आधुनिक युग से पहले उन्नसवीं शताब्दी 1815-1914 महायुद्धों की बीच अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण : युद्धोंत्तर काल
★ परिचय :- वैश्विक दुनिया के निर्माण का एक लंबा इतिहास है ।
● व्यापार का
● प्रवास का
● काम की तलाश में लोगों का
● पूंजी की आवाजाही का
● और बहुत कुछ
● जैसा कि हम आज हमारे जीवन में वैश्विक अंतर्संबंध के नाटकीय और दृश्य संकेतों के बारे में सोचते हैं , हमें उन चरणों को समझने में आवश्यकता है जिनके माध्यम से यह दुनिया जिसमें हम रहते हैं वह उभरा है
★ प्राचीन काल :-
● यात्रियों , व्यापारियों , पुजारियों और तीर्थयात्रियों ने जान , अवसर अध्यात्मिक पूर्ति के लिए या उत्पीड़न से बचने के लिए विशाल दूरी तय की।
● वे अपने साथ सामान , पैसा , मूल्य , कौशल , विचार , आविष्कार और यहां तक कि रोगाणु और बीमारी भी ले गए।
● 3000 ईसा पूर्व , एक सक्रिय तटिय व्यापार ने सिंधु घाटी की सभ्यताओं को वर्तमान पश्चिम एशिया के साथ जोड़ा।
● रेशम मार्ग ने चीन को पश्चिम से जोड़ा।
● भोजन ने अमेरिका से यूरोप और एशिया की यात्रा की।
★ रेशम मार्ग :- प्राचीन काल में दूर-दूर स्थित भागों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्को में ‘ सिल्क मार्ग ‘ जिसे पश्चिम से भेजे जाने वाले चीनी रेशम का काफी महत्व था।
● भूमंडलीकृत विश्व का बनना ये मार्ग एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका को भी जोड़ते थे।
● भारत व दक्षिण -पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले दुनिया के दूसरे भागों में पहुँचते थे।
● वापसी में सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ यूरोप से एशिया पहुँचती थी।
★ भोजन की यात्रा :- हमारे खाद्य पदार्थ दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कई उदाहरण पेश करते हैं।
● जब भी व्यापारी और मुसाफिर किसी नए देश मे जाते थे जाने-अनजाने वहाँ नयी फ़सलो के बीज बो आते थे।
● दुनिया के विभिन्न भागों में मिलने वाले ‘ झटपट तैयार होने वाले ‘ खाद्य पदार्थों के भी साझा स्त्रोत रहे हैं।
● स्पेघेती और नूडल्स चीन से पश्चिम में पहुँचे और वहाँ संभव पास्ता अरब यात्रियों के साथ इटली पहुँचा।
● हमारे खाद्य पदार्थ अमेरिका बीके मूल निवासियों यानी अमेरिकन इंडियनों से हमारे पास आए हैं।
◆ व्यापार :- कीमती धातुओं , खासतौर से चाँदी ने भी यूरोप की संपदा को बढ़ाया और पश्चिम एशिया के साथ होने वाले उसके व्यापार को गति प्रदान की।
◆ विजय :- सोलहवीं सदी के मध्य तक आते-आते पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की विजय का सिलसिला शुरू हो चुका था । उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था।
◆ बीमारी :- यूरोपीय विजेता अमेरिका में चेचक के रोगाणु ले गए । चेचक जैसे कीटाणु थे जो स्पेनिश सैनिकों और अफसरों के साथ वहाँ पहुँचे थे
★ उन्नीसवीं शताब्दी (1815-1914) :-
● वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का विकास हुआ।
● ब्रिटिश मांग को पूरा करने के लिए रूस , अमेरिका , आस्ट्रेलिया में खाद्य उत्पादन का विस्तार।
● ब्रिटेन में कॉर्न लॉ लागू , उद्योगपतियों और शहरी निवासियों ने सरकार को कॉर्न लॉ को खत्म करने के लिए मजबूर किया।
● टेक्नोलॉजी जैसे रेलवे , स्टीम शिप , टेलीग्राफ ने वैश्वीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
● यूरोप ने अफ्रीका और एशिया को उपनिवेश के रूप में जीत लिया।
● भारत से गिरमिटिया श्रमिको का पत्रायन।
