अध्याय : 5 जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद

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ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियाँ :- इन नीतियों से राजाओं , रानियों , किसानों , जमीदारों , आदिवासीयों , सिपाहियों , सब पर तरह-तरह से असर पड़ा। जो नीतियाँ और कार्रवाई जनता के हित में नही होती या जो उनकों भावनाओं को ठेस पहुँचाती हैं उनका लोग किस तरह विरोध करते हैं।

 

नवाबों की छिनती सत्ता :- अठारहवीं सदी के मध्य से ही राजाओं और नवाबों की ताकत छिनने लगी थी। उनकी सत्ता और सम्मान दोनों छिनने लगे थे। बहुत सारे राजदरबारों में रेजिडेंट तैनात कर दिए गए थे। स्थानीय शासकों की स्वतंत्रता घटती जा रही थी। उनकी सेनाओं को भंग कर दिया गया था। उनके राजस्व वसूली के अधिकार व इलाके एक-एक छीने जा रहे थे।

 

झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई चाहती थीं कि उनके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए हुए बेटे को राजा मान ले।

पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब ने कंपनी से आग्रह किया कि उसके पिता को जो पेंशन मिलती थी वह उनकी मृत्यु के बाद उन्हें मिलने लगे ।

अवध की रियासत अंग्रेजों के कब्ज़े में जाने वाली आखिरी रियासत में से थी। 1801 में अवध पर एक सहायक संधि थोपी गयी और 1856 में अंग्रेजों ने उसे अपने कब्ज़े में ले लिया।

 

डलहौजी :- लार्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति या गोद प्रथा निषेध की नीति की विशेषताएं , इस नीति की सबसे प्रमुख विशेषता यह थी कि जिन शासकों का उत्तराधिकारी नहीं होता था वे पुत्र को गोद नहीं ले सकते थे। इस नीति को लागू करने के लिए डलहौजी ने सभी भारतीय राज्यों/रियासतों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया।
युद्ध की नीति – युद्ध करके अपनी सीमाओं का विस्तार करना।
कुप्रशासन की नीति -राज्यों पर कुप्रशासन का आरोप लगाकर उन्हें अधिग्रहित कर लेना।
व्यपगत की नीति – उत्तराधिकारी न होने पर राज्य को अधिग्रहित करना।

 गर्वनर जनरल डलहौजी ने ऐलान कर दिया कि रियासत के शासन ठीक से नही चल रहा है। कंपनी ने मुगलों के शासन को पूरी तरह से खत्म करने के लिए कंपनी द्वारा जारी सिक्कों पर से मुग़ल बादशाह का नाम हटा दिया गया। बहादुर शाह जफ़र अंतिम मुगल बादशाह थे।

 

किसान और सिपाही :- गाँवो में किसान और जमींदार भारी-भरकम लगान और कर वसूली के सख्त तौर तरीकों से परेशान थे और ऐसे बहुत सारे लोग महाजनों से लिया कर्ज नही लौटा पा रहें थे। भारतीय सिपाही जो कंपनी में काम करते थे अपने वेतन , भत्तों और सेवा शर्तों के कारण परेशान थे। कई नए नियम सैनिकों के धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं को ठेस पहुँचाते थे।

 

सुधारों पर प्रतिक्रिया :- अंग्रेजों को लगता था कि भारतीय समाज को सुधारना जरूरी है। सती प्रथा को रोकने और विधवा विवाह को बढ़ावा देने के लिए कानून बनाए गए। अंग्रेजी भाषा की शिक्षा को जमकर प्रोत्साहन दिया गया। 1830 के बाद कंपनी ने ईसाई मिशनरियों को खुलकर काम करने और यहाँ तक कि जमीन व संपति जुटाने की भी छूट दे दी ।1850 में एक नया कानून बनाया गया जिससे ईसाई धर्म को अपनाना और आसान हो गया। अंग्रेज उनका धर्म , उनके सामाजिक रीति-रिवाज और परंपरागत जीवनशैली को नष्ट कर रहे हैं।

 

सैनिक विद्रोह :- जब सिपाही इकट्ठा होकर अपने सैनिक अफसरों का हुक्म मानने से इंकार कर देते हैं तो उसे सैनिक विद्रोह कहते है

 

