समावेशी शिक्षा | Inclusive education

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❍ समावेशी शिक्षा :- समावेशी शिक्षा होता है जिसके माध्यम से विशेष क्षमता वाला बालक को शिक्षा दिया जाता है |विशिष्ट क्षमता जैसे अंधे बालक, मंदबुद्धि, बहरे तथा प्रतिभाशाली बालकों को शिक्षा प्रदान किया जाता है,समावेशी शिक्षा का निधरिण छात्रों बुद्धि को देखते हुए शिक्षा प्रदान किया जाता है, बालक के शैक्षिक स्तर और योग्यता को ध्यान में रखकर ही समावेशी का शिक्षा दिया जाता है,

 

समावेशी शिक्षा के स्तर होता है, यह बालक के अनुरूप निर्धारित के अनुरूप ही निर्धारित किया जाता है,

 

 ❍ शारीरिक रूप से भिन्न बालक :- शारीरिक रूप से भिन्न बालक वह बालक होता है,

जो आने वाला के अपेक्षा भिन्न होता है।  

जैसे:-

1.गति रूप से विकलांग

2.बहुत विकलांग

3.सांवेदिक रूप से विकलांग

❍ मानसिक रूप से विचलित बालक :-मानसिक रूप से विचलित बालक वह होता है, जो मानसिक रूप से कमजोर होता है। तथा ऐसे भी बालक होता है, जो आवश्यकता से अधिक समझदार और चतुर होता है, इसे भी मानसिक रूप से विचलित कहा जाता है।

जैसे:-

1.मंदबुद्धि बालक

2.प्रतिभाशाली बालक

3. सृजनशील बालक

 

❍ सामाजिक रुप से विचलित बालक :-जिस बालक को समाज के बीच अच्छा स्थान ना ही हो या अच्छे प्रतिष्ठा ना हो, किसी भि कारण से जैसे- बात करने की शैली ना हो किसी काम से समाज के लोग को पसंद नहीं आता हो,

1. सांवेगिक रूप से परेशान बालक

2.असमायोजित बालक

3.वंचित बालक

4. माता-पिता द्वारा तिरस्कृत बालक

5.बालक अपराधी

 

❍ शैक्षिक रूप से भिन्न बालक :-शैक्षिक रूप से भिन्न बालक के निम्न प्रकार होता है,

 

1.शैक्षिक रूप समृद्ध बालक

2.शैक्षिक रूप से पिछड़े बालक

3.किसी विषय को ना सिक पाना

4.संप्रेषण में बाधित बालक

 

❍ समावेशी शिक्षा के सिद्धांत :-समावेश शिक्षा का कुछ मुख्य सिद्धांत है।

व्यक्तिगत रूप से भिन्नता(Individual difference)

◾व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्तियों में भिन्नता पाया जाता है, कुछ भिन्नता रंग-रूप तथा कुछ भिन्नता व्यक्तित्व में पाया जाता है।

◾प्रतिभावान छात्रों को अधिक विस्तार पूर्वक पढ़ाया जाता है, और वह सीख भी जल्द लेता है वही मंदबुद्धि बालकों को पत्रकार वह धीरे-धीरे सिखाया जाता है।

◾इसमें कुछ बालक ऐसे होते हैं, जिन्हें बिल्कुल ही रुचि नहीं होता है उस बालों को रुचि जागरूक करना होता है।

◾समावेशी शिक्षा का सिद्धांत है कि व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार भिन्न छात्र को शिक्षा प्रदान किया जा सकता है।

  माता-पिता द्वारा सहयोग प्रदान करना (provide cooperation by parents)
समावेश शिक्षा के अंतर्गत माता-पिता का सहयोग देना अति आवश्यक होता है, अगर माता-पिता समावेश शिक्षा में सहयोग देंगे तभी उचित प्रकार के समावेश शिक्षा प्रदान किया जा सकता है।

भेदभाव रहित शिक्षा (Non-Discriminatory Education)
भेदभाव रहित शिक्षा हेतु सर्वप्रथम छात्रों को पहचान की जाना अति आवश्यक होता है, जिससे छात्र को अलग-अलग भेदभाव रहित शिक्षा प्रदान किया जा सकता है