★ विश्व अर्थव्यवस्था का उदय :- अर्थशास्त्रियों ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विनियम में तीन तरह की गतियों या ‘ प्रवाहो ‘ का उल्लेख किया है।
● पहला प्रवाह व्यापार का होता है।
● दूसरा , श्रम का प्रवाह होता है।
● तीसरा प्रवाह पूँजी का होता है।
◆ तकनीक की भूमिका :- रेलवे , भाप के जहाज़ , टेलीग्राफ , ये सब तकनीकी बदलाव बहुत महत्वपूर्ण रहे। तकनीकी प्रगति अक़्सर चौतरफ़ा सामाजिक , राजनीतिक और आर्थिक कारको भी परिणाम भी होती है।
उदाहरण के लिए :- औपनिवेशीकरण के कारण यातायात और परिवहन साधनों में भारी सुधार किए गए।
◆ उपनिवेशवाद :- उन्नसवीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपीयों की विजयों से बहुत सारे कष्टदायक आर्थिक , सामाजिक और परिस्थितिकीय परिवर्तन आए और औपनिवेशिक समाजों को विश्व अर्थव्यवस्था में समाहित कर लिया गया।
★ महायुद्धों के बीच अर्थव्यवस्था :- पहला विश्व युद्ध 1914-18 मुख्य रूप से यूरोप में ही लड़ा गया। लेकिन उसके असर सारी दुनिया में महसूस किए गए। इस युद्ध ने विश्व अर्थव्यवस्था को संकट में ढकेल दिया जिससे उबरने में दुनिया को तीन दशक से भी ज्यादा समय लग गया।
◆ पहला विश्वयुद्ध :- पहला विश्वयुद्ध दो खेमों के बीच लड़ा गया ।
● एक तरफ मित्र राष्ट्र – ब्रिटेन , फ़्रांस , रूस थे
● दूसरी तरफ केंद्रीय शक्तियाँ – जर्मनी , ऑस्ट्रिया-हंगरी , ऑटोमन तुर्की थे।
● मानव सभ्यता के इतिहास में इस भीषण युद्ध पहले कभी नही हुआ था।
● पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था। इस युद्ध में मशीनगनों , टैंकों , हवाई जहाज़ों और रासायनिक हथियारों का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
● युद्ध के लिए दुनिया भर से अंसख्य सिपाहियों की भर्ती की जानी थी और विशाल जलपोतों व रेलगाड़ियों में भर कर युद्ध के मोर्चों पर ले जाना था।
युद्ध में 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 2 करोड़ घायल हुए।
◆ भारत में महामंदी :-
● औपनिवेशिक भारत कृषि वस्तुओं का निर्यातक और तैयार मालों का आयातक बन चुका था।
● 1928 से 1934 के बीच भारत में गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत गिर गई।
● कच्चे पटसन की कीमतों में 60 प्रतिशत से भी ज्यादा गिरावट आ गई।
● पूरे देश में काश्तकार पहले से भी ज्यादा कर्ज में डूब गए।
● उधोगो को रक्षा के लिए सीमा शुल्क बढा दिए गए थे।
◆ युद्धोंत्तर काल :- पहला विश्वयुद्ध खत्म होने के केवल दो दशक बाद दूसरा दशक बाद दूसरा विषयुद्ध शुरू हो गया।
● पहला खेमा मित्र राष्ट्र – ( ब्रिटेन , सोवियत संघ , फ़्रांस , अमेरिका )
● दूसरा खेमा धुरी शक्तियाँ – ( नात्सी जर्मनी , जापान , इटली )
◆ विश्व अर्थव्यवस्था का पुननिर्माण :-
● दो महायुद्धों के बीच मिले आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने दो अहम सबक मिले ।
● पहला :- बृहत उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग के बिना क़ायम नही रखा जा सकता।
● दूसरा :- बाहरी दुनिया के साथ आर्थिक संबंधो के बारे में था।सरकार के पास वस्तुओं और श्रम की आवाजाही को नियंत्रित करने की ताकत उपलब्ध हो।
◆ ब्रेटन-वुड्स संस्थान :-
● युद्धोंत्तर अंतरष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार बनाए रखा गया।
● 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी।
● सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अंतरष्ट्रीय मुद्रा कोष ( आई.एम.एफ.) की स्थापना की गई।
★ वैश्वीकरण की शुरुआत :- ब्रेटन वुड्स प्रणाली का अंत और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शुरुआत और वैश्वीकरणकरण
