शिक्षा मनोविज्ञान क्या है?, परिभाषाएं ,कार्य क्षेत्र ,प्रकृति ,उपयोगिता ,विशेषताएं

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❍ शिक्षा क्या है?

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❍ शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत निम्न विषयों का अध्ययन करते हैं

शिक्षा दार्शनिक, जॉन डिवी के विचार

जॉन डिवी का मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो स्कूल छोड़ने के बाद भी काम आए।

शिक्षा शब्द संस्कृत के शिक्ष् धातु से बना है जिसका अर्थ है सीखना या सिखाना। यानि इस अर्थ में शिक्षा सीखने-सिखाने की प्रक्रिया है। शिक्षा के लिए विद्या शब्द का भी उपयोग किया जाता है जिसका अर्थ होता है जानना। एजुकेशन शब्द लैटिन भाषा के चार शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है प्रशिक्षित करना, अन्दर से बाहर निकालना, पालन पोषण करना और आंतरिक से वाह्य की तरफ जाना।

 

 

❍ शिक्षा मनोविज्ञान क्या है?

कृष्णमूर्ति का शिक्षा दर्शन, जे कृष्णमूर्ति के विचारशिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक व्यावहारिक शाखा है। मनोविज्ञान के सिद्धांतों का शिक्षण प्रक्रिया में इस्तेमाल करना और शैक्षिक समस्याओं के समाधान में प्रयोग करना शिक्षा मनोविज्ञान के दायरे को परिभाषित करता है।

यानि शिक्षा मनोविज्ञान का संबंध मनोविज्ञान के सिद्धांतों और शिक्षा के सिद्धांतों व समस्याओं दोनों से है। मनोविज्ञान व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन करता है, जबकि शिक्षा में व्यवहार के परिमार्जन व सामाजिकरण के ऊपर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

 

 

 

❍ शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएं

क्रो एण्ड क्रो, “शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।”

कॉलसनिक के अनुसार, “मनोविज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में करना शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है।”

स्कीनर के मुताबिक, “शैक्षणिक परिस्थितियों में मानव व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है।”

 

❍ मनोविज्ञान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम रुडोल्फ गोयकल को जाता है।

❍ विलियम जेम्स ने दर्शन शास्त्र से मनोविज्ञान का मुक्त कराया।

❍ अमेरिका में मनोविज्ञान के जनक विलियम जेम्स ही है । मनोविज्ञान की शाखा शिक्षा मनोविज्ञान की उत्पति 1900 ई.में मानी जाती है।

 

❍ थार्नडाइक , टरमन , फ्रोबेल , हरबल , आदि के प्रयासों से 1920 में शिक्षा मनोविज्ञान को स्पष्ट स्वरूप प्राप्त हुआ।

❍ प्रथम शैक्षिक मनोवैज्ञानिक थार्नडाइक को माना जाता है।

❍ रूसो :- बालक एक पुस्तक के समान है जिसका अध्ययन प्रत्येक अध्यापक को करना चाहिए।

 

❍ क्रो क्रो :- शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से वृद्धावस्था तक एक व्यक्ति के सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।

❍ फ्रोबेल :- शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक बालक अपनी जन्मजात शक्तियों का विकास करता है।

 

 

❍ मनोविज्ञान का शिक्षा के साथ संबंध-

 

1 . मनोविज्ञान तथा शिक्षा के उद्देश्य :- मनोविज्ञान के द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है अथवा नहीं. शिक्षक ने अपने उद्देश्य में कितनी सफलता प्राप्त की है यह भी मनोविज्ञान के द्वारा जाना जा सकता है.

2. मनोविज्ञान तथा पाठ्यक्रम :- मनोविज्ञान ने बालक के सर्वागींण विकास में पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को महत्वपूर्ण बनाया है. इसीलिये विद्यालयों में खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि की विषेष रूप से व्यवस्था की जाती है.

