अध्याय 11 : कार्य तथा ऊर्जा

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कार्य तथा ऊर्जा 

 

कार्य :- कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । सजीवों में ऊर्जा , भोजन से मिलती है । मशीनों को ऊर्जा , ईंधन से मिलती है ।

 कठोर कार्य करने के बावजूद कुछ अधिक कार्य नहीं :- सभी प्राक्रियाओं , लिखना , पढ़ना , चित्र बनाना , सोचना , विचार विमर्श करना आदि में ऊर्जा व्यय होती है । लेकिन वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार इनमें बहुत थोड़ा – सा नगण्य कार्य हुआ ।

 

कार्य किया जाता है जब :- एक चलती हुई वस्तु विरामावस्था में आ जाये । एक वस्तु विराम अवस्था से चलना शुरु कर दें । एक गतिमान वस्तु का वेग परिवर्तन हो जाये । एक वस्तु का आकार परिवर्तन हो जाये ।

 

कार्य करने की दशा :- वस्तु पर बल लगना चाहिए । वस्तु विस्थापित होनी चाहिए ।

 

कार्य की वैज्ञानिक संकल्पना :- कार्य किया जाता है जब एक बल वस्तु में गति उत्पन्न करता है । कार्य किया जाता है जब एक वस्तु पर बल लगाया जाता है और वस्तु बल के प्रभाव से गतिशील हो जाती है ( विस्थापित हो जाये ) ।

 

एक नियत बल द्वारा किया गया कार्य :- एक गतिमान वस्तु पर किया गया कार्य वस्तु पर लगे बल तथा वस्तु द्वारा बल की दिशा में किये गये विस्थापन के गुणनफल के बराबर होता है ।

कार्य = बल × विस्थापन

W = f × s कार्य एक अदिश राशि है ।

कार्य का मात्रक :- कार्य का मात्रक न्यूटन मीटर या जूल है ।

 

जूल :-  जब बल वस्तु को बल की दिशा में 1 मीटर ( m ) विस्थापित कर देता है तो एक जूल ( 1j ) कार्य होता है ।

1 जूल = 1 न्यूटन × 1 मीटर

1J = 1 न्यूटन × 1 मीटर

 

धनात्मक , ऋणात्मक तथा शून्य कार्य :- एक बल द्वारा किया गया कार्य धनात्मक , ऋणात्मक या शून्य हो सकता है ।

( a ) कार्य धनात्मक :- कार्य धनात्मक होता है जब बल वस्तु की गति की दिशा में लगाया जाता है । ( 0° के कोण पर )

( b ) ऋणात्मक कार्य :- ऋणात्मक कार्य तब होता है जब बल वस्तु की गति की विपरीत दिशा में लगाया जाता है । ( 180 ° के कोण पर )

उदाहरण :- ( a ) जब हम जमीन पर रखी फुटबाल पर किक मारते हैं तो फुटबाल किक मारने की दिशा में चलती है यह धनात्मक कार्य है । ( b ) लेकिन जब फुटबाल रूकती है उस पर घर्षण बल गति की दिशा के विपरीत दिशा में कार्य करता है । यहाँ कार्य ऋणात्मक है ।

 ( c ) कार्य शून्य :-  कार्य शून्य होता है जब लगाये गये बल और गति की दिशा में 90° का कोण बनता है ।

उदाहरण :- चन्द्रमा पृथ्वी के चारों तरफ गोलीय पथ में गति करता है । यहाँ पर पृथ्वी का गुरुत्व बल चन्द्रमा की गति की दिशा के साथ 90° का कोण बनाता है । अतः किया गया कार्य शून्य है ।

 

ऊर्जा :- कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं ।  किसी वस्तु में निहित ऊर्जा , उस वस्तु द्वारा किये जाने वाले कार्य के बराबर होती है । कार्य करने वाली वस्तु में ऊर्जा की हानि होती है , तथा जिस वस्तु पर कार्य किया जाता है उसकी ऊर्जा में वृद्धि होती है । ऊर्जा एक अदिश राशि है । ऊर्जा का S.I. मात्रक जूल ( J ) है । ऊर्जा का बड़ा मात्रक किलो जूल है ।

1KJ = 1000 J

 

ऊर्जा के रूप :- ऊर्जा के मुख्य रूप हैं गतिज ऊर्जा ऊष्मीय ऊर्जा विद्युत ऊर्जा ध्वनि ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा प्रकाश ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा ।

 

यांत्रिक ऊर्जा :- किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा के योग को यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं । किसी वस्तु की गति या स्थिति के कारण कार्य करने की क्षमता को यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं ।

गतिज ऊर्जा :-  किसी वस्तु की गति के कारण कार्य करने की क्षमता को गतिज ऊर्जा कहते हैं ।

 

गतिज ऊर्जा के उदाहरण :-

एक गतिशील क्रिकेट बॉल । बहता हुआ पानी । एक गतिशील गोली । बहती हुई हवा । एक गतिशील कार । एक दौड़ता हुआ खिलाड़ी । लुढ़कता हुआ पत्थर । उड़ता हुआ हवाई जहाज । गतिज ऊर्जा वस्तु के द्रव्यमान तथा वस्तु के वेग के समानुपाती होती है ।

 

गतिज ऊर्जा का सूत्र :-

 यदि m द्रव्यमान की एक वस्तु एक समान वेग u से गतिशील है । इस वस्तु पर एक नियत बल F विस्थापन की दिशा में लगता है और वस्तु s दूरी तक विस्थापित हो जाती है इसका वेग u से v हो जाता है । तब त्वरण उत्पन्न होता है ।

किया गया कार्य ( w ) = F × s

F = ma

 

स्थितिज ऊर्जा :- किसी वस्तु में उस वस्तु की स्थिति या उसके आकार में परिवर्तन के कारण , जो कार्य करने की क्षमता होती है , उसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं ।

उदाहरण :-

बाँध में जमा किया गया पानी :- यह पृथ्वी से ऊँची स्थिति के कारण टरबाइन को घुमा सकते हैं । जिससे विद्युत उत्पन्न होती है ।

धनुष की तनित डोरी :- धनुष की आकृति में परिवर्तन के कारण उसमें संचित स्थितिज ऊर्जा ( तीर छोड़ते समय ) तीर की गतिज ऊर्जा में परिवर्तित होती है ।

 

 

 

अध्याय 12 – ध्वनि