अध्याय 4. वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद / Forest Society and Colonialism

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 वन्य समाज और उपनिवेशवाद क्या है? उपनिवेशवाद क्या है? उपनिवेशवाद का मुख्य उद्देश्य क्या था? भारत किसका उपनिवेश था? वनों का विनाश क्यों? व्यावसायिक वानिकी वन विद्रोह जीविका , अर्थव्यवस्था एवं समाज।

 

खण्ड 4 में हम जीविका और अर्थव्यवस्थाओं के बारे में अध्ययन करेंगे। यहाँ हम इस बात पर विचार करेंगे कि आधुनिक विश्व में वनवासियों चरवाहा समुदायों और किसानों की जिंदगी में किस तरह के बदलाव आए और इन बदलाव को तय करने में उन्होंने किस तरह का योगदान दिया।

 

☆ वन्य समाज और उपनिवेशवाद क्या है?

○ वन्य समाज – वन्य समाज से तात्पर्य है कि वो समूह जो अपना जीवन जंगलों मे व्यतित करते हैं, वो पूरी तरह से जंगलो मे निर्भर होते हैं और वन से उन्हें लगाव होता है तथा वह वनो की पूजा भी करते हैं |

○ उपनिवेशवाद – उपनिवेशवाद से तात्पर्य किसी शक्तिशाली एवं विकसित राष्ट्र द्वारा किसी निर्बल एवं अविकसित देश पर उसके संसाधनों को अपने हित में दोहन करने के लिये राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करना है।

 

☆ उपनिवेशवाद क्या है?

उपनिवेशवाद विशेष रूप से मातृ राष्ट्र के लिए औपनिवेशिक भूमि में संसाधनों के दोहन के लिए उपनिवेशों को प्राप्त करने और बनाए रखने की नीति को संदर्भित करता है। इसका अर्थ यह भी है कि यह स्वदेशी बहुमत और अल्पसंख्यक विदेशी आक्रमणकारियों के बीच का संबंध है।

 

 ☆ उपनिवेशवाद का मुख्य उद्देश्य क्या था?

उपनिवेशवाद की प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य था अपने राष्ट्र को लाभ पहुचाना, भले ही वह उपनिवेश की कीमत पर हो इस अध्याय में हम उपनिवेशवाद की प्रक्रिया के अन्तर्गत होने वाले आर्थिक शोषण के विविध पहलुओं के बारे में चर्चा करेंगे।

 

☆ भारत किसका उपनिवेश था?

भारत बहुत दिनों तक इंग्लैंड का उपनिवेश रहा है। सन 1600 ई में स्थापित यह कम्पनी मुगल शासन उत्तराधिकार बनी। प्रारंभ का उद्देश्य व्यापार करना तथा मुंबई कोलकाता और मद्रास के बंदरगाह से होकर शेष भारत में इसका संपर्क रहता था।

 ★  वनों के लाभ :-

●गोंद
● चाय
● कॉफ़ी
● रबड़
● मसाले
● फल-फूल
● जड़ी-बूटियाँ
● इमारती लकड़ियाँ
● जलावन की लकड़ी

 

☆ औद्योगीकरण के दौर :- 1700 से 1995 के बीच 139 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल यानी दुनिया के कुल क्षेत्रफल का 9.3% भाग औद्योगिक इस्तेमाल , खेती-बाड़ी , चरागाहों व ईंधन की लकड़ी के लिए साफ़ कर दिया गया।

 

★वनों के विनाश के कारण :- वनों के लुप्त होने को सामान्यतः वन विनाश कहते हैं।

1. ज़मीन की बेहतरी के लिए
2. खेती योग्य भूमि को बढ़ाने के लिए
3.व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए
4. रेल लाइनों के प्रसार में स्लीपर के रूप में ज़रूरत
5. यूरोप में चाय , कॉफ़ी की बढ़ती माँगो को पूरा करने के लिए

 

◆उन्नसवीं सदी की शुरुआत तक इंग्लैंड में बलूत (ओक) के जंगल लुप्त होने लगे थे जिसके कारण हिंदुस्तान से भारी मात्रा में बलूत लकड़ी का निर्यात होने लगा।

 

★ व्यावसायिक वानिकी की शुरुआत :- वैज्ञानिक वानिकी का अर्थ सीधी पंक्ति में एक ही किस्म के पेड़ लगाना।

● ब्रैंडिस ने 1864 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की गई।

●1865 में भारतीय वन अधिनियम बनाया गया।

● ” इम्पीरियल फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 में देहरादून में हुई।

 

 

☆ जंगलो को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है :-

1. आरक्षित वन :- सबसे अच्छे जंगलों को ‘ आरक्षित वन ‘ कहा गया।

2. सुरक्षित वन :- गाँव वाले इन जंगलों से उपयोगी वस्तु ले सकते हैं।

3. ग्रामीण वन :- घर बनाने या ईंधन के लिए लकड़ी ले सकते थे।

 

 

○ भारत में आरक्षित वन कितने प्रतिशत है?

