विनिर्माण
कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पादन में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को भी निर्माण या वस्तु निर्माण कहा जाता है। उदाहरण लकड़ी को कागज में परिवर्तित करना गन्ने से चीनी लौह अयस्क से लौह इस्पात इत्यादि।
द्वितीयक क्रियाकलाप में लगे व्यक्ति कच्चे माल को परिष्कृत वस्तुओं में परिवर्तित करते हैं। देश की आर्थिक उन्नति विनिर्माण उद्योग से माफी जा सकती है।
विनिर्माण का महत्व
1 विनिर्माण को देश की तथा आर्थिक विकास की रीढ़ समझा जाता है। क्योंकि
2 विनिर्माण उद्योग न केवल कृषि के आधुनिकरण में सहायक है। वरन द्वितीय व तृतीय सेवाओं में रोजगार उपलब्ध करा कर कृषि पर हमारी निर्भरता को कम करता है। देश में औद्योगिक विकास बेरोजगारी तथा गरीबी उन्मूलन के लिए आवश्यक है।
3 निर्मित वस्तुओं का निर्यात वाणिज्य व्यापार को बढ़ाता है जिससे अपेक्षित विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।
4 वे देश ही विकसित माने जाते हैं जो कच्चे माल को विभिन्न तथा अधिक मूल्यवान तैयार माल में विनिर्मित करते हैं।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान
पिछले दो दशकों से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण उद्योगों का योगदान 27% में से 17% ही है क्योंकि 10% भाग खनिज खनन, गैस तथा विद्युत ऊर्जा का योगदान है।
भारत की अपेक्षा अन्य पूर्वी एशियाई देशों में विनिर्माण का योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 25 से 35 प्रतिशत है। पिछले एक दशक से भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ोतरी हुई है। बढ़ोतरी की यह दर अगले दशक में 12 प्रतिशत अपेक्षित है। वर्ष 2003 से विनिर्माण क्षेत्र का विकास 9 से 10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से हुआ है। उपयुक्त सरकारी नीतियों तथा औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोतरी के नए प्रयासों से अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि विनिर्माण उद्योग अगले एक दशक में अपना लक्ष्य पूरा कर सकता है। इस उद्देश्य से राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद् (National Manufacturing Competitiveness Council) की स्थापना की गयी है।
औद्योगिक अवस्थिति
उद्योगों की स्थापना कच्चे माल की उपलब्धता, श्रम, पूंजी, शक्ति के साधन, तथा बाजार आदि की उपलब्धता से प्रभावित होती है।
औद्योगिकरण तथा नगरीकरण साथ साथ चलते हैं। नगर उद्योगों को बाजार तथा सेवाएं जैसे बैंकिंग, बीमा, परिवहन स्वयं तथा वित्तीय सलाह आदि उपलब्ध कराते हैं। नगर केंद्रों द्वारा दी गई सुविधाओं से लाभान्वित कई बार बहुत से उद्योग नगरों के आसपास ही केंद्रित हो जाते हैं जिसे समूहन बचत कहा जाता है।
उद्योगों का वर्गीकरण
1 कच्चे माल के स्रोत के आधार पर
कृषि आधारित उद्योग। सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम, वस्त्र, रबड़, चीनी, चाय, कॉफी, तथा वनस्पति तेल, उद्योग
खनिज आधारित उद्योग
लोहा तथा इस्पात, सीमेंट, एलुमिनियम मशीन, औजार, तथा पेट्रो रसायन उद्योग।
2 प्रमुख भूमि के आधार पर
आधारभूत उद्योग
जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर करते हैं। जैसे लोहा तथा इस्पात तांबा प्रगलन एलुमिनियम प्रगलन उद्योग।
उपभोक्ता आधारित उद्योग
जो उत्पादन उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु करते हैं जैसे चीनी दंत मंजन कागज पंखे सिलाई मशीन आदि।
