ऐतिहासिक परिदृश्य
• मध्य प्रदेश के इतिहास को जानने के लिए ऐतिहासिक स्रोत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
• ऐतिहासिक स्रोतों की दृष्टि से मध्य प्रदेश के इतिहास को तीन भागों-प्रागैतिहासिक काल (जिसका लिखित विवरण उपलब्ध नहीं है), आद्य ऐतिहासिक काल (जिसके लिखित विवरण को नहीं पढ़ा जा सका है) तथा ऐतिहासिक काल (जिसके लिखित विवरण को पढ़ा जा सका है) में बाँटा जाता है।
☆प्रागैतिहासिक काल
• प्रदेश के विभिन्न भागों में किए गए उत्खनन और खोजों में प्रागैतिहासिक सभ्यता के चिह्न मिले हैं। आदिम प्रजातियाँ नदियों के किनारे और कन्दराओं में रहती थी।
• मध्य प्रदेश के भोपाल, रायसेन, छनेरा, नेमावर, भोजावाड़ी, महेश्वर, देहगाँव, बरखेड़ा, हण्डिया, कबरा, सिधनपुर, होशंगाबाद इत्यादि स्थानों पर आदिम प्रजातियों के रहने के प्रमाण मिले हैं।
• . होशंगाबाद जिले की गुफाओं, रायसेन जिले की भीमबेटका की कन्दराओं तथा सागर के निकट पहाड़ियों से प्रागैतिहासिक शैलचित्र प्राप्त हुए हैं। प्रागैतिहासिक काल को तीन कालों में विभाजित किया जाता है
◇ पाषाण काल
• मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी, चम्बल घाटी, बेतवा घाटी, सोनार घाटी, भीमबेटका की गुफाएँ आदि प्रमुख पाषाणकालीन स्थल है।
• इस काल के औजार बिना बैट अथवा लकड़ी के बेंट वाले हस्तकुठार के अतिरिक्त खुरचनी, मुष्टिकुठार तथा क्रोड आदि मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थलों पर पाए गए हैं।
• भीमबेटका की गुफाएँ मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। ये गुफाएँ आदिमानव द्वारा निर्मित शैलाश्रयों व शैलचित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं। भीमबेटका में लगभग 750 गुफाओं में 500 गुफाएँ चित्रों द्वारा सुसज्जित हैं।
इस स्थल को मानव विकास का प्रारम्भिक स्थान माना जाता है। यूनेस्को द्वारा वर्ष 2003 में भीमबेटका को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया।
◇ मध्यपाषाण काल
• मध्यपाषाण काल की सभ्यता नर्मदा, चम्बल, बेतवा एवं इनकी सहायक नदियों की घाटियों में विकसित हुई थी।
• इस काल में जैस्पर, चर्ट, क्वार्ट्ज इत्यादि उच्चकोटि के पत्थरों से बने औजारों में खुरचनियाँ नोक व बेधनी प्रमुख थे।
• इस काल में औजारों का आकार छोटा होना प्रारम्भ हुआ।
• मध्य प्रदेश में इस काल की संस्कृति का महत्त्वपूर्ण स्थल आदमगढ़ (होशंगाबाद) है।
◇ नवपाषाण काल
• मध्य प्रदेश के सागर, जबलपुर, दमोह, होशंगाबाद तथा छतरपुर जिलों से नवपाषाण कालीन औजार प्राप्त हुए हैं।
• इन औजारों में सेल्ट, कुल्हाड़ी, बसूला इत्यादि प्रमुख रूप से शामिल हैं।
• इस काल में कृषि, पशुपालन, गृह निर्माण एवं अग्नि प्रयोग जैसे क्रान्तिकारी कार्यों को अपनाया गया था।
☆ आद्यऐतिहासिक काल
◇ ताम्र पाषाण काल
• ताम्र पाषाण काल की सभ्यता मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा सभ्यता के समकालीन थी, जो नर्मदा की घाटी क्षेत्र में विकसित हुई थी।
• महेश्वर, नवदाटोली, कायथा (उज्जैन), नागदा, बरखेड़ा (भोपाल), ऐरण इत्यादि क्षेत्र इस काल के प्रमुख केन्द्र थे।
• मध्य प्रदेश में बालाघाट एवं जबलपुर जिलों के कुछ भागों में ताम्रकालीन औजार मिले हैं।
