अध्याय : 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

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❍ हमारे चारों ओर बहुत से परिवर्तन अपने आप होते रहते हैं।

❍खेतो  में फसलें समयनुसार बदलती रहती हैं ।

❍पत्तियाँ रंग बदलती हैं और सूखकर पेड़ो से गिर जाती हैं।

 ❍फूल खिलते हैं और फिर मुरझा जाते हैं।

❍परिवर्तन :- पदार्थों को गर्म करके या किसी अन्य पदार्थ के साथ मिश्रित करके उनमें परिवर्तन लाए जा सकते है।

 

❍उत्क्रमित :- इसमें कुछ परिवर्तन किया जा सकता है। जबकि कुछ में परिवर्तन को उत्क्रमित नही किया जा सकता हैं।

 

❍उत्क्रमित परिवर्तन :- ऐसे परिवर्तन जिसको पुनः अवस्था में लाया जा सकता हैं।

❍जैसे :- आटे को लोई को बेलकर रोटी बनती है , इससे पुनः लोई में परिवर्तन किया जा सकता हैं।

 

❍उत्क्रमित अपरिवर्तन :- ऐसे परिवर्तन जिन्हें अपने पूर्व अवस्था में नही लाया जा सकता ।

❍जैसे :- जबकि पकी हुई रोटी से पुनः लोई नही प्राप्त किया जा सकता हैं।

 

❍ प्रसार :- जब कोई वस्तु गर्म होने से फैलता है या पिघलने लगता है तो उसे प्रसार कहते हैं।

❍ संकुचन :- जब किसी वस्तु को गर्म किया जाता है तो यह फैल जाता है और ठंडा होने पर सिकुड़ जाता है , इसे ही संकुचन कहते हैं।

 

❍आवर्ती परिवर्तन :- वह परिवर्तन जिनकी नियमित समय अंतरालों के बाद पुनरावृति होती है ।

जैसे :- सूरज का उगना

❍अनावर्ती परिवर्तन :- वह परिवर्तन जिनकी नियमित समय अंतरालों के बाद पुनरावृति नही होती है।

 

❍गलन :- किसी वस्तु का किसी निश्चित तापमान पर द्रव अवस्था मे परिवर्तित होना गलन कहलाता हैं

 

❍वाष्पन :- जल को उसके वाष्प में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं।

 

❍जैसे : सूर्य के प्रकाश से जल गर्म होकर वाष्पन द्वारा धीरे-धीरे वाष्प में बदलने लगता है।

 

 

 

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