अध्याय 4 : मुग़ल साम्रज्य

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मुग़ल शासक 

 

बाबर 1526-1530 :- 1526 में पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी एवं उसके अफ़गान समर्थकों को हराया 1527 में खानुवा में राणा सांग , राजपूत और उनके समर्थको को हराया और दिल्ली औरआगरा में मुग़ल नियंत्रण स्थापित किया।

हुमायूँ 1530-1540 :- पिता की वसीयत में एक प्रांत मिला शेर खान ने हुमायूँ को 1539 में चौसा में और 1540 में कन्नौज में पराजय किया। 1555 में दिल्ली पर पुन: कब्जा कर लिया।

अकबर 1556-1605 :- 13 वर्ष की अल्पायु में अकबर सम्राट बना। 1556 -1570 के मध्य मालवा और गोंडवाना में सैन्य अभियान चलाए और रणथम्भौर पर कब्जा कर लिया। 1570-1585 के मध्य सैनिक अभियान किया। गुजरात , बिहार , बंगाल , उड़ीसा में अभियान चलाए। 1585-1605 के मध्य अकबर के साम्राज्य का विस्तार किया।उत्तर-पश्चिम , कांधार , कश्मीर , काबुल , दक्क्न ,अहमदनगर।

जहाँगीर 1605 -1627 :- जहाँगीर ने अकबर के सैन्य अभियानों को आगे बढ़ाया। मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की। इसके बाद सिक्खों , अहोमों और अहमदनगर के खिलाफ अभियान चलाए गए , जो पूर्णत: सफल नहीं हुए।

शाहजहाँ 1627-1658 :- दक्क्न में सैन्य अभियान ,अहमदनगर के विरुद्ध अभियान जिसमें बुंदेलों की हर हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया। अहमदनगर को मुगलों के राज्य में मिला लिया गया।

औरंगज़ेब 1658-1707 :- उत्तर-पूर्व में अहोमों की पराजय हुई , मारवाड़ के राठौड़ राजपूतों ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया। इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीती और उत्तराधिकार के मसलों में मुगलों का हस्तक्षेप। मराठा सरदार , शिवाजी के विरुद्ध मुगल अभियान प्रांरभ में सफल रहे।

 

मुग़ल साम्राज्य :- सोलहवीं सदी के उत्तरार्ध से , इन्होंने दिल्ली और आगरा से अपने राज्य का विस्तार शुरू किया और सत्रहवीं शताब्दी में लगभग संपूर्ण महाद्वीप पर अधिकार प्राप्त कर लिया। उन्होंने प्रशासन के ढाँचे तथा शासन संबंधी जो विचार लागू किए , वे उनके राज्य के पतन के बाद भी टिके रहे। आज भारत के प्रधानमंत्री , स्वतंत्रता दिवस पर मुग़ल शासकों के निवासस्थान , दिल्ली के लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हैं।

 

मुग़ल कौन थे :- मुग़ल दो महान शासक वंशो के वंशज थे। माता की ओर से वे मंगोल शासक चंगेज़ खान जो चीन और मध्य एशिया के कुछ भागों पर राज करता था ,के उत्तराधिकारी थे। पिता की ओर से वे ईरान , इराक एवं वर्तमान तुर्की के शासक तैमूर ( जिसकी मृत्यु 1404 में हुई ) के वंशज थे। परंतु मुग़ल अपने को मुगल या मंगोल कहलवाना पसंद नहीं करते थे।

ऐसा इसलिए था , क्योंकि चंगेज़ से जुडी स्मृतियाँ सैकड़ो व्यक्तियों के नसंहार से संबंधित थीं। यही स्मृतियाँ मुग़लों के प्रतियोगियों उजबेगों से भी संबंधित थीं। दूसरी तरफ , मुग़ल , तैमूर के वंशज होने पर गर्व का अनुभव करते थे , ज़्यादा इसलिए क्योंकि उनके इस महान पूर्वज ने 1398 में दिल्ली पर कब्जा कर लिया था।

 

मुग़ल सैन्य अभियान :- प्रथम मुग़ल शासक बाबर ( 1526-1530 ) ने 1494 में फरघाना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया , तो उसकी उम्र केवल बारह वर्ष की थी। मंगोलो की दूसरी शाखा , उजबेगो के आक्रमण के कारण उसे अपनी पैतृक गद्दी छोड़नी पड़ी। अनेक वर्षों तक भटकने के बाद उसने 1504 में काबुल पर कब्जा कर लिया। उसने 1526 में दिल्ली के सुलतान इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराया और दिल्ली और आगरा को अपने कब्जे में कर लिया। सोलहवीं शताब्दी :- बाबर ने पहली बार पानीपत के लड़ाई में युद्धों में तोप और गोलाबारी का इस्तेमाल किया।

 

उत्तराधिकार की मुग़ल पंपराएँ :- मुग़ल ज्येष्ठाधिकार के नियम में विश्वास नहीं करते थे जिसमें ज्येष्ठ पुत्र अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकारी होता था। इसके विपरीत , उत्तराधिकार में वे सहदायाद की मुग़ल और तैमूर वंशों की प्रथा को अपनाते थे जिसमें उत्तराधिकार का विभाजन समस्त पुत्रों में कर दिया जाता था।

