अध्याय 1 शीतयुद्ध का दौर | Cold war era

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अध्याय 1 शीतयुद्ध का दौर

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शीतयुद्ध का अर्थ:- दो या दो से अधिक देशों के बीच ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए की युद्ध होकर ही रहेगा परंतु युद्ध होता नहीं तब इस परिस्थिति को शीतयुद्ध कहा जाता है

 

 

क्यूबा मिसाईल संकट:-

• क्यूबा अमेरिका के तट से लगा एक छोटा या द्ववीपीय देश था लेकिन क्यूबा की दोस्ती सोवियत संघ से थी

• सोवियत संघ उसे कूटनीतिक है तथा वित्तीय सहायता देता था

• सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव क्यूबा को अपना सैनिक अड्डा बनाना चाहते थे

• क्योंकि क्यूबा अमेरिकास के निकट था

• क्यूबा से अमेरिका को अधिक हानि पहुंचाना जा सकती थी

• 1962 में सोवियत संघ ने क्यूबा पर अपनी परमाणु मिसाइल तैनात कर दी

• इसकी खबर अमेरिका को तीन हफ्ते के बाद पता लगी अमेरिका राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ऐसा कुछ भी करने से हिचकिचाते ज
रहे थे जिससे दोनों के बीच युद्ध छिड़ जाये

• क्योंकि अगर युद्ध होता तो ज्यादा हानि अमेरिका को उठानी पड़ती

• अमेरिका राष्ट्रपति को इस बात पर विश्वास था कि निकिता ख्रुश्चेव वहां से अपनी मिसाईल हटा लेंगे

• केनेडी ने आदेश दिया कि अमेरिका जंग बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत संघ जहाजों को रोका जाये

• ऐसे समय में यह लगा कि युद्ध होकर रहेगा यह कोई आम युद्ध नहीं था

• लेकिन ऐसा नहीं होआ दोनों ने युद्ध टालने का फैसला लिया और दुनिया ने चैन की सांस ली

• यह बहुत ही संवेदनशील समय था इसलिए क्यूबा मिसाइल संकट को शीतयुद्ध का चरण बिंदु कहा जाता है

 

क्यूबा मिसाईल संकट:-

क्यूबा- फिदेल कास्रो
सोवियत संघ – निकिता ख्रुश्चेव
अमेरिक- जाॅन ऍफ़ कैनेडी

पहला विश्वयुद्ध-1914-1918

दूसरा विश्वयुद्ध-1939-1945

• मित्र राष्ट्र- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटिश, सोवियत संघ
• धुरी राष्ट्र- जर्मनी, जापान, इटली

 

शीत युद्ध का अर्थ :- जब दो या दो से अधिक देशों के बीच ऐसी स्थिति बन जाए कि लगे युद्ध होकर रहेगा लेकिन वास्तव में कोई युद्ध नही होता ।

 

शीतयुद्ध क्या है।

शीतयुद्ध से अभिप्राय विश्व की दो महाशक्तियों अमरीका और सोवियत संघ के बीच तनाव , भय , ईर्ष्या पर आधारित था।

1945 से 1991 तक इन दोनों महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध का दौर चला।

 

शीतयुद्ध की शुरूआत :- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही शीत युद्ध की शुरुआत हुई। शीतयुद्ध 1945-1991 तक चला।

 

शीतयुद्ध के कारण :- दोनों महाशक्तियों सोवियत संघ और अमेरिका के बीच विचारधारा को लेकर संघर्ष हुआ।

1.अमेरिका

• पूंजीवाद :- पूंजीवाद के अंतर्गत एक देश के सभी उत्पादन संबंधित फैसले लेने का अधिकार सामान्य जनता के हाथ मे होता है।

• उदारवाद :- इस विचारधारा के अंतर्गत देश में अधिक से अधिक स्वतंत्रता प्रदान करने के प्रयास किये जाते हैं।

• लोकतंत्र :- लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामान्य जनता द्वारा अपने शासकों का चुनाव किया जाता हैं।

 

