अध्याय 5 – औरतो ने बदली दुनिया

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पिछले अध्याय में हमने देखा कि महिलाओं द्वारा किया जाने वाला घर का काम काम ही नहीं माना जाता है तथा इसका कोई निश्चित समय भी नहीं है इस अध्याय में घर के बाहर के कामों को देखेंगे और समझेंगे कि कैसे कुछ व्यवसाय महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों के लिए अधिक उपयुक्त समझे जाते हैं और इस अध्याय में महिला आंदोलनों को भी जानेंगे

 

व्यवसाय के क्षेत्र में महिलाएं – आप देख सकते हैं कि अधिकतर लोग महिलाओं को केवल नर्स के रूप में देखते हैं तथा पुरुषों को पायलट पुलिस के रूप में देखते हैं ऐसा माना जाता है कि महिलाएं अच्छी नर्स हो सकती हैं क्योंकि वे अधिक सहनशील विनम्र होती हैं इसे महिलाओं की भूमिका के साथ मिलाकर देखा जाता है

 

और ज्यादातर यह माना जाताहै कि विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में महिलाएं सक्षम नहीं होती। अनेक लोग इस प्रकार की रूढ़िवादी धारणाओं में विश्वास करते 

 

 

परिवेश : हमारे चारों और परिवेश कुछ इस प्रकार से बना हुआ है कि लड़कों को ऐसी नौकरियों के लिए प्रेरित किया जाता है जिसमें अधिक वेतन मिल सके ऐसा ना होने पर उन्हें चिढ़ाया जाता है

 

 

परिवर्तन के लिए सीखना : आज अधिकांश बच्चे स्कूल जाते हैं परंतु अतीत में ऐसा नहीं होता था केवल कुछ एक लोग ही पढ़े लिखे थे तथा अधिकांश लोग अपने घर के व्यवसाय को ही अपना लेते थे या  बुजुर्ग लोग जो कार्य करते हैं उसे ही सीख लेते थे और अपनी आजीविका चलाते थे घर परिवार में लड़कियों की स्थिति और भी खराब थी वह घर का सारा कार्य करती तथा व्यवसाय में सहयोग भी करती थी उदाहरण :  के लिए कुम्हार के व्यवसाय में स्त्रियां मिट्टी एकत्र करती थी और बर्तन बनाने के लिए उसे तैयार करती थी

 

19वीं शताब्दी मैं परिवर्तन – शिक्षा के बारे में कई नई विचार ने जन्म लिया विद्यालय अधिक प्रचलन में आ गए।  

 

 राससुंदरी देवी (1800-1890) – यह पश्चिम बंगाल में पैदा हुई 60 वर्ष की अवस्था में उन्होंने बांग्ला भाषा में अपनी आत्मकथा लिखी “आमार जीबोन ” यह किसी भी भारतीय महिला द्वारा लिखी पहली आत्मकथा थी राससुंदरी देवी एक धनवान जमीदार परिवार की ग्रहणी होने  के  बावजूद उन्होंने शिक्षा ग्रहण की।  

 

वर्तमान समय में शिक्षा और विद्यालय – भारत में हर 10 वर्ष पश्चात जनगणना होती है जिसमें विभिन्न आंकड़े सामने आते हैं 1961 की जनगणना में पुरुषों का 40% शिक्षित था इसकी तुलना में स्त्रियों 15% भाग पढ़ा लिखा

2011 की जनगणना के अनुसार पुरुषों का 82% शिक्षित था तथा स्त्रियों 65% भाग पढ़ा लिखा था।

सब लड़कियों की श्रेणी की तुलना में अनुसूचित जाति (SC )अनुसूचित जनजाति (ST) की लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर अधिक है

 

 

दलित आदिवासी और मुस्लिम बच्चों के स्कूल छोड़ने के अनेक कारण है

स्कूल पास न होना , शिक्षक का न होना

रूढ़िवादी सोच

महिला शिक्षा को बढ़ावा न देना

निर्धनता

 

महिला आंदोलन – वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है जिसके लिए महिलाओं ने व्यक्तिगत स्तर पर संघर्ष किया इन संघर्ष को महिला आंदोलन कहा जाता है

 

महिलाओं ने इन आंदोलनों के जरिए कानूनी सुधार, हिंसा , स्वास्थ्य , के क्षेत्र में कामयाबी हासिल की और अपनी स्थिति को बेहतर किया

 

अभियान – 2006 में एक कानून बनाया गया जिससे घर के अंदर शारीरिक और मानसिक हिंसा को भोग रही कानूनी सुरक्षा दी जा सके

 

इसी तरह महिला आंदोलन के अभियानों के कारण 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्य के स्थान पर और शैक्षणिक संस्थानों में महिला के साथ होने वाली यौन प्रताड़ना से उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए दिशा निर्देश दिए

 

1980 के दशक में देशभर में महिला संगठन ने दहेज हत्याओं के खिलाफ आवाज उठाई

 

 

 

अध्याय 6 : संचार माध्यमों को समझना

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