क़ुतुबमीनार :- कुतूबतमीनार पाँच मंजिली इमारत है। क़ुत्बुउद्दीन ऐबक ने लगभग 1199 में इसका निर्माण करवाया था। शेष मंज़िलो का निर्माण 1229 के आस-पास इल्तुतमिश द्वारा करवाया गया। अभिलेखों की पट्टियाँ इसके पहले छज्जे के नीचे छोटे मेहराब तथा ज्यामितीय रूपरेखाओं द्वारा निर्मित नमूने को देखें।
ये अभिलेख अरबी में है।मीनार का बाहरी हिस्सा घुमावदार तथा कोणीय है। ऐसी सतह पर अभिलेख लिखने के लिए काफ़ी परिशुद्ता की आवश्यकता होती थी सर्वार्धिक योग्य कारीगर ही इस कार्य को संपन्न कर सकते थे।
आठवीं और अठारहवीं शताब्दियों :- के बीच राजाओं तथा उनके अधिकारियों ने दो तरह की इमारतें का निर्माण किया। पहली इस दुनिया – इमारतों को सुरक्षित , संरक्षित और दूसरी दुनिया में आराम-विराम की भव्य जगहें , महल तथा मकबरे थे।
दूसरी श्रेणी में , मंदिर मसजिद , हौज , कुँए , सातवीं और दसवीं शताब्दी के मध्य वास्तुकार भवनों में और अधिक कमरे , दरवाज़े और खिड़कियाँ बनाने लगे। छत , दरवाज़े और खिड़कियाँ अभी भी दो उद्धर्वाधर खभों के आर-पार एक अनुप्रस्थ शहतीर रखकर बनाए जाते थे।
वस्तुकला की यह शैली ‘ अनुप्रस्थ टोडा निर्माण ‘ कहलाई जाती है। आठवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच मंदिरों , मसजिदों , मकबरों तथा सीढ़ीदार कुओं ( बावली ) से जुड़े भवनों के निर्माण में इस शैली का प्रयोग हुआ।
बारहवीं शताब्दी में दो प्रौधोगिकीय एवं शैली संबंधी परिवर्तन दिखाई पड़ने लगते है -1. दरवाजों और खिड़कियों के ऊपर की अधिसरचना का भार कभी-कभी मेहराबों पर दाल दिया जाता था। वास्तुकला का यह ‘ चापाकार ‘ रूप था।
2.निर्माण कार्य में चूना-पत्थर , सीमेंट का प्रयोग बढ़ गया। उच्च श्रेणी की सीमेंट होती थी , जिसमें पत्थर के टुकड़ो के मिलाने से कंकरीट बनती थी। इसकी वजह से विशाल ढाँचों का निर्माण सरलता और तेज़ी से होने लगा। मंदिरो ,
मसजिदों और हौजों का निर्माण :- मंदिरो और मसजिदों का निर्माण बहुत सुंदर तरीके से किया जाता था क्योंकि वे उपासना के स्थल थे। वे अपने संरक्षक की शक्ति , धन-वैभव तथा भक्ति भाव का भी प्रदर्शन करते थे। उदाहरण के लिए , राजराजेश्वर मंदिर को लिया जा सकता है। एक अभिलेख से इस बात का संकेत मिलता है की इस मंदिर का निर्माण राजा राजदेव ने अपने देवता राजराजेस्वरम की उपासना हेतु किया था।
मुसलमान सुलतान तथा बादशाह स्वयं को भगवान के अवतार होने का दावा तो नहीं करते थे किंतु फ़ारसी दरबारी इतिहासों में सुलतान का वर्णन ‘ अल्लाह की परछाई ‘ के रूप में हुआ है। दिल्ली की एक मसजिद के अभिलेख से पता चलता है की अल्लाह ने अलाउद्दीन को शासक इसलिए चुना था , क्योंकि उसमें अतीत के महान विधिकर्ताओं मूसा और सुलेमान की विशिष्टताएँ मौजूद थी।
सुलतान इल्तुतमिश ने देहली-ए -कुहना के एकदम निकट एक विशाल तालाब का निर्माण करके व्यापक सम्मान प्राप्त किया। इस विशाल जलाशय को हौज-ए -सुल्तानी अथवा ‘ राजा का तालाब ‘ कहा जाता था।
बाग , मकबरे तथा किले :- मुग़लों के अधीन वास्तुकला और अधिक जटिल हो गई। बाबर , हुमायूँ , अकबर , जहाँगीर , और विशेष रूप से शाहजहाँ , साहित्य , कला और वास्तुकला में व्यक्तिगत रूचि लेते थे। अपनी आत्मकथा में बाबर ने औपचारिक बागों की योजनओं और उनके बनाने में अपनी रूचि का वर्णन किया है।
अकसर ये बाग दीवार से घिरे होते थे तथा चार समान हिस्सों में बँटे होने के कारण ये चारबाग कहलाते थे। चारबाग बनाने की परंपरा अकबर के समय से शरू हुई। कुछ सर्वाधिक सुंदर चरबागों को कश्मीर , आगरा और दिल्ली म जहाँगीर और शाहजहाँ ने बनवाया था।
अकबर के शासनकाल में कई तरह के वास्तुकलात्मक नवाचार हुए। हुमायूँ के मकबरे में सबसे पहली बार दिखने वाला केंद्रीय गुंबद ( जो बहुत ऊँचा था ) और ऊँचा मेहराबदार प्रवेशद्वार ( पिश्तक ) मुगल वास्तुकला के महत्वपूर्ण रूप बन गए।
हुमायूँ का मकबरा 1562-1571 के बीच निर्मित इस इमारत का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ था तथा इसके किनारे सफेद संगमरमर से बने थे। शाहजहाँ के शासनकला के दौरान मुगल वास्तुकला के विभन्न तत्व एक विशाल सदभावपूर्ण संश्लेषण में मिला गए। विशेष रूप से आगरा और दिल्ली में।
सर्वजनिक और व्यक्तिगत सभा हेतु समारोह कक्षों ( दिवान-ए -खास और दिवान-ए -आम ) की योजना बनाई जाती थी। शासन के आरंभिक वर्षों में शाहजहाँ की राजधानी आगरा थी। इस शहर में विश्ष्ट वर्गों ने अपने घरों का निर्माण यमुना नदी के तटों पर करवाया था। शाहजहाँ न अपने शासन की भव्यतम वास्तुकलात्मक उपलब्धि ताजमहल के नक्शे में नदी-तट-बाग की योजना अपनाई। आगरा का ताजमहल का निर्माण 1643 में पूरा हुआ।
क्षेत्र व साम्राज्य :- आठवीं व अठारहवीं शताब्दियों के बीच जब निर्माण संबंधी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई , तो विभन्न क्षेत्रों के बीच विचारों का भी पर्याप्त आदान-प्रदान हुआ। विशाल साम्राज्यों के निर्माण ने विभिन्न क्षेत्रों को उनके शासन के अधीन ला दिया
अध्याय 6 : नगर , व्यापारी और शिल्पीजन