व्यापर और व्यापारियों के बारे में जानकारी :- दक्षिण भारत सोना , मसाले , काली मिर्च तथा कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था। काली मिर्च की रोमन साम्राज्य में इतनी माँग थी की ऐसे ‘ काले सोने ‘ के नाम से बुलाते थे। व्यापारी इन सामानों को समुद्री जहाज़ों और सड़को के रस्ते रोम पहुँचाते थे।
दक्षिण भारत में ऐसे अनेक रोमन सोने के सिक्के मिले। रोम में व्यापर चल रहा था। व्यापारियों ने कई समुद्री रास्ते खोज निकाले। इनमें से कुछ समुद्र के किनारे चलते कुछ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी पार करते थे।अफ़्रीका या अरब के पूर्वी तट से इस उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहुँचना चाहते थे तो दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ चलना पसंद करते थे। समुद्र तटों से लगे
राज्य :- इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में बड़ा तटीय प्रदेश है। इनमें बहुत-से पहाड़ , पठार और नदी के मैदान हैं। नदियों के मैदानी इलाकों में कावेरी का मैदान सबसे उपजाऊ है।
संगम मुवेन्दार :- तमिल शब्द जिसका अर्थ तीन मुखिया –चोल , चेर , तथा पाण्ड्य जो करीब 2300 साल पहले दक्षिण भारत में काफी शक्तिशाली माने जाते थे। इन सबके दो-दो सत्ता केंद्र थे। इनमें से एक तटीय हिस्से में और दूसरा अंदरूनी हिस्से में था।
इस तरह छह केंद्रों में से दो बहुत महत्वपूर्ण थे। एक चोलो का पत्तन पुहार या कवेरीपट्टीनम , दूसरा पांडयों की राजधानी मदुरै। ये मुखिया लोगों से नियमित क्र के बजाय उपहारों की माँग करते थे। इसके लगभग 200 वर्षों के बाद पश्चिम भारत में सातवाहन नामक राजवंश का प्रभाव बढ़ गया। सातवाहनों का सबसे प्रमुख राजा गौतमी पुत्र श्री सातकर्णी था। उसके बारे में हमें उसकी माँ , गौतमी बलश्री द्वारा दान किये गए अभिलेख से पता चलता है।
रेशम मार्ग की कहानी :- कीमती , चमकीले रंग , और चिकनी , मुलायम बनावट की वजह से रेशमी कपड़े अधकांश समाज में बहुमूल्य मने जाते हैं। रेशमी कपड़ा तैयार करना एक जटिल प्रक्रिया है। रेशम के कीड़े से कच्चा रेशम निकालकर , सूत कताई , और फिर उससे कपड़ा बना जाता है। रेशम बनाने की तकनीक का अविष्कार सबसे पहले चीन में करीब 7000 साल पहले हुआ।
इस तकनीक को उन्होंने हज़ारों साल तक बाकी दुनिया से छुपाए रखा। चीनी यात्री जिस रास्ते से यात्रा करते थे वह रेशम मार्ग (सिल्क रुट) के नाम से प्रसिद्ध हो गया। चीनी शासक ईरान और पश्चिमी एशिया के शासको को उपहार के तौर पर रेशमी कपड़े भेजते थे। 2000 साल पहले रोम के शासको और धनी लोगों के बिच रेशमी कपड़े पहनना एक फ़ैशन बन गया। सिल्क रूट पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में कुषाण थे।
बौद्ध धर्म का प्रसार :- कुषाणों का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क था। उसने करीब 1900 साल पहले शासन किया। उसने एक बौद्ध परिषद का गठन किया , जिसमें एकत्र होकर विद्वान महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श करते थे। बुद्ध की जीवनी बुद्धचरित्र के रचनाकार कवि अश्वघोष , कनिष्क के दरबार में रहते थे अश्वघोष तथा अन्य बौद्ध विद्वानों ने अब संस्कृत में लिखना शुरू कर दिया था।
बौद्ध धर्म में महायान का विकास :- पहला मूर्तियों में बुद्ध की उपस्थिति , निर्वाण प्राप्ति को पेड़ की मूर्ति द्वारा दर्शाया जाता था , बुद्ध की प्रतिमाएँ। मथुरा और तक्षशिला में बनाई जाने लगीं। दूसरा परिवर्तन बोधिसत्व में आस्था को लेकर आया बोधिसत्व -जो ज्ञान प्राप्ति के बाद एकांत वास करते हुए ध्यान साधना कर सकते थे।
लेकिन वे लोगो को शिक्षा देने और मदद करने के लिए सांसारिक परिवेश में ही रहना ठीक समझने लगे।बौद्ध धर्म पुरे मध्य एशिया , चीन , कोरिया , जापान तक फैल गई। दक्षिण-पूर्व की ओर श्रीलंका , म्यांमार , थाइलैंड , इंडोनेशिया तक फ़ैल गया।
तीर्थयात्री :- भारत की यात्रा पर आया चीनी बौद्ध तीर्थयात्री ‘ फा-शिएन ‘ काफी प्रसिद्ध है। 1600 साल पहले आया। ह्वेन त्सांग 1400 साल पहले भारत आया। और उसके बाद इत्सिंग 50 साल पहले आया।
भक्ति की शुरुआत :- देवी-देवताओं की पूजा का चलन शुरू हुआ जिससे हिन्दू धर्म की प्रमुख पहचान बन गयी। इनमें शिव , विष्णु और दुर्गा जैसे देवी-देवता शामिल हैं। भक्ति मार्ग की चर्चा हिन्दुओं के पवित्र गंन्थ ‘ भगवदगीता ‘ में की गई है।