☆ ऐतिहासिक या प्राचीनकाल
◇ वैदिक युग
• इस काल का इतिहास 1500-600 ई. पू. के आस-पास शुरू होता है।
• आर्य उत्तर वैदिक (1000-600 ई. पू.) के ) के समय में ही विन्ध्यांचल को पार कर मध्य प्रदेश में आए थे।
• ऐतरेय ब्राह्मण में जिस निषाद जाति का उल्लेख है, वह मध्य प्रदेश के जंगलों में निवास करती थी।
◇ महापाषाण युग
• 1700-1000 ई.पू. की समयावधि में यहाँ दक्षिण की महापाषाण संस्कृति का प्रभाव भी देखा जाता है।
• दक्षिण भारत के कुछ स्थलों से प्राप्त विशाल पाषाण समाधियों को महापाषाण स्मारक (मेगालिथ) कहा जाता है। सिवनी व रीवा जिले से ये स्मारक मिले हैं।
◇ लौह युगीन संस्कृति
• लौह युग के धूसर चित्रित मृद्भाण्ड मध्य प्रदेश के श्योपुर, ग्वालियर, मुरैना एवं भिण्ड से प्राप्त हुए हैं।
◇ महाकाव्य काल
• रामायण काल में प्राचीन मध्य प्रदेश के अन्तर्गत महाकान्तार एवं दण्डकारण्य (वर्तमान में छत्तीसगढ़ में) के घने वन क्षेत्र थे।
• जनश्रुतियों के अनुसार राम ने वनवास का अधिकांश समय दण्डकारण्य (वर्तमान में छत्तीसगढ़) में बिताया था।
• रामायण काल में विन्ध्य, सतपुड़ा अतिरिक्त यमुना के के काठे का दक्षिण भू-भाग और गुर्जर प्रदेश के कई क्षेत्र इसके घेरे में थे।
• यदुवंशी नरेश मधु इस क्षेत्र के शासक थे, जो अयोध्या के राजा दशरथ के समकालीन थे।
• महाभारत युद्ध में मध्य प्रदेश के राज्यों ने भाग लिया था। वत्स, चेदि, कारुष तथा दर्शाण आदि ने पाण्डवों तथा माहिष्मति, अवन्ति, भोज तथा विदर्भ आदि ने कौरवों की ओर से युद्ध में भाग लिया था।
◇ महाजनपद काल
• लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध व जैन ग्रन्थों में वर्णित महाजनपदों की संख्या 16 (सोलह) थी।
• महाजनपद काल में चेदि व अवन्ति जनपद मध्य प्रदेश के इतिहास से सम्बन्धित थे।
• अवन्ति महाजनपद अत्यन्त विशाल था, यह जनपद पश्चिमी एवं मध्य मालवा के क्षेत्र में बसा हुआ था।
• अवन्ति महाजनपद को दो भागों में विभक्त किया गया था। उत्तरी अवन्ति, जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी एवं दक्षिणी अवन्ति, जिसकी राजधानी माहिष्मती थी।
• उत्तरी अवन्ति तथा दक्षिणी अवन्ति के बीच वर्तमान बेतवा नदी बहती थी, जो इन्हें दो भागों में विभाजित करती थी।
प्राचीन जनपद के परिवर्तित नाम
प्रचीन जनपद नया जनपद
अवन्ति(अवन्तिका) उज्जैन
वत्स ग्वालियर
चेदि खजुराहो
अनूप निमाड़(खण्डवा)
दशार्ण विदिशा
तुण्डीकेर दमोह
नलपुर नरवर(शिवपुरी)
• प्राचीन काल के प्रमुख राजवंश एवं उनका योगदान निम्नलिखित है एवं उनका योगदान
∆ कारुष वंश
• जनुश्रुतियों के अनुसार मनुष्यों की परम्परा में अन्तिम मनु ‘वैवस्वत’ के दस पुत्र थे, इनमें से एक पुत्र कारुष के नाम पर कारुष वंश की स्थापना हुई।
• इस वंश के शासकों ने कारुष देश (वर्तमान में रीवा नदी के पास बघेलखण्ड क्षेत्र) पर शासन किया।
∆ चन्द्रवंश
• मनु वैवस्वत की पुत्री इला का विवाह (सोम) चन्द्र से हुआ था, जिसके नाम पर ‘चन्द्रवंश’ की स्थापना हुई। इसे ऐल साम्राज्य भी कहा जाता था।
• चन्द्रवंश साम्राज्य का विस्तार बुन्देलखण्ड तक था।चन्द्र के दो पुत्र आयु एवं अमावसु थे।
∆ क्षहरात वंश
• क्षहरात वंश के नहपान तथा भूमक नामक दो प्रसिद्ध राजा हुए।
