महिलाएँ :- दो सौ साल पहले हालात बहुत भिन्न थे। ज्यादातर बच्चों की शादी बहुत कम उम्र में ही कर दी जाती थी। हिंदू व मुसलमान , दोनों धर्मों के पुरुष एक से ज्यादा पत्नियाँ रख सकते थे। देश के कुछ भागों में विधवाओं से ये उम्मीद की जाती थी कि वे अपने पति की चिता के साथ ही जिंदा जल जाएँ।
सती :- ‘ सती ‘ शब्द का अर्थ ही सदाचारी महिला था। संपति पर भी महिलाओं के अधिकार बहुत सीमित थे। शिक्षा तक महिलाओं की प्रायः कोई पहुंचा नही थी।
जाति :- समाज में ज्यादातर इलाकों में लोग जातीयों में भी बँटे हुए थे।
ब्राह्मण :- खुद को ऊँची जाती के मानते थे।
क्षत्रिय :- राजपूत को युद्ध व रक्षा करना।
वैश्य :- व्यापार और महाजनी से ज़ुड़े थे।
शुद्र :- काश्तकार , बुनकर व कुम्हार जैसे दस्तकार आते थे।
जाति :- शुद्र को अछूत माना जाता था। मन्दिरों में प्रवेश , कुओं से पानी निकालने , घाट-तालाबों पर नहाने की छूट नही होती थी। उन्हें निम्न दर्जे का मनुष्य माना जाता था।
परिवर्तन की दिशा में उठते कदम :- उन्नसवीं सदी की शुरुआत से ही हमें सामाजिक रीति-रिवाजों और मूल्य-मान्यताओं से संबंधित बहस-मुबाहिसे और चर्चाओं का स्वरूप बदलता दिखाई देता है।
सुधार :- पहली बार किताबें , अखबार , पत्रिकाएँ , पर्चे और पुस्तिकाएँ छप रही थीं। ये चीजें पुराने साधनों के मुकाबले सस्ती थीं और पांडुलिपियों के मुकाबले ज्यादा लोगों की पहुँच में भी थी।
भारतीय सुधारको और सुधार संगठन
राजा राममोहन रॉय :- 1772-1833 एक सुधारक थे। वे संस्कृत , फ़ारसी , अन्य भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। 1829 में सती प्रथा पर पाबंदी लगा दी गई। उन्होंने कलकत्ता में ब्रह्मो सभा के नाम से एक सुधारवादी संगठन बनाया था। राजा राममोहन रॉय मानते थे कि समाज में परिवर्तन लाना और अन्यायपूर्ण तौर-तरीकों से छुटकारा पाना जरूरी है। इसलिए लोगों को पुराने व्यवहार को छोड़कर जीवन का नया ढंग अपनाने के लिए तैयार हो।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर :- विधवा विवाह के पक्ष में प्राचीन ग्रन्थों का ही हवाला दिया था।
1856 में विधवा विवाह के पक्ष एक कानून पारित कर दिया।
दयानंद ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। आर्य समाज ने हिंदू धर्म को सुधारने का प्रयास किया था।
1929 में बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित किया गया। इस कानून के अनुसार लड़की 21 साल व 18 साल कर दी गई।
परमहंस मंडली :- जाती और समाज सुधार के लिए 1840 में परमहंस मंडली का गठन किया गया।
समानता और न्याय की माँग :- उन्नसवीं सदी के दूसरे हिस्से तक गैर-ब्राह्मण जातियों के भीतर से भी जातीय भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे थे। उन्होंने सामाजिक समानता और न्याय की माँग करते हुए आंदोलन शुरू कर दिए थे।
घासीदास :- सतनामी आंदोलन चमड़े का काम करने वालों को संगठित किया।
हरिदास ठाकुर :- चांडाल काश्तकारों के बीच काम किया।
श्री नारायण गुरु :- जातिगत भिन्नता के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव करने का विरोध किया।
ज्योतिराव फुले :- निम्न जाति नेताओं में ज्योतिराव फुले सबसे मुखर नेताओं में से थे।जाती आधारित समाज मे फैले अन्याय वके बारे में अपने विचार व्यक्त किए। फुले के अनुसार ,” ऊँची “ जातियों का उनकी ज़मीन और सत्ता पर कोई अधिकार नहीं है : यह धरती यहाँ के देशी लोगों की , कथित निम्न जाति के लोगों की है। 1873 में फुले ने गुलामगीरी ( गुलामी ) नामक एक किताब लिखी।