3 पूंजी निवेश के आधार पर
लघु उद्योग
इन उद्योगों में पूंजी निवेश कम होता है। तथा यह एक इकाई पर अधिकतम निवेश मूल्य के परिपेक्ष में परिभाषित किए जाते हैं।
4 स्वामित्व के आधार पर
सार्वजनिक क्षेत्र
सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रबंधित तथा सरकार द्वारा संचालित उद्योग जैसे : हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (BHEL) तथा स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटे (SAIL)
निजी क्षेत्र के उद्योग
जिनका एक व्यक्ति के स्वामित्व में और उसके द्वारा संचालित अथवा लोगों के स्वामित्व में या उनके द्वारा संचालित है जैसे : टिस्को बजाज ऑटो लिमिटेड डाबर उद्योग
संयुक्त उद्योग
वैसे उद्योग जो राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाए जाते हैं जैसे : ऑयल इंडिया लिमिटेड।
सहकारी उद्योग
जिनका स्वामित्व कच्चे माल की पूर्ति करने वाले उत्पादकों श्रमिकों या दोनों के हाथों में होता है जैसे : महाराष्ट्र के चीनी उद्योग, केरल के नारियल पर आधारित उद्योग।
कृषि आधारित उद्योग
सूती वस्त्र, पटसन, रेशम ऊनी, वस्त्र, चीनी, तथा वनस्पति तेल आदि उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित है।
वस्त्र उद्योग
भारतीय अर्थव्यवस्था में वस्त्र उद्योग का अपना अलग महत्व है। क्योंकि इसका औद्योगिक उत्पादन में 14% योगदान है यह उद्योग 350 लाख व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाता है कृषि के पश्चात दूसरा बड़ा उद्योग है तथा लगभग 24.6% विदेशी मुद्रा अर्जित करता है सकल घरेलू उत्पाद में में इसकी भागीदारी लगभग 4% है।
सूती वस्त्र उद्योग
प्राचीन भारत में सूती वस्त्र आपसे कटाई और हथकरघा बुनाई तकनीक से बनाए जाते थे 18वीं शताब्दी के बाद विद्युतीय करघा का उपयोग होने लगा। पहला सफल सूती वस्त्र उद्योग 1854 में मुंबई में लगाया गया।
नवंबर 2011 तक देश में लगभग 946 सूती तथा कृतिम रेशोकी कपड़ा मिली थी इनमें से 80% निजी क्षेत्र में तथा शेष सार्वजनिक व सहकारी क्षेत्र में है इसके अंतर्गत कई हजार छोटी इकाइयां हैं जिनमें 4 से 10 हथकरघा हैं
आरंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र तथा गुजरात के कपास उत्पादन क्षेत्र तक ही सीमित थे कपास की उपलब्धता, बाजार, परिवहन, पतन की उपलब्धता, नमी युक्त जल, वायु आदि कारकों ने इसके स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया है।
हाथ से कताई खादी कुटीर उद्योग के रूप में बुनकरों को उनके घरों में बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान कराता है।
भारत जापान को सूत का निर्यात करता है भारत में बने सूती वस्त्र के अन्य आयातक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, फ्रांस, पूर्वी यूरोप देश नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका, अफ्रीका के देश है।
सूती देशों के विश्व व्यापार में हमारे देश की भागीदारी काफी महत्वपूर्ण है। यह कुल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग एक चौथाई भाग है लेकिन तैयार वस्त्र के कुल व्यापार में यह हिस्सा केवल 4% ही है।
पटसन उद्योग
भारत पटसन में पटसन निर्मित सामान का सबसे बड़ा उत्पादक तथा बांग्लादेश के पश्चात दूसरा बड़ा निर्यातक भी है। वर्ष 2010-11 में भारत में लगभग 80 पटसन उद्योग थे। इनमें अधिकांश पश्चिम बंगाल में हुगली नदी तट पर 98 किलोमीटर लंबी तथा 3 किलोमीटर चौड़ी एक संकरी मेखला में स्थित है।
