कार्बन एवं उसके यौगिक
कार्बन :- कार्बन एक सर्वतोमुखी तत्व है । कार्बन भूपर्पटी में खनिज के रूप में 0.02% उपस्थित है । वायुमंडल में यह कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में 0.03% उपस्थित है । सभी सजीव संरचनायें कार्बन पर आधरित हैं । कागज , प्लास्टिक , चमड़े और रबड़ में कार्बन होता है ।
कार्बन एवं उसके यौगिकों का उपयोग :-
कार्बन एवं उसके यौगिकों का उपयोग अधिकतर अनुप्रयोगों में ईंधन के रूप में किया जाता है क्योंकि कार्बन के ऑक्सीजन ( वायु ) में दहन पर कार्बन डाइऑक्साइड जल का निर्माण होता है तथा बहुत बड़ी मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश उत्पन्न होता है ।
इसके अतिरिक्त इनका ज्वलन ताप मध्यम , कैलोरी मान अधिक होता है तथा इनके दहन से कोई अवशेष नहीं बचता और न ही हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं ।
कार्बन उत्कृष्ट गैस विन्यास कैसे प्राप्त करता है ? कार्बन की परमाणु संख्या 6 है तथा इलैक्टॉनिक विन्यास K – 2 , L – 4 होता है ।
उत्कृष्ट गैस विन्यास को प्राप्त करने के लिए :-
कार्बन का परमाणु 4 इलैक्ट्रॉन प्राप्त कर सकता है , परंतु नाभिक के लिए 4 अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन धारण करना कठिन है । कार्बन का परमाणु 4 इलैक्ट्रॉन छोड़ सकता है , परंतु इसके लिए अत्याधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी ।
इस प्रकार कार्बन के परमाणु के लिए 4 इलैक्ट्रॉन प्राप्त करना या खो देना अत्यंत कठिन होता है ।
कार्बन अपने अन्य परमाणुओं अथवा अन्य तत्वों के परमाणुओं के साथ संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी करके इस समस्या को सुलझा लेता है ।
H , O , N एवं CI जैसे तत्व के परमाणु इलैक्ट्रॉन साझेदारी करने में सक्षम है ।
सहसंयोजी आबंध :- दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉन के एक युग्म की साझेदारी के बनने वाले आबंध सहसंयोजी आबंध कहलाते हैं ।
सहसंयोजी आबंध यौगिकों के भौतिक गुण :-
सहसंयोजी यौगिकों के क्वथनांक एवं गलनांक कम होते हैं क्योंकि इनके बीच अन्तराअणुक बल कम होता है । सामान्यत : ये अणु विद्युत के कुचालक होते है क्योंकि आवेशित कण नहीं बनते ।
कार्बन के अपररूप :- हीरा ग्रेफाइट फूलरीन
हीरा एवं ग्रेफ़ाइट दोनों ही कार्बन के परमाणुओं से बने हैं । इन अपररूपों के रासायिनक गुण एकसमान होते हैं लेकिन भौतिक गुणधर्म भिन्न होते हैं । हीरे में कार्बन का प्रत्येक परमाणु कार्बन के चार अन्य परमाणुओं के साथ आबंधित होता है जिससे एक दृढ़ त्रिआयामी संरचना बनती है ।
ग्रेफाइट में कार्बन के प्रत्येक परमाणु का आबंधन कार्बन के तीन अन्य परमाणुओं के साथ एक ही तल पर होता है जिससे षट्कोणीय व्यूह मिलता है । ग्रेफ़ाइट की संरचना में षट्कोणीय तल एक दूसरे के ऊपर व्यवस्थित होते हैं ।
हीरे तथा ग्रेफाइट में अंतर :-
हीरा ग्रेफाइट
यह कठोरतम प्राकृतिक पदार्थ है । यह कोमल होता है ।
हीरा विद्युत का कुचालक और ऊष्मा का सुचालक होता है । ग्रेफाइट विद्युत और ऊष्मा का सुचालक होता है ।
हीरा पारदर्शी होता है । ग्रेफाइट अपारदर्शी होता है ।
कार्बन की सर्वतोमुखी प्रकृति :-