अम्बेडकर :- बचपन में उन्होंने इस बात को बहुत नजदीक से देखा था कि रोजाना की जिंदगी में जातीय भेदभाव और पूर्वाग्रह क्या होता है।
1919 में भारत लौटने पर उन्होंने समकालीन समाज मे ” उच्च “ जातीय सत्ता संरचना पर काफ़ी लिखा।
1927 में अम्बेडकर ने मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया। जिसमें महार जाती ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया।
गैर-ब्राह्मण आंदोलन :- बीसवीं सदी के आरंभ में गैर-ब्राह्मण आंदोलन शुरू हुआ। ब्राह्मण तो उत्तर से आए उन आर्य आक्रमणकारियों के वंशज हैं जिन्होंने यहाँ के मूल निवासियों – देशी द्रविड़ नस्लों – को हराकर दक्षिणी भूभाग पर विजय हासिल की थी। उन्होंने सत्ता पर ब्राह्मणवादी दावे को भी चुनौती दी।
ब्रह्मो समाज :- ब्रह्मो समाज की स्थापना 1830 में कई गई थी। केशव चंद्र सेन मुख्य नेताओं में से एक है। मूर्ति पूजा और बलि के विरुद्ध थी और इसके अनुयायी उपनिषदों में विश्वास रखते थे।
हेनरी डिरोजियो :- 1820 के दशक में हेनरी लुई विवियन डिरोजियो हिंदू कॉलेज , कलकत्ता में अध्यापक थे। यंग बंगाल मूवमेंट में उनके विद्यार्थियों ने परंपराओं और रीति-रिवाजों पर उँगली उठाई , महिलाओं के लिए शिक्षा की माँग की और सोच व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अभियान चलाया।
प्रार्थना समाज :- 1867 में बम्बई में स्थापित प्रार्थना समाज ने जातीय बंधनों को खत्म करने और बाल विवाह के उन्मूलन के लिए प्रयास किया प्रार्थना समाज में महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित किया और विधवा विवाह पर लगी पाबंदी के खिलाफ आवाज उठाई। उसकी धार्मिक बैठकों में हिंदू , बौद्ध और ईसाई ग्रंथों पर विचार विमर्श किया जाता था।
वेद समाज :- मद्रास (चेन्नई ) में 1864 में वेद समाज की स्थापना हुई। वेद समाज ब्रह्मो समाज से प्रेरित था। वेद समाज में जातीय भेदभाव को समाप्त करने और विधवा विवाह तथा महिला शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए काम किया। इसके सदस्य एक ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते थे। उन्होंने रूढ़िवादी हिंदुत्व के अंधविश्वासों और अनुष्ठानों की सख्त निंदा की
अलीगढ़ आंदोलन :- सैयद अहमद खां द्वारा 1875 में अलीगढ़ में खोले गए मोहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज को ही बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से जाना गया। यहाँ मुसलमानों पश्चिमी विज्ञान के साथ-साथ विभिन्न विषयों के आधुनिक शिक्षा दी जाती थी। अलीगढ़ आंदोलन का शैक्षणिक सुधारों के क्षेत्र में गहरा प्रभाव रहा है
रामकृष्ण मिशन और विवेकानंद :- रामकृष्ण मिशन का नाम स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा गया था। यह मिशन समाज सेवा और निस्वार्थ श्रम के जरिए मुक्ति के लक्ष्य पर जोर देता था। स्वामी विवेकानंद (1863-1902) जिनका मूल नाम नरेंद्र दास था उन्हें श्री रामकृष्ण कि सरल दिशाओं को अपनी प्रतिभाशाली संतुलित आधुनिक विचारधारा से जोड़कर संपूर्ण विश्व में प्रसारित किया।1893 में शिकागो में विश्व संसद में भाषण दिया।