पिछले दो वर्षों में 1,540 वर्ग किलोमीटर के अतिरिक्त कवर के साथ देश में वन और वृक्षों के आवरण में वृद्धि जारी है। भारत का वन क्षेत्र अब 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, यह देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है जो वर्ष 2019 में 21.67% से अधिक है। वृक्षों के आवरण में 721 वर्ग किमी.

 

☆ वनों क़ानूनों का प्रभाव :- देश भर में गाँव वालों की मुश्किलें बढ़ गईं।

◇ लोगों का जीवन कैसे प्रभावित हुआ ?

● घुमंतू खेती पर रोक।
● घुमंतू चरवाहों की आवाजाही पर रोक।
● आदिवासी समुदाय को जंगल से जबरन विस्थापित कर दिया।
● लकड़ी काटना , पशुओं को चराना , कंद-मूल इकट्ठा करना पर रोक लगा दी।

 

 ☆ वनों के नियमन से खेती कैसे प्रभावित हुई?

● यूरोपीय उपनिवेशवाद का सबसे गहरा प्रभाव झूम या घुमंतू खेती की प्रथा पर दिखयी पड़ता है।

● घुमंतू समुदायों को ‘ जंगलो ‘ में उनके घरों से जबरन विस्थापित कर दिया।

घुमंतू खेती के स्थानीय नाम हैं :-

1.दक्षिण-पूर्व एशिया – लादिग
2.मध्य अमेरिका – मिल्पा
3.अफ्रीका – चितमेन
4.श्रीलंका – चेना

 

☆ शिकार की आज़ादी किसे थीं ?

● 1875 से 1925 के बीच 2,00,000 भेड़िये , 1,50,000 तेंदुए , 80,000 बाघ , मार गिराए।

● अकेले जॉर्ज यूल नामक अंग्रेज अफसर ने 400 बाघों को मारा था।

 

☆ वन-विद्रोह :- हिंदुस्तान और दुनिया भर में वन्य समुदायों ने अपने ऊपर थोपे गए बदलावों के खिलाफ बग़ावत की ।

○ अंग्रेजों के खिलाफ उभरे आंदोलनों के नायक :-

छोटा नागपुर :- बिरसा मुंडा
संथाल परगन :- सिधू और कानू
आंध्र प्रदेश :- अल्लूरी सीताराम राजू

 

☆ बस्तर के लोग :-

● बस्तर छत्तीसगढ़ के सबसे दक्षिणी छोर पर आंध्र प्रदेश , उड़ीसा व महाराष्ट्र की सीमाओं से लगा हुआ क्षेत्र हैं।

● बस्तर में मरिया और मारिया गोंड , धुरवा , भतरा , हलबा आदि अनेक आदिवासी समुदाय रहते हैं।

● बस्तर के लोग मानते हैं कि हरेक गाँव को उसकी ज़मीन ‘ धरती माँ ‘ से मिली है।

 

☆ जावा के जंगलों में हुए बदलाव :- 1600 शताब्दी में जावा की अनुमानित आबादी 34 लाख थी ।

● जावा में कलांग समुदाय के लोग कुशल लकड़हारे और घुमन्तु किसान थे।

● डच उपनिवेशकों ने जावा में वन-कानून लागू कर ग्रामीणों की जंगल तक पहुँच पर बंदिशे थोप दीं।
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☆ युद्ध और वन विनाश :-

दोनों विश्व युद्धों का वनों पर बहुत बुरा असर हुआ। ब्रिटेन की युद्धकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए अब और भी अधिक पेड़ काटे जाने लगे।

जापानी कब्जे से ठीक पहले डच लोगों ने भष्म कर भागो नीति अपना ली। उन्होंने आरा मिलों और लकड़ी के लट्ठों में आग लगा दी ताकि वे जापानियों के हाथों में ना पड़ जाएँ। बाद में जापानियों ने भी वनों का दोहन जारी रखा। वे ग्रामीणों को पेड़ काटने के लिए बाध्य करते थे। कई ग्रामीणों के लिए यह अपनी खेती की जमीन को बढ़ाने का अच्छा मौका था।

 

☆ वन समाज से आप क्या समझते हैं?

ब्रिटिश काल में सरकार को लगता था कि किसान खेती के लिए जंगलों को नष्ट कर रहे हैं। किसानों द्वारा जंगल के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए अंग्रेजों ने कई कानून बनाए। साथ ही, उन्होंने सभी कानूनों और उनके निष्पादन की निगरानी के लिए एक समाज का गठन किया, जिसे वन समाज का नाम दिया गया।

 

☆ उपनिवेशवाद का आरंभ कैसे हुआ?

ईसाई-धर्म-प्रचारक भी धर्म प्रचार हेतु नये खोजे हुए देशों में जाने लगे। इस प्रकार अपने व्यापारिक हितों को साधने एवं धर्म प्रचार आदि के लिए यूरोपीय देश उपनिवेशों की स्थापना की ओर अग्रसर हुए और इस प्रकार यूरोप में उपनिवेश का आरंभ हुआ। उपनिवेशवाद का इतिहास साम्राज्यवाद के इतिहास के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ है।

 

 

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