अध्याय 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया / Printing Culture and the Modern World

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शुरुआत छपी किताबें यूरोप में मुद्रण का आना मुद्रण क्रांति पढ़ने का जुनून भारत का मुद्रण संसार धार्मिक सुधार प्रकाशन प्रिंट

 

 ★ मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया :-

● प्रिंट टेक्नॉलोजी का विकास सबसे पहले चीन, जापान और कोरिया में हुआ।

● चीन में 594 इसवी के बाद से ही लकड़ी के ब्लॉक पर स्याही लगाकर उससे कागज पर प्रिंटिंग की जाती थी।

● अब व्यापारी भी रोजमर्रा के दैनिक जीवन में छ्पाई का इस्तेमाल करने लगे। इससे व्यापार से जुड़े हुए आँकड़े रखना आसान हो जाये।

● अब व्यापारी भी रोजमर्रा के जीवन में छपाई का इस्तेमाल करने लगे ताकि व्यापार से जुड़े हुए आँकड़े रखना आसान हो जाये। कहानी, कविताएँ, जीवनी, आत्मकथा, नाटक आदि भी छपकर आने लगे।

 

 

 ★ यूरोप में प्रिंट का आना :-

● मार्को पोलो जब 1295 में चीन से लौटा तो अपने साथ ब्लॉक प्रिंटिंग की जानकारी लेकर आया। इस तरह इटली में प्रिंटिंग की शुरुआत हुई।

● उसके बाद प्रिंट टेक्नॉलोजी यूरोप के अन्य भागों में भी फैल गई।

● कुलीन और रईस लोगों के लिए किताब छापने के लिए वेलम का इस्तेमाल होता था।

● पंद्रह सदी के शुरुआत तक यूरोप में तरह तरह के सामानों पर छपाई करने के लिए लकड़ी के ब्लॉक का जमकर इस्तेमाल होने लगा।

●इससे हाथ से लिखी हुई किताबें लगभग गायब ही हो गईं।

 

 

★ गुटेनबर्ग का प्रिंटिंग प्रेस :-

● गुटेनबर्ग के प्रिंटिंग प्रेस ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी।

● उसे सोने के जेवर बनाने में भी महारत हासिल थी और वह लेड के साँचे भी बनाता था

● जिनका इस्तेमाल सस्ते जेवरों को ढ़ालने के लिए किया जाता था इस तरह से गुटेनबर्ग के पास हर वह जरूरी ज्ञान था जिसका इस्तेमाल करके उसने प्रिंटिंग टेक्नॉलोजी की और बेहतर बनाया।

◆ उसने जैतून के प्रेस को अपने प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल बनाया। उसने अपने साँचों का इस्तेमाल करके छापने के लिए अक्षर बनाये।

● 1448 इसवी तक गुटेनबर्ग ने अपने प्रिंटिंग प्रेस को दुरुस्त बना लिया था। उसने अपने प्रेस में सबसे पहले बाइबिल को छापा।
शुरु शुरु में छापने वाली किताबें डिजाइन के मामले पांडुलिपि जैसी ही लगती थीं।

● उसके बाद 1450 से 1550 के बीच के एक सौ सालों में यूरोप के अधिकाँश हिस्सों में प्रेस लगाये गये।

● प्रिंट उद्योग में इतनी अच्छी वृद्धि हुई कि पंद्रहवीं सदी के उत्तरार्ध्र में यूरोप के बाजारों में लगभग 2 करोड़ किताबें छापी गईं।

● सत्रहवीं सदी में यह संख्या बढ़कर 20 करोड़ हो गई।
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★ प्रिंट क्राँति :-

● प्रिंट टेक्नॉलोजी के आने से पाठकों का एक नया वर्ग उदित हुआ।

● अब आसानी से किसी भी किताब की अनेक कॉपी बनाई जा सकती थी, इसलिये किताबें सस्ती हो गईं। इससे पाठकों की बढ़ती संख्या को संतुष्ट करने में काफी मदद मिली।

● अब किताबें सामान्य लोगों की पहुँच में आ गईं। इससे पढ़ने की एक नई संस्कृति का विकास हुआ।

● बारहवीं सदी के यूरोप में साक्षरता का स्तर काफी नीचे था।
प्रकाशक ऐसी किताबें छापते थे जो अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सकें।