3. मनोविज्ञान तथा पाठ्य पुस्तकें :- पाठ्य पुस्तकों का निर्माण बालक की आयु, रूचियों और मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखकर करना चाहिये.

4. मनोविज्ञान तथा समय सारणी :- शिक्षा में मनोविज्ञान द्वारा दिया जाने वाला मुख्य सिद्धान्त है कि नवीन ज्ञान का विकास पूर्व ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिये.

5. मनोविज्ञान तथा शिक्षा विधियां :- मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षण विधियों में बालक के स्वयं सीखने पर बल दिया गया. इस उद्देश्य से ‘करके सीखना’, खेल द्वारा सीखना, रेड़ियो पर्यटन, चलचित्र आदि को शिक्षण विधियों में स्थान दिया गया.

6. मनोविज्ञान तथा अनुशासन :- मनोविज्ञान द्वारा प्रेम, प्रशंसा और सहानुभूति को अनुशासन के लिये एक अच्छा आधार माना है.

7. मनोविज्ञान तथा अनुसंधान :- मनोविज्ञान ने सीखने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में खोज करके अनेक अच्छे नियम बनायें हैं. इनका प्रयोग करने से बालक कम समय में और अधिक अच्छी प्रकार से सीख सकता है.

8. मनोविज्ञान तथा परीक्षायें :- मनोविज्ञान द्वारा बुद्धि परीक्षा, व्यक्तित्व परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा जैसी नई विधियों को मूल्यांकन के लिये चयनित किया गया है.

9. मनोविज्ञान तथा अध्यापक :- शिक्षा में तीन प्रकार के सम्बन्ध होते हैं – बालक तथा शिक्षक का सम्बन्ध, बालक और समाज का सम्बन्ध तथा बालक और विषय का सम्बन्ध. शिक्षा में सफलता तभी मिल सकती है जब इन तीनों का सम्बन्ध उचित हो.

10- मनोवैज्ञानिक प्रयोग :-मनोविज्ञान में अवधान, अधिगम, स्मृति, थकान, स्थानांतरण, कल्पना, तर्क, विस्मृति आदि से संबंधित अनेक प्रयोग हुए हैं इन मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान में किया जाता है और इन प्रयोगों के आधार पर बालक को की शिक्षा व्यवस्था में वांछनीय परिवर्तन और सुधार किए जाते हैं।

 

 

 

❍ शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत निम्न विषयों का अध्ययन करते हैं 

 

1- वंशानुक्रम एवं वातावरण (Heredity and Environment)- 

शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत बालक के वंशानुक्रम और वातावरण का अध्ययन किया जाता है इस अध्ययन से यह जानने का प्रयास किया जाता है कि उस पर वंशानुक्रम का अधिक प्रभाव पड़ा है या वातावरण का और बाद उसमें सुधार करने का प्रयास किया जाता है।

 

2- विकास(Development)-  

शिक्षा मनोविज्ञान में बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाओं- शैशवावस्था, बाल्यावस्था और किशोरावस्था – की विशेषताओं और उन में होने वाले शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक आदि परिवर्तनों और उनके अनुरूप प्रदान की जाने वाली शिक्षा का अध्ययन किया जाता है।

 

3- वैयक्तिक भिन्नता (Individual Differences)- 

संसार में सभी व्यक्ति एक समान नहीं होते। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी विशेषताएं होती है जो उसको दूसरों से अलग करती है व्यक्ति में पाई जाने वाली विभिन्न नेताओं को व्यक्तिक भिन्नता कहा जाता है। बालकों में पाई जाने वाली इस भिन्नता का शिक्षा में बहुत महत्व है। व्यक्तिक भिन्नता के प्रकार अस्तर कारण और उनके अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था मनोविज्ञान का अध्ययन विषय है।

 

