❍ मृदा :- पृथ्वी की ऊपरी परत है जो पौधों की वृद्धि के लिए प्राकृतिक माध्यम प्रदान करता है। एक सेंटीमीटर मृदा को बनने में सैकड़ों वर्ष लग जाता है। तथा इसके बिना इस पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व असंभव है। मृदा का निर्माण चट्टानों से प्राप्त खनिजों और जैव पदार्थ तथा भूमि पर पाए जाने वाले खनिजों से होता है।
❍ मृदा की परत :- ह्यूमस , जल मृतिका , बालू , बजरी आदि।
○ ह्यूमस :- मृदा में उपस्थित सड़े-गले जैव पदार्थ ह्यूमस कहलाते हैं।
○ अपक्षय :- पवन , जल और हिम की क्रिया से चट्टानों के टूटने पर मृदा का निर्माण होता है। यह प्रक्रम अपक्षय कहलाता है।
○ मृदा परिच्छेदिका :- किसी स्थान की मृदा परिच्छेदिका वहाँ की मृदा की विभिन्न परतों का परिच्छेद होती है।
○ संस्तर-स्थितियाँ :- प्रत्येक परत स्पर्श , रंग , गहराई और रासायनिक संघटन में भिन्न है , जिसे संस्तर-स्थितियाँ कहते है।
○ शीर्षमृदा :- सबसे ऊपर वाली संस्तर-स्थिति सामान्यतः गहरे रंग की होती है , क्योंकि यह ह्यूमस और खनिजों से समृद्ध होती है।
• शीर्षमृदा कृमियों , कृन्तकों , छछूंदर , अनेक जीवों को आवास प्रदान करती है। छोटे पादपों की जड़े पूरी तरह से शीर्षमृदा में ही रहती हैं।
○ मध्यपरत :- शीर्षमृदा से नीचे की परत में ह्यूमस कम होती है , लेकिन खनिज अधिक होते हैं। यह परत सामान्यतः अधिक कठोर और अधिक संहत होती है।
○ आधार शैल :- जो दरारों और विदरोंयुक्त शैलों के छोटे ढेलों की बनी होती है। इसे फावड़े से खोदना कठिन होता है।
❍ मृदा :- शैलों कणों और ह्यूमस का मिश्रण मृदा कहलाता है। बैक्टीरिया , पादप मूल , और केंचुए आदि जीव भी मृदा के महत्वपूर्ण अंग होते है।
○ बलुई मृदा :- मृदा में बड़े कणों के अनुपात अधिक होता है , तो वह बलुई मृदा कहलाती है।
○ मृण्मय मृदा :- मृदा में बारीक (सूक्ष्म) कणों का अनुपात अधिक होता है , तो मृण्मय मृदा कहलाती है।
○ दुमती मृदा :- मृदा के बड़े और छोटे कणों की मात्रा लगभग समान होती है , तो यह दुमती मृदा कहलाती है।
○ मृत्तिका मृदा :– मृदा के कण बहुत छोटे होने के कारण परस्पर जुड़े रहते हैं ।
○ गाद :- गाद मृदा कणों के मिश्रण होती है।
○ चिकनी मिट्टी :- मृत्तिका मिट्टी का उपयोग बर्तनों , खिलौनों और मूर्तियों को बनाने के लिए किया जाता है।
○ मृदा के गुण :-
• मिट्टी में पानी अवशोषित हो जाता है।
• मृदा में से जल वाष्पित होकर ऊपर उठता है।
• मृदा में जल अंत:स्त्रवण दर की गणना
जल की मात्रा (ml)
अंत:स्त्रवण ( ml/min)=———
अंत:स्त्रवण (Min)
○ पवन , वर्षा , ताप , प्रकाश , और आर्द्रता द्वारा प्रभावित होता है। जलवायु कारक भी , जो मृदा परिच्छेदिका और मृदा की संरचना को परिवर्तन लाते हैं। मृदा के घटक किसी क्षेत्र विशेष में उगने वाली वनस्पति तथा फ़सलो की किस्म का निर्धारण करते हैं।
❍ मृदा और फसलें:- मृतिका (चिकनी मिट्टी ) और दुमट मृदा गेंहूँ , चना , और धान को उगाने के लिए उपयुक्त है। कपास को बलुई दुमट मिट्टी में उगाया जाता है। जल की निकासी आसानी से हो जाती और पर्याप्त परिमाण में वायु को धारण करती हैं।