अध्याय 4 : कृषि

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कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है खाद्यान्नों के अतिरिक्त यह विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी पैदा करती है।  इसके अतिरिक्त कुछ उत्पादों जैसे चाय, कॉफी, मसाले, इत्यादि का भी निर्यात किया जाता है। 

 

कृषि के प्रकार

1 प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि

 

प्रारंभिक जीवन निर्वाह कृषि भूमि के छोटे टुकड़ों पर आदिम कृषि औजारों जैसे लकड़ी के हल, डाओ (dao) और खुदाई करने वाली छड़ी तथा परिवार अथवा समुदाय श्रम की मदद से की जाती है। इस प्रकार की कृषि प्राय: मानसून, मृदा की प्राकृतिक उर्वरता और फसल उगाने के लिए अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों की उपुयक्तता पर निर्भर करती है। यह ‘कर्तन दहन प्रणाली’ (slash and burn) कृषि है।

 किसान जमीन के टुकड़े साफ करके उन पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अनाज व अन्य खाद्य फसलें उगाते हैं। जब मृदा की उर्वरता कम हो जाती है तो किसान उस भूमि के टुकड़े से स्थानांतरित हो जाते हैं और कृषि के लिए भूमि का दूसरा टुकड़ा साफ करते हैं। कृषि के इस प्रकार के स्थानांतरण से प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है।

उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में इसे ‘झूम’ कहा जाता है; मणिपुर में पामलू (Pamlou) और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में इसे ‘दीपा’ कहा जाता है।

‘झूम’ – ‘कर्तन दहन प्रणाली’ (slash and burn) कृषि को मैक्सिको और मध्य अमेरिका में ‘मिल्पा’ वेनेजुएला में ‘कोनुको’, ब्राजील में ‘रोका’, मध्य अफ्रीका में ‘मसोले’, इंडोनेशिया में ‘लदांग’ और वियतनाम में ‘रे’ के नाम से जाना जाता है।

भारत में भी यह प्रारंभिक किस्म की खेती अनेक नामों से जानी जाती हैं, जैसे मध्य प्रदेश में बेबर या दहिया’, आंध्रप्रदेश में ‘पोडु’ अथवा ‘पेंडा’, ओडिशा में ‘पामाडाबी’ या ‘कोमान’ या ‘बरीगाँ’, पश्चिम घाट में ‘कुमारी’, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में ‘वालरे’ या ‘वाल्टरे’, हिमालयन क्षेत्र में ‘खिल’ झारखंड में ‘करुवा’ और उत्तर पूर्वी प्रदेश में ‘झूम’ आदि। 

 

 2 गहन जीविका कृषि

इस प्रकार की कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होता है। यह श्रम – गहन खेती है जहाँ अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में जैव रासायनिक निवेशों और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।

 

 

3 वाणिज्य कृषि

इस प्रकार की कृषि के मुख्य लक्षण आधुनिक निवेशों जैसे अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से उच्च पैदावार प्राप्त करना है। कृषि के वाणिज्यीकरण का स्तर विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग है। उदाहरण के लिए हरियाणा और पंजाब में चावल वाणिज्य की एक फसल है परंतु ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।

 

4 रोपण कृषि

रोपण कृषि भी एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है। इस प्रकार की खेती में लंबे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। रोपण कृषि, उद्योग और कृषि के बीच एक अंतरापृष्ठ (interface) है। रोपण कृषि व्यापक क्षेत्र में की जाती है जो अत्यधिक पूँजी और श्रमिकों की सहायता से की जाती है। इससे प्राप्त सारा उत्पादन उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है। 

भारत में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण फसले हैं। असम और उत्तरी बंगाल में चाय, कर्नाटक में कॉफी वहाँ की मुख्य रोपण फसलें हैं।

 

 