4- अधिगम (Learning)- 

अधिगम शिक्षा मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण प्रत्यय है। इसके अंतर्गत अधिगम के सिद्धांत,अधिगम के प्रकार,अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक, अधिगम संक्रमण आदि का अध्ययन किया जाता है।

 

5- मनोशारीरिक तत्व (psychophysical Factors)-

 मानसिक और शारीरिक तत्वों का बालक की शिक्षा पर पड़ते प्रभाव का अध्ययन शैक्षिक मनोविज्ञानअध्ययन विषय है। बालक की आवश्यकताओं,मूल प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं, थकान, रुचि, अरुचि आदि का सर्वांग अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान में किया जाता है।

 

6- मानसिक स्वास्थ्य (mental health)-

 संतुलित जीवन व्यतीत करने के लिए पारिवारिक जीवन में संतुलन स्थापित करने के लिए, स्वस्थ और सामाजिक जीवन के लिए शिक्षा जगत में उन्नति करने के लिए और व्यवसायिक कुशलता प्राप्त करने के लिए उत्तम मानसिक स्वास्थ्य का होना अधिक आवश्यक है शिक्षा मनोविज्ञान मैं मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित विषयों का अध्ययन किया जाता है। जिससे शिक्षकों और छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम रहे तथा मानसिक रोगों,तनाव, संघर्षों और कुंण्ठाओं से दूर रहें।

 

7- मापन और मूल्यांकन (Measurement and Evaluation)-

 शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत परिवर्तनों शैक्षिक उपलब्धियों और मानसिक योग्यताओं के मापन और मूल्यांकन के लिए प्रयोग किए जाने वाले परीक्षणों का अध्ययन किया जाता है। बुद्धि परीक्षण, निष्पत्ति परीक्षण, रुचि परीक्षण, अभिरुचि परीक्षण, प्रवणता परीक्षण, सृजनात्मक परीक्षण आदि इसके अध्ययन विषय है।

 

8- पाठ्यक्रम निर्माण (Curriculum Construction)-

 पाठ्यक्रम निर्माण के संबंध में भी शिक्षा मनोविज्ञान में अध्ययन किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा इस बात का प्रयास किया जाता है। कि पाठ्यक्रम का निर्माण ऐसे सिद्धांतों के आधार पर किया जाए, जो बालकों के लिए उपयोगी हो, उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने वाला हो और जिससे वह सरलता और सहजता से ग्रहण कर सके।

 

9- शिक्षण विधियां (Teaching Method)- 

शिक्षा की नवीन विधियों का विकास करना और उनको मान्यता प्रदान करना शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत आता है। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षण विधियों की उपयोगिता और अनुउपयोगिता का अध्ययन करता है। और यह बताता है कि शिक्षण विधि इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे बालक अच्छी तरह से ज्ञान अर्जन कर सके।

 

 

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र – शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ तथा उसके उद्देश्य से स्पष्ट है कि शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थी (Learner), अध्यापक (Teacher) तथा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया (Teaching-Learning Process) का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए स्किनर ने लिखा है कि शिक्षा मनोविज्ञान के कार्य क्षेत्र में वह सभी ज्ञान तथा प्राविधियाँ सम्मिलित हैं जो सीखने की प्रक्रिया को अधिक अच्छी प्रकार से समझने तथा अधिक निपुणता से निर्देशित करने से सम्बन्धित हैं। आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख कार्यक्षेत्र निम्नवत हैं-

 

 

(i) वंशानुक्रम (Heredity) –

वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात योग्यताओं से सम्बन्धित होता है। किसी व्यक्ति के वंशानुक्रम में ऐसी समस्त शारीरिक, मानसिक अथवा अन्य विशेषतायें आ जाती हैं जिन्हें वह अपने माता-पिता अथवा अन्य पूर्वजों से (जन्म के समय नहीं वरन्) जन्म से लगभग नौ माह पूर्व गर्भाधान समय प्राप्त करता है। मनोवैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि बालक के विकास के प्रत्येक पक्ष पर सके वंशानुक्रम का प्रभाव पड़ता है। शारीरिक संरचना, मूल प्रवृत्तियाँ, मानसिक योग्यता, व्यावसायिक ममता आदि पर व्यक्ति के वंशानुक्रम का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। शैक्षिक विकास की दृष्टि में वंशानुक्रम का अध्ययन करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वंशानुक्रम के ज्ञान के आधार पर अध्यापक अपने छात्रों का वांछित विकास कर सकता है।

