सतत और व्यापक मूल्यांकन | CCE

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 ❍ सतत मूल्यांकन :- सतत का शाब्दिक अर्थ होता है – लगातार। इसप्रकार सतत मूल्यांकन लगातार चलने वाली प्रक्रिया हैं। इसमें बच्चे का आकलन सतत्‌ एवं नियमित रूप से किया जाता है जो पूरे वर्ष औपचारिक एवं अनौपचारिक रूप से चलता रहता है।

 

• सतत आकलन एवं कक्षा शिक्षण प्रक्रिया दोनों साथ-साथ चलने वाली प्रक्रिया है। इसमें न सिर्फ विषय आधारित बल्कि सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों का भी नियमित रूप से आंकलन किया जाता है।

 

❍ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन :- सतत्‌ एवं व्यापक मूल्यांकन बच्चों के वृद्धि और विकास के समस्त क्षेत्रों का सतत‌ एवं नियमित आकलन है। इसके द्वारा विभिन्न विधियों एवं उपकरणों के माध्यम से बच्चों का आकलन किया जाता है।

❍ इसे अच्छी तरह समझने के लिए हम सतत‌ एवं व्यापक मूल्यांकन में मौजूद तीन शब्द सतत, व्यापक और मूल्यांकन को जानते हैं।

❍ मूल्यांकन :- मूल्यांकन कक्षा अधिगम प्रक्रिया के साथ-साथ बच्चों के सीखने की गति, अवधारणा, ज्ञान, अभिवृत्ति, कौशल, व्यवहार, अनुभव आदि को जानने के लिए योजनाबद्ध तरीके से साक्ष्यों का संकलन, विश्लेषण, व्याख्या एवं सुझाव देने की प्रक्रिया है।

❍साक्ष्यों का यह संकलन कक्षा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के समय शिक्षकों द्वारा विभिन्न विधियों व उपकरणों के माध्यम से किया जाता है।

❍ बच्चों का मूल्यांकन बहुत जरूरी हैं। मूल्यांकन-प्रक्रिया जितनी बेहतर होगी विकास की गति भी उतनी ही बेहतर होगी क्योंकि मूल्यांकन के आधार पर आवश्यक सुधार कर उपलब्धि स्तर को बढ़ाया जा सकता है।

 

❍ व्यापक मूल्यांकन :- व्यापकता से आशय बच्चे के समस्त कौशलों/गुणों के विकास से हैं जिसमे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक एवं संवेगात्मक विकास भी सम्मिलित हैं जो एक अच्छा नागरिक बनने के लिए आवश्यक होता है। इन गुणों का विकास धीमी गति से होता है तथा वांछित परिवर्तन लाने के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है।

❍ ‘ सतत और व्यापक ‘ मूल्यांकन :- CBSE ने यह स्पष्ट सन्देश दिया है कि मूल्यांकन करते समय विद्याथी के सर्वगींण विकास को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

• सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE ) का अर्थ छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली से है , जिसमें छात्रों विकास के सभी पक्ष शामिल हैं।

• यहाँ ‘निरन्तरता’ का अर्थ इस पर बल देना है कि छात्रों की ‘वृद्धि और विकास’ के अभिज्ञात पक्षों का मूल्यांकन एक बार के कार्यक्रम के बजाय एक निरन्तरता प्रक्रिया है।

• ‘व्यापक’ का अर्थ है शैक्षिक और सह-शैक्षिक पक्षों को शामिल करते हुए छात्रों की वृद्धि और विकास को परखने की योजना ।

• ‘मूल्यांकन’ का अर्थ स्वंय मूल्यांकन के लिए अध्यापकों और छात्रों के साक्ष्य का फीडबैक लेना।

 

❍ ‘ सतत और व्यापक ‘ मूल्यांकन उद्देश्य :-

• मूल्यांकन को अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया का अविभाज्य हिस्सा बनाया।

सीखने की प्रक्रिया पर बल देना और याद रखने पर बल नही देना।

• अध्यापन-अधिगम कार्य नीतियों के सुधार के लिए मूल्यांकन का उपयोग करना।

• अध्यापन और अधिगम प्रक्रिया को छात्र केन्द्रित क्रिया-कलाप बनाना।

• सीखने की प्रक्रिया तथा सीखने की परिवेश के बारे में उपयुक्त निर्णय लेना।

 

❍ ‘ सतत और व्यापक ‘ मूल्यांकन विशेषताएँ :-

• ‘सतत और व्यापक’ मूल्यांकन के ‘सतत’ पहलू के अन्तर्गत मूल्यांकन के ‘सतत’और ‘आवधिक’ पहलू का ध्यान रखा जाता है।

• सतत और व्यापक मूल्यांकन का ‘व्यापक’ संघटक बच्चों के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास का निर्धारण का ध्यान रखता है।

• शैक्षिक क्षेत्रों में निर्धारण , निरन्तर और नियतकालिक रूप से मूल्यांकन की बहूविद तकनीकों का इस्तेमाल करके अनौपचारिक और औपचारिक रूप से किया जाता है।

• शैक्षिक पहलुओं में पाठ्यक्रम के क्षेत्र होते हैं , जबकि सह-शैक्षिक पहलुओं में जीवन-कौशल , सह-पाठ्यचर्या अभिवर्तियाँ और मूल्य शामिल होते है।

 

○ राष्ट्रीय शिक्षा नीति सम्बन्धी दस्तावेज , 1986 जिसका 1992 में संशोधन किया गया है

