भारत में 5000 से ज्यादा शहर और 27 महानगर हैं चेन्नई मुंबई दिल्ली कोलकाता जैसे प्रत्येक महानगर में 1000000 से ज्यादा लोग रहते हैं और काम करते हैं क्या बे नौकरी करते हैं या अपने रोजगार में लगे हैं वह अपना जीवन कैसे चलाते हैं क्या रोजगार और कमाई के मौके समान रूप से सभी को मिलते हैं आइए जाने का प्रयास करते हैं
सड़कों पर काम करना
बड़े-बड़े शहरों और महानगरों में कुछ लोग सड़कों के किनारे अपना सामान बेचते हैं जैसे कि सब्जी बेचने वाले फुटपाथ पर फूल बेचने वाले छोटे खिलौने बेचने वाले नाई मोची तथा ठेलो पर कुछ सामान रख कर उसे बेचने वाले यह लोग स्वरोजगार में लगे हैं उनको कोई दूसरा व्यक्ति रोजगार नहीं देता इसलिए उन्हें अपना काम खुद ही संभालना पड़ता है वह खुद योजना बनाते हैं कि माल खरीदें और कहां वह कैसे अपनी दुकान लगाएं
अहमदाबाद शहर के एक सर्वे में पाया गया कि काम करने वालों में से 12% लोग सड़कों पर काम कर रहे थे
तथा बड़े शहरों में इन फुटपाथ पर बेचने वाले लोगों को यातायात और पैदल चलने वाले लोगों के लिए एक रुकावट की तरह देखा जाता है तथा पुलिस प्रशासन भी इन्हें अपनी दुकानें नहीं लगाने देती और इन व्यक्तियों को अपनी सुरक्षा की कोई सुविधा प्राप्त नहीं है
बाजार में दुकाने
बड़े-बड़े महानगरों में दुकानों की कतार लगी होती हैं जिसमें ज्यादातर दुकानें मिठाई खिलौने कपड़े चप्पल बर्तन बिजली के सामान मौजूद होते हैं यह स्थाई दुकानें होती हैं
बड़ी दुकाने
बड़े महानगरों में या शहरों में बड़ी दुकानें मौजूद होती हैं जिन्हें शोरूम कहते हैं यह बहुत बड़ी दुकानें होती हैं जिसमें हर प्रकार के सामान उपलब्ध होते हैं लेकिन यह छोटी दुकानें व फुटपाथ से महंगी होती हैं
इन दुकानों में जो माल आता है वह अलग-अलग शहरों जैसे मुंबई-अहमदाबाद लुधियाना दिल्ली गुड़गांव नोएडा जैसे क्षेत्रों से आता है
यह दुकाने अपने विज्ञापन भी चलाती हैं जो अखबारों टेलिविजन ओं रेडियो चैनल में आते हैं
इन बड़ी दुकानों में कुछ लोग नौकरियां भी करते हैं इन दुकानों में नगर निगम से व्यापार करने के लिए लाइसेंस होता है
लेबर चौक
बड़े शहरों में बहुत सारे अनियमित मजदूर होते हैं जो प्रतिदिन रोजगार के लिए समूहों में खड़े होते हैं जहां पर लोग उनसे काम के बदले मोल भाव कर सके इस स्थान को लेबर चौक के नाम से जाना जाता है यहां पर मिस्त्री भवन बनाने वाले लेबर ट्रक से सामान उतारने वाले टेलीफोन की लाइन पाइप लाइन की खुदाई करने वाले बहुत से मजदूर मौजूद होते हैं
फैक्ट्री
यहां पर बहुत से मजदूर कार्य करते हैं तथा फैक्ट्री के अंदर अलग-अलग विभाग बने होते हैं जहां पर हजारों लोग नौकरियां करते हैं फैक्ट्रियों में बहुत से मजदूर अलग-अलग प्रकार की मशीनों पर कार्य करते हैं
इस प्रकार के मजदूरों का वेतन अनियमित मजदूरों से ज्यादा होती है
तथा फैक्ट्रियों में कार्य करने वाले मजदूर सुबह 9:00 बजे से रात 10:00 बजे तक काम को पूरा करते हैं तथा सप्ताह में 6 दिन काम करते हैं रविवार को भी काम पर जाना पड़ता है अधिक समय तक काम करने के लिए इन मजदूरों को अतिरिक्त वेतन भी मिलता है
फैक्ट्रियों से तैयार माल को बड़े-बड़े बाजारों में बेचा जाता है तथा विदेशों में भी भेजा जाता है जिससे फैक्ट्रियां वर्षभर कार्य करती रहती है
दफ्तर (ऑफिस)
शहरों में महानगरों में बड़ी-बड़ी कंपनियां होती हैं और इन कंपनियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए बहुत सारे दफ्तर मौजूद होते हैं
इन दफ्तरों में मैनेजर तथा सेल्समैन जैसे व्यक्ति कार्य करते हैं
मैनेजर बहुत सारे सेल्समैन को कार्य का निर्देश देता है तथा निरीक्षण करता है सेल्समैन का कार्य होता है दुकानदारों से बड़े-बड़े आर्डर लेते हैं और उनसे भुगतान इकट्ठा करते हैं इस प्रकार से बड़ी कंपनियां अपने कार्य को नियंत्रित करती हैं
इन दफ्तरों में मैनेजर स्थाई कर्मचारी होते हैं स्थाई कर्मचारी होने के कारण उन्हें निम्नलिखित फायदे होते हैं
बुढ़ापे के लिए बचत
उनकी तनख्वाह का एक भाग भविष्य निधि में सरकार के पास डाल दिया जाता है इस बचत पर ब्याज भी मिलता है नौकरी से सेवानिवृत्त होने पर यह पैसा मिल जाता है
छुट्टियां
इतवार और राष्ट्रीय त्योहारों के लिए छुट्टी मिलती है उनको वार्षिक छुट्टियों के रूप में भी कुछ दिन मिलते हैं
परिवार के लिए चिकित्सा की सुविधा
कंपनी एक सीमा तक कर्मचारी और उनके परिवार जनों के इलाज का खर्चा उठाती है अगर तबीयत खराब हो जाए तो कर्मचारी को बीमारी के दौरान छुट्टी मिलती है
शहर में ऐसे कर्मचारी होते हैं जो दफ्तरों फैक्ट्रियों और सरकारी विभागों में काम करते हैं जहां उन्हें नियमित और स्थाई कर्मचारी की तरह रोजगार मिलता है वह लगातार उसी दफ्तर या फैक्ट्री में काम पर जाते हैं उनका काम भी तय होता है उनको हर महीने तनख्वाह मिलती है
अगर फैक्ट्री में काम कम होता है तो भी उन्हें नियमित रूप से काम करने वाले मजदूरों की तरह निकाला नहीं जाता