अध्याय 4 : जलवायु

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किसी क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को समझने के लिए आवश्यक तीन मूल तत्व होते हैं स्थलआकृतियां ,अपवाह व जलवायु, इस अध्याय में हम भारतीय जलवायु के विषय में पड़ेंगे

 

 

जलवायु – एक विशाल क्षेत्र में लंबे समाधि में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं के कुल योग को जलवायु कहते हैं

मौसम – एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्थाओं को बताता है

मौसम तथा जलवायु के तत्व जैसे तापमान वायुमंडलीय दाब पवन आद्रता तथा वर्षण होते है । महीनों के औसत वायुमंडलीय अवस्थाओं के आधार पर वर्षा को ग्रीष्म शीत या वर्षा ऋतु में विभाजित किया गया है

 

मानसून

मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द “मौसिम” से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है मौसम मानसून का अर्थ 1 वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है

 

 

भारत की जलवायु

भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यता दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व में पाई जाती है सामान्य प्रतिरूप में लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नता है

एक स्थान से दूसरे स्थान में भिन्नता का मुख्य कारण तापमान तथा वर्षण होता है

 

तापमान में भिन्नता के उदाहरण

गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है जबकि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस रहता है

 

वर्षण में भिन्नता के उदाहरण

वर्षण के रूप तथा प्रकार में ही नहीं बल्कि इसकी मात्रा एवं ऋतु के अनुसार वितरण में भी भिन्नता होती है हिमालय में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता है तथा देश के शेष भाग में यह वर्षा के रूप में होता है वार्षिक वितरण में भिन्नता मेघालय में 400 सेंटीमीटर से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेंटीमीटर से भी कम होती है

 

 

जलवायवी नियंत्रण

किसी भी क्षेत्र के जलवायु को नियंत्रित करने वाले 6 प्रमुख कारक हैं

अक्षांश
ऊंचाई
वायु दाब
पवन तंत्र
समुद्र से दूरी
महासागरीय धाराएं
उच्चावच लक्षण

 

अक्षांश

पृथ्वी की गोलाई के कारण इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग होती है इसके परिणाम स्वरूप तापमान विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर सामान्यता घटता जाता है

ऊंचाई

जब कोई व्यक्ति पृथ्वी की सतह से ऊंचाई की ओर जाता है तो वायुमंडल की सघनता कम हो जाती है तथा तापमान घट जाता है इसलिए पहाड़ियां गर्मी के मौसम में भी ठंडी होती हैं

 

वायुदाब एवं पवन तंत्र

किसी भी क्षेत्र का वायु दाब एवं पवन तंत्र उस स्थान के अक्षांश तथा ऊंचाई पर निर्भर करती है इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षा के वितरण को प्रभावित करता है

 

समुद्र से दूरी

समुद्र का जल वायु पर समकारी प्रभाव पड़ता है जैसे जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है यह प्रभाव कम होता जाता है एवं लोग विषम मौसमी अवस्थाओं को महसूस करते हैं इसे महाद्वीपीय अवस्था (गर्मी में बहुत अधिक गर्म सर्दी में बहुत अधिक ठंडा) कहते हैं

 

महासागरीय धाराएं
महासागरीय धाराएं समुद्र से तट की ओर चलने वाली हवाओं के साथ तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं उदाहरण के लिए कोई भी तटीय क्षेत्र जहां गर्म या ठंडी जलधाराएं बहती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर हो तब वह तट गर्म या ठंडा हो जाएगा

 

उच्चावच

ऊंचे पर्वत ठंडी अथवा गर्म वायु को अवरोधित करते हैं यदि उनकी ऊंचाई इतनी हो कि वे वर्षा लाने वाली वायु के रास्ते को रोकने में सक्षम होते हैं तो यह उस क्षेत्र में वर्षा का कारण भी बन सकते हैं

 

 

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

अक्षांश

कर्कवृत्त देश के मध्य भाग से होकर गुजरती है देश का लगभग आधा भाग कर्कवृत्त के दक्षिण में स्थित है जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र है कर्क वृत्त के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबंधीय है इसलिए भारत की जलवायु में उष्णकटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएं उपस्थित है

