अध्याय 4- वायु

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 वायु :- हमारी पृथ्वी ओर से वायु की घनी चादर से घिरी हुई , जिसे वायुमंडल कहते हैं।

 

वायुमंडल का संघटन :- जिस वायु का उपयोग हम साँस लेने के लिए करते हैं , वास्तव में वह अनेक गैसों का मिश्रण होती है। नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन ऐसी दो गैसों हैं , जिनसे वायुमंडल का बड़ा भाग बना है। 

1. नाइट्रोजन -78% 2. ऑक्सीजन -21% 3.आर्गान – 0.093% 4.कार्बन डाइऑक्साइड 0.03% अन्य सभी 0.04%

 

1.नाइट्रोजन , वायु में सर्वाधिक पाई जाने वाली गैस है। जब हम साँस लेते हैं तब फेफड़ो में कुछ नाइट्रोजन भी ले जाते हैं और फिर उसे बाहर बाहर निकाल देते हैं। परंतु पौधों को अपने जीवन के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है।

 

2. ऑक्सीजन वायु में प्रचुरता से मिलने वाली दूसरी गैस है। मनुष्य तथा पशु साँस लेने में वायु में ऑक्सजीन प्राप्त करते हैं। हरे पादप , प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं।

 

3. कार्बन डाइऑक्साइड अन्य महत्वपूर्ण गैस है। हरे पादप अपने भोजन के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग करते हैं और ऑक्सीजन वापस देते हैं।

मनुष्य और पशु कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं। मनुष्यों तथा पशुओं द्वारा बाहर छोड़ी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पादपों द्वारा प्रयोग की जाने वाली गैस के बराबर होती है जिससे संतुलन बना रहता है।

 

4. आर्गान एक रासायनिक तत्व है / यह एक निष्क्रिय गैस है।कुछ अन्य गैस भी है हीलियम , हाइट्रोजन आदि

 

वायुमंडल की सरचंना :- हमारा वायुमंडल पाँच परतों में विभाजित है , जो पृथ्वी की सतह से आरंभ होती है ये है –

 

1.क्षोभमंडल :- यह परत वायुमंडल की सबसे महत्वपूर्ण परत है। इसकी औसत ऊँचाई 13 किलोमीटर है। हम इसी मंडल में मौजूद वायु में साँस लेते है। मौसम की लगभग सभी घटनाएँ जैसे – वर्षा , कुहरा , एवं ओलावर्षण इसी परत के अंदर होती है।

 

2.समतापमंडल :- क्षोभमंडल के ऊपर का भाग समताप मंडल कहलाता है। यह लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैला है। यहाँ की परिस्थितियाँ हवाई जहाज़ उड़ाने के लिए आदर्श होती हैं। इसमें ओज़ोन गैस की परत होती है। यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक गैसों से हमारी रक्षा करती है।

 

3.मध्यमंडल :यह वायुमंडल की तीसरी परत है। यह समताप मंडल के ठीक ऊपर होती है। यह लगभग 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैली है। अंतरिक्ष से प्रवेश करने वाले पिंड इस परत में आने पर जल जाते हैं।

 

4. बाह्य वायुमंडल :- बाह्य वायुमंडल में बढ़ती ऊँचाई के साथ तापमान अत्यधिक तीव्रता से बढ़ता है। आयन मंडल इस परत का भाग है। यह 80 से 400 किलोमीटर तक फैला है। रेडियो संचार के लिए इस परत का उपयोग होता है। वास्तव में पृथ्वी से प्रसारित रेडियो तरंगें इस परत द्वारा पुन: पृथ्वी पर प्रवतर्तित कर दी जाती है।

 

5.बहिर्मंडल :- वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत को बहिर्मंडल के नाम से जाना जाता है। यह वायु की पतली परत होती है। हल्की गैसें जैसे – हीलियम एवं हाइड्रोजन यहीं से अंतरिक्ष में तैरती हैं।

 