2. सोवियत संघ :-

• समाजवाद :- इस व्यवस्था में एक देश के सभी उत्पादन संबंधित फैसले लेने का अधिकार मुख्य रूप से सरकार के हाथ में होता है।

• साम्यवाद :- जो निजी सम्पति को समाप्त करने तथा पूर्ण सामाजिक समानता पर आधारित होती हैं।

 

पूंजीवाद :- सरकार का हस्तक्षेप कम होता है, व्यापार अधिक होता है और निजी व्यवस्था पर जोर देते हैं।

समाजवाद :- सारी व्यवस्था सरकार के हाथ में होता है और निजी व्यवस्था का विरोध होता है।

 

शीतयुद्ध के कारण :-

1.सोवियत संघ और अमेरिका के वैचारिक मतभेद

2.अमेरिका का परमाणु कार्यक्रम

3. महाशक्ति बनने की होड़

4.इरान में सोवियत हस्तक्षेप –

5. फासीवादी ताकतों को अमेरिकन सहयोग

6.विचारधारा को लेकर मतभेद

 

अमेरिका का मानना था कि पूंजीवाद , उदारवादी लोकतंत्र अर्थव्यवस्था दुनिया के लिए बेहतर है।

जबकि सोवियत संघ का मानना था कि समाजवादी , साम्यवादी अर्थव्यवस्था दुनिया के लिए बेहतर है।

 

प्रथम विश्व युद्ध – 1914 से 1918 तक
द्वितीय विश्व युद्ध – 1939से 1945 तक

 

द्वितीय विश्व युद्ध के गुट :-

• मित्र राष्ट्र :- फ्रांस , ब्रिटेन , संयुक्त राष्ट्र अमेरिका , सोवियत संघ।

• धुरी राष्ट्र :- जर्मनी , जापान , इटली।

 

द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत :- अमेरिका ने अगस्त 1945 में जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को आत्मसमपर्ण करना पड़ा।

 

बमो के नाम :- लिटिल बॉय और फैट मैन

 

अमेरिका के संग़ठन :-

• नाटो (NATO) 1949
North Atlantic Treaty Organisation
उत्तर अटलांटिक संधि संग़ठन

उद्देश्य :-

1. सभी सदस्य मिल-जुलकर रहेंगें।
2. एक दूसरे की मदद करेंगे।
3. अगर एक पर हमला होगा तो उसे अपने ऊपर हमला मानेंगे और मिलकर मुकाबला करेंगे।

सीटो (SEATO) 1954
South East Asia Treaty Organisation
दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि-संगठन

उद्देश्य :- साम्यवादियो की विस्तारवादी नीतियों से दक्षिण -पूर्व एशियाई देशों की रक्षा करना।
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सेंटो (CENTO) 1955
Central Treaty Orgnisation
केंद्रीय संधि संगठन

उद्देश्य :- सोवियत संघ को मध्य पूर्व से दूर रखना।

 

सोवियत संघ के संगठन

वारसा संधि 1955

उद्देश्य :- नाटो में शामिल देशों का मुकाबला करना।

 

महाशक्तियां छोटे देशों के साथ गठबंधन क्यो बनाती थी।

1. महत्वपूर्ण संसाधन
2. सैनिक ठिकाने
3. भू-क्षेत्र
4. आर्थिक मदद

 

छोटे देश महाशक्तियों के साथ गठबंधन में क्यो शामिल होतर थे।

1. सुरक्षा के लिए
2. सैन्य सहायता
3. हथियार
4. आर्थिक मदद
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शीतयुद्ध के विभिन्न घटनाक्रम :- 1945 -1991

1.1948 – बर्लिन की नाकेबंदी

2. 1950 – कोरिया संकट

3.1954 -वियतनाम में अमेरिका का हस्तक्षेप

4.1956 – हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप

5. 1961- बर्लिन की दीवार

6.1962- क्यूबा मिसाइल संकट

7. 1972 अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन का चीन दौरा

8. 1979 – अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप

9. 1990 – जर्मनी का एकीकरण

10. 1991-सोवियत संघ का विघटन

 