शस्य प्रारूप

भारत की भौतिक विविधताओं और संस्कृतियों की बहुलताओं के संबंध में अध्ययन किया है। ये देश में कृषि पद्धतियों और शस्य प्रारूपों में प्रतिबिंबित होता है। इसीलिए, देश में बोई जाने वाली फसलों में अनेक प्रकार के खाद्यान्न और रेशे वाली फसलें, सब्जियाँ, फल, मसाले इत्यादि शामिल हैं। भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं, जो इस प्रकार हैं रबी, खरीफ और जायद । 

 

 

रबी फसलों

रबी फसल को शीत ऋतु में अक्तूबर से दिसंबर के मध्य बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों कुछ मुख्य रबी फसलें हैं। यद्यपि ये फसलें देश के विस्तृत भाग में बोई जाती हैं उत्तर और उत्तरी पश्चिमी राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू- कश्मीर, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश – गेहूँ और अन्य रबी फसलों के उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण राज्य हैं। शीत ऋतु में शीतोष्ण पश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा इन फसलों के अधिक उत्पादन में सहायक होती है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में हरित क्रांति की सफलता भी उपर्युक्त रबी फसलों की वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

 

 

 

 

खरीफ फसलें

खरीफ फसलें देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के आगमन के साथ बोई जाती हैं और सितंबर – अक्तूबर में काट ली जाती हैं। इस ऋतु में बोई जाने वाली मुख्य फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तुर (अरहर), मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन शामिल हैं। चावल की खेती मुख्य रूप से असम, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र विशेषकर कोंकण तटीय क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश और बिहार में की जाती है। पिछले कुछ वर्षों में चावल पंजाब और हरियाणा में बोई जाने वाली महत्त्वपूर्ण फसल बन गई है। असम, पश्चिमी बंगाल और ओडिशा में धान की तीन फसलें ऑस, अमन और बोरो बोई जाती हैं।

 

 

जायद फसलें

रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसल को ज़ायद कहा जाता है। जायद ऋतु में मुख्यत तरबूज, खरबूजे, खीरे, सब्जियों और चारे की फसलों की खेती की जाती है। गन्ने की फसल को तैयार होने में लगभग एक वर्ष लगता है।

 

 

मुख्य फसलें :

मिट्टी जलवायु और कृषि पद्धति में अंतर के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की खाद्य औरअखाद्य फसलें उगाई जाती हैं।  भारत में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें चावल, मोटे अनाज, दाल, चाय, कॉफी, गन्ना, तिलहन, कपास और जूट इत्यादि है। 

 

चावल

भारत में अधिकांश लोगो का खाद्यान्न चावल है।  हमारा देश चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है।  यह एक खरीफ की फसल है जिसे उगाने के लिए उच्च तापमान (25° सेल्सियस से ऊपर) और अधिक आर्द्रता ( 100 सेमी. से अधिक वर्षा ) की आवश्यकता होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे सिंचाई करके उगाया जाता है।

चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है। नहरों के जाल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है।

 

 

गेहूँ

गेहूँ भारत की दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। जो देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भागों में पैदा की जाती है। रबी की फसल को उगाने के लिए शीत ऋतु और पकने के समय खिली धूप की आवश्यकता होती है। इसे उगाने के लिए समान रूप से वितरित 50 से 75 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। देश में गेहूँ उगाने वाले दो मुख्य क्षेत्र हैं उत्तर-पश्चिम में – गंगा- सतलुज का मैदान और दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, और राजस्थान के कुछ भाग गेहूँ पैदा करने वाले मुख्य राज्य हैं।

 

 

मोटे अनाज

ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। यद्यपि इन्हें मोटा अनाज कहा जाता है परंतु इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा अत्यधिक होती है। उदाहरणतया, रागी में प्रचुर मात्रा में लोहा, कैल्शियम, सूक्ष्म पोषक और भूसी मिलती है। क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है। अधिकतर आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश हैं।