• नहपान का संघर्ष गौतमी पुत्र शातकर्णि से हुआ था।
• जुगलथुम्बी तथा शिवपुरी से नहपान के सिक्के प्राप्त हुए हैं।
∆ कार्दकम वंश
• यशोमिति और चष्टन ने ‘कार्दकम वंश’ की स्थापना की थी। इस वंश का प्रसिद्ध राजा रुद्रदामन था, जो संस्कृत का महान् पण्डित था।
• रुद्रदामन ने ही मध्य प्रदेश में सर्वप्रथम तिथि युक्त चाँदी के सिक्के चलवाए थे।
• गिरनार के अभिलेख के अनुसार, रुद्रदामन ने. सुदर्शन झील का पुननिर्माण भी करवाया था।
∆ नन्द वंश
• मगध में नन्द वंशी राजा महापद्मनन्द ने साम्राज्य विस्तार की नीति के अन्तर्गत चेदि जनपद को मगध राज्य में मिला लिया था। बड़वानी से नन्द वंश की मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं।
∆ मौर्य वंश
• मध्य प्रदेश में ‘मौर्य सत्ता’ के व्यापक साक्ष्य मिले हैं। अशोक (बिन्दुसार का पुत्र) सम्राट बनने से पहले उज्जैन का गवर्नर था।
• ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु साँची के स्तूप का निर्माण कराया था। यह स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है, जो एक छोटा सा गाँव है, यह स्थान भोपाल से 46 किमी पूर्वोत्तर में एवं बेसनगर तथा विदिशा से 10 किमी. की दूरी पर स्थित है। साँची स्तूप को सम्राट अशोक ने तीसरी शती ई. पू. में बनवाया था, स्तूप का केन्द्र एक सामान्य अर्द्धगोलाकार, ईंट निर्मित ढाँचे पर था, जो बुद्ध के कुछ अवशेषों पर बना था, स्तूप के शिखर पर एक छत्र था, जोकि स्मारक के सम्मान का प्रतीक था, स्तूप के तोरण द्वार वास्तुकला के सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
• मौर्य सम्राट अशोक ने विदिशा राज्य के श्रेष्ठी की पुत्री श्रीदेवी के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए थे, जिससे अशोक की सन्तानों में पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा का जन्म हुआ था।
• मौर्य युग में व्यापारिक मार्गों की संख्या चार थी, जिनमें तीसरा मार्ग दक्षिण में प्रतिष्ठान से उत्तर में श्रावस्ती तक जाता था। इसके पथ में माहिष्मती, उज्जैन, विदिशा इत्यादि नगर आते थे।
• चौथे प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग में उज्जयिनी नगर पड़ता था। यह मार्ग भृगुकच्छ से मथुरा तक जाता था।
• मध्य प्रदेश के दतिया जिले में गुर्जरा नामक स्थान से अशोक के लघु शिलालेख मिले हैं, जिसमें अशोक का नाम अशोक उत्कीर्ण मिला है।
• साँची के अतिरिक्त अशोक के लघु शिलालेख रूपनाथ (जबलपुर), साँची (रायसेन), गुजर्रा (दतिया), कसरावाद (पश्चिमी निमाड़), कारीलताई (जबलपुर), खखई (रायसेन), भैन्यापुरा (सीहोर) आदि से प्राप्त हुए हैं।
∆ शुंग वंश
• मौर्य वंश के अन्तिम शासक बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने इसकी हत्या कर लगभग 185 ई. पू. में शुंग वंश की स्थापना की थी।
• पुष्यमित्र शुंग ने अपने शासनकाल में साँची स्तूपों को नष्ट करवा दिया था।
• पुष्यमित्र शुंग का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का शासक था। अग्निमित्र और मालविका के प्रेमप्रसंग को आधार बनाकर कालीदास ने अपनी पहली रचना मालविकाग्निमित्र लिखी थी।
