बिहार में मगध साम्राज्य का उदय
∆ मगध
• सर्वप्रथम मगध शब्द का उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगृह (गिरिव्रज) थी।
• मगध साम्राज्य का विस्तार उत्तर में गंगा, दक्षिण में वनाच्छादित पठारी प्रदेशों, पश्चिम में सोन तथा पूर्व में चम्पा नदी तक था। प्राचीनकाल से ही वर्तमान पटना एवं गया जिले का क्षेत्र मगध के नाम से जाना जाता था।
• मगध प्राचीनकाल से ही राजनीतिक उत्थान एवं सामाजिक-धार्मिक जागृति का केन्द्र बिन्दु रहा है। छठी शताब्दी ई. पू. प्रथम मगध साम्राज्य का उत्कर्ष काल माना जाता है।
• मगध राज्य के आरम्भिक इतिहास की जानकारी महाभारत से प्राप्त होती है। गंगा के उत्तर की ओर विदेह राज्य और दक्षिण की ओर मगध राज्य का उल्लेख इस महाकाव्य में किया गया है।
• ‘महाभारत’ ग्रंथ में मगध के शासक जरासन्ध एवं भीम के बीच हुए मल्ल युद्ध का उल्लेख मिलता है।
मगध के प्रमुख राजवंशों का वर्णन निम्न प्रकार है।
बिहार में मगध एवं अन्य प्रमुख वंशों का उदय
∆ वृहद्रथ वंश
• प्राचीन स्रोतों के अनुसार मगध का पहला राजवंश ‘वृहद्रथ वंश’ था। इसका संस्थापक वृहद्रथ था, जिसकी राजधानी वसुमती (गिरिव्रज या कुशाग्रपुर) थी।
• इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक जरासन्ध (वृहद्रथ का पुत्र) था। जरासन्ध की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र सहदेव ने मगध का शासन सँभाला।
• इस वंश का अन्तिम शासक रिपुंजय था। रिपुंजय के मन्त्री पुलक ने उसकी हत्या कर दी। अन्ततः हर्यंक वंश की स्थापना हुई।
∆ हर्यक वंश
यह बिहार का प्रथम ऐतिहासिक वंश है। इस वंश के प्रमुख शासक इस प्रकार हैं
∆ बिम्बिसार
• इस वंश का संस्थापक बिम्बिसार था। बिम्बिसार मगध की गद्दी पर 544 ई. (बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार) में बैठा। यह बौद्ध धर्म अनुयायी था। इसके शासनकाल में मगध का राजनीतिक शक्ति के रूप में सर्वप्रथम उदय हुआ।
• बिम्बिसार मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। बिम्बिसार ने अपने राज्य के उत्थान के लिए वैवाहिक सम्बन्ध नीति मैत्री नीति व विजय की नीति अपनाई थी।
• बिम्बिसार का पहला विवाह कोशल के शासक प्रसेनजीत की पुत्री कौशल देवी से हुआ। इस विवाह में बिम्बिसार को काशी का क्षेत्र प्राप्त हुआ।
• इसकी दूसरी पत्नी वैशाली के लिच्छवि शासक चेटक की पुत्री चेल्लना थी तथा तीसरी पत्नी पंजाब के मद्र गणराज्य की राजकुमारी क्षेमा थी।
• अपने राज्य को पूरी तरह से सुरक्षित कर बिम्बिसार ने पूर्वी पड़ोसी राज्य अंग पर आक्रमण कर वहाँ के शासक ब्रह्मदत्त की हत्या कर दी।
• बिम्बिसार पहला शासक था, जिसने स्थायी सेना रखी तथा सेना में हाथी का प्रयोग किया। स्थायी सेना रखने के कारण उसे सेणिय भी कहा जाता है।
∆ अजातशत्रु
• अजातशत्रु (493-461 ई. पू.) जैन धर्म का अनुयायी था।
• बिम्बिसार ने अपने बड़े पुत्र दर्शक को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके कारण अजातशत्रु ने बिम्बिसार को कैद कर स्वयं को राजा घोषित किया। अजातशत्रु का उपनाम कुणिक था।
• प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन अजातशत्रु शासनकाल में राजगृह गिद्धकूट (गृद्धकूट) पर्वत में स्थित सप्तपर्णी गुफा में आयोजित किया गया था।
• अजातशत्रु के शासनकाल के तीन प्रमुख संघर्ष कोशल, वज्जि तथा मल्लों के विरुद्ध हुआ।
• कोशल एवं मगध के बीच हुए पहले युद्ध प्रसेनजीत पराजित हुआ, परन्तु दूसरे युद्ध में में प्रसेनजीत ने अजातशत्रु को पराजित किया तथा प्रसेनजीत ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से किया।