विशिष्ट कार्य द्वारा शिक्षा(Education through special program)
विशेष शिक्षा के लिए विशिष्ट कार्यक्रम को लागू किया जा सकता है, शारीरिक रूप से बाधित छात्र के लिए उनके माता-पिता को विद्यालय का पूरा सवे कर सकते हैं।

यदि माता-पिता शिक्षण और शिक्षण संस्था को कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है, तो वह अपनी इच्छा अनुसार बालक को शिक्षण संस्था से निकाल सकते हैं, और अपनी इच्छा अनुसार किसी शिक्षण संस्था में दाखिला सकते हैं। जिससे बालक को विशिष्ट कार्यक्रम के द्वारा उचित शिक्षा प्रदान किया जा सकता है।

 

❍ समावेशी शिक्षा नीति 2006 (education policy 2006 with reference of inclusive education)
समावेशी शिक्षा के संदर्भ में शिक्षा नीति 2006 के अंतर्गत कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं,

◾शारीरिक तथा मानसिक दोष से ग्रस्त बालक जो सामान्य शिक्षा संख्या में आकर शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं, यदि कक्षा में सामान्य बालक के साथ शिक्षा दिया जाता है। तो अपने आप में अपमान भाव महसूस करेगा, वह हीनता भाव से ग्रसित हो जाएगा, इसलिए उसे ऐसे परिस्थितियों में उसे सुरक्षा प्रदान करना और आत्मबल बढ़ाना।

◾बाधित बालक के प्रारंभिक स्तर पर ही पहचान कर लेना जरूरी होता है, तथा उसके अनुकूल उनके लिए कार्यक्रम को बनाना।

◾विकलांग बालक के लाभ के लिए विभिन्न विधियों का विकास किया गया है, इसके सहायेता के लिए विभिन्न विधिक उपलब्ध है।

◾भारतीय संविधान में तीन तथा झारखंड में विभाजित किया गया है शिक्षा संबंधित अनेक प्रावधान किए गए हैं।

◾अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बालक को शिक्षा तथा धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता है।

इसमें शिक्षा के माध्यम से हिंदी भाषा को विकास करने में जोड़ दिया जाता है।

 

शिक्षा का अधिकार (Right to Education)

◾संविधान के अनुच्छेद के अंतर्गत 21 के अंतर्गत शिक्षा के अधिकार एक प्रकार के इच्छित (Desived) अधिकार माना गया है, जो व्यक्ति के इच्छा है की और शिक्षा पाना चाहता है। और पढ़ सकता है, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग की हो।

◾भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत शिक्षा के अधिकार को संकेत करता है, कि नागरिक को शिक्षा और रोजगार करने के लिए स्वतंत्र है। कहीं भी और कहीं भी पढ़ सकता है, और कहीं भी रोजगार कर सकता है।

◾नि:शुल्क शिक्षा अनिवार्य:-
वर्ष 2002 में 86 वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 21(क) में संशोधन में शोध किया गया कि प्रारंभिक शिक्षा नागरिक को मूल अधिकार है।

◾अनुच्छेद 21( क) में कहा गया कि राज्य के 6 से 14 वर्ष के सभी के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था किया गया है।

 

❍ मातृभाषा में शिक्षा सुविधाएं :-प्राथमिक स्तर पर मात् भाषा के बहुत महत्व दिया गया है, संविधान के अनुच्छेद में प्राथमिक स्तर की भाषा की स्वीकार किया गया है, इस अनुच्छेद 350-ए में कहा गया कि बालकों की अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा सुविधा को उपलब्ध कराने का दायित्व राज्य सरकार तथा स्थानीय निकाय का है।

इसमें बालक को सहयोग करना उनके माता-पिता का दायित्व है।

❍ हिंदी भाषा का विकास (Development of Hindi language) संविधान में राष्ट्रीय भाषा हिंदी के विकास और प्रचार का व्यवस्था किया गया है, इसमें हिंदी भाषा का विकास के लिए जोर दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार राष्ट्रीय भाषा हिंदी का विकास किया गया है!