(ii) विकास (Development) –

शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत भ्रूणावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त होने वाले मानव के विकास का अध्ययन किया जाता है। मानव जीवन का प्रारम्भ किस प्रकार से होता है तथा जन्म के उपरान्त विभिन्न अवस्थाओं – शैशवावस्था, वाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा प्रौढ़ावस्था में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि पक्षों में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, इसका अध्ययन करना शिक्षा मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण विषय क्षेत्र है। बालकों की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले विकास के ज्ञान से उनकी सामर्थ्य तथा क्षमता के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान मिलता है।

 

(ii) व्यक्तिगत भिन्नता (Individual Differences)

 

संसार में कोई भी दो व्यक्ति एक दूसरे के पूर्णतया समान नहीं होते हैं। शारीरिक, सामाज सामाजिक व मानसिक आदि गुणों में व्यक्ति एक दूसरे से पर्याप्त भिन्न होते हैं। अध्यापक को अपनी कक्षा में ऐसे छात्रों का सामना करना होता है जो परस्पर काफी भिन्न होते हैं। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के ज्ञान की सहायता से अध्यापक अपने शिक्षण कार्य को सम्पूर्ण कक्षा
की आवश्यकताओं तथा योग्यताओं के अनुरूप व्यवस्थित कर सकता है।

(iv) व्यक्तित्व (Personality)-

शिक्षा मनोविज्ञान मानव के व्यक्तित्व तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं का भी अध्ययन करता है। मनोविज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि मानव के विकास तथा उसकी शिक्षा में व्यक्तित्व की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। अतः बालक के व्यक्तित्व का संतुलित विकास करना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व हो जाता है। मनोविज्ञान व्यक्तित्व की प्रकृति, प्रकारों, सिद्धान्तों का ज्ञान प्रदान करके संतुलित व्यक्तित्व के विकास की विधियां बताता है। अतः शिक्षा मनोविज्ञान का एक कार्यक्षेत्र व्यक्तित्व का अध्ययन करके बालक के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करना भी है।

 

(v) अपवादात्मक बालक (Exceptional Child)-

शिक्षा मनोविज्ञान अपवादात्मक बालकों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा व्यवस्था का आग्रह करता है। वास्तव में तीव्र बुद्धि या मन्द बुद्धि बालकों तथा गूंगे, बहरे, अंधे बालकों के द्वारा सामान्य शिक्षा का समान लाभ उठाने की कल्पना करना त्रुटिपूर्ण ही होगा। ऐसे बालकों के लिए इनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था का आयोजन करना होता है। शिक्षा मनोविज्ञान इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।

 

(vi) अधिगम प्रक्रिया (Learning Process)-

शिक्षा प्रक्रिया का प्रमुख आधार अधिगम है। सीखने के अभाव में शिक्षा की कल्पना की ही नहीं जा सकती। शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के नियमों, सिद्धान्तों तथा विधियों का ज्ञान प्रदान करता है। प्रभावशाली शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक सीखने की प्रकृति, सिद्धान्त, विधियों के ज्ञान के साथ-साथ सीखने में आने वाली कठिनाइयों को समझे तथा उनको दूर करने के विभिन्न उपायों से भी भलीभांति परिचित हो। सीखने का स्थानान्तरण कैसे होता है? तथा शैक्षिक दृष्टि से इसका क्या महत्व है? यह जानना भी अध्यापक के लिए उपयोगी होता है। इन सभी प्रकरणों की चर्चा शिक्षा मनोविज्ञान करता है।