दो-ध्रुवीय विश्व का आरंभ :- दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया दो गुटों में बाँट गया

1. पहली दुनिया :- पूंजीवादी देश

• जिसकी अगुवाई अमेरिका कर रहा था।

• पश्चिमी यूरोप के देशों ने अमेरिका का पक्ष लिया।

• इन्ही देशों के समूह को पश्चिमी गत
गठबंधन कहते हैं।

• ब्रिटेन , नार्वे , फ्रांस , स्पेन , इटली , बेल्जियम और पश्चिमी जर्मनी।

 

2. दूसरी दुनिया :- समाजवादी देश

• जिसकी अगुवाई सोवियत संघ कर रहा था।

• पूर्वी यूरोप के देशों ने सोवियत संघ का पक्ष लिया।

• इन्ही देशों के समूह को पूर्वी गठबंधन कहते हैं।

• पोलैंड , हंगरी , बुल्गारिया , रोमानिया और पूर्वी जर्मनी ।

 

अपरोध :- जब दोनों पक्ष बहुत ताकतवर हो और एक दूसरे को बहुत नुकसान पंहुचा सकते हैं पर दोनों पक्षो में कोई युद्ध का खतरा मोल लेना नही चाहता।

 

गुटनिरपेक्ष :- सभी गुटों से अपने को अलग रखना है।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक नेता

1. इंडोनेशिया -सुकर्णो

2.घाना – वामे एनकुमा

3. मिस्र – गमाल अब्दुल नासिर

4. भारत – जवाहर लाल नेहरू

5.युगोस्लाविया – जोसेफ ब्रांज टीटो

 

गुटनिरपेक्ष :-

1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने का आंदोलन था।

2. दोनों महाशक्तियों के बीच तनाव कम करने का काम किया।

3.नव स्वतंत्र देशों के आजादी में मदद की।

4. इसका उद्देश्य विश्व शांति , सहयोग , एकता स्थपित करना था।

 

उद्देश्य:-
• शीत युद्ध की राजनीति का त्याग करना और स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अनुसरण करना।

• सैन्य गठबंधनों से पर्याप्त दूरी बनाए रखना।

• साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध करना।

• रंगभेद की नीति के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत करना

• मानवाधिकारों की रक्षा के लिये यथासंभव प्रयास करना।

 

 

 गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता :-

1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने विश्व शांति को संरक्षित करने के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभाई है।

2. गुटनिरपेक्ष आंदोलन क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सिद्धांत का समर्थन करता है

3. गुटनिरपेक्ष आंदोलन एक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है।

4.किसी विशिष्ट मुद्दे को लेकर मतभेद पैदा होता है तो गुटनिरपेक्ष आंदोलन उस मतभेद को हल करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य कर सकता है।

5.गुटनिरपेक्ष आंदोलन में कुल 120 विकासशील देश शामिल हैं और इनमें से लगभग सभी देश संयुक्त राष्ट्र (UN) के सदस्य हैं।
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पृथकवाद :- ऐसी नीति से है जिसमें एक देश को अंतरष्ट्रीय मामलों से अलग रखता है।

तटस्थता :- ऐसी नीति से है जिसमें देश न तो युद्ध में शामिल होते हैं न ही उसे समाप्त करवाने के लिए कोई कदम उठाते हैं

 

 गुटनिरपेक्ष और भारत

1. स्वतंत्र विदेश नीति दोनों

2. दोनों महाशक्तियों का समर्थन

3. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली

4. विकासशील देशों का सहयोग

5. एक महाशक्ति द्वारा विरोध किए जाने पर दूसरी महाशक्ति का समर्थन।

 

गुटनिरपेक्ष सम्मेलन

1. प्रथम सम्मेलन

• 1961 में बेलग्रेड में हुआ।
• इसमें 25 सदस्य देश शामिल हुए।

2. 14 वां सम्मेलन

• 2006 क्यूबा (हवाना) में हुआ।
• 115 सदस्य देश

3. 17 वां सम्मेलन

• 2016 में वेनेजुएला में हुआ
• 125 सदस्य देश
• 17 पर्यवेक्षक

 