❍ राष्ट्रीय भाषा हिंदी का विकसित करने का दायित्व केंद्र का है। तथा कि भारत मिली-जुली संस्कृति से सभी वर्ग और सभी धर्मों का सम्मान हो इसलिए राष्ट्रीय भाष बनाया गया है।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (Right to education act, RTE, 2009)वर्षों 2009 मैं बालकों का निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है। अधिकार अधिनियम 2009 में पास किया गया कि 6 वर्ष 14 वर्ष की आयु के बच्चों कक्षा 1 से 8 तक का निःशुल्क शिक्षा दिया जाए।

◾इसमें राज्य सरकार ने 1 अप्रैल 2010 से इस कानून के रूप में लागू किया गया कि सभी वर्ग और सभी धर्म पर लागू किया गया है,

◾इस नियम के अधिनियम का संक्षिप्त नाम शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 रखा गया है।

 

❍समावेशी शिक्षा क्या है-What is Inclusive Educationसमावेशी शिक्षा क्या है वह शिक्षा सभी नागरिक और सभी बालक को समान शिक्षा का अवसर दिया जाए और उन्हें एक समान अधिकार दिया जाए,समावेशी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है, कि सभी नागरिक को समान शिक्षा और समान अधिकार दिया जाना चाहिए,

◾अल्पसंख्यक की शिक्षा(Education of minorities)
राज्य सरकार अनुदान देते समय इस संस्था के साथ भेद-भाव नहीं करेगा। क्यों की ये संस्था अल्पसंख्यकों के द्वारा विशेष नियमों के अंतर्गत चलाए जा रहे हैं ।

 

शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार :- समावेशी शिक्षा अधिगम के ही नहीं बल्कि विशिष्ट अधिगम के नए आयाम खुलती है।”

 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत (Theory of inclusive education, theory of inclusive special education)
समावेशी शिक्षा के निम्नलिखित सिद्धांत है-

1. वातावरण नियंत्रण पूर्ण होना :-समावेशी शिक्षा में हर तरह के बालक एक ही कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते हैं जिसके कारण उन में विभिन्न तरह के वातावरण उत्पन्न होता है वातावरण को एक ही वातावरण में डालने का काम समावेशी शिक्षा करता है।

2. विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा :-समावेशी शिक्षा विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा बालकों को शिक्षा प्रदान करने का सबसे अच्छा तरीका है बालक विशिष्ट कार्यक्रमों में भाग लेकर या उन्हें देखकर उनके अंदर अधिगम की शक्ति को बढ़ाया जाता है। इसलिए समावेशी शिक्षा में विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है।

3. भेदभाव रहित शिक्षा :-समावेशी शिक्षा जहां बिना किसी भेदभाव के सामान्य तथा विशिष्ट बालकों को एक साथ शिक्षा दी जाती हैं जिससे उनके अंदर भेदभाव की भावना को मिटाया जाता है समावेशी शिक्षा भेदभाव को दूर करने छुआछूत ओं को दूर करने का एक सबसे अच्छा उदाहरण है।

4. माता-पिता द्वारा सहयोग प्रदान करना :-समावेशी शिक्षा में ना केवल बच्चों की शिक्षा में शिक्षक ही सहायक होते हैं बल्कि उन बच्चों के माता-पिता भी उनके शिक्षा में सहयोग प्रदान करते हैं उनकी सहायता करते हैं। जिससे उनके अंदर अधिगम की शक्ति को और भी ज्यादा बढ़ाया जाता है बच्चे अपने माता-पिता के सहयोग पाकर और अच्छी तरह से अधिगम कर पाते हैं।

5. व्यक्तिगत रूप से विभिन्नता :-जो बालक समावेशी शिक्षा ग्रहण करते समय उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी या दिक्कत होती है तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से वे शिक्षा दी जाती है ताकि उन्हें सामान्य बालकों के सामान बनाया जा सके।

 

भारत में समावेशी शिक्षा का विकास :-Development of inclusive education in India

❍कोठारी आयोग 1966 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 तथा शिक्षा नीति के क्रियान्वयन का प्रारूप 1991 के संदर्भ देते हुए समावेशी शिक्षा के विकास का वर्णन