 

(vii) पाठ्यक्रम निर्माण (Curriculum Development)-

वर्तमान समय में पाठ्यक्रम को शिक्षा प्रक्रिया का एक जीवन्त अंग स्वीकार किया जाता है तथा पाठ्यक्रम निर्माण में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों, प्रयोग किया जाता है। विभिन्न स्तरों के बालक व बालिकाओं की आवश्यकताएँ, विकासात्मक विशेषताएँ, अधिगम शैली आदि भिन्न-भिन्न होती हैं। पाठ्यक्रम निर्माण के समय इन सभी का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक तथा महत्वपूर्ण होता है।

 

(viii) मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)

अध्यापकों तथा छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का शैक्षिक दृष्टि से विशेष महत्व है। जब तक अध्यापक तथा छात्रगण मानसिक दृष्टि से स्वस्थ तथा प्रफुल्लित नहीं होंगे, तब तक प्रभावशाली अधिगम सम्भव नहीं है। मनोविज्ञान मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का ज्ञान प्रदान करता है तथा कुसमायोजन से बचने के उपायों को खोजता है।

 

(ix) शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) –

शिक्षण का अभिप्राय छात्रों के सम्मुख ज्ञान को प्रस्तुत करना मात्र नहीं है। प्रभावशाली शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि छात्र प्रभावशाली ढंग से ज्ञान को ग्रहण करने में समर्थ हो सके। शिक्षा मनोविज्ञान बताता है कि जब तक छात्रों को पढ़ने के प्रति अभिप्रेरित नहीं किया जायेगा, तब तक अध्यापन में सफलता मिलना संदिग्ध होगा। यह भी स्मरणीय होगा कि सभी स्तर के बालकों के लिए अथवा सभी विषयों के लिए कोई एक सर्वोत्तम शिक्षण विधि सम्भव नहीं होती है। शिक्षा मनोविज्ञान प्रभावशाली शिक्षण के लिए उपयुक्त शिक्षण विधियों का ज्ञान प्रदान करता है।

 

(x) निर्देशन व समुपदेशन (Guidance and Counselling) –

शिक्षा एक अत्यंत व्यापक तथा बहु-आयामी प्रक्रिया है। समय-समय पर छात्रों को तथा अन्य व्यक्तियों को शैक्षिक व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक निर्देशन व परामर्श प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। छात्रों को किस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहिए, किस व्यवसाय में वे अधिकतम सफलता अर्जित कर सकते हैं, उनकी समस्याओं का समाधान कैसे हो सकता है जैसे प्रश्नों का उत्तर शिक्षा मनोविज्ञान ही प्रदान कर पाता है।

 

(xi) मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation) –

छात्रों की विभिन्न योग्यताओं, रुचियों तथा उपलब्धियों का मापन व मूल्यांकन करना अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा आवश्यक होता है। मापन तथा मूल्यांकन की सहायता से एक ओर जहाँ छात्रों की सामर्थ्य, रुचियों तथा परिस्थितियों का ज्ञान होता है, वहीं दूसरी ओर शिक्षण-अधिगम की सफलता-असफलता का ज्ञान भी प्राप्त होता है। शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययनों में छात्रों की योग्यताओं तथा उपलब्धियों का मापन व मूल्यांकन करने वाले विभिन्न उपकरण बहुतायत से प्रयुक्त किए जाते हैं।

 

 

❍ Education लैटिन E – अंदर से Duco – बाहर निकलना

❍ Education शब्द की उत्पति लैटिन भाषा के दो अन्य शब्दो से भी मानी जाती है।

Educare – पालन पोषण करना
Educere – आगे बढ़ाना

 

❍ मानव व्यवहार का अध्ययन कर उसमें परिवर्तन या परिमार्जन करना ही शिक्षा मनोविज्ञान है।

