अध्याय 6 : नगर , व्यापारी और शिल्पीजन

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प्रशासनिक केंद्र :- चोल राज्य की राजधानी तंजावुर जो कावेरी नदी के पास बसा था ,राजा राजराज चोल द्वारा निर्मित राजराजेश्वर मंदिर के निर्माण किया था। इस मंदिर के अलावा नगर में अनेक राजमहल है ,जिसमें कई मंडप बने हुए हैं।

 राजा लोग इन मंडपों में अपना दरबार लगाते हैं। नगर उन बाजारों में हलचल से भरा हुआ है ; जहाँ अनाज , मसलों , कपड़ो और आभूषणों की बिक्री हो रही है। उरैयूर में अभिजात वर्ग सूती वस्त्र और जनसाधारण के लिए मोटा सूती वस्त्र तैयार क्र रहे हैं।

 

मंदिर नगर और तीर्थ केंद्र :- तंजावूर मंदिर नगर नगरीकरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रतिरूप प्रस्तुत करते हैं। मंदिर अक्सर समाज और अर्थव्यस्था दोनों के लिए ही अत्यंत प्रक्रिया है। शासक , विभिन्न देवी-देवताओं के प्रति अपना भक्ति भाव दर्शाने के लिए मंदिर बनाते थे। मंदिर – मंदिर के कर्ता-धर्ता मंदिर के धन को व्यापर एवं सहकारी में लगाते थे।

धीरे-धीरे समय के साथ , बड़ी संख्या में पुरोहित -पुजारी , कामगार , शिल्पी ,व्यापारी आदि मंदिर तथा उसके दर्शनार्थियो एवं तीर्थयात्रियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मंदिर के आस-पास बस्ते गए। गुजरात ( सोमनाथ ) , तमिलनाडु ( कांचीपुरम तथा मदुरै ) , आंध्र प्रदेश ( तिरुपति ) हैं।

 

तीर्थस्थल :- तीर्थस्थलभी धीरे-धीरे नगरों के रूप में विकसित हो गए। वृंदावन ( उत्तर प्रदेश ) और तिरुवन्नमलाई ( तमिलनाडु ) ऐसे नगरों के दो उदाहरण हैं। अजमेर ( राजस्थान ) बारहवीं शताब्दी में चौहान राजाओं की राजधानी था सुप्रसिद्ध सूफी संत ख्वाज़ा मुइनुद्दीन यहाँ बस  गए थे और उनके दर्शनार्थी एवं श्रद्धालु सभी पंथो-मतों के हुआ करते थे। अजमेर के पास ही पुष्कर सरोवर है , जहाँ प्राचीनकाल से ही तीर्थयात्री आते रहें है।

 

छोटे नगरों की संजाल :- आठवीं शताब्दी से ही उपमहाद्वीप में अनेक छोटे-छोटे नगरों का संजाल-सा बिछने लगा था। संभवत: उनका प्रदुर्भाव बड़े-बड़े गाँवो से हुआ था। उनमें आमतौर पर एक मंडपिका ( बाद में जिसे ‘ मंडी ‘ कहा जाने लगा ) होती थी , जहाँ आस-पास के गाँव वाले अपनी उपज बेचने के लिए लाते थे। उनमें ऐसी गलियाँ थी , जहाँ दुकानें एवं बाजार थे जिन्हें ‘ हट्ट ‘ कहा जाता था। इसके अलावा भिन्न-भिन्न प्रकार के कारीगरों वालों , सुनारों , लोहरों , पत्थर तोड़ने वालों आदि के अलग-अलग बाजार होते थे। कुछ व्यापारी क्रय-विक्रय किया करतेथे।

 

बड़े और छोटे व्यापारी :- व्यापारी कई प्रकार के हुआ करते थे। उनमें बंजारे लोग भी शामिल थे। कई व्यापारी , विशेष रूप से घोड़ो के व्यापारी अपने संघ बनाते थे , जिनका एक मुखिया होता था और वह मुखिया उनका ओर से घोड़ा खरीदने के इच्छुक योद्धाओं से बातचीत करता था। अफ़्रीका से सोना और हाथी दाँत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन से मसाले , टिन , चाँदी  लेते थे ।