★ भारतीय व्यापार और उपनिवेशवाद
● ब्रिटिश सरकार ने सूती वस्त्र के आयात पर सीमा शुल्क की उच्च दरें लगा दी 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश उद्योगपति वस्त्रों के लिए विदेशी बाजार की तलाश करने लगे,जिससे भारतीय उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
●अंग्रेजों ने भारतीय किसानों पर नील (Indigo) और अफीम (opium) की खेती करने के लिए दबाव बनाया नील ब्रिटेन को निर्यात किया जाता था, तथा अपनी अफीम (1820 ई. से )चीन को निर्यात किया जाता था।
★ भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापारिक संबंध
● 19वीं शताब्दी में भारतीय बाजार में ब्रिटिश निर्माणकर्ताओं की अधिकता हो गई परिणाम स्वरूप भारत से माल जाने के अतिरिक्त ब्रिटेन से भी माल भेजा जाने लगा, जिसकी दरें ऊंची होती थीं।
● ब्रिटेन को भारत के साथ व्यापार अधिशेष होने लगा। ब्रिटेन व्यापार अधिशेष से अधिकारियों को पेंशन दिया करता था तथा दूसरे देशों में निवेश करता था।
★ महामन्दी और इसके उत्तरदाई कारक :-
● वर्ष 1929 के आस-पास महामंदिर शुरू हो गई और 1930 के दशक के मध्य तक समूचे विश्व में महामंदी आई।
● कृषि उत्पादन की अधिकता की समस्या से कृषि उत्पादों का मूल्य कम हो गया।
● 1920 के दशक में बहुत से देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी निवेश आवश्यकता को पूरा किया था।
● अमेरिकी पूंजीवादियों ने यूरोपियों को ऋण देना बंद कर दिया, जिससे यूरोप के बैंक धराशाई हो गए तथा मुद्रा का पतन हो गया।
● अमेरिका ने आयात करो को दोगुना करके मंदी में अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने का प्रयास किया, जिससे विश्व व्यापार बुरी तरह से नष्ट हो गया।
औद्योगिक देशों में भी मंदी का सबसे बुरा प्रभाव अमेरिका को ही दना पड़ा था।
★ आई. एम.एफ. और विश्व बैंक की स्थापना
◆ सदस्य राष्ट्रों के बाहरी अधिशेष और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटनवुड्स सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष(International Monetry Fund, IMF)की स्थापना की।
● युद्धोत्तर पुनर्निर्माण को वित्त पोषित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक) की स्थापना की गई।
● विश्व बैंक और आई.एम.एफ. ने वर्ष 1947 से औपचारिक रूप से कार्य करना शुरू कर दिया।
● अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था राष्ट्रीय मुद्रा और मौद्रिक व्यवस्था जोड़ने वाली व्यवस्था है, इस व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय मुद्रा ने स्थिर विनिमय दर का पालन किया।
★ विकासशील राष्ट्रों की दशा
● नव स्वतंत्र राष्ट्र उपनिवेशीकरण के बाद भी अंतरराष्ट्रीय संगठनों के द्वारा नियंत्रित थे। ऐसे में अधिकांश विकासशील देशों ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की मांग की और समूह77 (G77)का गठन किया।
● नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली(New International Economic Order) से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है, जिससे उन्हें प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण विकास में सहायता कच्चा माल और विकसित देशों के बाजारों में माल को बेचने की उचित अवसर मिले।
★ वैश्वीकरण का अर्थ :-किसी वस्तु, सेवा, विचार पद्धति, पूँजी, बौद्धिक सम्पदा अथवा सिद्धान्त को विश्वव्यापी करना अर्थात् विश्व के प्रत्येक देश का अन्य देशों के साथ अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान करना।