 

मुग़लों के अन्य शासकों के साथ संबंध :- मुग़लों ने उन शासकों के विरुद्ध लगातार अभियान किए , जिन्होंने उनकी सत्ता को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। जब मुग़ल शक्तिशाली हो गए तो अन्य कई शासकों ने स्वेच्छा से उनकी सत्ता स्वीकार कर ली। राजपूत इसका एक अच्छा उदाहरण हैं।अनेकों घराने में अपनी पुत्रियों के विवाह करके उच्च पद प्राप्त किए। परंतु मेवाड़ के सिसोदिया वंश ने लंबे समय तक मुग़लों की सत्ता को स्वीकार करने से इंकार करते रहे।

 

मनसबदार और जागीरदार :- मुग़लों की सेवा में आने वाले नौकरशाह ‘ मनसबदार ‘ कहलाए। ‘ मनसबदार ‘ शब्द का प्रयोग ऐसे व्यकितयों के लिए होता था , जिन्हें कोई मनसब यानि कोई सरकारी हैसियत अथवा पद मिलता था। यह मुग़लों द्वारा चलाई गई श्रेणी व्यवस्था थी ,

जिसके जरिए 1. पद ; 2. वेतन ; 3. सैन्य उत्तरदायित्व , निर्धारित किए जाते थे। पद और वेतन का निर्धारण जात की संख्या पर निर्भर था। जात की संख्या जितनी अधिक होती थी , दरबार में अभिजात की प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ जाती थी और उसका वेतन भी उतना ही अधिक होता था।

मनसबदार अपना वेतन राजस्व एकत्रित करने वाली भूमि के रूप में पाते थे , जिन्हें जागीर कहते थे और जो तकरीबन ‘ इक्ताओं ; के समान थीं। अंतिम वर्षों में औरंगजेब इन परिवर्तनों पर नियंत्रण नहीं रख पाया। इस कारण किसानों को अत्यधिक मुसिबतों का सामना करना पड़ा।

 

ज़ब्त और ज़मीदार :- मुग़लों की आमदनी का प्रमुख साधन किसानों की उपज से मिलने वाला राजस्व था। अधिकतर स्थानों पर किसान ग्रामीण कुलीनों यानि की मुखिया या स्थानीय सरदारों के माध्यम से राजस्व देते थे। समस्त मध्यस्थों के लिए , चाहे वे स्थानीय ग्राम के मुखिया हो या फिर शक्तिशाली सरदार हों ,

मुग़ल एक ही शब्द -ज़मीदार -का प्रयोग करते थे। अकबर के राजस्वमंत्री टोडरमल ने दस साल ( 1570-1580 ) की कालावधि के लिए कृषि की पैदावार , कीमतों और कृषि भूमि का सावधनीपूर्वक सर्वेक्षण किया इन आँकड़ो के आधार पर , प्रत्येक फ़सल पर नकद के रूप में कर ( राजस्व ) निश्चित कर दिया गया। प्रत्येक सूबे ( प्रांत ) को राजस्व मंडलो में बाँटा गया और प्रत्येक की हर फ़सल के लिए राजस्व दर की अलग सूची बनायी गई। राजस्व प्राप्त करने की इस व्यवस्था को ‘ ज़ब्त ‘ कहा जाता था।

 

 

अकबर :- अकबर के शासनकाल का इतिहास को तीन जिल्दों में लिखा है ‘‘ अकबरनामा ” 1.अकबर के पूर्वजों का बयान है। 2. अकबर के शासनकाल की घटनाओं का विवरण देती है। 3. आईने-अकबरी है जिसमें अकबर के प्रशासन , घराने , सेना , राजस्व , और साम्राज्य के भूगोल का ब्यौरा मिलता है।

 

अकबर की नीतियाँ :- अबुल फ़जल के अकबरनामा , विशेषकर आईने-अकबरी में मिलता है। साम्राज्य की प्रांतों में बँटा हुआ था , जिन्हें ‘ सूबा ‘ कहा जाता था। सूबों के प्रशासक ‘ सूबेदार ‘ कहलाते थे , जो राजनैतिक तथा सैनिक , दोनों प्रकार के कार्यों का निर्वाह करते थे।

प्रत्येक प्रांत में एक वित्तीय अधिकारी भी होता था जो ‘ दिवान ‘ कहलाता था। कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सूबेदार को अन्य अफसरों का सहयोग प्राप्त था , जैसे कि बक्शी ( सैनिक वेतनधिकारी ) , सदर ( धार्मिक और धर्माथ किए जाने वाले कार्यों का मंत्री ) ,

फ़ौजदार ( सेनानायक ) और कोटवाल ( नगर का पुलिस अधिकारी ) का अबुल फ़जल ने सुलह-ए -कुल के इस विचार पर आधारित शासन-दृष्टि बनाने में अकबर की मदद की

 

 

 

अध्याय 5 : शासक और इमारते