❍ जल जीवन के लिए आवश्यक है ।
❍जल की आवश्यकताएँ :- पीने , नहाने , खाना पकाना , कपड़े धोना आदि।
❍ जल कहाँ से प्राप्त करते हैं :- नदियों , झरनों , तालाबों , कुओं अथवा हैडपंप से जल प्राप्त करते हैं।
❍ जल विलुप्त :- जल, जलवाष्प में परिवर्तित होता रहता हैं। नदी , तालाब , झील , महासागर के सभी जल , निरंतर वाष्प में परिवर्तित होता रहता है।
❍ सोडियम क्लोराइड :- (नमक) महासागरों का खारा जल जो गहरे गड्डो में छूट जाता है, वाष्पन के परिणामस्वरूप नमक के ढेर के रूप में एकत्र हो जाता है।
❍ वाष्पीकरण :- वायु में जल , वाष्पन ( गर्म ) तथा संघनन ( ठंडा ) परिवर्तित करने के प्रक्रम को वाष्पीकरण कहते हैं।
❍ गिलास की बाहरी साथ पर जल की बूँदे :- बर्फ़युक्त जल से भरे गिलास की बाहरी सतह , बाहर की हवा को ठंडा कर देती है और जलवाष्प गिलास की सतह पर संघनित हो जाती है।
❍ जैसे-जैसे हम पृथ्वी के पृष्ठ से ऊपर जाते हैं , ताप कम हो जाता है।
❍ जैसे-जैसे वायु ऊपर उठती जाती है , ठंडी होती जाती है।
❍ जलकणिका :- पर्याप्त ऊँचाई पर वायु इतनी ठंडी हो जाती कि इसमें उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर छोटी-छोटी जल की बूँदों , जिन्हें जलकणिका कहते हैं ।
❍ बादल :- बादल ये छोटी जलकणिकाएँ , जो वायु में तैरती रहती हैं , जो हमें बादलों के रूप में दिखाई देती है।
❍ वर्षा :- बहुत -सी जलकणिकाएँ आपस एक बड़े आमाप की जल की बूँदे बनाती है। ये जल की बूँदे भारी होने पर वर्षा के रूप धरती पर गिरता है।
❍ संघनन :- जलवाष्प को जल में परिवर्तन करने के प्रक्रम को संघनन कहते हैं।
❍ भौम-जल :- पृथ्वी का शूद्ध जल भौम-जल के रूप में उपलब्ध है।
❍ जलचक्र :- महासागरों तथा जलीय भागों के बीच जल के चक्रण को जलचक्र कहते है।
❍ बाढ़ :- अत्यधिक वर्षा बाढ़ का कारण बन सकता हैं।
❍ सूखा :- वर्षा न होना अथवा भौम-जल की कमी से सूखा पड़ सकता है।
❍ जल संरक्षण :- जल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए और सावधनी बरतें , जिससे जल व्यर्थ न हो ।
❍ वर्षा के जल का संग्रहण
❍ वर्षा के पानी का बाद में उत्पादक कामों में इस्तेमाल के लिए इकट्ठा करने को वर्षा जल संग्रहण कहा जाता है।
❍ आपकी छत पर गिर रहे बारिश के पानी को सामान्य तरीके से इकट्ठा कर उसे शुद्ध बनाने का काम वर्षा जल का संग्रहण कहलाता है।
अध्याय : 15 हमारे चारों ओर वायु