❍ समाजीकरण क्या है :- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है बिना समाज के किसी भी व्यक्ति के सर्वागींण विकास की कल्पना नही की जा सकती। समाजीकरण की प्रक्रिया में कौशल , क्षमता , अनुकरण करना तथा व्यवहार को भी सीखता है। जैसे – परोपकार करना , आत्मनिर्भर होना , सभ्य एवं सुशील बनना इत्यादि। समाजीकरण के माध्यम से मनुष्य संस्कार , धर्म , संस्कृति , मानवीय मूल्यों , नैतिकता इत्यादि को भी सिखता है।
○ समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार , समाज एवं समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
❍ मनोवैज्ञानिक के अनुसार समाजीकरण की परिभाषा :-
• जॉनसन जे अनुसार :- ” समाजीकरण एक प्रकार का सीखना वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है।
• रॉस के अनुसार :- समाजीकरण सहयोग करने वाले व्यक्तियों में ” हम ” भावना का विकास करता है और उन्हें एक साथ कार्य करने की इच्छा तथा क्षमता का विकास करता है।
• ग्रीन के अनुसार :- ” समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सांस्कृतिक विशेषताओं , आत्म एवं व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।
• हार्टल और हार्टल के अनुसार :- यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आप को समुदाय के आदर्शी के अनुकूल बनाता है।
• गिलन के अनुसार :- समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग अपनी संस्कृति के विश्वासों , अभिवृत्तियों , मूल्यों और प्रथाओं को ग्रहण करते हैं।
❍ समाजीकरण के प्रकार :- समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है।
○ परिवार :- प्राथमिक समाजीकरण में मुख्य अभिकर्ता के रूप में परिवार तथा बालकों की मित्रों की भूमिका होती है। बालक समाज के माध्यम से व्यवहारिक ज्ञान सिखाता है। शिक्षा , संस्कृति , मूल्य तथा अभिवृत्ति का विकास समाजीकरण की इसी चरण में होता है।
○ विद्यालय :- द्वितीय समाजीकरण में बालक समुदायिक तरिके से सीखने के व्यवहार को अपनाता है। इस प्रकार से समाजीकरण का माहौल विद्यालयों , खेल के मैदानों एवं पड़ोसियों के संदर्भ में देखने को मिलता हैं , जो बालक को व्यवहारिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
❍ समाजीकरण की अवस्थाएँ :- समाजीकरण एक निरन्तर चलने वाली सतत प्रक्रिया है। इसका क्रमिक विकास हो
1.शैशवावस्था:-
• समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म से ही आरम्भ हो जाती है।
• इस अवस्था में बच्चा माता-पिता पर निर्भर रहता है।
• अनुकरण (नकल) की प्रवृत्ति , भाषा सीखने तथा अनेक प्रकार के व्यवहार का विकास होता हैं।
2. प्रारंभिक बाल्यावस्था :-
• इस अवस्था में बच्चों की नाराज होने की प्रवृत्ति तथा आपस में झगड़ने की प्रवृत्ति का विकास होने लगता है।
• अभिभावक के निर्देशों को इनकार करने की प्रवृत्ति तथा सहानुभूति एवं सहयोग की भावना का विकास एवं जिज्ञासा की प्रवृत्ति का विकास इसी अवस्था में होता है।
3. उत्तर बाल्यावस्था:-
• उत्तर बाल्यवस्था में बालकों में अन्य लोगों के विचारों एवं सुझावों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
• समाजीकरण की इस अवस्था में बालकों में पक्षपात , भेदभाव , दायित्व तथा जवाबदेही जैसी प्रवृत्ति का विकास होता है।
4. किशोरावस्था:-
• किशोरावस्था को समाजीकरण की सबसे जटिल अवस्था माना गया है।
• इस अवस्था को ” आँधी-तूफान “ की अवस्था भी कहा गया है।
• समाजीकरण की इस अवस्था में बालकों का आत्मविश्वास मजबूत होने लगता है।
• इस अवस्था में बालक अपने समकक्ष मित्रों एवं समूह के साथ समायोजन करने लगता है।
❍ समाजीकरण की विशेषताएं :-
• समाजीकरण एक सीखने वाली प्रक्रिया है।
• समाजीकरण जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है।
• समाजीकरण मनुष्य को उसकी संस्कृति से आत्मसात कराती है।
• समाजीकरण की प्रक्रिया से मनुष्य का सर्वगींण विकास संभव है।
• समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार , समाज , विद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