मेरठ से दिल्ली तक :- 29 मार्च 1857 को युवा सिपाही – मंगल पांडे को बैरकपुर में अपने अफसरों पर हमला करने के आरोप में फाँसी पर लटका दिया गया। सिपाहियों ने नए कारतूसों के साथ फौजी अभ्यास करनेबसे इनकार कर दिया। सिपाहियों को लगता था कि उन कारतूसों पर गाय और सुअर की चर्बी का लेप कि चढ़ाया गया था। 85 सिपाहियों को नौकरी से निकाल दिया गया। उन्हें अपने अफसरों का हुक्म न मानने के आरोप में 10-10 साल की सजा दी गई। यह 9 मई 1857 की बात है।

10 मई को सिपाहियों ने मेरठ की जेल पर धावा बोलकर वहाँ बंद सिपाहियों को आजाद करा लिया । उन्होंने अंग्रेज अफसरों पर हमला करके उन्हें मार गिराया। उन्होंने बंदूक और हथियार कब्ज़े में ले लिए और अंग्रेजों की इमारतों व संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया। उन्होंने फिरंगियों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। 10 मई की रात को घोड़ों पर सवार होकर मुँह अँधेरे ही दिल्ली पहुँच गईं। जैसे ही उनके आने की खूबर फैली , दिल्ली में तैनात टुकड़ियों ने भी बगावत कर दी। अब वे बादशाह से मिलना चाहते थे। और बहादुर शाह जफ़र को अपना नेता घोषित कर दिया।

 

 

बगावत फैलने लगी :- हर रेजिमेंट में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया ये विद्रोह दिल्ली , कानपुर , लखनऊ तक फैल गया।

कानुपर :- सवर्गीय पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहेब कानुपर के पास रहते थे। उन्होंने सेना इकट्ठा की और ब्रिटिश सैनिकों को शहर से खदेड़ दिया। और खुद को पेशवा घोषित कर दिया।

लखनऊ :- लखनऊ की गद्दी से हटा दिए गए नवाब वाजिद अली शाह के बेटे बिरजिस क़द्र को नया नवाब घोषित कर दिया गया। उनकी माँ बेगम हज़रत महल ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोहों को बढ़ावा देने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

झाँसी :- रानी लक्ष्मीबाई भी विद्रोही सिपाहियों के साथ जा मिली। उन्होंने नाना साहेब के सेनापति ताँत्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारी चुनौती दी।

बिहार :- कुँवर सिंह ने भी विद्रोही सिपाहियों के साथ दिया और महीनों तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।

 

 

कंपनी का पलटवार :- 1857 में दिल्ली दोबारा अंग्रेजो के कब्ज़े में आ गई। अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। मार्च 1858 में लखनऊ अंग्रेजो के कब्ज़े में चला गया। जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई की शिकस्त हुई और उन्हें मार दिया गया। ताँत्या टोपे मध्य भारत के जंगलों में रहते हुए आदिवासीयों और किसानों की सहायता से छापामार युद्ध चलाते रहे।

 

 

अंग्रेज़ो ने 1859 के आखिर तक देश पर दुबारा नियंत्रण पा लिया था।लेकिन अब वे पहले वाली नीतियों सहारे शासन नही चला सकते थे।

अंग्रेज़ो ने कुछ अहम बदलाव किए

1. ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक नया कानून पारित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ में सौंप दिए ताकि भारतीय मामलों को ज्यादा बेहतर ढंग से सँभाला जा सके।

2.देश के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कि भविष्य में कभी भी उनके भूक्षेत्र पर कब्जा नही किया जाएगा। उन्हें अपनी रियासत अपने वंशजों , यहाँ तक कि दत्तक पुत्रों को सौंपने की छूट दे दी गई। लेकिन उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वे ब्रिटेन की रानी को अपना अधिपति स्वीकार करें। इस तरह , भारतीय शासकों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन शासन चलाने की छूट दी गई

3. सेना में भारतीयों का अनुपात कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया गया। यह भी तय किया गया कि अवध , बिहार , मध्य भारत , और दक्षिण भारत से सिपाहियों को भर्ती करने की बजाय अब गोरखा , सिखों , और पठानों में से ज्यादा सिपाही भर्ती किए जाएँगे।

4. मुसलमानों की ज़मीन और संपति बड़े पैमाने पर जब्त की गई । उन्हें संदेह व शत्रुता के भाव से देखा जाने लगा। अंग्रेज़ो को लगता था कि यह विद्रोह उन्होंने ही खड़ा किया था।

5. अंग्रेज़ो ने फैसला किया कि वे भारत के लोगों के धर्म और सामाजिक रीति-रिवाजों का सम्मान करेंगे।

 

 

 

अध्याय 6 – बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक 

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