• यवन राजदूत हेलियोडोरस ने शुंग वंश के पाँचवें शासक भागभद्र के समय विदिशा में भागवत धर्म से प्रभावित होकर यहाँ गरुड़ ध्वज की स्थापना की थी।
• शुंगवंशीय राजाओं द्वारा भरहुत में एक स्तूप बनवाने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
∆ सातवाहन वंश
• सातवाहनवंशीय शासक गौतमीपुत्र शातकर्णि के द्वारा मालवा पर शासन करने के साक्ष्य पुराणों में मिले हैं।
• उज्जैन, देवास, तेवर, त्रिपुरी इत्यादि स्थानों से सातवाहन वंश के सिक्के प्राप्त हुए हैं।
• सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णि के पुत्र वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी को नासिक गुहालेख से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर मध्य प्रदेश के अनूप (नर्मदा घाटी के क्षेत्र), पूर्वी मालवा व अवन्ति क्षेत्रों का विजेता बताया गया है।
• सातवाहन वंश के राजाओं के काल में रोम के साथ व्यापार सम्बन्ध के साक्ष्य मिले हैं। आवा, चकरखेड़ा एवं बिलासपुर से प्राप्त रोमन के सिक्के इस व्यापार सम्बन्ध के प्रमाण हैं।
• सातवाहन शासक अपीलक के ताँबे के सिक्के मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से मिले हैं।
∆ कुषाण वंश
• कुषाण शासकों का प्रभाव मध्य प्रदेश में आक्रमण तथा सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए था।
• कुषाण वंश के शासक बिम कैडफिसेस का सिक्का विदिशा जिले से प्राप्त हुआ है। इस वंश के प्रतापी शासक कनिष्क के भी सिक्के शहडोल जिले से प्राप्त हुए हैं।
• साँची अभिलेखानुसार हुविष्क के शासन काल में दुहिता मधुकरि ने एक बौद्ध प्रतिमा का निर्माण करवाया था। कुषाणकालीन कला की दो मूर्तिलेख तथा बौद्ध प्रतिमाएँ भेड़ाघाट से प्राप्त हुई हैं।
∆ नाग वंश
• मध्य प्रदेश में नागवंश का संस्थापक वृषनाथ था। जिसने विदिशा को राजधानी बनाया था। इस वंश के शासकों के सिक्के विदिशा से प्राप्त हुए हैं।
• नागवंशीय राजाओं ने कुषाणों का प्रतिरोध किया था
∆ गुप्त वंश
• गुप्त वंश की स्थापना तीसरी शताब्दी में श्रीगुप्त (240-280 ई.) ने की थी।
• गुप्त वंश का राजकीय चिह्न गरुड़ था, इसके प्रमाण गुप्तकाल के शिलालेखों व स्तम्भ अभिलेखों में मिले हैं, साथ ही ऐरण (सागर) के सिक्कों पर सिंह एवं गरुड़ के चित्र भी प्राप्त हुए हैं।
• चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने पाटलिपुत्र के अतिरिक्त उज्जयिनी को भी अपनी राजधानी बनाया था।
• चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के राजदरबार में नवरत्न रहते थे जिनको अपने क्षेत्रों में महारथ हासिल थी। विक्रमादित्य के नवरत्नों में (i) कालीदास (ii) बेतालभट्ट (iii) धन्वंतरि (iv) वराहमिहिर (v) अमरसिंह (vi) वररूचि (vii) घटकपर (viii) अपणक (ix) शुक शामिल थे।
• उदयगिरी की गुफाओं तथा तिगवाँ के विष्णु मन्दिर का निर्माण गुप्तकाल में हुआ था।
• ऐरण, विदिशा, सकारे, त्रिपुरी, सिवनी, उज्जयिनी, बैतूल एवं जबलपुर से गुप्तकालीन से सिक्के प्राप्त हुए हैं।
• गुप्त वंश के प्रतापी राजा समुद्रगुप्त की विस्तृत जानकारी प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख में मिलती है।
• समुद्रगुप्त ने महाकान्तार, महाकोशल एवं बैतूल तक के क्षेत्र को जीता था।