❍ शिक्षा का अर्थ :- बालक की अंर्तनिहित योग्यताओं को बाहर निकालकर उसके व्यवहार में परिवर्तन करना है।

 

❍ शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति :

1.शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है।
2.शिक्षण आमने सामने होने वाली प्रक्रिया है।
3.शिक्षण अधिगम से संबंधित है।
शिक्षण व्यवहार को स्वरूप प्रदान करता है।
4.शिक्षण स्मृति स्तर से अवाबोध न स्तर तक होता है।
5.शिक्षण कला और विज्ञान है।
6.शिक्षण भाषायी प्रक्रिया है।
7.शिक्षण क्रियाओं की एक प्रणाली है।
8.शिक्षण विकास की प्रक्रिया है।
9.शिक्षण एक उपचार विधि है।
10.शिक्षण उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है।
11.शिक्षण कठिनाइयों का निदान करता है।
12.शिक्षण एक त्रिविमीय प्रक्रिया है जो शिक्षक, विद्यार्थी और सहायक सामग्री पर निर्भर करती है।

 

 

 

❍ शिक्षक के लिए मनोविज्ञान की उपयोगिता :-

 

शिक्षक के लिए मनोविज्ञान की क्या उपयोगिता है ? वह इसका प्रयोग किस प्रकार कर सकता है ? उसको इससे किस प्रकार सहायता मिल सकती है ? हम इन और इनसे सम्बन्धित अन्य प्रश्नों पर निम्नांकित पंक्तियों में अपने विचारों को व्यक्त कर रहे हैं
स्वयं का ज्ञान व तैयारी

व्यक्ति किसी कार्य को करने में तभी सफल होता है, जब उसमें उस कार्य को करने की योग्यता होती है। शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से अध्यापक अपने में निहित स्वभाव, बुद्धि स्तर, व्यवहार, योग्यता आदि का ज्ञान प्राप्त करता है। यह ज्ञान उसे शिक्षण कार्य में सफल बनने में सहायता देता है और इस प्रकार उसकी व्यावसायिक तैयारी में अत्यधिक योग देता है।

स्किनर का मत है – “शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों की तैयारी की आधारशिला है।”

 

 

❍ बाल विकास का ज्ञान :-

मनोविज्ञान के अध्ययन से शिक्षक को बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान हो जाता है। वह इन अवस्थाओं में बालकों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि विशेषताओं से परिचित हो जाता है। वह इन विशेषताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न अवस्थाओं के बालकों के लिए पाठ्य विषयों और क्रियाओं का चुनाव करने में सफलता प्राप्त करता है।

 

 

❍  बाल स्वभाव व व्यवहार का ज्ञान :-
शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को बालक के स्वभाव और व्यवहार से अवगत कराता है। इन दोनों बातों के आधार बालक की मूल प्रवृत्तियाँ और संवेग होते हैं। अध्यापक विभिन्न अवस्थाओं के बालकों की मूल प्रवृत्तियों और संवेगों से परिचित होने के कारण उनका अधिक उत्तम शिक्षण और निर्देशन करने में सफल होता है।

रेबन का मत है – “हमें बाल स्वभाव और व्यवहार का जितना अधिक ज्ञान होता है, उतना ही अधिक प्रभावपूर्ण बालक से हमारा सम्बन्ध होता है। मनोविज्ञान हमें यह ज्ञान प्राप्त करने में सहायता दे सकता है।”

 

 

❍ बालकों का चरित्र निर्माण :-

शिक्षा मनोविज्ञान, बालकों के चरित्र निर्माण में सहायता देता है। यह शिक्षक को उन विधियों को बताता है, जिनका प्रयोग करके वह अपने छात्रों में नैतिक गुणों का विकास कर सकता है।

 

