अध्याय : 1 संसाधन

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संसाधन :- एक ऐसा स्रोत है जिसका उपयोग मनुष्य अपने इच्छाओं की पूर्ति के लिए के लिए करता है। हमारे पर्यावरण में उपलब्ध हर वह वस्तु संसाधन कहलाती है जिसका इस्तेमाल हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कर सकते हैं।

उपयोगी :- प्राकृतिक संसधान , मानवीय संसधान , मानव निर्मित संसधान ये सभी वस्तुओं का उपयोग मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

प्रयोज्यता :- एक वस्तु अथवा पदार्थ की उपयोगिता अथवा प्रयोज्यता उसे एक संसधान बनाती है।

मूल्य :- कुछ संसधानो का आर्थिक मूल्य होता है। जैसे – धातुओं का आर्थिक मूल्य होता है। –

समय और प्रौद्योगिकी दो महत्वपूर्ण कारक हैं जो पदर्थों को संसधान में परिवर्तित कर सकते हैं।आग की खोज से खाना पकाने और पहिए के आविष्कार बसे अन्ततः परिवहन की नवीनतम विधियों का विकास हुआ और जलविद्युत बनाने की प्रौद्योगिकी ने तेजी से बहते जल से ऊर्जा उत्पन्न करके , उसे एक महत्वपूर्ण संसधान बना दिया है।

पेटेन्ट :- इसका तात्पर्य किसी विचार अथवा आविष्कार एकमात्र अधिकार से है।

प्रौद्योगिकी :- किसी कौशल करने अथवा वस्तु बनाने में नवीनतम ज्ञान का अनुप्रयोग प्रौद्योगिकी है।

 

संसधान के प्रकार

प्राकृतिक संसधान :- जो संसधान प्रकृति से प्राप्त होते हैं और अधिक संशोधन के बिना उपयोग में लाए जाते हैं , प्राकृतिक संसधान कहलाते हैं। वायु , जिसमें हम साँस लेते हैं , हमारी नदियों और झीलों का जल , मृदा और खनिज , सभी प्राकृतिक संसधान हैं। विभिन्न समूहों में प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण उनके विकास एवं प्रयोग के स्तर , उदगम , भंडार एवं वितरण के अनुसार किया जाता है।

वास्तविक संसाधन :- वे संसाधन होते हैं जिनकी मात्रा ज्ञात होती है। इन संसाधनों का इस समय उपयोग किया जा रहा है। महाराष्ट्र में दक्कन पठार की काली मिट्टी के भरपूर निक्षेप सभी वास्तविक संसाधन हैं।

संभाव्य संसाधन :- वे संसधान हैं जिनकी सम्पूर्ण मात्रा ज्ञात नहीं है लेकिन इसका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है। लद्दाख में पाया गया यूरेनियम संभाव्य संसधान का एक उदाहरण है जिसका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है।

 

उत्पत्ति के आधार पर संसाधन

जैव संसधान सजीव वस्तुएँ होते है जैसे – पौधे और  जंतु आदि।

अजैव संसाधन निर्जीव वस्तुएँ जैसे – मृदा , चट्टानें आदि।

 

प्राकृतिक संसाधन का विस्तृत रूप

नवीकरणीय संसाधन :- वे संसाधन हैं जो शीघ्रता से नवीकृत अथवा पुनः पूरित हो जाते हैं।इनमें से कुछ असीमित है और उन पर मानवीय क्रियाओं का प्रभाव नहीं होता , जैसे – सौर और पवन ऊर्जा।
नवीकरणीय संसधानों , जैसे – जल , मृदा और वन का लापरवाही से किया गया उपयोग उनके भंडार को प्रभावित कर सकता है।

अनवीकरणीय संसाधन :- वे संसाधन है जिनक भंडार सीमित , है। ये भंडार एक बार समाप्त होने के बाद उनके नवीकृत अथवा पुनः पूरित होने में हजारों वर्ष लग सकते हैं। अनवीकरणीय संसाधन , जैसे कोयला , पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जो मानव जीवन की अवधि से बहुत अधिक है।

 

संसधान के वितरण

सर्वव्यापक :- जो संसधान सभी जगह जाते हैं , जैसे – वायु जिसमें हम साँस लेते हैं।

स्थानिक :- वे संसाधन जो कुछ निश्चित स्थानों पर ही पाए जाते हैं । जैसे ताँबा और लौह -अयस्क

प्राकृतिक संसाधनों का वितरण भूभाग , जलवायु , ऊँचाई जैसे अनेक भौतिक कारकों पर निर्भर करता है।

मानव निर्मित :-  कभी-कभी प्राकृतिक पदार्थ तब संसाधन बन जाते हैं जब उनका मूल रूप बदल दिया जाता है। लौह-अयस्क उस समय तक संसाधन नही था जब तक मानव ने उससे लोहा बनाना नही सीखा था। मानव प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पुल , सड़क , मशीन और वाहन बंनाने में करते है जो मानव निर्मित संसाधन के नाम से जाने जाते हैं। प्रौद्योगिकी भी एक मानव निर्मित संसाधन है।

मानव संसाधन :- लोग ओर अधिक संसाधन बनाने के लिए प्रकृति का सबसे अच्छा उपयोग तभी कर सकते हैं जब उनके पास ऐसा करने का ज्ञान , कौशल तथा प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो।

मानव संसाधन विकास :- अधिक संसाधनों के निर्माण में समर्थ होने के लिए लोगों की कौशल में सुधार करना।

संसाधन संरक्षण :- संसाधनों का सतर्कता पूर्वक उपयोग करना और उन्हें नवीकरण के लिए समय देना ।

सततपोषणीय विकास :-  संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता और भविष्य के लिए उनके संरक्षण में संतुलन बनाए रखना सततपोषणीय विकास कहलाता है।

 

 

 

अध्याय : 2 भूमि , मृदा , जल , वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन

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