• समुद्रगुप्त ने तत्कालीन विदिशा शासक श्रीधर को पराजित कर विदिशा पर अधिकार कर लिया था।
• समुद्रगुप्त ने शकों को पश्चिमी भारत में हराया, जिससे नर्मदा के उत्तर के अधिकांश क्षेत्र गुप्तों के अधीन आ गए थे।
∆ वाकाटक वंश
• पुराणों के अनुसार, विंध्यशक्ति नामक ब्राह्मण ने विदिशा में वाकाटक वंश की स्थापना की थी।
• इस वंश के साक्ष्य व्याघ्रराज के नचना कुठार (सतना) एवं गज अभिलेख (पन्ना) से प्राप्त हुए हैं।
∆ राष्ट्रकूट वंश
• वीं सदी में इस वंश की दो शाखाओं ने बैतूल (अमरावती) तथा मान्यखेट पर शासन किया था।
• राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय ने प्रतिहार नरेश नागभट्ट को परास्त किया था।
∆ गुर्जर प्रतिहार वंश
• गुर्जर प्रतिहार वंश का प्रसिद्ध राजा नागभट्ट प्रथम था, जिसका शासनकाल 730 से 760 ई. तक था।
• नागभट्ट प्रथम ने उज्जयिनी में शासन किया था। इसने भारत पर अरबों के आक्रमण को विफल कर दिया था।
∆ परमार वंश
• परमार वंश की स्थापना उपेन्द्र कृष्णराज ने की थी, परन्तु इस वंश का प्रथम स्वतन्त्र शासक सीयक (श्री हर्ष) था।
• परमार वंश की राजधानी धार थी, अ रियासत का सम्बन्ध इसी (धार) प्रदेश में था। इस वंश का विख्यात राजा भोज था।
• राजा भोज ने भोजताल (भोपाल), सरस्वती मन्दिर (धार) इत्यादि का निर्माण कराया था।
• इस वंश के राजा जयसिंह को हराकर गुजरात के चालुक्य शासक भीम प्रथम तथा कलचुरि शासक कर्ण के संघ ने मालवा पर आधिपत्य कर लिया था।
∆ चन्देल वंश
• चन्देल वंश के शासकों ने महोबा के क्षेत्र में शासन किया था। इस वंश का संस्थापक नन्नुक था।
• राजा धंगदेव के शासनकाल में चन्देलों ने प्रतिहारों से स्वतन्त्र होकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।
• खजुराहो चन्देल वंश की राजधानी थी। खजुराहो के प्रसिद्ध मन्दिरों-पार्श्वनाथ एवं विश्वनाथ का निर्माण धंगदेव ने कराया था। खजुराहों के प्रसिद्ध मन्दिरों का निर्माण चन्देल शासकों ने ही कराया था।
• अन्तिम स्वतन्त्र चन्देल शासक परमार्दी देव को कुतुबुद्दीन ऐबक ने हराकर महोबा को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया था।
• खजुराहो का उल्लेख अलबरुनी के द्वारा मोहम्मद गजनी के छापे और विजय के दौरान राजधानी के रूप में किया गया था।
∆ कलचुरि वंश
• मध्य प्रदेश में कलचुरि वंश की दो शाखाएँ माहिष्मति (वर्तमान महेश्वर) के कलचुरि व त्रिपुरी के कलचुरि थी।
• माहिष्मति के कलचुरियों का सर्वप्रथम ज्ञात शासक कृष्णराज था और इनकी राजधानी माहिष्मति थी।
• कृष्णराज के पश्चात् ज्ञात शासक शंकरगण एवं बुद्धराज हैं।
• बुद्धराज को चालुक्य शासक मंगलेश ने हराकर माहिष्मति पर अधिकार कर लिया था।
• त्रिपुरी (वर्तमान तवर, जबलपुर) के कलचुरि वंश की स्थापना कोकल्ल प्रथम ने की थी।
• कोकल्ल प्रथम के समय में ही कलचुरि शक्ति का उत्थान हुआ।
∆ गुहिल वंश
• जीरण (मन्दसौर) अभिलेख से मन्दसौर में गुहिल वंश के शासन की पुष्टि होती है। विग्रह पाल वंश का पहला ज्ञात शासक है।
☆ मध्यकालीन इतिहासमध्य प्रदेश के मध्यकालीन इतिहास में अनेक राजाओं व वंशों ने शासन किया,
जो निम्न हैं
◇ मोहम्मद गोरी