बाजरा 

यह बलुआ और उथली काली मिट्टी पर उगाया जाता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं। रागी शुष्क प्रदेशों की फसल है और यह लाल, काली, बलुआ, दोमट और उथली काली मिट्टी पर अच्छी तरह उगायी जाती है। रागी के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश हैं।

 

 

मक्का

यह एक ऐसी फसल है जो खाद्यान्न व चारा दोनों रूप में प्रयोग होती है। यह एक खरीफ फसल है। जो 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान में और पुरानी जलोढ़ मिट्टी पर अच्छी प्रकार से उगायी जाती है। बिहार जैसे कुछ राज्यों में मक्का रबी की ऋतु में भी उगाई जाती है। आधुनिक प्रौद्योगिक निवेशों जैसे उच्च पैदावार देने वाले बीजों, उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग से मक्का का उत्पादन बढ़ा है। कर्नाटक, मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना मक्का के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

 

 

दालें

भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश है। शाकाहारी खाने में दालें सबसे अधिक प्रोटीन दायक होती हैं। तुर (अरहर), उड़द, मूंग, मसूर, मटर और चना भारत की मुख्य दलहनी फसले हैं।  फलीदार फसलें होने के नाते अरहर को छोड़कर अन्य सभी दालें वायु से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उर्वरता को बनाए रखती हैं। अतः इन फसलों को आमतौर पर अन्य फसलों के आवर्तन (rotating) में बोया जाता है।

भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक दाल के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

 

 

खाद्यान्नों के अलावा अन्य खाद्य फसलें

 

 

गन्ना

गाना एक उष्ण कटिबंधीय फसल है।  यह फसल 21 सेल्सियस से 27 सेल्सियस तापमान और 75 सेमी से 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाली उष्ण और आद्र  जलवायु में बोई जाती है। कम वर्षा वाले प्रदेशों में सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसे अनेक मिट्टियों में उगाया जा सकता है तथा इसके लिए बुआई से लेकर कटाई तक काफी शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। ब्राजील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यह चीनी, गुड़, खांडसारी और शीरा बनाने के काम आता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब और हरियाणा गन्ना के मुख्य उत्पादक राज्य हैं। 

 

 

तिलहन

2018 में भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा बड़ा तिलहन उत्पादक देश था। सन् 2018 में तोरिया के उत्पादन में भारत का विश्व में कनाडा और चीन के बाद तीसरा स्थान था। देश में कुल बोए गए क्षेत्र के 12 प्रतिशत भाग पर कई तिलहन की फसलें उगाई जाती हैं। मूँगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला, अलसी और सूरजमुखी भारत में उगाई जाने वाली मुख्य तिलहन फसल है।  

मूँगफली खरीफ की फसल है तथा देश में मुख्य तिलहनों के कुल उत्पादन का आधा भाग इसी फसल से प्राप्त होता है। गुजरात मूँगफली का प्रमुख उत्पादक राज्य है। इसके अतिरिक्त राजस्थान और तमिलनाडु मूँगफली के अन्य मुख्य उत्पादक राज्य हैं (2019-20)। अलसी और सरसों रबी की फसलें हैं।

 

 

चाय

चाय की खेती रोपण कृषि का एक उदाहरण है। यह एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ की फसल है जिसे शुरुआत में अंग्रेज़ भारत में लाए थे। आज अधिकतर चाय बागानों के मालिक भारतीय हैं। चाय का पौधा उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु, ह्यूमस और जीवांश युक्त गहरी मिट्टी तथा सुगम जल निकास वाले ढलवाँ क्षेत्रों में भलीभाँति उगाया जाता है। चाय की झाड़ियों को उगाने के लिए वर्ष भर कोष्ण, नम और पालारहित जलवायु की आवश्यकता होती है। वर्ष भर समान रूप से होने वाली वर्षा की बौछारें इसकी कोमल पत्तियों के विकास में सहायक होती हैं।  चाय के  मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में असम, पश्चिमी बंगाल में दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों की पहाड़ियाँ, तमिलनाडु और केरल हैं। इनके अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, मेघालय, आंध्र प्रदेश और त्रिपुरा आदि राज्यों में भी चाय उगाई जाती है। सन् 2018 में भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा बड़ा चाय उत्पादक देश था।

