अध्याय 8 : ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका

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ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका

हम यह पहले भी पढ़ चुके हैं कि किस प्रकार किसी क्षेत्र का पर्यावरण वहां पर रहने वाले लोगों पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है वहां के पेड़ पौधे वहां की फसलें या दूसरी चीजें किस तरह उनके लिए महत्वपूर्ण हो जाती हैं इस अध्याय में हम गांव में लोग किन विभिन्न तरीकों से अपनी आजीविका चलाते हैं तथा सभी लोगों को एक प्रकार से आजीविका चलाने के समान अवसर उपलब्ध हैं इन सब समस्याओं को हम जानने का प्रयास करेंगे

 

कालपट्टू गाँव

तमिलनाडु के समुद्र तट के पास एक गांव है कल पट्टू यहां लोग कई तरह के काम करते हैं दूसरे गांव की तरह यहां भी खेती के अलावा कई काम होते हैं जैसे टोकरी बर्तन घड़े ईट बैलगाड़ी इत्यादि बनानातथा इस गांव में कुछ लोग सेवाएं भी प्रदान करते हैं जैसे नर्स शिक्षक धोबी बुनकर नई साइकिल ठीक करने वाले तथा लोहार

इसके अलावा यहां पर छोटी दुकानें भी दिखाई देती हैं जैसे चाय सब्जी कपड़े की दुकान तथा दो दुकानों बीज और खाद की तथा कुछ दुकानों पर टिफिन भी मिलता है यहां का मुख्य भोजन इडली डोसा उपमा

यह गांव छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है सिंचाई जमीन पर मुख्यता धान की खेती होती है और ज्यादातर परिवार खेती के द्वारा अपनी आजीविका कमाते हैं यहां आम और नारियल के काफी बाग हैं कपास गन्ना और अकेला भी उगाया जाता है

 

 

तुलसी

तुलसी एक भूमिहीन मजदूर है जो इस छोटे से गांव में एक जमीदार के यहां मजदूरी करती है तथा उसकी मजदूरी वर्षभर नियमित नहीं है क्योंकि वह खेत में केवल निराई कटाई वर उपाय के समय ही कार्य करती है तथा वर्ष के अन्य समय वह छोटे-मोटे काम करके अपना जीवन यापन करती है

जमीदार के यहां उससे ₹40 मजदूरी मिलती है जो की न्यूनतम मजदूरी से भी कम है तथा तुलसी के पति पास की नदी से बालू ढोने का काम करते हैं तथा तुलसी वर्ष के अन्य दिनों में घर के काम जैसे खाना बनाना कपड़े धोना व साफ सफाई करने का कार्य करती है तथा कम पैसों में अपनी आजीविका चलाती है

हमारे देश में ग्रामीण परिवार में से करीब 40% खेतिहर मजदूर हैं कुछ के पास जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं बाकी मजदूर भूमिहीन है कई बार जब पूरे साल उन्हें काम नहीं मिलता तो वह दूरदराज के इलाकों में काम की तलाश में पलायन करते हैं

 

 

 शेखर

शेखर एक किसान है जो अपनी भूमि पर कृषि करता है तथा उसे कृषि करने के लिए धन की आवश्यकता होती है जिसके लिए वह व्यापारी से खाद और बीज उधार लेता है और बदले में अपनी फसल उसी व्यक्ति को भेजता है इस पूरे लेनदेन में शेखर को कम फसल प्राप्त हो पाती है तथा वह अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि के अलावा चावल की मिल में कार्य करता है और अपनी गाय का दूध सहकारी समिति में भेज देता है

 

 

 साहूकारों द्वारा कर्ज लेने पर

 

शेखर की तरह कई छोटे किसान साहूकारों से कर्ज लेते हैं तथा उस पैसे को बीज खाद व कीटनाशक में इस्तेमाल करते हैं फसल के खराब होने की स्थिति में किसानों की लागत भी नहीं निकल पाती और उन्हें अपने आजीविका चलाने के लिए साहूकारों से और कर्ज लेना पड़ता है धीरे-धीरे यह कर्ज इतना बढ़ जाता है कि किसान उसे चुका नहीं पाते कई क्षेत्रों में किसानों ने कर्ज के बोझ से दब कर आत्महत्या कर ली

 