• 1195-96 ई. में मोहम्मद गोरी ने ग्वालियर के शासक लोहंग देव पर आक्रमण किया, जिसके फलस्वरूप लोहंग देव (सल्लक्षण) ने गोरी की अधीनता स्वीकार कर ली। गोरी ने इसे ग्वालियर का शासक बना दिया था।
• गोरीयों के अधीन 1206 तक मध्य प्रदेश में ग्वालियर, कालिंजर तथा मालवा क्षेत्र आ चुके थे।
◇ सल्तनतकाल (गुलाम वंश)
• सल्तनत काल का आरम्भ कुतुबुद्दीन ऐबक से होता है, जो गुलाम वंश का प्रारम्भकर्ता भी था।
• ऐबक ने अंतिम चन्देल शासक परिमलदेव (परमार्दी देव) को हराकर कालिंजर किला विजित किया था।
• गुलाम वंश के सबसे प्रभावशाली सुल्तानों में इल्तुतमिश का नाम भी आता है।
• इल्तुतमिश ने 1228 ई. में सिन्ध को अपने राज्य में सम्मिलित करने के पश्चात् मध्य प्रदेश में माण्डू, ग्वालियर, मालवा एवं उज्जैन (महाकालेश्वर मन्दिर) को भी जीत लिया एवं नर्मदा नदी तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।
◇ तोमर वंश
• वीर सिंह तोमर ने 14वीं सदी में मुस्लिम सत्ता की अराजक स्थिति का लाभ उठाकर ग्वालियर में तोमर वंश की स्थापना की थी।
• इस वंश के प्रसिद्ध राजा सूरजसेन ने ग्वालियर का मजबूत किला बनवाया था, इसे किलों का रत्न या किलों का जिब्राल्टर के उपनाम से जाना जाता है।
• तोमर वंश के शासक मानसिंह तोमर ने ग्वालियर में प्रसिद्ध सास-बहू का मन्दिर तथा गुर्जरी महल बनवाए थे।
• अन्तिम तोमर राजा विक्रमादित्य को हराकर इब्राहिम लोदी ने ग्वालियर पर आधिपत्य कर लिया था।
◇ गोण्ड राजवंश
• गोण्ड राजवंश की स्थापना यादव राय ने गढ़ कटंगा में की थी।
• गोण्ड राजवंश का सबसे प्रसिद्ध राजा संग्राम शाह था।
• इस राजवंश की शासिका रानी दुर्गावती भी रहीं थी। इन्होंने मध्य प्रदेश के गोण्डवाना क्षेत्र में शासन किया। यह मुगल सम्राट अकबर के समकालीन थीं।
• मुगल शासक अकबर के सिपहसालार आसफ खाँ ने रानी दुर्गावती को पराजित कर गोण्डवाना क्षेत्र में मुगल साम्राज्य का विस्तार किया।
◇ मुगलकाल
• बाबर ने राणा सांगा को खानवा युद्ध (1627 ई.) में परास्त करके मालवा क्षेत्र पर नियन्त्रण कर लिया था।
• अकबर के समय मालवा का शासक बहादुरशाह था, अकबर ने बहादुरशाह पर आक्रमण किया, इस युद्ध में बहादुरशाह की पराजय हुई, जिसे बाद में अकबर ने अपने नवरत्नों में स्थान दिया। गोण्डवाना विजय अकबर की महत्त्वपूर्ण विजय थी।
◇ बुन्देला वंश
• बुन्देला वंश का उदय 14वीं शताब्दी में हुआ था।
• इस वंश के शासक रुद्रप्रताप बुन्देला ने 1531 ई. में ओरछा को अपनी राजधानी बनाया था।
• इस वंश के शासक वीर सिंह बुन्देला ने मुगल बादशाह जहाँगीर के कहने पर अबुल फजल की हत्या की थी।
• वीर सिंह बुन्देला के पुत्र जुझार सिंह ने शाहजहाँ के विरुद्ध युद्ध किया था।
• इस वंश का प्रसिद्ध राजा छत्रसाल था, जिसने मुगलों के साथ युद्ध किया था, परन्तु बाद में मुगल दरबार में चार हजार का मनसब पद प्राप्त किया था।
• इस राजवंश के शासक हृदयशाह बुन्देला ने गढ़ा के समीप गंगासागर जलाशय का निर्माण करवाया था।
◇ बघेल राजवंश
• बघेल वंश का शासन भथा (रीवा) में था। इस वंश का पहला ज्ञात शासक धवल था।
• इस वंश के शासक वीरभान सिंह ने चौसा के युद्ध में हुमायूँ की सहायता की थी।
• बघेल वंश के शक्तिशाली शासक रामचन्द्र थे। इनके दरबार से ही संगीतज्ञ तानसेन को मुगल सम्राट अकबर ने अपने दरबार में बुला लिया था।