बिहार का मध्यकालीन इतिहास
बिहार का मध्यकालीन इतिहास दो वर्गों में बाँटा गया है-पूर्व मध्यकाल (8वीं से 12वीं शताब्दी) और मध्यकाल (12वीं से 18वीं शताब्दी) ।
❍ पूर्व मध्यकाल में बिहार
पूर्व मध्यकाल में पाल शासकों का उदय उत्तर भारत में हर्षवर्धन व बंगाल क्षेत्र में शंशाक के पतन के पश्चात् बिहार-बंगाल क्षेत्र में शक्तिशाली वंश के रूप में हुआ था। पाल वंश के पश्चात् मिथिला के कर्नाट वंश का उदय हुआ।
∆ पाल वंश
पाल वंश के शासकों का वर्णन निम्न प्रकार हैं
○ गोपाल
• पाल वंश का संस्थापक गोपाल था। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। वह एक निर्वाचित शासक था, जिसे आम जनता तथा ने सामंतों चुना था।
• गोपाल का शासनकाल 750 से 770 ई. तक था।
• गोपाल ने ओदन्तपुरी अर्थात् वर्तमान बिहारशरीफ में एक मठ तथा विश्वविद्यालय का निर्माण कराया।
• गोपाल ने इस वंश का शासन बिहार तक विस्तृत किया।
○ धर्मपाल
• गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल 770 ई. में शासक बना। धर्मपाल ने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया।
• कन्नौज पर आधिपत्य जमाने हेतु होने वाले त्रिपक्षीय संघर्ष में धर्मपाल ने भाग लिया।
• धर्मपाल ने कन्नौज पर जीत के उपरान्त उत्तरापथस्वामिन् की उपाधि धारण की।
• धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा सोमपुर महाविहार की स्थापना की तथा नालन्दा विश्वविद्यालय को 200 गाँव दानस्वरूप दिए थे।
○ देवपाल
• इसने मुंगेर को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया।
• देवपाल ने विस्तारवादी नीति अपनाई तथा पूर्वोत्तर में प्राग्यज्योतिषपुर, उत्तर में नेपाल और पूर्वी सागर तट पर उड़ीसा में अपनी सत्ता का विस्तार किया।
• इन्होंने कन्नौज के संघर्ष में भाग लिया, पालय इसके बारे में यात्री सुलेमान ने महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है।
• जावा के शासक बलदेवपुत्र के अनुरोध पर देवपाल ने पाँच गाँवों का अनुदान नालंदा के एक विहार की देख-रेख हेतु दिया था।
○महिपाल प्रथम
• देवपाल के बाद पाल वंश का पतन शुरू हुआ। इसके पश्चात् 988 ई. में महिपाल शासक बना, जिसे पाल वंश का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है।
• 1023 ई. में महिपाल को चील शासक राजेन्द्र बोल से युद्ध करना पड़ा, जिसमें से महिपाल की पराजय हुई। 1038 ई. में महिपाल की मृत्यु के साथ ही पाल वंश का पतन हो गया।
• पाल वंश के काल में ही सोमपुर, महादिहार ओदन्तपूरी तथा विक्रमशिला में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई।
• विक्रमशिला महाविहार तथा सोमपुर महाबिहार की स्थापना धर्मपाल ने, जबकि मोदन्तपुरी महाविहार की स्थापना देवपाल की थी।
• पाल वंश के काल में ही बौद्ध विद्वान् शान्त रक्षित एवं अतिशा दीपांकर तिब्बत गए थे।
○ रामपाल
• यह पाल वंश का अन्तिम शासक था। इसकी मृत्यु के पश्चात् गहड़वालों ने बिहार में शाहाबाद और गया तक अपने राज्य का विस्तार किया।
• संध्याकार नन्दी की रचना रामचरित्र रामपाल से ही सम्बन्धित है।
• ग्यारहवीं शताब्दी के अन्त तक पालों की सत्ता बिहार में पतनशील हो गई थी।
• रामपाल के शासन में ही 1097-98 ई. में तिरहुत (मिथिला) के फर्नाट राज्य का उदय हुआ।
मिथिला के कर्नाट शासक
• मध्यकालीन बिहार में इस वंश का संस्थापक नान्यदेव था। इसकी चर्चा एक महान् शासक के रूप में होती है। इनका पुत्र गंगदेव एक योग्य प्रशासक था।
• मिथिला की राजधानी सिमराँवगढ़ थी, जो अब नेपाल तराई के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित ‘बीरगंज’ के रूप में ज्ञात है।
• बाद में कर्नाट वंश की राजधानी ‘कमलादित्य स्थान’ में बनाई गई, जिसे अंधराठाड़ी (मधुबनी) के रूप में जाना जाता है।
• कर्नाट शासकों के काल को मिथिला का स्वर्ण युग भी कहा जाता है।
• कर्नाट वंश का एक अन्य प्रमुख शासक नरसिंह देव था। इसका अधिकार तिरहुत और दरभंगा क्षेत्र तक फैला हुआ था।
• गयासुद्दीन तुगलक के बंगाल अभियान के दौरान उत्तरी बिहार (तिरहुत) का शासक हरिसिंह देव था। यह कर्नाट वंश का अन्तिम शासक था। उसने मिथिला में ‘पंजी-व्यवस्था’ आरम्भ की।
• हरिसिंह देव एक महान् समाज सुधारक के रूप में सक्रिय रहे। प्रसिद्ध संस्कृत रचनाकार ज्योतिरेश्वर ठाकुर हरिसिंह देव के दरबार में रहते थे। इन्होंने ‘वर्ण रत्नाकर’ की रचना की थी ।
❍ मध्यकालीन बिहार
मध्यकालीन बिहार के शासकों का वर्णन निम्न है।
∆ बिहार में तुर्क आक्रमण
• इस समय बिहार में राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ बौद्ध एवं गैर-बौद्ध मतावलम्बियों के बीच तनाव का माहौल व्याप्त था। इन्हीं परिस्थितियों के मध्य बिहार पर तुर्क आक्रमण हुआ।
• इस समय बिहार का कोई भी क्षेत्र संगठित रूप से राजनीतिक इकाई में नहीं था।
• बख्तियार खिलजी को बिहार में मुस्लिम प्रभुत्व की स्थापना का श्रेय जाता है।
• बख्तियार खिलजी के अभियान के समय सेन वंश का शासक लक्ष्मणसेन तथा पाल वंश का शासक इन्द्रप्रद्युम्मन पाल था।
• बिहार में तुर्कों की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बख्तियार खिलजी की ओदन्तपुरी (आधुनिक बिहारशरीफ) पर विजय थी। यह विजय 1198 ई. में प्राप्त की गई थी।
• मध्यकाल में बिहारशरीफ बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र था, ओदन्तपुरी का महाविद्यालय यहीं अवस्थित था। इसके साथ ही अनेक बौद्ध विहार इस क्षेत्र में अवस्थित थे, जिस कारण तुर्कों ने इस नगर का नाम बिहार रखा।
• सम्भवतः बख्तियार खिलजी ने नालन्दा विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर दिया। उसने बख्तियारपुर शहर की स्थापना की, जहाँ उसे दफनाया गया।
• बख्तियार खिलजी ने 1203 ई. में मिथिला के कर्नाट शासक नरसिंह देव को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
• बिहार पर बख्तियार खिलजी के हमले का पहला विवरण हसन निजामी द्वारा 1192 ई. -1228 ई. में मध्य रचित ‘ताज-उल-नासिर’ में वर्णित है।