सहसंयाजी बंध की प्रकृति के कारण कार्बन में बड़ी संख्या में यौगिक बनाने की क्षमता है । इसके दो कारक हैं :-
श्रृंखलन चतुः संयाजकता
श्रृंखलन :- कार्बन में कार्बन के ही अन्य परमाणुओं के साथ आबन्ध बनाने की अद्वितीय क्षमता होती है जिससे बड़ी संख्या में अणु बनते हैं , इस गुण को श्रृंखलन कहते हैं । श्रृंखलन के कारण कार्बन यौगिकों की संख्या विशाल है ।
चतु : संयोजकता :- कार्बन चतु : संयोजन प्रकृति का तत्व है , इसलिए यह चार अन्य कार्बन परमाणु अथवा किन्हीं एकल संयोजी तत्वों के परमाणुओं के साथ आबन्ध बनाने में सक्षम है , जिसके कारण कार्बन यौगिकों की विशाल संख्या है ।
संतृप्त यौगिक :-
कार्बन परमाणुओं के बीच केवल एक आबंध से जुड़े कार्बन के यौगिक संतृप्त यौगिक कहलाते हैं । सामान्यतः ये यौगिक अधिक अभिक्रियाशील नहीं होते ।
असंतृप्त यौगिक :-
द्वि- अथवा त्रि – आबंध वाले कार्बन के यौगिक असंतृप्त यौगिक कहलाते हैं ।
हाइड्रोकार्बन :- कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिकों को हाइड्रोकार्बन कहते हैं ।
एथेन , एथीन , एथाइन :- कार्बन एवं हाइड्रोजन से बनने वाला अन्य यौगिक एथेन है जिसका सूत्र C₂H₆ है । किंतु कार्बन एवं हाइड्रोजन के एक अन्य यौगिक का सूत्र C₂H₄ है जिसे एथीन कहते हैं । हाइड्रोजन एवं कार्बन के एक अन्य यौगिक का सूत्र C₂H₋₂ एथाइन कहते हैं ।
संरचनात्मक समावयव :- वे यौगिक जिनके आणविक सूत्र तो समान होते हैं परंतु संरचना भिन्न होती हैं । संरचनात्मक समावयव कहलाते हैं ।
विषम परमाणु :- हाइड्रोकार्बन श्रृंखला में वह तत्व एक या अधिक हाइड्रोजन को इस प्रकार प्रतिस्थापित करते हैं कि कार्बन की संयोजकता संतुष्ट रहती है । ऐसे तत्वों को विषम परमाणु कहते हैं ।
प्रकार्यात्मक समूह :- यह विषम परमाणु या विभिन्न परमाणुओं का समूह जो कार्बन यौगिकों को अभिक्रियाशीलता तथा विशिष्ट गुण प्रदान करते हैं , प्रकार्यात्मक समूह कहलाते हैं ।
समजातीय श्रेणी :- यौगिकों की वह शृंखला जिसमें कार्बन श्रृंखला में स्थित हाइड्रोजन एक ही प्रकार के प्रकार्यात्मक समूह द्वारा प्रतिस्थापित होता है उसे समजातीय श्रेणी कहते हैं । उदाहरण :- एल्कोहल CH₃OH, C₂H₅OH , C₃H₇OH , C₄H₉OH
समजातीय श्रेणी की विशेषताए :-
समजातीय श्रेणी के उत्तरोतर सदस्यों में -CH₂ का अंतर तथा 14 द्रव्यमान इकाई का अंतर होता है । इन सदस्यों को प्रकार्यात्मक समूह विशिष्टतायें प्रदान करता है फलस्वरूप ये सदस्य समान रसायनिक गुणधर्म तथा भिन्न भौतिक गुणधर्म दर्शाते हैं । सदस्यों के अणु द्रव्यमान में अंतर होने के कारण इनके भौतिक गुणधर्मों में अंतर आता है । अणु द्रव्यमान के बढ़ने के कारण सदस्यों का गलनांक एवं क्वथनांक बढ़ता है ।
कार्बन यौगिकों की नामपद्धति :- किसी समजातीय श्रेणी में यौगिकों के नामों का आधार बेसिक कार्बन की उन मूल शृंखलाओं पर आधारित होता है जिनको प्रकार्यात्मक समूह की प्रकृति के अनुसार पूर्वलग्न ‘ ‘ उपसर्ग ‘ या ‘ अनुलग्न ‘ ‘ प्रत्यय ‘ के द्वारा संशोधित किया गया हो ।
कार्बन यौगिकों के रासायनिक गुणधर्म :-
दहन :- सामान्यत : ये यौगिक वायु ( ऑक्सीजन ) में दहित होकर कार्बन डाइऑक्साइड , जल उत्पन्न करते हैं । तथा प्रचुर मात्रा में ऊष्मा एवं प्रकाश को मुक्त करते हैं ।
तापन CH₄ + 2O₂ → CO₂ + 2H₂O + उष्मा + प्रकाश