वैश्वीकरण में प्रवाह निम्न प्रकार के होते हैं –
● विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना।
● पूँजी का एक से ज्यादा जगहों पर सुगमतापूर्वक जाना।
● वस्तुओं का कई देशों में निर्बाध रूप से पहुँचना।
● व्यापार और बेहतर आजीविका की तलाश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों की सुगम आवाजाही।
◆ वैश्वीकरण का जनक कौन है :-
● सन् 1992 में समाजशास्त्री राॅबर्टसन ने वैश्वीकरण (Globalization) का प्रयोग समाजशास्त्र में किया था। इसलिए समाजशास्त्री राॅबर्टसन को वैश्वीकरण का जनक माना जाता है।
◆ वैश्वीकरण के कारण :-
1.संचार व सूचना क्रांति
2. शीत युद्ध का अंत
3. पूँजीवाद का प्रभाव
★ वैश्वीकरण के गुण/लाभ अथवा महत्व
वैश्वीकरण एक विश्वव्यापी धारणा है, जिससे न केवल भारत वरन् सम्पूर्ण विश्व लाभान्वित हो रहा है। वैश्वीकरण के गुण/लाभ इस प्रकार हैं–
1. नवीन तकनीकों का आगमन
वैश्वीकरण द्वारा विदेशी पूँजी के निवेश मे वृद्धि होती है एवं नवीन तकनीकों का आगमन होता हैं, जिससे श्रम की उत्पादकता एवं उत्पाद की किस्म में सुधार होता है।
2. जीवन-स्तर में वृद्धि
वैश्वीकरण से जीवन-स्तर मे वृद्धि होती है, क्योंकि उपभोक्ता को पर्याप्त मात्रा मे उत्तम किस्म की वस्तुयें न्यूनतम मूल्य पर मिल जाती हैं।
3. विदेशी विनियोजन
वैश्वीकरण के विकसित राष्ट्र अपनी अतिरिक्त पूँजी अर्द्धविकसित एवं विकासशील राष्ट्रों मे विनियोग करते है। विदेशी पूँजी के आगमन से इन देशों का विनियोग बड़ी मात्रा मे हुआ है।
4. विदेशों मे रोजगार के अवसर
वैश्वीकरण से एक देश के लोग दूसरे देशों मे रोजगार प्राप्त करने मे सक्षम होते हैं।
5. विदेशी व्यापार मे वृध्दि
आयात-निर्यात पर लगे अनावश्यक प्रतिबन्ध समाप्त हो जाते है तथा संरक्षण नीति समाप्त हो जाने से विदेशी व्यापार मे पर्याप्त वृद्धि होती है।
6. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग मे वृध्दि
जब वैश्वीकरण अपनाया जाता है, तो आर्थिक सम्बंधों मे तो सुधार होता ही है, साथ ही राजनीतिक सम्बन्ध भी सुधरते है। आज वैश्वीकरण के कारण भारत के अमेरिका, जर्मनी एवं अन्य यूरोपीय देशों से सम्बन्ध सुधर रहे हैं।
7.तीव्र आर्थिक विकास
वैश्वीकरण से प्रत्येक राष्ट्र को अन्य राष्ट्रों से तकनीकी ज्ञान के आदान-प्रदान का अवसर मिलता है तथा विदेशी पूँजी का विनियोग बढ़ता है। इससे अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास होता है।
8. स्वस्थ औद्योगिक विकास
वैश्वीकरण से औद्योगिक क्षेत्र मे कई शासकीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाधायें दूर हो जाती है तथा विदेशी प्रतियोगिता का सामना करने के लिए देशी उद्योग अपने को सक्षम बनाने का प्रयास करते है। इससे देश मे स्वाथ्य औद्योगिक विकास होता Vaishvikaran Kise Kahate Hainहै। रूग्ण एवं घाटे मे चलने वाली इकाइयां भी अपना सुधार करने का प्रयास करती है।
9. विदेशी मुद्रा कोष मे वृद्धि
जिस राष्ट्र का उत्पादन श्रेष्ठ किस्म का, पर्याप्त मात्रा मे होता है, उसका निर्यात व्यापार तेजी से बढ़ता है। परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा कोष मे वृद्धि होती है एवं भुगतान सन्तुलन की समस्या का निदान होता है।
10. उत्पादकता मे वृद्धि
अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के कारण देश मे अपनी वस्तुओं की मांग बनाये रखने एवं निर्यात मे सक्षम बनने के लिए देशी उद्योग अपनी उत्पादकता एवं गुणवत्ता मे सुधार लाते है। भारत मे इलेक्ट्रॉनिक उद्योग, कार उद्योग, टेक्सटाइल उद्योग ने इस दिशा मे प्रभावी सुधार किया है।