रामलिंगम और करुथम्मा

रामलिंगम के पास चावल की मील बीज व कीटनाशक की दुकान और भूमि का बड़ा टुकड़ा मौजूद था और सरकारी बैंक से कुछ पैसा कर्ज लिया हुआ था इस प्रकार रामलिंगम के पास अच्छा खासा पैसा मौजूद था

यह साहूकार आसपास के गांव से ही धान खरीदते हैं मेल का चावल आसपास के शहरों के व्यापारियों को बेचा जाता है इससे उनकी अच्छी खासी कमाई हो जाती है

 

 भारत के खेतिहर मजदूर और किसान

कलपट्टू गांव में तुलसी की तरह के खेतिहर मजदूर हैं शेखर की तरह के छोटे किसान हैं और रामलिंगम की तरह साहूकार हैं भारत में प्रत्येक 5 ग्रामीण परिवारों में से लगभग 2 परिवार खेतिहर मजदूर हैं ऐसी सभी परिवार अपनी कमाई के लिए दूसरों के खेतों पर निर्भर करते हैं इनमें से कई भूमिहीन है और कई के पास जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं

छोटे किसानों को ले तो उनकी जरूरतों के हिसाब से खेत बहुत ही छोटे पढ़ते हैं भारत में 80% किसानों की यही हालात हैं भारत में केवल 20% किसान बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं ऐसे किसान गांव की अधिकतर जमीन पर खेती करते हैं उनकी उपज का बहुत बड़ा भाग बाजार में बेचा जाता है कई बड़े किसानों के अन्य काम धंधे भी शुरू कर दिए हैं जैसे दुकान चलाना शुद्ध पर पैसा देना छोटी-छोटी फैक्ट्रियां चलाना इत्यादि

मध्य भारत के कुछ गांव में खेती और जंगल की उपज दोनों ही आजीविका के लिए महत्वपूर्ण साधन है महुआ बनाने तेंदू के पत्ते इकट्ठा करने शहद निकालने और इन्हें व्यापारियों को बेचने जैसे काम अतिरिक्त आय में मदद करते हैं इसी तरह सहकारी समिति को यह पास के शहर के लोगों को दूध बेचना भी कई लोगों के लिए आजीविका कमाने का मुख्य साधन है

 

 अरुणा और पारीवेलन

पुडुपेट कल पट्टू से ज्यादा दूर नहीं है यहां लोग मछली पकड़ कर अपनी आजीविका चलाते हैं उनके घर समुद्र के पास होते हैं और जहां चारों और जाल केटामरैंन की पंक्तियां दिखाई देती हैं सुबह 7:00 बजे समुद्र किनारे पड़ी गहमागहमी रहती है इस समय सारे लोग मछलियां पकड़ कर लौट आते हैं मछली खरीदने और बेचने के लिए बहुत सारी औरतें इकट्ठा हो जाती हैं

 

यहां पर ज्यादातर लोग मछलियां की नीलामी करके अपनी आजीविका चलाते हैं तथा बैंकों से पैसा उधार लेकर अपनी छोटी नाव व जाल खरीदते हैं तथा मछलियां बेचकर बैंकों को पैसा वापस लौट आते हैं

नीलामी में जो औरतें यहां से मछलियां खरीदती हैं वे टोकरी भर भर कर पास के गांव में बेचने के लिए जाती हैं कुछ व्यापारी भी है जो शहर की दुकानों के लिए मछलियां खरीदते हैं

हर साल मानसून के दौरान करीब 4 महीने तक मछली पकड़ने का कार्य नहीं होता क्योंकि यह समय मछलियों के प्रजनन का होता है इन महीनों में मछुआरे व्यापारियों से उधार ले कर अपना गुजारा चलाते हैं इस कारण बाद में मछुआरे मजबूरी में उसी व्यापारी को अपनी मछली बेचते हैं

 

ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका के साधन

जैसा कि हमने देखा ग्रामीण क्षेत्र में कुछ लोग खेती बाड़ी का काम करते हैं जिसमें खेत तैयार करना रोपाई बनवाई निराई कटाई इत्यादि कार्य शामिल हैं तथा किसान अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाते हैं जिससे वह वर्ष भर अपनी आजीविका चला सकें

कुछ लोग कृषि के अलावा छोटे-मोटे कार्य करते हैं जैसे चाय बेचना लोहार धोबी के कार्य

तथा कुछ लोग मछली पकड़ने जैसे कार्य में भी शामिल है

 

 

 

अध्याय 9 शहरी क्षेत्र में आजीविका

 

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