 

 

कॉफी

भारतीय कॉफ़ी अपनी गुणवत्ता के लिए विश्वविख्यात है। हमारे देश में अरेबिका किस्म की कॉफी पैदा की जाती है जो आरम्भ में यमन से लाई गई थी। इस किस्म की कॉफी की विश्व भर में अधिक माँग है। इसकी कृषि की शुरुआत बाबा बूदन पहाड़ियों से हुई और आज भी इसकी खेती नीलगिरि की पहाड़ियों के आस पास कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में की जाती है।

 

 

बागवानी फसल

सन् 2018 में भारत का विश्व में फलों और सब्जियों के उत्पादन में चीन के बाद दूसरा स्थान था। भारत उष्ण और शीतोष्ण कटिबंधीय दोनों ही प्रकार के फलों का उत्पादक है। भारतीय फलों जिनमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल के आम, नागपुर और चेरापूँजी (मेघालय) के संतरे, केरल, मिजोरम, महाराष्ट्र, और तमिलनाडु के केले, उत्तर प्रदेश और बिहार की लीची, मेघालय के अनन्नास, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के अंगूर तथा हिमाचल प्रदेश और जम्मू व कश्मीर के सेब, नाशपाती, खूबानी और अखरोट की विश्वभर में बहुत माँग है।

 

 

अखाद्य फसलें

 

रबड़

रबड़ भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है परंतु – विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है। इसको 200 सेमी. से अधिक वर्षा और 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। रबड़ एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है जो उद्योगों में प्रयुक्त होता है। इसे मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और मेघालय में गारो पहाड़ियों में उगाया जाता है।

 

 

रेशेदार फसलें

कपास, जूट, सन और प्राकृतिक रेशम भारत में उगाई जाने वाली चार मुख्य रेशेदार फसलें हैं। इनमें से पहली तीन मिट्टी में फसल उगाने से प्राप्त होती हैं और चौथा रेशम के कीड़े के कोकून से प्राप्त होता है

 

कपास

भारत को कपास के पौधे का मूल स्थान माना जाता है। सूती कपड़ा उद्योग में कपास एक मुख्य कच्चा माल है। कपास उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है (2017)। दक्कन पठार के शुष्कतर भागों में काली मिट्टी कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस फसल को उगाने के लिए उच्च तापमान, हल्की वर्षा या सिंचाई, 210 पाला रहित दिन और खिली धूप की आवश्यकता होती है।

 

 

जूट

जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है। जूट की फसल बाढ़ के मैदानों में जलनिकास वाली उर्वरक मिट्टी में उगाई जाती है जहाँ हर वर्ष बाढ़ से आई नई मिट्टी जमा होती रहती है। इसके बढ़ने के समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और ओडिशा तथा मेघालय जूट के मुख्य उत्पादक राज्य हैं। इसका प्रयोग बोरियाँ, चटाई, रस्सी, तंतु व धागे, गलीचे और दूसरी दस्तकारी की वस्तुएँ बनाने में किया जाता है।

 

 

प्रौद्योगिकीय  और संस्थागत सुधार

 

भारत में कृषि हजारों वर्षों से की जा रही है परंतु प्रौद्योगिकी और संस्थागत परिवर्तन के अभाव में लगातार भूमि संसाधन के प्रयोग से कृषि का विकास अवरुद्ध हो गए जाता है। 

भारत में कृषि अभी भी मानसून पर और भूमि की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करती है 60% से भी अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करने वाली कृषि में कुछ गंभीर तकनीकी एवं संस्थागत सुधार लाने की आवश्यकता है।  भूमि सुधार के कानून तो बने परंतु इनके लागू करने में ढील की गई