❍  बालकों का ज्ञान :-
शिक्षक अपने कर्तव्यों का कुशलता से पालन तभी कर सकता है, जब उसे अपने छात्रों का पूर्ण ज्ञान हो। वह भले ही अपने विषय और उसके शिक्षण में अद्वितीय योग्यता रखता हो, पर यदि उसे अपने छात्रों का ज्ञान नहीं है, तो उसे पग-पग पर निराशा को अपनी सहचरी बनाना पड़ता है। किसी विषय और उसके शिक्षण में योग्यता होना एक बात है। पर उनको छात्रों की रुचियों और क्षमताओं के अनुकूल बनाना दूसरी बात है, अतः

डगलस एवं हॉलैण्ड का मत है – “शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध छात्रों के अध्ययन से है, अतः यह उन व्यक्तियों के ज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंग होता है, जो शिक्षण कार्य करना चाहते हैं।”

 

 

❍  बालकों की आवश्यकता का ज्ञान :-
विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बालकों की कुछ आवश्यकताएँ होती हैं, जैसे – प्रेम, आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और किये जाने वाले कार्यों की स्वीकृति की आवश्यकता। यदि उनकी ये आवश्यकताएँ पूर्ण कर दी जाती हैं, तो वे सन्तुष्ट हो जाते हैं और फलस्वरूप, उनका विकास स्वाभाविक ढंग से होता है। शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को बालकों की इन आवश्यकताओं से अवगत कराता है।

स्किनर के शब्दों में – “अध्यापक शिक्षा मनोविज्ञान से प्रत्येक छात्र की अनोखी आवश्यकताओं के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं।”

 

❍  बालक की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान :-
मनोविज्ञान की खोजों ने सिद्ध कर दिया है कि बालकों की रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं आदि में अन्तर होता है। शिक्षक को कक्षा में ऐसे ही बालकों को शिक्षा – देनी पड़ती है। वह अपने इस कार्य में तभी सफल हो सकता है, जब वह मनोविज्ञान का अध्ययन करके उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं से पूर्णरूपेण परिचित हो जाय।

 

 

❍ बालकों की मूल प्रवृत्तियों का ज्ञान :

शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को बताता है कि मूल प्रवृत्तियाँ विभिन्न आयु के बालकों में किस प्रकार व्यवहार का कारण होती हैं। यह ज्ञान, शिक्षक के लिए बहुत लाभदायक होता है, क्योंकि शिक्षक, बालकों के व्यवहार के कारणों को समझकर उसमें वांछित परिवर्तन कर सकता है। इस प्रकार वह उनका, समाज का, विद्यालय का सभी का हित कर सकता है।

मैक्डूगल के अनुसार – “मूल प्रवृत्तियाँ सम्पूर्ण मानव व्यवहार की चालक हैं।”

 

 

❍  बालकों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास :-
शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य – बालकों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति में शिक्षा मनोविज्ञान अतिशय योग देता है। यह शिक्षक को उन विधियों की जानकारी प्रदान करता है, जिनका प्रयोग करने से बालकों के व्यक्तित्व का चतुर्मुखी विकास किया जा सकता है।

 

 

❍  कक्षा की समस्याओं का समाधान :-
कक्षा कक्ष की मुख्य समस्याएँ हैं – अनुशासनहीनता, बाल अपराध, समस्या बालक, छात्रों का पिछड़ापन आदि। शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षक को इन समस्याओं के कारणों को खोजने और इनको दूर करने में सहायता देता है। आज स्थिति यह है कि कक्षागत शिक्षण एवं व्यवहार, दोनों का अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा होता है।

प्रो. सुरेश भटनागर के अनुसार – “शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक की कक्षागत समस्याओं के मूल कारण समझने तथा समस्या समाधान के अवसर प्रदान करता है।”

 

 

