अध्याय 10 : अठारहवी शताब्दी में नए राजनितिक गठन 

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अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान उपमहाद्वीप में कुछ विशेष रूप से उल्लेखनीय घटनाएँ घटी। एक अन्य शक्ति यानि ब्रिटिश सत्ता ने पूर्वी भारत के बड़े-बड़े हिस्सों को सफलतापूर्वक हड़प लिया था। अठारहवीं शताब्दी में नए राज्यों का गठन हुआ।

 

मुग़ल साम्राज्य :- परवर्ती मुगलों के लिए लिए सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में उसके सामने तरह-तरह के संकट खड़ा होने लगा था। ऐसा अनेक कारणों से हुआ। बादशाह औरंगज़ेब ने ढक्कन में लंबी लड़ाई लड़ते हुए साम्राज्य के सैन्य और वित्तीय संसाधनों को बहुत अधिक खर्च कर दिया था।

साम्राज्य के प्रशासन की कार्य-कुशलता समाप्त होने लगी सूबेदार के रूप नियुक्त अभिजात अक्सर राजस्व और सैन्य प्रशासन ( दीवानी एवं फौजदारी ) दोनों कार्यालयों पर नियंत्रण रखते थे। धीरे-धीरे सूबेदार ने प्रांतो पर अपना नियंत्रण कायम किया और राजनैतिक व

आर्थिक सत्ता , प्रांतीय सूबेदारों , स्थानीय सरदारों व अन्य समूहों के हाथों में आ रही थी , औरंगजेब के उत्तराधिकारी इस बदलाव को रोक न सके।इसी दौरान ईरान के शासक नादिरशाह और अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली उत्तरी भारत पर आक्रमण किया।

 

 

नए राज्यों का उदय :- मुग़ल सम्राटो की सत्ता के पत्तन के साथ-साथ बड़े प्रांतो के सूबेदारों और बड़े जमीदारों ने उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में अपनों शक्ति और प्रबल बना ली। 1. अवध , बंगाल , हैदराबाद जैसे राज्य जो पहले मुगल प्रांत थे। 2. राजपूत प्रदेश शामिल थे। 3. मराठों , सिक्खों , तथा जाटों के राज्य आते हैं।

 

पुराने मुग़ल प्रांत :- पुराने मुग़ल प्रांतो से जिन ‘ उत्तराधिकारी ‘ राज्यों का उद्भव हुआ उनमें से तीन राज्य प्रमुख थे।

1. हैदराबाद :- निजाम-उल-मुल्क आसफ़ जाह ( 1724-1748 ) , जिसने हैदराबाद राज्य की स्थापना की थी ; मुग़ल बादशाह फ़र्रुख़सियर के दरबार का एक अत्यंत शक्तिशाली सदस्य था। उसे सर्वप्रथम अवध की सूबेदारी सौंपी गई थी , और बाद में उसे दक्कन का कार्यभार दे दिया गया था। और राजनीतिक और वित्तीय प्रशासन पर पूरा नियत्रंण था।

2. अवध :- बुरहान-उल -हक सआदत खान को 1722 में अवध का सूबेदार नियुक्त किया गया था। मुगल साम्राज्य का विघटन होने पर जो राज्य बने , उनमें यह राज्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राज्यों म से एक था। अवध एक समृद्धिशाली प्रदेश था , जो गंगानदी के उपजाऊ मैदान में फैला हुआ था। बुरहान-उल-हक ने भी अवध की सूबेदारी , दीवानी और फ़ौजदारी एक साथ अपने हाथ में ले ली और सूबे के राजनीतिक , वित्तीय और सैनिक मामलों का एकमात्र कर्ताधर्ता बन गया।

3. बंगाल :- मुर्शीद कुली खान के नेतृत्व में बंगाल धीरे-धीरे मुगल नियंत्रण से अलग हो गया। मुर्शीद कुली खान बंगाल के नायब थे , यानि की प्रांत के सूबेदार के प्रतिनियुक्त थे। और राज्य के राजस्व प्रशासन पर अपना नियंत्रण जमाया।

 

 

राजपूतो की वतन जागीरी :- बहुत-से राजपूत घराने विशेष रूप से अंबर और जोधपुर के राजघराने मुगल व्यवस्था में विशिष्टता के साथ सेवारत रहे थे। बदले में उन्हें अपनी वतन जागीरें पर पर्याप्त स्वायत्तता का आनंद लेने की अनुमति मिली हुई थी।

आज़ादी हासिल करना :-

1.सिक्ख :- सत्रहवीं शताब्दी के दौरान सिक्ख एक राजनैतिक समुदाय के रूप में गठित हो गए। इससे पंजाब के क्षेत्रीय राज्य-निर्माण को बढ़ावा मिला। गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना से पूर्व और उसके पश्चात राजपूत व् मुगल शासको के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ी।

अठारहवीं शताब्दी में कई योग्य नेताओं के नेतृत्व में सिक्ख ने अपने-आपको पहले ‘ जत्थों ‘ में और बाद में ” मिस्लो ‘ ‘ में संगठित किया इन जत्थो और मिस्लो की संयुक्त सेनाएँ ‘ दल खालसा ‘ कहलाती थी।

2 . मराठा :- मराठा राज्य एक अन्य शक्तिशाली क्षेत्रीय राज्य था , जो मुगल का लगातार विरोध करके उतपन्न हुआ था। शिवाजी ( 1627-1680 ) ने शक्तिशाली योद्धा परिवारों की सहायता से एक स्थायी राज्य की स्थापना की। शिवाजी ने प्रायद्वीप मुगलो को चुनौती देने के लिए इस सैन्य-बल का प्रयोग किया। शिवाजी की मृत्यु के पश्चात ‘ पेशवा ‘ अपनी सेवाएँ देते रहे।

3.जाट :- जाटों ने भी सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दियों में अपनी सत्ता सुद्ढ़ की दिल्ली और आगरा के आसपास के अभिरक्षक बन गए। पानीपत तथा बल्ल्भगढ़ शहर व्यापारिक केंद्र बन गए। सूरजमल के राज्य में भरतपुर शक्तिशाली राज्य के रूप रूप में उभरा।