• मूल्यांकन योजना में शिक्षा के विषयों और सह-शिक्षा के सभी शिक्षण सम्बन्धी अनुभवों को शामिल किया जाना चाहिए।

 

 

 ❍ सतत और व्यापक मूल्यांकन के कार्य और महत्व :- अध्यापन शिक्षा प्राप्ति प्रक्रिया में , मूल्यांकन से शैक्षिक और सह-शैक्षिक क्षेत्र में कमजोर है , तो नैदानिक मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

• यह शैक्षिक और सह-शैक्षिक क्षेत्रों में विद्यार्थियों के प्रगति के बारे में सूचना/रिपोर्ट देता है।

• यह अध्यापक को प्रभावकारी कार्यनीतियाँ आयोजित करने में सहायता देता है।

• अध्यापक शिक्षार्थियों के शक्तियों और कमजोरियों का पता लगाने में सहायता देता है।

• यह विषयों , पाठ्यक्रमों और जीवनवृत्तियों के चुनाव के बारे में , भविष्य के लिए फैसले करने में सहायता देता है।

• सतत मूल्यांकन समय-समय पर बच्चे , अध्यापकों और माता-पिता को उपलब्धि के बारे में जागरूक बनाने में सहायता देता है।

 

❍ मूल्यांकन :- मूल्यांकन वह प्रक्रिया है , जिसके द्वारा अधिगम परिस्थितियों तथा सीखने के अनुभवों के लिए प्रयुक्त की जाने वाली समस्त विधियों और प्रविधियों की उपादेयता की जाँच की जाती है।

○ रॉस के अनुसार :- ” मूल्यांकन का प्रयोग बच्चे के सम्पूर्ण व्यकितत्व अथवा किसी की समूची स्थितियों की जाँच प्रक्रिया के लिए किया जाता है।

• मूल्याकंन शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों के लिए पुनर्बलन का कार्य करता है।

• शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों में आवश्यक सुधार लाने के उद्देश्य से मूल्यांकन की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

• मूल्यांकन का उद्देश्य बालकों की विकास दर पता लगाना है।

 

❍ मूल्यांकन के प्रकार :- मनोवैज्ञानिकों के मूल्यांकन प्रणाली को तीन भागों में विभाजित किया है , जो निम्न प्रकार है।

1. रचनात्मक मूल्यांकन :– शिक्षक अध्यापन के दौरान यह जाँच करते हुए हैं कि बच्चों ने अभिवृत्तियों तथा ज्ञान को कितना प्राप्त किया है।

2. योगात्मक मूल्यांकन :- यह मूल्यांकन सत्र की समाप्ति के बाद होता है।

3. निदानात्मक मूल्यांकन :- विद्यार्थियों की असफलता के कारणों का पता लगाना निदानात्मक मूल्यांकन कहलाता है।

 

❍ आकलन :- शिक्षण की प्रक्रिया में शैक्षिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विद्यार्थियों द्वारा आर्जित ज्ञान एवं कौशल की जाँचने एवं परखने के लिए मापन एवं मूल्यांकन का प्रयोग किया जाता है।

• सीखने और सिखाने के लिए

• रचात्मक तथा फीडबैक

परिववर , समाज , विद्यालय की भूमिका।

शिक्षक और विद्यार्थी दोनों जिम्मेदारी ले।

 

 ❍ आकलन का महत्व :-

• शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए है।

• शिक्षक एवं विद्यार्थी स्वंय के मूल्यांकन के लिए है।

• विद्यार्थी के ज्ञान , कौशल , प्रगति का मूल्यांकन के लिए है।

 

❍ आकलन की आवश्यकता :-

• अध्यापन में छात्रों की अधिगम क्षमता के लिए जरूरी है।

• छात्रों के रुचि , योग्यता का पता चलता है।

• छात्रों के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण होता है।

 

❍ मापन :- मापन प्रक्रिया में उपलब्धि को ” संख्यात्मक “ रूप से निरूपित किया जाता है।

• निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करने में सहायक है।

• छात्रों की उपलब्धि का पता चलता है।

अति उत्तम , श्रेष्ठ , माध्यम , निम्न छात्रों के अंक ।

 

❍ परीक्षा :- छात्रों की उपलब्धिU से सम्बंधित साक्ष्यों को इकठ्ठा करने की प्रक्रिया परीक्षा कहलाती है।

• लिखित परीक्षा :- वर्तमान में सबसे ज्यादा प्रचलन है।
माध्यमिक स्तर विश्वविद्यालय स्तर

• प्रयोगात्मक परीक्षा :- प्रयोगात्मक परीक्षाएँ BA , B.Ed , MA

• मौखिक परीक्षा :- मौखिक परीक्षा B.A , B.SC, B.COM, M.Ed.

 

○ परीक्षा और मापन :- बच्चों के रुचि , योग्यता , कौशल , व्यवहार आदि । अवलोकन तथा साक्षात्कार

○ परीक्षा और मूल्यांकन :- शैक्षिक उद्देश्य निश्चित करते है।
व्याख्या , परिणाम , मनदण्ड आदि

 

○ परीक्षा और आकलन :- शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए होता है।
ज्ञानात्मक अनुभव कौशल की जांच।

 

❍ अधिगम का आकलन :-

• अधिगम का आकलन:- सीखने तथा सीखने का उद्देश्य

• अधिगम के लिए आकलन :- अध्यापक और विद्यार्थी का फ़ीडबैक

• अधिगम के रूप में आकलन :- स्वंय , समूह , क्रियाकलाप ।

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