❍ दैनिक मौसम की रिपोर्ट में पिछले 24 घण्टों के ताप , आर्द्रता और वर्षा के बारे में जानकारी होती है।
○ मौसम :- किसी स्थान पर तापमान , आर्द्रता , वर्षा वेग आदि के संदर्भ में वायुमंडल की प्रतिदिन की परिस्थिति उस स्थान का मौसम कहलाती है। तापमान , आर्द्रता और अन्य कारक मौसम के घटक कहलाते है।
○ मौसम की रिपोर्ट भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा तैयार की जाती हैं।
○ मौसम की रिपोर्ट के लिए अधिकतम-न्यूनतम तापमापी का उपयोग किया जाता है।
○ मौसम में सभी परिवर्तन सूर्य के कारण होते है।
❍ जलवायु :- किसी स्थान पर अनेक वर्षों में मापी गई मौसम की औसत दशा को जलवायु कहते हैं।
○ आर्द्रता :- वायु में किसी भी समय जलवाष्प मात्रा को ‘आर्द्रता ‘कहते है। जब वायु में जलवाष्प की मात्रा अत्यधिक होती है , तो उसे आर्द्र कहते है।
○जब वायु में जलवाष्प की मात्रा कम होती है , तो उसे शुष्क कहते है।
• लद्दाख़ -लेह – ठंडा
• राजस्थान – चुरू – गर्म
• मेघालय- मासिनराम- वर्षा
• मानसून का आगमन – केरल
• मानसून की वापसी – तमिलनाडु
वर्षा को वर्षामापी नामक यंत्र से मापा जाता है।
❍ जलवायु और अनुकूलन :- जंतु उन स्थितियों में जीने के लिए अनुकूलित होते हैं , जिनमें वे रहते हैं।
○ अनुकूलन :- जिन विशिष्ट संरचनाओं अथवा स्वभाव की उपस्थिति किसी पौधे अथवा जंतु को उसके परिवेश में रहने के योग्य बनाती है , अनुकूलन कहलाता हैं।
○स्थलीय आवास :- स्थल ( जमीन ) पर पाए जाने वाले पौधों एवं जंतुओं के आवास को स्थलीय आवास कहते हैं।
उदाहरण :- वन , घास के मैदान , मरुस्थल , तटीय एवं पर्वतीय क्षेत्र आदि।
○ जलीय आवास :- जलाशय , दलदल , झील , नदियाँ , एवं समुद्र , जहाँ पौधे एवं जंतु जल में रहते हैं , जलीय आवास कहलाता है।
○ अनुकूलित :- जंतु उन परिस्थितियों के लिए अनुकूलित होते हैं , जिनमें वह वास करते हैं।
○ चरम जलवायवी :- उष्णकटिबंधीय और ध्रुवीय क्षेत्र , जहाँ की चरम जलवायवी परिस्थितियाँ होती हैं।
○ ध्रुवीय क्षेत्र :- ध्रुवों में वर्ष के छः महीने तक सूर्यास्त नहीं होता है शेष छः महीने तक सूर्योदय नहीं होता है।
○ ध्रुवीय क्षेत्र :- ये क्षेत्र सदैव बर्फ़ से ढके रहते है।उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव। बियर और पेंग्विन यहाँ रहते है। , ग्रीनलैंड , आइसलैंड , नार्वे , स्वीडन , फिनलैंड , अमेरिका में अलास्का और रूस के साइबेरियाई क्षेत्र हैं।
○ ध्रुवीय क्षेत्र :- जंतु कुछ विशेष गुणों के कारण जैसे , शरीर पर श्वेत (सफेद) फर , सूंघने की तीव्र शक्ति , त्वचा के नीचे वसा की परत , तैरने और चलने के लिए चौड़े और लंबे नखरों आदि के कारण अत्यधिक सर्द जलवायु के लिए अनुकूलित होते है।
○ उष्णकटिबंधीय वर्षावन :- उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की जलवायु सामान्यतः गर्म होती है , क्योंकि ये क्षेत्र भूमध्यरेखा के आस-पास स्थित होते है।
○ सर्दियों में तापमान सामान्यतः 15 C से अधिक रहता है। गर्मियों में तापमान 40 C से अधिक हो जाता है। इन क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है।
○ भारत मे पश्चिमी घाटों और असम में पाए जाते हैं।
○ सतत गर्मी और वर्षा के कारण इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के पादप और जंतु पाए जाते हैं।
○ उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में जंतु इस प्रकार अनुकूलित होते हैं कि उन्हें अन्य प्रकार के जंतुओं से भिन्न भोजन और आश्रय की आवश्यकता होती है , ताकि उनमें परस्पर स्पर्धा कम से कम हो।
○ उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में रहने वाले जंतुओं के कुछ अनुकूलनों में वृक्षों पर आवास , मजबूत पूँछ का विकास , लंबी और विशाल चोंच , चटख रंग , तीखे पैटर्न/प्रतिरूप , तीव्र स्वर ध्वनि ( तेज आवाज़ ) , फलों का आहार , सुनने की संवेदनशील शक्ति , तीव्र दृष्टि , मोटी त्वचा ( खाल ) , परभक्षियों से बचने के लिए छद्मावरण की क्षमता आदि सम्मिलित हैं।