समाज निर्माण में लैंगिक मुद्दे | Gender Issues

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❍ लैंगिक मुद्दे :- लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरुष की जैविक बनावट ही नही, बल्कि इन दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और स्वीकृत सामाजिक मान्यताएँ हैं।

लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरूष की जैविक बनावट नहीं बल्कि इन दोनों बारे में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं। लड़के और लड़कियों के पालन-पोषण के क्रम में यह मान्यता अनके मन में बैठा दी जाती है कि औरतों की मुख्य जिम्मेदारी गृहस्थी चलाने और बच्चों का पालन-पोषण करने की है।

 

❍ पुरुषों एवं स्त्रियों के जैविक प्रवृत्ति से ही सामाजिक भूमिकाएँ निर्धारित होती हैं। स्त्रियों को घर एवं चूल्हे से तथा पुरुषों को बाहरी दुनिया, स्त्रियों को प्रकृति तथा पुरुषों को संस्कृति, स्त्रियों को नीति तथा पुरुषों को सार्वजनिक, स्त्रियों को भावनाओं तथा पुरुषों को तार्किकता से जोड़ा जाता है।

‘जेण्डर’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘जीनस’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ ‘प्रकार’ (Kind, type or sort) है। इसका अर्थ वर्ग के रूप में भी लिया जाता है। यह वह वर्ग है, जिसके साथ समाज को लिंगानुरूप मान्यताएँ जुड़ी होती हैं।महिलाओं का पुरुषों की तुलना में घरेलू कार्यों में संलग्न होना, लड़के के जन्म को लड़की की तुलना में अधिक प्राथमिकता देना, लड़के को माँ-बाप के बुढ़ापे का सहारा मानना तथा लड़की को पराया धन मानना, माता-पिता द्वारा लड़की की तुलना में लड़के की शिक्षा एवं रोजगार को अधिक प्राथमिकता देना, पुरुष को स्त्री की तुलना में अधिक ऊँची सामाजिक प्रस्थिति का मानना आदि जेण्डर से सम्बन्धित अन्तर माने जाते हैं।

 

 

❍जेण्डर एक सामाजिक-सांस्कृतिक तथ्य है, जिसे हम लिंग की सामाजिक रचना भी कह सकते हैं। यह किसी प्राकृतिक प्रक्रिया का परिणाम न होकर सामाजिक संरचना द्वारा निर्मित प्रक्रियाओं की सामाजिक रचना होती है। विभिन्न समाजों में सामाजिक-सांस्कृतिक अन्तर होने के कारण जेण्डर के रूप में लिंग की यह सामाजिक रचना भिन्न-भिन्न प्रकार की हो सकती है।

 

सन् 1950 एवं 1960 के दशक में अंग्रेज एवं अमेरिकी मनोरोग एवं चिकित्सा विशेषों ने पहली बार ‘लिंग’ एक ‘जेण्डर’ में लिंग के जैविक तथ्य होने के रूप में तथा जेण्डर के इसकी सामाजिक-सांस्कृतिक रचना के रूप में अन्तर किया।

 

❍ लिंग के आधार पर श्रम विभाजन :-

महिलाएँ घर की चारदीवारी के अन्दर सिमट कर रह गई है और बाहर का सार्वजनिक जीवन पुरुषों के कब्जे में आ गया है।

○ मनुष्य जाति में महिलाओं का हिस्सा आधा है पर सार्वजनिक जीवन में खासकर राजनीति में उनकी भूमिका नगण्य ही है।

○ महिलाओं ने मतदान का अधिकार , शिक्षा , रोजगार और बराबरी के लिए आंदोलन या माँग की।

 

❍ नारीवाद :- राजनैतिक आन्दोलनों, विचारधाराओं और सामाजिक आंदोलनों की एक श्रेणी है, जो राजनीतिक, आर्थिक, व्यक्तिगत, सामाजिक और लैंगिक समानता को परिभाषित करने, स्थापित करने और प्राप्त करने के एक लक्ष्य को साझा करते हैं। इसमें महिलाओं के लिए पुरुषों के समान शैक्षिक और पेशेवर अवसर स्थापित करना शामिल है।

 

❍ आजादी के बाद सुधार :- हमारे देश में आजादी के बाद से महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, पर वे अभी भी पुरुषों से काफी पीछे हैं। हमारा समाज अभी भी पितृ-प्रधान है।

○ महिलाओं की साक्षरता दर अभी भी मात्र 65% है, जबकि पुरुषों में 82%। इसी प्रकार स्कूल पास करने वाली लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पाती है।

○ समान मजदूरी अधिनियम पास होने के बावजूद प्रत्येक क्षेत्र में खेल-कूद , सिनेमा , कारखानों , खेत-खलिहान तक महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है।

○ आज हम वैज्ञानिक , डॉक्टर , इंजीनियर , कॉलेज , में महिलाओं की अहम भूमिका है। स्वीडन , नार्वे , फिनलैंड , देशों में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊँचा है।

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