 

स्वतंत्रता के पश्चात् देश में संस्थागत सुधार करने के लिए जोतों की चकबंदी, सहकारिता तथा जमींदारी आदि समाप्त करने को प्राथमिकता दी गयी। प्रथम पंचवर्षीय योजना में भूमि सुधार मुख्य लक्ष्य था । भूमि पर पुश्तैनी अधिकार के कारण यह टुकड़ों में बँटती जा रही थी जिसकी चकबंदी करना अनिवार्य था। भूमि सुधार के कानून तो बने परंतु इनके लागू करने में ढील की गई।

1960 और 1970 के दशकों में भारत सरकार ने कई प्रकार के कृषि सुधारों की शुरुआत की। 1980 तथा 1990 के दशकों में व्यापक भूमि विकास कार्यक्रम शुरू किया गया जो संस्थागत और तकनीकी सुधारों पर आधारित था।

किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना भी शुरू की थी।  कृषि की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था रोजगार और उत्पादन में योगदान अहम रहा है। 

 

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी रही है सकल घरेलू उत्पद में कृषि के योगदान का अनुपात 1951 से लगातार घटने के उपरांत भी यह 2010-11 में देश की लगभग 54.6% जनसंख्या के लिए रोजगार और आजीविका का साधन थी

 

कृषि के महत्व को समझते हुए भारत सरकार ने इस के आधुनिकरण के लिए प्रयास किए हैं। भारतीय कृषि में सुधार के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना पशु चिकित्सा सेवाएं और पशु प्रजनन केंद्र की स्थापना मौसम विज्ञान और मौसम के पूर्वानुमान के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को वरीयता दी है। 

 

 

खाद्य सुरक्षा

हमारी सरकार ने सावधानीपूर्वक खाद्य सुरक्षा प्रणाली की रचना की है इसके दो घटक है। 

1 बफर स्टॉक
2 सार्वजनिक वितरण प्रणाली

 

भारत की खाद्य सुरक्षा नीति का प्राथमिक उद्देश्य सामान्य लोगों को खरीद सकने योग्य कीमतों पर खाद्यान्नों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है इससे निर्धन भोजन प्राप्त करने में समर्थ हुए हैं। 

 

भारतीय खाद्य निगम सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से खाद्यान्न प्राप्त करती है सरकार उर्वरक ऊर्जा और जल जैसे कृषि निवेश पर सहायता उपलब्ध कराती है। 

जैसा कि आप जानते हैं कि उपभोक्ताओं को दो वर्गों में बांट दिया गया है गरीबी रेखा से नीचे बिलो पावर्टी लाइन (बीपीएल) और गरीबी रेखा के ऊपर अब वो पॉवर्टी लाइन (एपीएल)

 

वैश्वीकरण का कृषि पर प्रभाव

 

1990 के बाद वैश्वीकरण के तहत भारतीय किसानों को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चावल, कपास, रबड़, चाय, कॉफी,जुट और मसालों का मुख्य उत्पादन होने के बावजूद भारतीय कृषि विश्व के विकसित देशों से स्पर्धा करने में असमर्थ है क्योंकि उन देशों में कृषि को अत्यधिक सहायकी दी जाती है। 

भारतीय कृषि को सक्षम और लाभदायक बनाना है तो सीमांत और छोटे किसानों की स्थिति सुधारने पर जोर देना होगा हरित क्रांति ने लंबा चौड़ा वायदा किया परंतु आज यह कई वायदों से घिरा है। 

भारत में लगभग 83.3 करोड लोग लगभग 25 करोड हेक्टेयर भूमि पर निर्भर हैं इस प्रकार एक व्यक्ति के हिस्से में औसतन आधा हेक्टेयर से भी कम कृषि भूमि आती है। 

 

 

 

 

अध्याय 5 : खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

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