल 30 प्रतिशत भाग भूमि है। यही नहीं इस थोड़े से प्रतिशत के भी सभी भाग आवास योग्य नहीं है।
भूमि और जलवायु के भिन्न-भिन्न लक्षणों के कारण विश्व के विभिन्न भागों में जनसंख्या का वितरण आसमान पाया जाता है।
उबड़ – खाबड़ स्थलाकृति , पर्वतों के तीव्र ढाल , मरुस्थल , सघन , विरल क्षेत्र ।
भूमि उपयोग :- भूमि का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है। जैसे – कृषि , वानिकी , खनन , सड़क , उघोग आदि ।
भौतिक कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है । जैसे – स्थलाकृति , मृदा , जलवायु , खनिज , जल की उपलब्धता।मानवीय कारक द्वारा भूमि का उपयोग प्रतिरूप के महत्वपूर्ण निर्धारक हैं। जैसे – जनसंख्या , प्रौद्योगिकी । निजी भूमि व्यक्तियों के स्वामित्व में होती है।
सामुदायिक भूमि समुदाय के स्वामित्व में होती है।
जनसंख्या बढ़ने , कृषि योग्य भूमि का विस्तार , भूस्खलन , मृदा अपरदन , मरुस्थलीयकरण पर्यावरण के लिए प्रमुख खतरा है।
भूमि संसाधन का संरक्षण :- बढ़ती जनसंख्या तथा इसकी बढ़ती माँगों के कारण वन भूमि और कृषि योग्य भूमि का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। इससे इस प्राकृतिक संसाधन के समाप्त होने का डर पैदा हो गया है। इसलिए वनरोपण , रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के विनियमित उपयोग तथा अतिचारण पर रोक आदि भूमि संरक्षण के लिए प्रयुक्त कुछ सामान्य तरीके हैं।
मृदा :- पृथ्वी के पृष्ठ पर दानेदार कणों के आवरण की पतली परत मृदा कहलाती है। यह भूमि से निकटता से जुड़ी हुई है। स्थल रूप मृदा के प्रकार को निर्धारित करते हैं। मृदा का निर्माण चट्टानों से प्राप्त खनिजों और जैव पदार्थ तथा भूमि पर पाए जाने वाले खनिजों से होता है। यह अपक्षय की प्रक्रिया के माध्यम से बनती है। खनिजों और जैव पदार्थों का सही मिश्रण मृदा को उपजाऊ बनाता है।
केवल एक सेंटीमीटर मृदा को बनने में सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं।
मृदा निर्माण के कारक :- मृदा निर्माण के मुख्य कारक जनक शैल का स्वरूप और जलवायवीय कारक है। मृदा निर्माण के अन्य कारक स्थलाकृति , जैव पर्दाथों की भूमिका और मृदा के संघटन में लगा समय है।
मृदा का निम्नीकरण :- मृदा अपरदन और क्षीणता मृदा संसाधन के लिए दो मुख्य खतरे हैं। मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही कारकों से मृदाओं का निम्नीकरण हो सकता है। मृदा के निम्नीकरण में सहायक कारक वनोन्मूलन , अतिचारण , रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग , वर्षा दोहन , भूस्खलन और बाढ़ है।
मृदा संरक्षण के उपाय :-
मल्च बनाना :- पौधों के बीच अनावरित भूमि जैव पदार्थ जैसे प्रवाल से ढक दी जाती है। इससे मृदा की आर्द्ता रुकी रहती है।
वेदिका फार्म :- ये तीव्र ढालो पर बनाए जाते हैं। ताकि सपाट सतह फसल उगाने के लिए उपलब्ध हो जाए। इनसे पृष्ठीय प्रवाह और मृदा अपरदन कम हो सकता है।
समोच्चरेखीय जुताई :- एक पहाड़ी ढाल पर समोच्च रेखओं के समान्तर जुताई ढाल से नीचे बहते जल के लिए प्राकृतिक अवरोध का निर्माण करती है।
रक्षक मेखलाएँ :- तटीय प्रदेशों और शुष्क प्रदेशों में पवन गति रोकने के लिए वृक्ष कतारों में लगाए जाते हैं ताकि मृदा आवरण को बचाया जा सके।
चट्टान बाँध :- यह जल के प्रवाह को कम करने के लिए बनाए जाते हैं। यह नालियों की रक्षा करते है और मृदा क्षति को रोकते हैं।
जल –
जल :- जल एक महत्वपूर्ण नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन है , भूपृष्ठ का तीन-चौथाई भाग जल से ढका है। लगभग 3.5 अरब वर्ष पहले जीवन , आदि महासागरों में ही प्रारंभ हुआ था। आज भ्ही महासागर पृथ्वी की सतह के दो-तिहाई भाग को ढके हुए हैं। महासागरों का जल लवणीय है और मानवीय उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
