अध्याय 11: जंतुओं और पादप में परिवहन | Transport in Animals and Plants

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सभी जीवों को जीवित रहने के लिए भोजन , जल और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जंतुओं की कोशिका पोषण , परिवहन , उत्सर्जन , में भूमिका निभाती है।

 

○ परिसंचरण तंत्र :- ह्रदय और रक्त वाहिनियाँ संयुक्त रूप से हमारे शरीर का परिसंचरण तंत्र बनाती हैं।

○ रक्त :- रक्त तरल पदार्थ है , जो रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता है।

○ प्लाज़्मा :- रक्त एक तरल से बना है जिसे प्लैज्मा कहते हैं।

○ हीमोग्लोबिन :- लाल रक्त की कोशिका होती है , जिनमें एक लाल वर्णक होता है , जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। हीमोग्लोबिन के कारण ही रक्त का रंग लाल होता है।

 

○ श्वेत रक्त कोशिकाएँ :- ये कोशिकाएँ उन रोगाणुओं को नष्ट करती हैं , जो हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

○ प्लेटलेट्स :- रक्त का थक्का बन जाना उसमें एक अन्य प्रकार की कोशिकाओं की उपस्थिति के कारण होता है।

○ रक्त वाहिनियाँ :- जो रक्त को शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाती हैं। रक्त इस ऑक्सीजन का परिवहन शरीर के अन्य भागों में करता है।

 

○ रक्त वाहिनियाँ दो प्रकार :- धमनी और शिरा

○ धमनियाँ :- ह्रदय से ऑक्सीजन समृद्ध रक्त को शरीर के सभी भागों में ले जाती हैं।

○ शिराएँ :- वे रक्त वाहिनियाँ , जो कार्बन डाइऑक्साइड समृद्ध रक्त को शरीर के सभी भागों से वापस ह्रदय में ले जाती ।
○ नाड़ी स्पंद :- हृदय की धड़कन के कारण धमनियों में होने वाली हलचल को नाड़ी या नब्ज़ कहते हैं।

○ स्पंदन दर :- प्रति मिनट स्पंदो की संख्या स्पंदन दर कहलाती है। स्वस्थ वयस्क व्यक्ति की स्पंदन दर सामान्यतः 72 से 80 स्पंदन प्रति मिनट होती है।

 

○ ह्रदय :- जो रक्त द्वारा पदार्थों के परिवहन के लिए पंप के रूप में कार्य करता है। यह निरंतर धड़कता रहता है। ह्रदय चार कक्षों में बँटा होता है।

• ऊपरी दो कक्ष अलिन्द कहलाते है।

• निचले दो कक्ष निलय कहलाते है।

कक्षों के बीच का विभाजन:ये दीवार ऑक्सीजन समृद्ध रक्त और कार्बन डाइऑक्साइड से समृद्ध को परस्पर मिलने नहीं देती हैं।

○ स्टेथॉस्कोप :- चिकित्सक आपके ह्रदय स्पंद को मापने के लिए स्टेथॉस्कोप नामक यंत्र का उपयोग करते हैं। रक्त परिसंचरण की खोज विलियम हार्वे (1578-1657) ने किया ।

 

 ❍ उत्सर्जन :- सजीवों द्वारा कोशिकाओं में निर्मित होने वाले अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं। उत्सर्जन में भाग लेने वाले सभी अंग मिलकर उत्सर्जन तंत्र बनाते हैं।

 

❍ मानव उत्सर्जन तंत्र :- रक्त में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाना चाहिए।bरक्त को छानने की व्यवस्था की आवश्यकता होती हैं। यह व्यवस्था गुर्दों में उपस्थित रक्त कोशिकाओं द्वारा उपलब्ध की जाती है। उपयोगी पदार्थों को रक्त में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। जल में घुल हुए अपशिष्ट पदार्थ मूत्र के रूप में पृथक कर लिए जाते है।

 

○ मूत्रमार्ग :- मूत्राशय से एक पेशीय नली जुड़ी होती है , जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं।
○ मुत्ररन्ध :- जिससे मूत्र शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

○ वयस्क व्यक्ति सामान्यतः 24 घण्टे में 1 से 1.8 लीटर मूत्र करता है। मूत्र में 95% जल , 2.5% यूरिया , और 2.5% अन्य अपशिष्ट उत्पाद होते हैं। लवण और यूरिया जल के साथ स्वेद (पसीने) के रूप में शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं। पक्षी , कीट , और छिपकली अर्ध घन (सेमी सॉलिड ) रूप में यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करते हैं।

❍ पादपों में पदार्थों का परिवहन :- पादप मूलों द्वारा जल और पोषक तत्व मृदा से अवशशोषित होते हैं।

○ जल और खनिजों का परिवहन :- पादप मूलों (जड़ो) द्वारा जल और खनिजों को अवशोषित करते हैं। मूलों में मुलरोम होते हैं।

 

ऊतक :- किसी जीव में किसी कार्य विशेष को संपादित करता है।

○ जाइलम :- जल और पोषक तत्वों के परिवहन के लिए पादपों में संवहन ऊतक होता है।

○ फ्लोएम :- भोजन को पादप के सभी भागों में संवहन ऊतक द्वारा किया जाता है।
 • जाइलम और फ्लोएम पादपों में पदार्थों का परिवहन करते हैं।

 ❍ वाष्पोत्सर्जन :- पादप वाष्पोत्सर्जन के प्रक्रम द्वारा बहुत अधिक जल निर्मुक्त करते हैं।

○ पादप मृदा से खनिज पोषक तत्व और जल अवशोषित करते हैं।

 

 

 

अध्याय 12 पादप में जनन | Reproduction in Plants

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