ऊंचाई

भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत है इसकी औसत ऊंचाई लगभग 6000 मीटर है भारत का तटीय क्षेत्र भी विशाल है जहां अधिकतम ऊंचाई लगभग 30 मीटर है हिमालय मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करने से रोकता है इन्हीं पर्वतों के कारण इस क्षेत्र में मध्य एशिया की तुलना में ठंड कम पड़ती है

 

वायुदाब एवं पवन

भारत में जलवायु तथा संबंधित मौसमी अवस्थाएं निम्नलिखित वायुमंडलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं

1 वायुदाब एवं धरातलीय पवने
2 ऊपरी वायु परिसंचरण तथा
3 पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्णकटिबंधीय चक्रवात

 

भारत उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवने वाले क्षेत्र में स्थित है यह पवने उत्तरी गोलार्ध के उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती हैं कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी और विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं सामान्यतः इन पौधों में नमी की मात्रा बहुत कम होती है क्योंकि यह स्थलीय भागों पर उत्पन्न होती हैं एवं बहती हैं इसलिए इन पवनो के द्वारा वर्षा कम या नहीं होती इस प्रकार भारत को शुष्क क्षेत्र होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है क्यों?

 

दक्षिण पश्चिमी मानसून

ग्रीष्म ऋतु में आंतरिक एशिया एवं उत्तर पूर्वी भारत के ऊपर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है इसके कारण गर्मी के दिनों में वायु की दिशा पूरी तरह परिवर्तित हो जाती है वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण पूर्वी दिशा में बहते हुए विश्व के व्रत को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उप महाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती है इन्हें दक्षिणी पश्चिमी मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है

 

कोरिआलिस बल

पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिओलिस बल कहते हैं इस बल के कारण पवने उत्तरी गोलार्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाई और विक्षेपित हो जाती हैं इसे फेरल का नियम भी कहा जाता है

 

जेट धारा

यह एक संकरी पट्टी में स्थित शॉप मंडल में अत्याधिक ऊंचाई वाली पश्चिमी हवाएं होती हैं इनकी गति गर्मी में 110 किलोमीटर प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 किलोमीटर प्रति घंटा होती है बहुत ही अलग अलग चैट धाराओं को पहचाना गया है उनमें सबसे अधिक मध्य अक्षांशीय एवं उपोष्ण कटिबंधीय जेट धाराएं हैं

 

पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ

सर्दी के महीने में भूमध्य सागरीय क्षेत्र से आने वाले पश्चिमी प्रवाह के कारण होता है यह प्राय भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों को प्रभावित करता है उष्णकटिबंधीय चक्रवात मानसूनी महीनों के साथ-साथ अक्टूबर एवं नवंबर के महीनों में आते हैं तथा यह पूर्वी प्रवाह के एक भाग होते है एवं देश के तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं

 

 

भारतीय मानसून

नाविकों ने सबसे पहले मानसून परिघटना पर ध्यान दिया था पवन तंत्र की दिशा उलट जाने के कारण उन्हें लाभ हुआ क्योंकि उनके जहाज पवन के प्रवाह की दिशा पर निर्भर थे अरब पासी जो व्यापारियों की तरह भारत आए थे उन लोगों ने पवन तंत्र के इस मौसमी उत्क्रमण को मानसून का नाम दिया

 

 

मानसून को समझने के लिए निम्नलिखित तत्व महत्वपूर्ण है

1 स्थल तथा जल के कर्म एवं ठंडे होने की विभेदरी प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाग शेत्र उत्पन्न हो जाता है तथा समुद्र पर उच्च दाब

 

2 ग्रीष्म ऋतु के दिनों में अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है

3 हिंद महासागर में मेडागास्कर के पूर्व लगभग 20 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के ऊपर उच्च दाब वाला क्षेत्र होता है इस उच्च दाब वाले क्षेत्र की स्थिति एवं तीव्रता भारतीय मानसून को प्रभावित करती है