– अलवणीय जल 2.7 प्रतिशत ही है। – 70 प्रतिशत भाग बर्फ़ के रूप में अंटाकर्टिका , ग्रीनलैंड , और पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। – 1 प्रतिशत जल मानव उपभोग के लिए उपयुक्त है। यह भौम जल , नदियों और झीलों और वायुमंडल में जलवाष्प के रूप में पाया जाता है।
– वर्ष 1975 में मानव उपयोग के लिए जल की खपत 3850 घन कि.मी/ वर्ष थी जो वर्ष 2000 में बढ़कर 6000 घन कि.मी/ वर्ष से भी अधिक हो गई है। – एक टपकता नल एक वर्ष में 1,200 लीटर जल व्यर्थ करता है।
– वर्षा जल संग्रहण में औसतन दो घंटे की वर्षा का एक दौर 8000 लीटर जल बचने के लिए काफी है। – औसतन एक भारतीय नागरिक प्रतिदिन लगभग 135 लीटर जल का उपभोग करता है। जल की उपलब्धता की समस्याएँ :- अफ्रीका , पश्चिमी एशिया , पश्चिमी सयुंक्त राज्य अमेरिका , दक्षिण अमेरिका के भाग , आस्ट्रेलिया अलवणीय जल की आपूर्ति की कमी का सामना क्र रहे है।
प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन
प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन :- प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन केवल स्थलमंडल , जलमंडल और वायुमंडल के बीच जुड़े एक सँकरे क्षेत्र में ही पाए जाते हैं जिसे हम जैवमंडल कहते है।
परितंत्र :- जैवमंडल में सभी जीवित जातियाँ जीवित रहने के लिए एक दूसरे से परस्पर संबंधित और निर्भर रहती हैं।
वनस्पति :- बहुमूल्य संसाधन हैं। पौधे हमें इमारती लकड़ी देते हैं , ऑक्सीजन उतपन्न करते है , और फल , गोंद , कागज प्रदान करते है।
वन्य जीव :- जंतु , पक्षी , कीट एवं जलीय जीव आते हैं। उनसे हमें दूध , मांस , खाल , और ऊन मिलता है।
प्राकृतिक वनस्पति का वितरण :- वनस्पति की वृद्धि मुख्य रूप से तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करती है। विश्व की वनस्पति के मुख्य प्रकारों को चार वर्गों में रखा जा सकता है ,जैसे- वन , घास स्थल , गुल्म और टुंड्रा।
सदाहरित वन :- भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में विशाल वृक्ष उग सकते हैं।
पर्णपाती वन :- आर्द्रता कम होती है और वृक्षों का आकार और उनकी सघनता कम हो जाती है।
घास स्थल :- सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों में छोटे आकार वाले वृक्ष और घास उगती है जिससे विश्व के घास स्थलों का निर्माण होता है।
गुल्म :- कम वर्षा वाले शुष्क प्रदेशों में कँटीली झाड़ियाँ एवं गुल्म उगते है।
तुन्द्रा :- शीत ध्रुवीय प्रदेशो की टुंड्रा वनस्पति में मॉस और लाइकेन समिमलित हैं।
प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन का संरक्षण :- वन हमारी संपदा है।पौधों जन्तुओं को आश्रय प्रदान करते हैं और साथ ही परितंत्र को भी अनुरक्षित रखते हैं। जलवायु में परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के कारण पौधों और जन्तुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट हो सकते हैं। बहुत-सी जातियाँ असुरक्षित अथवा संकटापन्न हैं और लुप्त होने के कगार पर हैं ।
इसलिए राष्ट्रीय उद्यान , वन्य जीव अभ्यारण्य , जैवमंडल निचय , हमारी प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन को सुरक्षित रखने के लिए बनाए जाते हैं।
राष्ट्रीय उद्यान :- वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिए एक या एक से अधिक पारितंत्रों की परिस्थितिक एकता की रक्षा के लिए नामित किया गया प्राकृतिक क्षेत्र ।
जैवमंडल निचय :- यह वैश्विक नेटवर्क द्वारा जुड़े रक्षित क्षेत्रों की एक श्रृंखला है जिसे संरक्षण और विकास के बीच संबंध को प्रदर्शित करने के इरादे से बनाया गया है।
एक अंतरराष्ट्रीय परिपाटी सी.आई.टी.ई.एस. की स्थापना की गई प्रणियों और पक्षियों के संरक्षण के लिए ।