• वज्जि गणराज्य के साथ अजातशत्रु का दूसरा महत्त्वपूर्ण युद्ध हुआ। इस युद्ध में अजातशत्रु ने कूटनीति का सहारा लिया। मल्ल गणसंघ पर आक्रमण कर अजातशत्रु ने उसे अपने साम्राज्य में मिला लिया।
• इसके लिए अजातशत्रु ने गंगा, गण्डक व सोन नदियों के संगम स्थल पर सैनिक छावनी का निर्माण कराया। बाद में यह स्थान पाटलिपुत्र के नाम से जाना गया।
∆ उदयिन
• अजातशत्रु की मृत्यु के बाद उदयिन (460-444 ई. पू.) में मगध का राजा बना। वह शासक बनने से पहले चम्पा का गवर्नर था।
• उदयिन जैन धर्म का अनुयायी था, उसने गंगा व सोन नदियों के संगम के समीप पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की जो व्यापार एवं यातायात के दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। उसने पाटलिपुत्र के मध्य एक जैन चैत्यगृह का निर्माण कराया था।
• उदयिन को बौद्ध ग्रन्थों में पितृहन्ता कहा गया है, जबकि इसके विपरीत जैन ग्रन्थों में पितृभक्त कहा गया है।
• उदयिन ने मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानान्तरित की थी।
• बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार, उदयिन के तीन पुत्र नागदशक, अनिरुद्ध और मुण्डक थे। नागदशक इस वंश का अन्तिम शासक था।
∆ शिशुनाग वंश
• 412 ई. पू. में शिशुनाग ने अन्तिम हर्यंक शासक नागदशक की हत्या करके शिशुनाग वंश की स्थापना की। शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से वैशाली स्थानान्तरित की।
• सिंहासन पर बैठने के बाद शिशुनाग ने सर्वप्रथम अवन्ति राज्य को जीतकर मगध में मिला लिया। इस विजय के कारण मगध का वत्स राज्य के ऊपर भी अधिकार हो गया, क्योंकि यह अवन्ति के अधीन था।
• सिंहली महाकाव्यों के अनुसार, शिशुनाग ने 18 वर्षों तक शासन किया। शिशुनाग की मृत्यु 394 ई. पू. में हो गई। उसके बाद उसका पुत्र कालाशोक मगध की गद्दी पर बैठा।
∆ कालाशोक
• कालाशोक को पुराणों में काकवर्ण कहा जाता है। कालाशोक ने अपनी राजधानी पुनः वैशाली से स्थानान्तरित कर पाटलिपुत्र की।
• शिशुनाग वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक कालाशोक था। इसके शासनकाल में बौद्ध धर्म की द्वितीय संगीति का आयोजन 383 ई.पू. में वैशाली में हुआ था।
• इस संगीति में बौद्ध संघ का विभाजन दो सम्प्रदायों में हुआ इसे ‘स्थविर’ तथा ‘महासचिक’ नाम दिया गया।
∆ नन्द वंश
• महापद्मनन्द ने शिशुनाग वंश का अन्त कर, 344 ई. पू. में नन्द वंश की स्थापना की। इस वंश का शासनकाल 345-321 ई. पू. माना जाता है।
• इसकी भौगोलिक सीमा अपने चरमोत्कर्ष काल में पश्चिम में पंजाब और दक्षिण में विन्ध्य पर्वत श्रृंखला तक थी।
• महापद्मनन्द को महाबोधि वंश में उग्रसेन कहा गया है। महापद्मनन्द को ‘कलि का अंश’ तथा ‘दूसरे परशुराम का अवतार’ भी कहा गया है।
• महापद्मनन्द मगध साम्राज्य का पहला शासक था, जिसने विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में विजय प्राप्त की थी। उसने उत्तरी कर्नाटक तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
• पुराणों के अनुसार, महापद्मनन्द को ब्राह्मणों का विरोधी एवं क्षत्रियों का विनाशक होने के कारण सर्वक्षत्रयन्तकारी अथवा सर्वक्षत्रान्तक कहा जाता है।
• घनानन्द नन्द वंश का अन्तिम शासक था। वह सिकन्दर का समकालीन था। इसी के समय में 326 ई. पू. में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था।
• नन्द वंश के शासनकाल में मगध आर्थिक रूप से अत्यन्त समृद्ध राज्य था।
• नन्द शासक जैन धर्म के अनुयायी थे। कात्यायन, वररुचि, वर्ष तथा उपवर्ष जैसे विद्वान् नन्दों के शासनकाल में थे।