● लोकप्रिय गीत, लोक कथाएँ और अन्य कहानियों को इसलिए छापा जाता था ताकि अनपढ़ लोग भी उन्हें सुनकर ही समझ लें।

● पढ़े लिखे लोग इन कहानियों को उन लोगों को पढ़कर सुनाते थे जिन्हें पढ़ना लिखना नहीं आता था।

 

 

 ★ धार्मिक विवाद :-

● प्रिंट के आने से नये तरह के बहस और विवाद को अवसर मिलने लगे।

● धर्म के कुछ स्थापित मान्यताओं पर सवाल उठने लगे। पुरातनपंथी लोगों को लगता था कि इससे पुरानी व्यवस्था के लिए चुनौती खड़ी हो रही थी।

● ईसाई धर्म की प्रोटेस्टैंट क्राँति भी प्रिंट संस्कृति के कारण ही संभव हो पाई थी।

● धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाने वाले नये विचारों से रोम के चर्च को परेशानी होने लगी।

● 1558 के बाद तो चर्च ने प्रतिबंधित किताबों की लिस्ट भी रखनी शुरु कर दी।

 

 

★ पढ़ने का जुनून :-

● सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में यूरोप में साक्षरता के स्तर में काफी सुधार हुआ।

● अठारहवीं सदी के अंत तक यूरोप के कुछ भागों में साक्षरता का स्तर तो 60 से 80 प्रतिशत तक पहुँच चुका था।

● साक्षरता बढ़ने के साथ ही लोगों में पढ़ने का जुनून पैदा हो गया।

● किताब की दुकान वाले अकसर फेरीवालों को बहाल करते थे।

● ऐसे फेरीवाले गाँवों में घूम घूम कर किताबें बेचा करते थे। पत्रिकाएँ, उपन्यास, पंचांग, आदि सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें थीं।

● छपाई के कारण वैज्ञानिकों और तर्कशास्त्रियों के नये विचार और नई खोज सामान्य लोगों तक आसानी से पहुँच पाते थे।

● किसी भी नये आइडिया को अब अधिक से अधिक लोगों के साथ बाँटा जा सकता था और उसपर बेहतर बहस भी हो सकती थी।

 

 

 ★ उन्नीसवीं सदी :-

● उन्नीसवीं सदी में यूरोप में साक्षरता में जबरदस्त उछाल आया। इससे पाठकों का ऐसा नया वर्ग उभरा जिसमें बच्चे, महिलाएँ और मजदूर शामिल थे।
बच्चों की कच्ची उम्र और अपरिपक्व दिमाग को ध्यान में रखते हुए उनके लिये अलग से किताबें जाने लगीं। कई

● लोककथाओं को बदल कर लिखा गया ताकि बच्चे उन्हें आसानी से समझ सकें।
कई महिलाएँ पाठिका के साथ साथ लेखिका भी बन गई और इससे उनका महत्व और बढ़ गया।

● किराये पर किताब देने वाले पुस्तकालय सत्रहवीं सदी में ही प्रचलन में आ गये थे।
अब उस तरह के पुस्तकालयों में व्हाइट कॉलर मजदूर, दस्तकार और निम्न वर्ग के लोग भी अड्‌डा जमाने लगे।

 

 

★ तकनीकी परिष्कार व मुद्रण :-

● 18वीं शताब्दी के आखिर तक प्रेस धातु से बनने लगे थे।

● 17वीं सदी से ही किराए पर पुस्तकें देने वाले पुस्तकालय अस्तित्व में आ चुके थे।

● 19वीं शताब्दी के मध्य तक न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम. हो. ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस का निर्माण किया।

● 19वीं सदी में ही पत्रिकाओं ने उपन्यासों को धारावाहिक के रूप में छापकर लिखने की एक विशेष शैली को जन्म दिया

 

 

 

★ भारत का मुद्रण संसार :-

● भारत में प्राचीन काल से ही संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की

● प्राचीन एवं समृद्ध परम्परा थी।
पाण्डुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनायी जाती थीं।

● भारत में सर्वप्रथम प्रिंटिंग प्रेस गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ आया था।

● कैथोलिक पुजारियों ने सर्वप्रथम 1579 ई. में कोचीन में प्रथम तमिल पुस्तक तथा 1713 ई. में मलयालम पुस्तक छापी।

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