4 ग्रीष्म ऋतु में तिब्बत का पठार बहुत अधिक गर्म हो जाता है जिसके परिणाम स्वरूप पठार के ऊपर समुद्र तल से लगभग 9 किलोमीटर की ऊंचाई पर तीव्र ऊर्ध्वाधर वायु धाराएं एवं उच्च दाब का निर्माण होता है

5 ग्रीष्म ऋतु में हिमालय के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों का तथा भारतीय प्रायद्वीप के ऊपर उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट धाराओं का प्रभाव होता है

 

 

अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ)

यह विषुवतीय अक्षांशों से विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है यहीं पर उत्तर पूर्वी एवं दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवने आपस में मिलती हैं यह अभिसरण क्षेत्र विश्व के विषुवत वृत्त के लगभग समांतर होता है लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथ-साथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है

 

 

एलनिनो (ENSO)

ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थाई तौर पर गर्म जलधारा के विकास को एलनीनो का नाम दिया गया एल नीनो स्पेनिश शब्द है , जिसका अर्थ होता है बच्चा तथा जोकि बेबी क्राइस्ट को व्यक्त करता है क्योंकि यह धारा क्रिसमस के समय बहती है

एल नीनो की उपस्थिति समुद्र की सतह के तापमान को बढ़ा देती है तथा उस क्षेत्र में व्यापारिक पवने को शिथिल कर देती है

 

 

मानसून का आगमन एवं वापसी

मानसून का समय जून के आरंभ से लेकर मध्य सितंबर तक 100 से 120 दिन के बीच होता है इसके आगमन के समय सामान्य वर्षा से अचानक वृद्धि हो जाती है तथा लगातार कई दिनों तक यह जारी रहती है इसे मानसून प्रस्फोट (फटना) कहते हैं

सामान्यतः जून के प्रथम सप्ताह में मानसून भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर से प्रवेश करता है इसके बाद यह दो भागों में बैठ जाता है

अरब सागर शाखा
अरब सागर शाखा लगभग 10 दिन बाद 10 जून के आसपास मुंबई पहुंचती है यह तीव्र प्रगति है

बंगाल की खाड़ी शाखा
बंगाल की खाड़ी शाखा भी तीव्रता से आगे की ओर बढ़ती है तथा जून के प्रथम सप्ताह में असम पहुंच जाती है मुझे पर्वत के कारण मानसून पवने पश्चिम में गंगा के मैदानों की ओर मुड़ जाती है

 

 

मानसून की वापसी

मानसून की वापसी अपेक्षाकृत एक क्रमिक प्रक्रिया है जो भारत के उत्तर पश्चिम राज्यों से सितंबर से प्रारंभ हो जाती है मध्य अक्टूबर तक मानसून प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से पूरी तरह पीछे हट जाता है प्रायद्वीप के दक्षिणी आधे भाग में वापसी की गति तेज हो जाती है दिसंबर के प्रारंभ तक देश के शेष भाग से मानसून की वापसी हो जाती है

 

ऋतुएँ

एक ऋतु से दूसरे ऋतु में मौसम की अवस्था में बहुत अधिक परिवर्तन होता है विशेषकर देश के आंतरिक भागों में यह परिवर्तन अधिक मात्रा में परिलक्षित होता है भारत में मुख्यता 4 ऋतु को पहचाना जा सकता है यह हैं शीत ऋतु ग्रीष्म ऋतु कुछ क्षेत्रीय अवस्थाओं के साथ मानसून के आगमन तथा वापसी का काल

 

शीत ऋतु

उत्तर भारत में शीत ऋतु मध्य नवंबर से आरंभ होकर फरवरी तक रहती है भारत के उत्तरी भाग में दिसंबर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है दिन गर्म तथा रातें ठंडी होती हैं उत्तर में तुषार आप आते सामान्य है तथा हिमालय के ऊपर ढालो पर हिमपात होता है

इस ऋतु में देश में उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवने प्रभावित होती हैं यह स्थल से समुद्र की ओर बहती है इस समय देश में तमिलनाडु के तट पर वर्षा होती है

सामान्य इस मौसम में आसमान साफ तापमान तथा आद्रता कम एवं पवने शिथिल तथा परिवर्तित होती है

शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अन्तरवाह विशेष लक्षण है

यह कम दाम वाली प्रणाली भूमध्य सागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है जिसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा पर्वतों पर हिमपात होती है शीतकाल में वर्षा जिसे स्थानीय तौर पर महावत कहा जाता है यह रवि की फसलों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है

 

 

ग्रीष्म ऋतु

सूर्य के उत्तर की और आभासी गति के कारण भूमंडलीय ताप पट्टी उत्तर की ओर खिसक जाती है मार्च से मई तक भारत में ग्रीष्म ऋतु होती है देश के उत्तरी भाग में ग्रीष्म काल में तापमान में वृद्धि होती है तथा वायुदाब में कमी आती है मई के अंत में उत्तर पश्चिम में थार के रेगिस्तान से लेकर पूर्व एवं दक्षिण पूर्व में पटना तथा छोटा नागपुर पठार तक एक कम दाम का लंबवत क्षेत्र उत्पन्न होता है पवन का परिसंचरण इस ग्रंथ के चारों ओर प्रारंभ होता है

लू ग्रीष्म काल का एक प्रभावी लक्षण है यह धूल भरी गर्म एवं शुष्क पवने होती हैं जो दिन के समय भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में चलती हैं

उत्तर भारत में सामान्यतः धूल भरी आंधियां आती है यह आंधियां अस्थाई रूप से आराम पहुंचाती है क्योंकि यह तापमान को कम कर देती हैं वैशाख के महीने में होने के कारण पश्चिम बंगाल में इसे काल बैसाखी कहा जाता है ग्रीष्म ऋतु के अंत में कर्नाटक एवं केरल में प्राय पूर्व मानसूनी वर्षा होती है इसके कारण आम जल्दी पक जाते हैं प्राय इसे आम्र वर्षा कहा जाता है

 

 

वर्षा ऋतु या मानसून का आगमन

जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है यह दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनो को आकर्षित करता है यह हवाएं अपने साथ नमी लेकर आती हैं जो वर्षा का कारण बनती है

दक्षिण पश्चिम मानसून का भारत में आगमन यहां के मौसम को पूरी तरह परिवर्तित कर देता है

मासिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है

मानसून से संबंधित एक अन्य परिघटना है वर्षा में विराम इस प्रकार इस में आद्रता एवं शुष्क दोनों तरह के अंतराल होते हैं दूसरे शब्दों में मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है इसमें वर्षा रहित अंतराल भी होता है

 

 

मानसून की वापसी

अक्टूबर-नवंबर के दौरान दक्षिण की तरफ सूर्य के आभासी गति के कारण मानसून गर्त या निम्न दाब वाला गर्त उत्तरी मैदान के ऊपर शिथिल हो जाता है धीरे-धीरे उच्च ताप प्रणाली इसका स्थान ले लेती है दक्षिण पश्चिम में मानसून से फेल हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे पीछे की ओर हटने लगते हैं अक्टूबर के प्रारंभ में मानसून पवने उत्तर के मैदान से हट जाती हैं

 

अक्टूबर एवं नवंबर का महीना कर्म वर्षा ऋतु से शीत ऋतु में परिवर्तित होने का काल है मानसून की वापसी होने से आसमान साफ एवं तापमान में वृद्धि हो जाती है दिन का ताप कुछ होता है जबकि रातें ठंडी एवं सुहावनी होती हैं

 

स्थल अभी भी आदर होता है उच्च ताप एवं आद्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम असहाय हो जाता है इसे सामान्यतः क्वार की उमस के नाम से जाना जाता है

 

 

वर्षा का वितरण

पश्चिमी तट के भागो एवं उत्तर पूर्वी भारत में लगभग 400 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है किंतु राजस्थान एवं इससे सटे पंजाब हरियाणा गुजरात के भागों में 60 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है

जम्मू कश्मीर के लेह में भी वार्षिक वर्षा की मात्रा काफी कम है देश के शेष भागों में वर्षा की मात्रा मध्यम रहती है हिमपात हिमालयी क्षेत्रों तक ही सीमित होता है

 

 

 

अध्याय 5 : प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी

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