❍ अनुशासन में सहायता :-
शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को अनुशासन स्थापित करने और रखने की अनेक नवीन विधियाँ बताता है। इस सम्बन्ध में मेलवी ने लिखा है – “जो शिक्षक अपने छात्रों की रुचि के अनुसार शिक्षा देते हैं, उनके सामने अनुशासन की कठिनाइयाँ बहुत कम आती हैं। जब हम पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों और शिक्षण सामग्री में सुधार करते हैं, तब हम अनुशासन की समस्याओं का पर्याप्त समाधान कर देते हैं या उनका अन्त कर देते हैं।”

 

 

❍  उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण :-
विकास की विभिन्न समस्याओं में बालकों की रुचियाँ, प्रवृत्तियाँ और आवश्यकताएँ विभिन्न होती हैं। मनोविज्ञान इन बातों का ज्ञान प्रदान करके अध्यापक को विभिन्न अवस्थाओं के बालकों के लिए उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण करने में सहायता देता है।

स्किनर ने लिखा है – “उपयोगी पाठ्यक्रम बालकों के विकास, व्यक्तित्व विभिन्नताओं, प्रेरणा मूल्यों और सीखने के सिद्धान्तों के अनुसार मनोविज्ञान पर आधारित होना आवश्यक है।”

 

 

 ❍ मूल्यांकन की नई विधियों का प्रयोग :-
मूल्यांकन, छात्र और अध्यापक, दोनों के लिए आवश्यक है। छात्र यह जानना चाहता है कि उसने कितना ज्ञान प्राप्त किया है। शिक्षक यह जानना चाहता है कि वह छात्र को ज्ञान प्रदान करने में किस सीमा तक सफल हुआ है। शिक्षा मनोविज्ञान मूल्यांकन की ऐसी अनेक विधियाँ बताता है, जिनका प्रयोग करने से छात्र अपनी प्रगति का और शिक्षक, छात्र की प्रगति का अनुमान लगा सकता है। शिक्षक को होने वाले एक अन्य लाभ के बारे में

स्किनर ने लिखा है – “शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान, शिक्षक को शिक्षक के रूप में अपनी स्वयं की कुशलता का मूल्यांकन करने में सहायता देता है।”

 

शिक्षा मनोविज्ञान की विशेषताएं (shiksha manovigyan ki visheshta)

शिक्षा मनोविज्ञान की निम्नलिखित विशेषताएं हैं– 

1. शिक्षा मनोविज्ञान की विषय सामग्रि का मुख्य उद्देश्य मानवीय व्यवहार को निर्देशित एवं संशोधित करना है। 

2. शिक्षा मनोविज्ञान एक व्यवहारिक विज्ञान है जिसका प्रयोग व्यक्ति के व्यवहार को समझकर उसके अनुसार शिक्षण प्रदान किया जाता है। 

3. शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक (Scientific) होती है। क्योंकि बालक के व्यवहार का अध्ययन वैज्ञानिक विधियों, नियमों एवं सिद्धांतों के आधार पर शैक्षणिक वातावरण में किया जाता हैं। 

4. शिक्षा-मनोविज्ञान की विभिन्न मनोवैज्ञानिक अवधारणाओं का शिक्षा के क्षेत्र में अनुप्रयोग किया जाता हैं। 

5. शिक्षा-मनोविज्ञान एक वस्तुपरक विज्ञान हैं। 

6. शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत मनोवैज्ञानिक बालक के पूर्ण व्यवहार का अध्ययन करता है, आँकड़े इकट्ठा करता है, खोज करता है तभी किसी निर्णय पर पहुँचता है। अतः शिक्षा-मनोविज्ञान एक प्रकार से प्रकृति विज्ञान हैं। 

7. शिक्षा मनोविज्ञान छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने मे सक्षम है

 

 

 

शिक्षा मनोविज्ञान BEST BOOKS 

  1. शिक्षा मनोविज्ञान वंदना जादौन
  2. Avni Objective Education Psychology
  3. Shiksha Manovigyan

 

 

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