❍ समाजीकरण के उद्देश्य :-
• बालकों को अनुशासन का पाठ पढ़ना ।
• प्रत्येक बालकों में प्रेरणा उत्पन्न करना।
• प्रत्येक व्यक्ति को उसके सामाजिक पृष्ठभूमि से अवगत कराना ।
• व्यवहारों में अनुरूपता लाना इत्यादि पाठ्यक्रम का उद्देश्य है।
• बच्चों में परिवार , समाज , विद्यालय की भूमिका।
❍ समाजीकरण की प्रक्रिया :-
○ पालन-पोषण :- बालक के समाजीकरण में पालन पोषण का ज्यादा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि अगर बच्चे का पालन-पोषण अच्छे तरीके से नही होता तो बच्चा समाज के साथ समायोजन करने में कठिनाई महसूस करता है।
○ सहयोग :- बच्चा समाज के सहयोग से ही समाज का हिस्सा बनता है। जैसे-जैसे बालक अपने साथ अन्य व्यक्तियों का सहयोग पाता है वैसे-वैसे वह दूसरे लोगो के साथ अपना सहयोग भी प्रदान करना आरंभ कर देता है।
○ अनुकरण :- अनुकरण का अर्थ है नक़ल करके सीखना। बच्चा बड़ो की बातों का अनुकरण करके सीखता जाता है और समाज का एक हिस्सा बन जाता है।
○ पुरस्कार एवं दण्ड :- जब बालक समाज के आदर्शों तथा मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करता है तो लोग उसकी प्रशंसा करते है। इसके विपरीत जब बालक असामाजिक व्यहवार करता है तो उसे दण्ड मिलता है जिसके भय से वह ऐसा कार्य दुबारा नहीं करता।
❍ समाजीकरण के प्रकार :- समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है।
○ परिवार :- प्राथमिक समाजीकरण में मुख्य अभिकर्ता के रूप में परिवार तथा बालकों की मित्रों की भूमिका होती है। बालक समाज के माध्यम से व्यवहारिक ज्ञान सिखाता है। शिक्षा , संस्कृति , मूल्य तथा अभिवृत्ति का विकास समाजीकरण की इसी चरण में होता है।
○ विद्यालय :- द्वितीय समाजीकरण में बालक समुदायिक तरिके से सीखने के व्यवहार को अपनाता है। इस प्रकार से समाजीकरण का माहौल विद्यालयों , खेल के मैदानों एवं पड़ोसियों के संदर्भ में देखने को मिलता हैं , जो बालक को व्यवहारिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
○ अध्यापक :- बच्चे के सामाजिक विकास में अध्यापक का भी महत्वपूर्ण योगदान है बच्चे अपने अध्यापक को आदर्श मानते है तो छात्रों में भी शिष्ठता , धैर्य तथा सहकारिता के गुण विकसित हो जाते है।
○ खेल :- खेल बच्चों के मानसिक , शारीरिक , संवेगात्मक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास में भी योगदान देते है। एक टीम में रहकर बच्चे सहयोग की भावना विकसित करते है।
○ समुदाय :- बालक के समाजीकरण में समुदाय अथवा समाज अपने-अपने विभिन्न साधनों तथा विधियों के द्वारा बालक का समाजीकरण करना अपना परम कर्तव्य समझता है।
○ धर्म :- समाजीकरण की प्रक्रिया में धर्म के कुछ संस्कार , परम्पराएँ , आदर्श तथा मूल्य होते है तथा इन सभी बातों को स्वाभाविक रूप से सीखता है।
○ साथी :- प्रत्येक बालक अपने साथियों के साथ खेलता है। वह खेलते समय जाति-पाँति , ऊँच-नीच के भेद-भावों से ऊपर उठाकर दूसरे बालकों के साथ अंतः क्रिया द्वारा आनन्द लेना चाहता है।
❍ समाजीकरण की प्रक्रिया के मुख्य अभिकर्ता :- समाजीकरण की प्रक्रिया के मुख्य अभिकर्ता निम्न है
1. परिवार की भूमिका :- समाजीकरण में मुख्य अभिकर्ता के रूप में परिवार व माता-पिता की भूमिका होती है।
• बच्चा परिवार के संरक्षण में रहते हुए बच्चा जो कुछ सीखता है , वह उसके जीवन की स्थायी पूँजी होती है।
2. अध्यापक की भूमिका :- विद्यालय बच्चे में आधारभूत सामाजिक व्यवहार तथा व्यवहार के सिद्धांतों की नींव डालता है।
• विद्यालय न केवल शिक्षा को एक औपचारिक साधन है, बल्कि यह बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करता है और विद्यालय के इस कार्य मे शिक्षक की भूमिका सर्वाधिक अहम होती है।
• स्कूल में खेल प्रक्रिया द्वारा बच्चे सहयोग , अनुशासन , सामूहिक कार्य आदि सीखते है।
• बच्चे को सामाजिक , सांस्कृतिक मान्यताओं , मूल्यों , मानकों आदि का ज्ञान देना उनके समाजीकरण को तीव्र करने में सहायक सिद्ध होता है।
• समाजीकरण में बच्चे अपने अभिभावकों एवं शिक्षकों का ही अनुकरण करते है।