मौसम एवं जलवायु :- मौसम , वायुमंडल की प्रत्येक घंटे तथा दिन-प्रतिदिन की स्थिति होती है। मौसम नाटकीय रूप से दिन-प्रतिदिन बदलता है। जलवायु दीर्घ काल में किसी स्थान का औसत मौसम , उस स्थान की जलवायु बताता है।

 

तापमान :– वायु में मौजूद ताप एवं शीतलता के परिमाण को तापमान कहते हैं। वायुमंडल का तापमान ऋतुओं के अनुसार भी बदलता है।:

 

आतपन :- सूर्य से आने वाली वह ऊर्जा जिसे पृथ्वी रोक लेती है , आतपन कहलाती है।

आतपन ( सूर्यातप ) की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर घटती है। इसलिए ध्रुव बर्फ़ से ढँके हुए है।

इसी कारण नगर के भीड़ वाले ऊँचे भवन गर्म वायु को रोक लेते हैं , जिससे नगरों का तापमान बढ़ जाता है।

गाँवों की अपेक्षा नगरों का तापमान बहुत अधिक होता है।

दिन के समय में ऐसाफेल्ट से बनी सड़के एवं धातु और कंक्रीट से बने भवन गर्म हो जाते हैं।

रात के समय यह ऊष्मा मुक्त हो जाती है।

 

वायु दाब :-पृथ्वी की सतह पर वायु के भार द्वारा लगाया गया दाब , वायु दाब कहलाता है। वायु हमारे शरीर पर उच्च दाब के साथ बल लगाती है। किंतु हम इसका अनुभव नहीं करते यह इसलिए होता है , क्योंकि वायु का दाब हमारे ऊपर सभी दिशाओं से लगाता है , और हमारा शरीर विपरीत बल लगाता है।

वायुमंडल में ऊपर की और जाने पर वायु  पर दाब तेज़ी से गिरने लगता है।

समुद्र स्तर पर वायु दाब का क्षैतिज विवरण किसी स्थान पर उपस्थित वायु के तप द्वारा प्रभावित होता है।

वायु सदैव उच्च दाब से निम्न दाब क्षेत्र की और गमन करती है।

 

पवन :- उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर वायु की गति को ‘ पवन ‘ कहते हैं। पवन के प्रकार –

1.स्थायी पवनें :- व्यापारिक पश्चिमी एवं पूर्वी पवनें हैं। ये वर्षभर लगातार निश्चित दिशा में चलती हैं।

2. मौसमी पवनें :– ये पवनें विभन्न ऋतुओं में अपनी दिशा बदलती रहती है। उदाहरण के लिए -भारत में मानसूनी पवनें। भारत में मानसूनी पवनें।

3. स्थानीय पवनें :- ये पवनें किसी छोटे क्षेत्र में वर्ष या दिन के किसी विशेष समय में चलती हैं। उदाहरण के लिए -स्थल एवं समुद्री समीर। भारत के उत्तरी क्षेत्र की गर्म एवं शुष्क स्थानीय पवनो को ‘लू ‘ कहते है।

 

आर्द्रता :- वायु में किसी भी समय जलवाष्प मात्रा को ‘आर्द्रता ‘कहते है।

जब वायु में जलवाष्प की मात्रा अत्यधिक होती है , तो उसे आर्द्र कहते है।

जब वायु में जलवाष्प की मात्रा कम होती है , तो उसे शुष्क कहते है।

जब जलवाष्प ऊपर उठता है , तो यह ठंडा होना शुरू हो जाता है। जलवाष्प संघनित होकर जल की बूँद बनाते। बादल इन्हीं जल बूँदो का ही एक समूह होता है। जब जल की ये बूँदे इतनी भारी हो जाती हैं कि वायु में तैर न सके ,तब ये वर्षण के रूप में नीचे आ जाती हैं।

 

वर्षा – पृथ्वी पर जल के रूप में गिरने वाला वर्षण , वर्षा कहलाता है।

ज़्यादातर भौम जल , वर्षा जल से ही प्राप्त होता है।

क्रियाविधि आधार पर वर्षा के तीन प्रकार होते है : संवहनी वर्षा , पर्वतीय वर्षा एवं चक्रवाती वर्षा।

 

अध्याय 5 – जल