हुगली नदी तट पर इनके स्थित होने के निम्नलिखित कारण है
1 पटसन उद्योग क्षेत्र की निकटता।
2 सस्ता जल
3 परिवहन सड़क रेल व जल परिवहन का जाल।
4 सस्ता श्रम
वर्ष 2010 से 11 में पटसन प्रत्यक्ष रूप से 3.7 लाख श्रमिकों को और जुट की खेती करने वालों 40 लाख छोटे व सीमांत कृषकों को रोजगार मुहैया कराता है।
इस उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय बाजार से चुनौती मिल रही है। जो कृतिम वस्त्रों के सम्मुख इसे प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है जिसमें मुख्य रुप से बांग्लादेश, ब्राजील, फिलिपिंस, मिस्र तथा थाईलैंड से चुनौती मिल रही है।
चीनी उद्योग
भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। लेकिन गुड व खांडसारी के उत्पादन में इसका प्रथम स्थान है इस उद्योग में प्रयुक्त कच्चा माल भारी होता है तथा ढुलाई में इसके सुक्रोज की मात्रा घट जाती है।
वर्ष 2010-11 में देश में 662 से अधिक चीनी मिले थी जो उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, तथा मध्य प्रदेश राज्य में फैली हुई है चीनी मिलों का 60% उत्तर प्रदेश तथा बिहार में है।
इस उद्योग की प्रमुख चुनौतियां
1 अल्पकालीन होना
2 पुरानी व असक्षम तकनीक
3 परिवहन आक्षमता
4 खोई का अधिकतम इस्तेमाल नहीं करना
खनिज आधारित उद्योग
वे उद्योग जो खनिज व धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं, खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं।
लोहा तथा इस्पात उद्योग
लोहा तथा इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है। क्योंकि अन्य सभी भारी हल्की और मध्यम उद्योग इन से बनी मशीन पर निर्भर हैं।
इस्पात के उत्पादन तथा खपत को प्राय देश के विकास का पैमाना माना जाता है लोहा तथा इस्पात एक भारी उद्योग है। क्योंकि इसमें प्रयुक्त कच्चा तथा तैयार माल दोनों ही भारी और स्थूल होते हैं। इस उद्योग के लिए लोहा अयस्क कोकिंग कॉल तथा चूना पत्थर का अनुपात 4 : 2: 1 का होता है।
वर्ष 2019 में भारत 111 मिलियन टन इस्पात का विनिर्माण कर संसार में कच्चा इस्पात उत्पादकों में दूसरे स्थान पर था। यह स्पंज (Sponge) लौह का सबसे बड़ा उत्पादक है। इस्पात के अधिक उत्पादन के बावजूद भी 2019 में यहाँ प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत केवल 74.3 किलोग्राम थी जबकि इसी समय विश्व में प्रति व्यक्ति औसत खपत 229.3 किलोग्राम थी।
वर्ष 2016 में भारत 956 लाख टन इस्पात का विनिर्माण कर संसार में कच्चा इस्पात उत्पादकों में तीसरे स्थान पर था यह स्पंज लोहा का सबसे बड़ा उत्पादक है। इस समय भारत में 10 मुख्य संकलित उद्योग तथा बहुत से छोटे इस्पात संयंत्र हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग सभी उपक्रम अपने इस्पात को स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) के माध्यम से बेचते हैं।
1950 के दशक में भारत तथा चीन ने लगभग एक समान मात्रा में इस्पात उत्पादित किया था। आज चीन इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक है। इस्पात की सर्वाधिक खपत वाला देश भी चीन है। भारत में छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेंद्रित हैं।
एलुमिनियम प्रगलन
भारत में एलुमिनियम प्रगलन दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है। यह हल्का जंग विरोधी ऊष्मा का सुचालक लचीला तथा अन्य धातुओं के मिश्रण से अधिक कठोर बनाया जा सकता है।
