मध्य प्रदेश के वन सम्पदा
राज्य के प्रमुख वन निम्न हैं।
◇ सागौन (सागवान)
• इसका बॉटनीकल नाम टेक्टोनेग्रेण्डाई है।
• यह उष्ण कटिबन्धीय अर्द्ध पर्णपाती वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। यह राज्य के सर्वाधिक क्षेत्र में पाए जाते हैं।
• राज्य में सागौन के वृक्ष 18,332.67 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर फैले हुए हैं।
• यह वन 75 से 125 सेमी वर्षा वाले तथा काली मृदा के क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
• इनकी लकड़ी इमारती होती है, जो घरों एव लकड़ी के सामान बनाने के काम आती है।
• होशंगाबाद की बोरी घाटी जबलपुर, बैतूल आदि क्षेत्रों में यह वृक्ष अत्यधिक पाए जाते हैं।
◇ साल
• यह उष्णकटिबन्धीय अर्द्ध पर्णपाती वन के वृक्ष हैं। इसका बॉटनीकल नाम शोरीया रोबुस्ता है।
• राज्य के कुल वन क्षेत्रफल के 4.15% क्षेत्र में साल के वन पाए जाते हैं।
• साल की लकड़ी का प्रयोग रेलवे स्लीपर एवं इमारती लकड़ी के रूप में होता है।
• साल राज्य के लाल एवं पीली मिट्टी वाले तथा 125 सेमी वर्षा वाले पूर्वी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
• शहडोल, बालाघाट, उमरिया एवं मण्डला जिले में साल वृक्ष अधिक पाए जाते हैं, परन्तु साल के वृक्ष बोर नामक कीड़े से क्षतिग्रस्त हो रहे हैं।
◇ बाँस
• राज्य में बाँस दक्षिणी एवं पूर्वी जिलों शहडोल, अनूपपुर, बालाघाट, बैतूल, जबलपुर, सिवनी, मण्डला, खण्डवा एवं होशंगाबाद में पाया जाता है।
• इसका बॉटनीकल नाम डेण्डोकेलेमस है। यह 75-125 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं।
• बाँस का प्रयोग अमलाई एवं नेपानगर के कागज कारखानों में तथा भवन निर्माण के लिए किया जाता है। बालाघाट एवं होशंगाबाद वन वृत्त बाँस के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
• बाँस उत्पादन में मध्य प्रदेश का स्थान देश में अरुणाचल प्रदेश के बाद दूसरा है।
◇ खैर
• राज्य में शिवपुरी तथा बानमौर में कत्था बनाने के कारखाने हैं, जिन्हें खैर की लकड़ी श्योपुर, शिवपुरी, गुना तथा मुरैना के वनों से मिलती है।
• खैर राज्य के जबलपुर, सागर, दमोह, उमरिया इत्यादि जिलों में भी पाया जाता है।
• इसका प्रयोग पेण्ट, चर्मशोधन औषधि आदि में होता है।
◇ लाख
• राज्य में पलास, कुसुम, बेर के वृक्षों तथा अरहर के पौधे से लाख प्राप्त होती है। उमरिया में लाख बनाने का कारखाना है।
• राज्य में लाख मण्डला, जबलपुर, सिवनी, शहडोल तथा होशंगाबाद के वनों में पाया जाता है।
• इसका प्रयोग औषधि, चर्म शोधन, रसायन एवं सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में किया जाता है।
◇ हर्रा
• हर्रा मुख्यतः छिन्दवाड़ा, बालाघाट, मण्डला, श्योपुर एवं शहडोल के वनों से प्राप्त होता है।
• हर्रा वृक्ष के फलों में 35 से 40 प्रतिशत के तक ट्रैनिंग पाई जाती है।
• इसका प्रयोग चर्म शोधन, स्याही, पेन्ट तथा औषधि के रूप में किया जाता है।
◇ तेन्दूपत्ता
• मध्य प्रदेश तेन्दूपत्ता का सबसे बड़ा संग्राहक है।
• यह मुख्यतः सागर, जबलपुर, शहडोल एवं सीधी जिलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
• तेन्दूपत्ता का प्रयोग मुख्यतः बीड़ी बनाने में होता है।
◇ गोंद
. गोंद का उत्पादन ग्वालियर, खण्डवा, मुरैना, शिवपुरी तथा रतलाम आदि जिलों में किया जाता है।
• यह बबूल, कूल्लू एवं सलाई इत्यादि वृक्षों से प्राप्त होता है।
• गोंद का प्रयोग तीन रूपों में होता है, जिसमें बबूल का प्रयोग खाने में, कुल्लू का प्रयोग कॉफी एवं पेस्टी बनाने में तथा सलाई गोंद का प्रयोग पेण्ट तथा वार्निश बनाने में किया जाता है।
• इसके अतिरिक्त गोंद का प्रयोग पेपर प्रिण्टिंग, दवा उद्योग आदि में किया जाता है।
◇ भिलावा
• भिलावा एक फल का नाम है। भिलावा मुख्य रूप से छिन्दवाड़ा वन वृत्त से एकत्रित किया जाता है।
• इसका प्रयोग स्याही एवं पेण्ट बनाने में किया जाता है।
• छिन्दवाड़ा जिले में भिलावा से स्याही बनाने का कारखाना है।
《मध्य प्रदेश के औषधीय पौधे》
मध्य प्रदेश के प्रमुख औषधीय पौधे काली हल्दी (करकूमा केशिया), मुल्हटी (ग्लेशिरहिजा गलेब्रा), जंगली हल्दी (करकूमा एरोमैटिका), काली मूसली (करकुलिगो आर्कियोडीज़), अश्वगन्धा (विथेनिआ सोमनिफेरा), सर्पगन्धा (राउवोल्फिआ सर्पेन्टिना), सफेद मूसली (क्लरोफायटम टयूबरोसम), नागरमोठा (साइप्रस स्कारिओसस) आदि है।
《राज्य के सर्वाधिक वन क्षेत्र वाले पाँच जिले (फॉरेस्ट रिपोर्ट, 2019)》
क्र. जिला भौगोलिक कुल
सं. क्षेत्र
1. बालाघाट 9229 4932
2. छिन्दवाड़ा 11815 4588
3. बैतूल 10043 3663
4. सिवनी 8758 3069
5. रायसेन 8466 2676
《राज्य के निम्न वन क्षेत्र वाले पाँच जिले (फॉरेस्ट रिपोर्ट , 2019)》
क्र. जिला भौगोलिक कुल
सं. क्षेत्र
1. उज्जैन 6091 36.52
2. शाजापुर 6195 63.35
3. रतलाम 4861 59.85
4. मिण्ड 4459 106
5. राजगढ़ 6153 172