 

नगरों में शिल्प :- बीदर के शिल्पकार ताँबे तथा चाँदी में जड़ाई के काम के लिए इतने अधिक प्रसिद्ध थे की इस शिल्प का नाम ही ‘ बिदरी ‘ पड़ गया। पांचाल अर्थात विश्वकर्मा समुदाय जिसमें सुनार , कसेरे , लोहार , राजमिस्त्री और बढ़ई शामिल थे , मंदिरो के निर्माण के लिए आवश्यक थे वस्त्र-निर्माण से संबंधित कुछ अन्य कार्य जैसे -कपास को साफ करना , कातना और रंगना भी स्वतंत्र व्यवसाय बन गए थे , जिनके लिए विशेषज्ञता की आवश्यकता होती थी।

 

हम्पी :- हम्पी नगर , कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों की घाटी में स्थित है। यह नगर 1336 में स्थापित विजयनगर साम्रज्य का केंद्र स्थल था। शहर की किलेबंदी उच्च कोटि की थी। हम्पी की वास्तुकला विशिष्ट प्रकार की थी। वहाँ के शाही भवनों में भव्य मेहराब और गुंबद थे।

पंद्रहवी-सोलहवीं शताब्दियों के अपने समृद्धिकाल में हम्पी कई वणिज्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से गुंजायमान रहता था। उन दिनों हम्पी के बाजारों में मुस्लिम सौदागरों , चेट्टियो और पुर्तगालियो जैसे यूरोपीय व्यापारियों के एजेंटो का जमघट लगा रहता था। मंदिर सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र होते थे।

महानवमी पर्व , जो आज दक्षिण में नवरात्रि पर्व कहलाता है। 1565 में दक्कनी सुल्तानों-गोलकुंडा , बीजापुर , अहमदनगर , बरार और बीदर के शासको-के हाथों विजयनगर की पराजय के बाद हम्पी का विनाश हो गया।

 

सूरत :- सूरत मुग़लकाल में कैबे और अहमदाबाद के साथ-साथ , गुजरात में पश्चिमी व्यापार का वाणिज्य केंद्र बन गया। सूरत ओरमुज की खाड़ी से होकर पश्चिमी एशिया के साथ व्यापार करने के लिए मुख्य द्वार था।

यहाँ पर पुर्तगालियों , डचों और अंग्रेजों के कारखाने एवं मालगोदाम थे। सूरत में ऐसी अनेक दुकानें थी जो सूती कपड़ा , थोक और फुटकर कीमतों पर बेचती थी। आज सूरत एम् महत्वपूर्ण वाणिज्यिक केंद्र है।

 

 

मसूलीपत्तनम :- मसूलीपत्तनम या मछलीपत्तनम नगर कृष्णा नदी के डेल्टा पर स्थित है। सत्रहवीं शताब्दी में यह भिन्न-भिन्न प्रकार की गतिविधियों का नगर था।

 

नए नगर और व्यापारी :- सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों में यूरोप के देश , व्यापारिक उद्देश्यों से मसालों और कपड़ों की तलाश में लगे हुए थे अठारहवीं शताब्दी में बंबई , कलकत्ता , और मद्रास नगरों का उदय हुआ ,जो आज प्रमुख महानगर हैं।

 

वास्को-डी-गामा :- पंद्रहवी शताब्दी में यूरोपीय नाविकों द्वारा समुद्री मार्ग खोजने के अभूतपूर्व कार्य किए गए। पुर्तगाली नाविक वास्को-डी-गामा अटलांटिक महासागर के साथ यात्रा करते हुए केप ऑफ गुड होप से निकलकर और हिंद महासागर को पार करके 1498 ( कालीकट )भारत पहुँचा।

 

क्रिस्टोफर कोलंबस :- इटलीवासी क्रिस्टोफर कोलंबस 1492 में वेस्टइंडीज पँहुचा।

 

 

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