देश में एलुमिनियम प्रगलन संयंत्र ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु में स्थित है 2014-15 में भारत में 39.6 लाख टन से अधिक एलुमिनियम का उत्पादन किया गया।
इस उद्योग की स्थापना की दो महत्वपूर्ण आवश्यकताएं हैं नियमित ऊर्जा की पूर्ति तथा कम कीमत पर कच्चे माल की सुनिश्चित उपलब्धता।
रसायन उद्योग
भारत में रसायन उद्योग तेजी से विकसित हो रहा है तथा फैल रहा है। इसकी भागीदारी सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3% है। यह उद्योग एशिया का तीसरा बड़ा तथा विश्व में आकार की दृष्टि से 12वे स्थान पर है।
अकार्बनिक रसायन में सल्फ्यूरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल, सोडा, ऐश, तथा कास्टिक सोडा आदि शामिल है।
कार्बनिक रसायन में पेट्रोरसायन शामिल है। जो कृतिम रेशों, कृत्रिम रबड़, प्लास्टिक, रंजक पदार्थ, दवाइयां, औषध, रसायनों के बनने में प्रयोग किए जाते हैं।
उर्वरक उद्योग
उर्वरक उद्योग नाइट्रोजन उर्वरक मुख्यता यूरिया, फास्फेट उर्वरक तथा अमोनिया फास्फेट और मिश्रित उर्वरक जिसमें तीन मुख्य पोषक उर्वरक नाइट्रोजन फास्फेट में पोटेशियम शामिल है के उत्पादन क्षेत्रों के इर्द-गिर्द केंद्रित है।
हमारे देश में पोटाश पूर्ण रूप से आयात किया जाता है।
भारत नाइट्रोजन उर्वरक का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है यहां 57 पूर्वक इकाइयां है। जो नाइट्रोजन तथा मिश्रित नाइट्रोजन उर्वरक निर्मित करती है 29 इकाइयां यूरिया उत्पादन तथा 9 इकाइयां उप उत्पादन के रूप में अमोनिया सल्फेट तथा 68 लघु इकाइयां मात्र सुपर फास्फेट का उत्पादन करती है।
भारत में गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब, और केरल राज्य कुल उर्वरक उत्पादन का लगभग 50% उत्पादन करते हैं।
सीमेंट उद्योग
निर्माण कार्य से घर बनाना कारखाने, सड़कें, हवाई अड्डा, बांध, अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के निर्माण में सीमेंट आवश्यक है इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चे माल जैसे चूना पत्थर और जिप्सम की आवश्यकता होती है। इस उद्योग की इकाइयां गुजरात में लगाई गई है क्योंकि यहां से इसे खाड़ी के देशों के बाजारों की उपलब्धता है।
पहला सीमेंट उद्योग सन 1904 में चेन्नई में लगाया गया था। स्वतंत्रता के पश्चात इस उद्योग का प्रसार हुआ सन् 1989 में मूल्य वह वितरण में नियंत्रण समाप्ति तथा अन्य नीतिगत सुधारों से सीमेंट उद्योग ने क्षमता प्रक्रिया व प्रौद्योगिकी वह उत्पादन में अत्यधिक तरक्की की है।
मोटरगाड़ी उद्योग
उदारीकरण के पश्चात नए और आधुनिक मॉडल के वाहनों का बाजार तथा वाहनों की मांग बढ़ी है। जिससे इस उद्योग में विशेषकर कार, दोपहिया तथा तिपहिया वाहनों में अपार वृद्धि हुई है पिछले 15 में से कम वर्षों में इस उद्योग ने अभूतपूर्व उन्नति की है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ नई प्रौद्योगिकी के उपयोग में यह उद्योग विश्व स्तरीय इकाई के स्तर पर आ गया है। आज भारत में इसकी 15 इकाइयां यात्री कार, 9 इकाइयां व्यापारिक वाहन, 14 इकाइयां दोपहिया, तिपहिया वाहन का निर्माण कर रही है। जो मुख्य रूप से दिल्ली, गुड़गांव, मुंबई-पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर, हैदराबाद, जमशेदपुर, तथा बेंगलुरु के आसपास स्थित है।
सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के अंतर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रांजिस्टर से लेकर टेलीविजन टेलीफोन कंप्यूटर दूरसंचार उद्योग शामिल है। बेंगलुरू भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में उभरा है। इलेक्ट्रॉनिक सामान के अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक केंद्र दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, है।
2010-11 तक सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ़ इंडिया देश के 46 स्थानों पर स्थापित हो चुके थे।
इस क्षेत्र में रोजगार पाए व्यक्तियों में लगभग 30% महिलाएं हैं। पिछले 2 या 3 वर्षों में यह उद्योग विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है जिसका कारण तेजी से बढ़ता व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण BPO है।
औद्योगिक प्रदूषण तथा पर्यावरण निम्नीकरण
उद्योगों की भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वहीं दूसरी ओर इसने भूमि जल वायु प्रदूषण को भी बढ़ावा दिया है।
वायु प्रदूषण
अधिक अनुपात में अनचाही गैसों की उपस्थिति जैसे : सल्फर डाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनो ऑक्साइड वायु प्रदूषण का कारण बनती है।
जिसका परिणाम वायु मे स्प्रे, कुहासा तथा धुँआ, रसायन में कागज उद्योग, ईटों के भट्टे, तेल शोधनशाला, प्रगलन उद्योग, जीवाश्म ईंधन छोटे बड़े कारखाने निरंतर जहरीली गैसों का रिसाव करते हैं।
जो मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है तथा जीव जंतुओं के लिए हानिकारक है।
जल प्रदूषण
उद्योगों द्वारा कार्बनिक तथा अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों के नदी में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है।
जल प्रदूषण के प्रमुख कारक कागज लुगदी, रसायन, वस्त्र रंगाई उद्योग, तेल शोधनशाला, चमड़ा उद्योग तथा इलेक्ट्रो प्लेटिंग उद्योग है।
भारत के मुख्य अपशिष्ट पदार्थ में फ्लाई ऐश, फॉस्फेट, जिप्सम तथा लोहा इस्पात के अशुद्धियां हैं।
तापीय प्रदूषण
जब कारखानों तथा ताप घरों से गर्म जल को बिना ठंडा किए ही नदियों तथा तालाबों में छोड़ दिया जाता है। तो जल्द से तापीय प्रदूषण होता है चलिए जीवन पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है।
परमाणु ऊर्जा संयंत्र के अपशिष्ट व परमाणु शस्त्र उत्पादन कारखानों से कैंसर जन्मजात विकार तथा अकाल प्रसव जैसी बीमारियां होती हैं।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण से उत्तेजना तथा सुनने संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। और हृदय गति रक्तचाप और मानसिक समस्याएं भी उत्पन्न होती है।
औद्योगिक तथा निर्माण कार्य कारखानों के उपकरण जरनैटर, लकड़ी चीरने, के कारखाने गैस संयंत्र तथा विद्युत ड्रिल भी अधिक ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
पर्यावरणीय निम्नीकरण की रोकथाम
औद्योगिक प्रदूषण से स्वच्छ जल को कैसे बचाया जा सकता है इसके निम्नलिखित सुझाव है
विभिन्न प्रक्रियाओं में जल का न्यूनतम उपयोग तथा जल का दो या अधिक उत्तरोत्तर अवस्था में दोबारा चक्रण किया जाए।
जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु वर्षा जल संग्रहण।
नदियों में तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से बचा जाए।
यांत्रिक साधनों द्वारा प्राथमिक शोधन।
जैविक प्रक्रियाओं द्वारा द्वितीय शोधन।
जैविक रासायनिक तथा भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा तृतीय शोधन।