❍कोठारी कमीशन 1964 से 1966 ने कहा है कि प्रारंभिक शिक्षा की व्यापकता के लक्ष्य बालकों के समावेशी समूह के शिक्षण क्षेत्र में सफलता पर निर्भर करते हैं। जब तक बालकों के इस समूह के लिए उपयुक्त शिक्षा सेवाएं उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं, बाधित बालकों का शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश प्रारंभिक अवस्था में कब होगा। बाधित बालक अन्य सामान्य बालक के 0.17% हैं जो प्रारंभिक शिक्षा में प्रवेश लेते हैं।

❍यह आंकड़ा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार 1% है, जो प्रारंभिक शिक्षा में कम प्रतिशत से यह मालूम पड़ता है, कि हमारे देश में विभिन्न बाधिताओं से ग्रस्त कई लाख बालक शिक्षा के अवसरों से वंचित रहते हैं, या अस्वीकार करते हैं। हालांकि हमारे संविधान में प्रत्येक बालक की प्रारंभिक स्तर की शिक्षा का प्रावधान है जो सभी के लिए आवश्यक है।

❍ अधिकांश ऐसे समूह के बालक या तो शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश ही नहीं लेते अथवा किसी ना किसी कारणवश शिक्षा आधी अधूरी छोड़ देते हैं। शिक्षण क्षेत्र में बाधितों की संख्या में उन्नति विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं में रेखीय प्रावधान के कारण नहीं हो पाई जबकि 90% बालक सामान्य कक्षाओं में शिक्षा ग्रहण करते हैं।

 

❍ समावेशी शिक्षा या एकीकरण के सिद्धांत की ऐतिहासक जड़ें कनाडा और अमेरिका से जुड़ीं हैं। प्राचीन शिक्षा पद्धति की जगह नई शिक्षा नीति का प्रयोग आधुनिक समय में होने लगा है। समावेशी शिक्षा विशेष विद्यालय या कक्षा को स्वीकार नहीं करता। अशक्त बच्चों को सामान्य बच्चों से अलग करना अब मान्य नहीं है। विकलांग बच्चों को भी सामान्य बच्चों की तरह ही शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है।

 समावेशी शिक्षा महत्व :-
समावेशी शिक्षा प्रत्येक बच्चो के लिए उच्च और उचित उममीदों के साथ उसकी व्यक्तिगत शक्तियों का विकास करती है ।
 समावेशी शिक्षा अन्य छात्रो को अपनी उम्र के साथ कक्षा के जीवन में भाग लेने और व्यक्तिगत लक्ष्यों पर काम करने हेतु अभिप्रेरित करती है ।
समावेशी शिक्षा बच्चो को उनके शिक्षा के क्षेत्र में और उनके स्थानीय स्कूलों की गतिविधियों में उनके माता-पिता को भी शामिल करने की वकालत करती है ।
 समावेशी शिक्षा सम्मान और अपनेपन की स्कूल संस्कृति के साथ-साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है।
समावेशी शिक्षा अन्य बच्चो, अपने स्वयं के व्यक्तिगत आवश्यक्ताओ और क्षमताओ के साथ प्रत्येक को एक व्यापक विविधता के साथ दोस्ती का विकास करने की क्षमता विकसित करती है ।

 

 

 

❍ समावेशी शिक्षा के उद्देश्य :-

1. शिक्षा का अधिकार :- शिक्षा का अधिकार प्रत्येक बच्चे का संवैधानिक अधिकार है। समावेशी शिक्षा, शिक्षा के अधिकार को प्राप्त करने के लिए एक सकारात्मक प्रयास है। इसका मुख्य उद्देश्य सभी बच्चों को चाहे वह मानसिक, सामाजिक, शारीरिक, संवेगात्मक रूप से कमजोर हो, उन्हें एक समान व सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा प्रदान करना व बच्चे के अधिकार का सम्मान करना समावेशी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है।

2. विभिन्न कौशलों की पहचान :- प्रत्येक बच्चे में कुछ विशिष्ट योग्यता होती है। कोई बालक यदि शिक्षा के क्षेत्र में कमजोर है तो हो सकता है कि वह किसी दूसरे क्षेत्र में प्रतिभावान हो, कई शोध व अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि मानसिक मन्दता वाले बच्चों में किसी न किसी प्रकार की कला व सृजनात्मकता होती है। ऐसे बच्चों को “Savage Ginius” कहा जाता है।  ऐसे बच्चे संगीत, कला, वादन, चित्रकला, पेन्टिंग आदि क्षेत्रों में अधिक सृजनशील होते हैं। 