 

नव अंतरष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था :- 1972 में (U.N.O) के व्यापार और विकास में संबंधित सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा रिपोर्ट

1. अल्प विकसित देशों का अपने प्राकृतिक संसाधन पर अधिकारों होगा।

2. यह देश अपने इन संसाधनों का इस्तेमाल अपने तरीके से कर सकते हैं।

3. अल्प विकसित देशों की पहुंच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी यह देश अपना सामान पश्चिमी देश में बेच सकेंगे।

4. पश्चिमी देश से मंगाई जा रही टेक्नोलॉजी प्रौद्योगिकी लागत कम होगी।

5. अल्प विकसित देशों की भूमिका अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में उनकी भूमिका बढ़ाई जाएगी।

 

गुट-निरपेक्षता की नीति | The Policy of Non-alignment

गुट-निरपेक्षता की नीति का अर्थ – गुटों की राजनीति से दूर रहना , दोनों गुटों के साथ मैत्री रखना, किसी के साथ भी सैनिक संधियाँ न करना और एक स्वतंत्र नीति का विकास करना।

 

भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति

• गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने वाला भारत पहला देश था।

• गुटों की राजनीति से दूर रहने की नीति हैं।

• शांति स्थापित करने और उसे मजबूत आधार देने की नीति है।

• उपनिवेशवाद , साम्राज्यवाद , जाति-भेद और नव-उपनिवेशवाद का विरोध करने की नीति है।

• भारत संसार को तीसरे महायुद्ध से बचाना चाहता था।

• गुट-निरपेक्षता सभी देशों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंधो को प्रोत्साहन देती है।

 

गुट-निरपेक्षता के चरण

पहला चरण :- 1946-1954 गुट-निरपेक्षता की रूपरेखा पस्तुत किया।

दूसरा चरण :- 1954-1962 भारत ने मैत्री सम्बन्ध रखने की नीति बनाई।

तीसरा चरण :- 1962-1971 दोनों महाशक्तियों के बराबर की निकटता के अनुसार कार्य करने लगा।

चौथ चरण :- 1971-1999 भारत ने सोवियत संघ के साथ मैत्री और सहयोग की एक संधि पर हस्ताक्षर किए।

पाँचवाँ चरण :- (शीतयुद्ध के बाद का काल ) आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए गुट-निरपेक्षता आज भी प्रासंगिक है।

 

 भारत की विदेश नीति के सिद्धांत

1. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
2. साम्रज्यवाद का विरोध
3. जातिभेद का विरोध
4. विदेशी आर्थिक सहायता
5. संयुक्त राष्ट्र का समर्थन
6. विवादों का शांतिपूर्ण समाधान

 

परमाणु सन्धियाँ :-

1. L.T.B.T – 5 अगस्त 1963

Limited Test Ban Treaty

सीमित परमाणु परीक्षण संधि

• वायुमंडल , बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अंदर परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाया।

• इस संधि पर अमरीका , ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त 1963 को हस्ताक्षर किए।

• यह संधि 10 अक्टूबर 1963 से प्रभावी हो गई।

 

2.N.P. T – 1 जुलाई 1968

Non-Proliferation Treaty

परमाणु अप्रसार संधि

• यह संधि केवल परमाणु शक्ति -सम्पन्न देशों को एटमी हथियार रखने की अनुमति देता है।

• बाकी देशों को ऐसे हथियार हासिल करने से रोकती है।

• पांच परमाणु सम्पन्न देश फ़्रांस , ब्रिटेन , रूस , चीन , अमेरिका ।

 

3.SALT 31जुलाई 1991 से 3 जनवरी 1993

Strategic Arms Limitation Talk

परमाणु अस्त्र परिसीमन वार्ताएं

1. सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता -1

2. सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता -2

3. सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि -1

4. सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि -2

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