3. सभी को शिक्षा का समान अवसर:- समावेशी शिक्षा किसी वर्ग या समूह विशेष को लिए नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य बालकों को समान शिक्षा प्रदान करना है। समावेशी शिक्षा की शिक्षण रणनीति, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, प्रविधि को इस प्रकार लचीला बनाया गया है कि शिक्षा से कोई भी बच्चा वंचित न रह जाय। इस शिक्षा का केन्द्र बालक को माना गया है। शिक्षा प्रदान करने में बालक की असमर्थता को ध्यान में रखा गया है जिससे सभी बच्चों को शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हो सके। 

 

4. सामाजिकता की भावना का विकास :- पहले बाधित व निःशक्तता वाले बच्चों को पृथक् शिक्षण कराया जाता था तथा इनके लिये पृथक् विद्यालय खोले गये। इस पृथकता के कारण ये बच्चे सामाजिक रूप से भी पृथक् होने लगे तथा इनमें हीनता की भावना आने लगी। समावेशी शिक्षा में सभी बच्चे एक साथ मिलकर सामूहिक रूप से अध्ययन करते हैं तथा एक-दूसरे का सहयोग मैत्रीपूर्वक करते हैं।

5. अशक्त व बाधित बालकों की क्षमताओं का विकास :- इस प्रकार के बालक भी समाज के अंग हैं। उनमें भी अपनी योग्यता व कौशल पाये जाते हैं। समावेशी शिक्षा के माध्यम से इन बच्चों की क्षमता व योग्यता का विकास किया जा सकता है। अशक्त बालक दया के पात्र नहीं हैं बल्कि उनको प्रतिभा के विकास के अवसर प्रदान किये जाने चाहिए तथा उन्हें उनकी असमर्थता को चुनौती के रूप में स्वीकार करने का समर्थन किया जाना चाहिए।

6. आत्मविश्वास व आत्मसम्मान का विकास करना ;- कोई भी व्यक्ति यदि शिक्षित है तो उसमें आत्मविश्वास दिखायी देता है। कोई भी शैक्षिक उपलब्धि या शिक्षा बालक में आत्म विश्वास पैदा करती है। जब व्यक्ति आत्मविश्वासी होता है तो उसके बाद वह आत्म सम्मान के लिए कार्य करता है। वह सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाने का प्रयास करता है। शिक्षा बालक में आत्मनिर्भर, आत्मविश्वास व आत्मसम्मान की भावना का विकास करती है। 

7. चुनौतियों के लिए तैयार करना :- समावेशी शिक्षा स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। सभी बच्चों को एक कक्षा में एक छत के नीचे एक समान शिक्षा प्रदान करना वास्तव में एक कठिन व चुनौतीपूर्ण कार्य है। समावेशी शिक्षा का प्रत्येक उद्देश्य बालक को शिक्षा के अधिकार से पूरा लाभ उठाने, अपना विकास करने, स्वाभिमानपूर्ण जीवन व्यतीत करने को लेकर यह शिक्षा इस उद्देश्य को लेकर चलती है ।

8. असमर्थता से समर्थता की ओर ले जाना :- समावेशी शिक्षा में असमर्थ बालकों को सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा प्रदान की जाती है ऐसे बच्चे यदि सामान्य बच्चों के साथ मिलकर कार्य करते हैं तो इनकी क्षमता का विकास होता है, वे अन्य बच्चों को देखकर कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं। इस शिक्षा का उद्देश्य ऐसे बच्चों को क्षमताओं का विकास करना तथा उसमें सक्षमता की भावना का संचार करना है।

 

 

समावेशी शिक्षा में कक्षा अध्यापक की भूमिका :-डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार, “अध्यापक का समाज में स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बौद्धिक संस्कृतियों और तकनीकी कौशलों को पहुँचाने में मुख्य भूमिका अदा करता है और सभ्यता के दीपक को जलाए रखने में मदद करता है। ” समावेशिक प्रणाली में एक अध्यापक की भूमिका एवं उत्तरदायित्वों को निम्न रूप से लिखा जा सकता है-

 

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