संतृप्त हाइड्रोकार्बन वायु की प्रचुर मात्रा में जलने पर नीली ज्वाला तथा वायु की सीमित आपूर्ति में कज्जली ज्वाला उत्पन्न करते है ।
असंतृप्त हाइड्रोकार्बन दहन करने पर कज्जली ज्वाला उत्पन्न करते हैं ।
कोयले तथा पैट्रोलियम के दहन द्वारा सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड निर्मित होते हैं जो अम्लीय वर्षा के लिये उत्तरदायी हैं ।
ऑक्सीकारक :- कुछ पदार्थों में अन्य पदार्थों को ऑक्सीजन देने की क्षमता होती है ऐसे पदार्थ को ऑक्सीकारक कहते हैं । जैसे :- क्षारीय KMnO₄ ( पोटैशियम परमैंगनेट ) , अम्लीकृत K₂Cr₂0₇ ( पोटैशियम डाइक्रोमेट ) ।
ऑक्सीकरण अभिक्रिया :- ऑक्सीकरण अभिक्रिया में यौगिक द्वारा ऑक्सीजन का संयोग होता है एवं हाइड्रोजन पृथक् होती है । एथेनॉल से एथेनोइक अम्ल में परिवर्तन को ऑक्सीकरण अभिक्रिया कहा जाता है क्योंकि एथेनॉल से एथेनोइक अम्ल बनने में ऑक्सीजन का संयोग होता है तथा हाइड्रोजन पृथक् होती है ।
संकलन अभिक्रिया :- निकैल , पैलडियम या प्लैटिनम की उपस्थिति में असंतृप्त होइड्रोकार्बन हाइड्रोजन के साथ जुडकर संतृप्त हाइड्रोकार्बन निर्मित करते हैं । इस प्रक्रम द्वारा वनस्पति तेल को वनस्पति घी में परिवर्तित किया जाता है ।
नोट :- संतृप्त वसीय अम्ल स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं । भोजन पकाने के लिये असंतृप्त वसीय तेलों का उपयोग करना चाहिये ।
प्रतिस्थापन अभिक्रिया :- संतृप्त हाइड्रोकार्बन अत्यधिक अनभिक्रित होते हैं तथा अधिकांश अभिकर्मकों की उपस्थिति में अक्रिय होते हैं । हालाँकि , सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अति तीव्र अभिक्रिया में क्लोरीन का हाइड्रोकार्बन में संकलन होता है । क्लोरीन एक – एक करके हाइड्रोजन के परमाणुओं का प्रतिस्थापन करती है । इसको प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते हैं क्योंकि एक प्रकार का परमाणु , अथवा परमाणुओं के समूह दूसरे का स्थान लेते हैं ।
एथेनॉल के गुणधर्म :-
एथेनॉल के भौतिक गुणधर्म :- रंगहीन गंध और जलने वाला स्वाद जल में घुलनशील क्वथनांक 351K गलनांक 156 K उदासीन प्रकृति
ऐथेनॉल के रासानियक गुणधर्म :-
C₂H₅OH की सोडिसम के साथ अभिक्रिया में सोडियम इथॉक्साइड तथा हाइड्रोजन उत्पन्न होती है । सांद्र H₂SO₄ के साथ 443K के तापमान पर ऐथेनॉल के निर्जलीकरण द्वारा एथीन उत्पन्न होती है ।
ऐथेनॉल के उपयोग :- ऐल्कोहॉलिक पेयों में दवाओं तथा टॉनिकों में प्रयोगशाला अभिकारक के रूप में साबुन निर्माण में
एथेनॉइक अम्ल ( एसीटिक अम्ल ) भौतिक गुणधर्म :- रंगहीन द्रव , स्वाद में खट्टा , सिरके जैसी गंध क्वथनांक 391K गलनांक 290 K ऐसिटिक अम्ल का 3-4 % का जलीय विलयन सिरका कहलाता है ।
शुद्ध एथेनॉइक अम्ल शीतलन करने पर बर्फ की तरह जम जाता है इसीलिए इसे ग्लैशल एसीटिक अम्ल कहते हैं ।
एथेनॉइक अम्ल की अभिक्रियाएँ :-
एस्टरीकरण अभिक्रिया :- एस्टर मुख्य रूप से अम्ल एवं ऐल्कोहॉल की अभिक्रिया से निर्मित होते हैं । एथेनॉइक अम्ल किसी अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में परिशुद्ध एथनॉल से अभिक्रिया करके एस्टर बनाते हैं ।
क्षारक के साथ अभिक्रिया :- खनिज अम्ल की भाँति एथेनॉइक अम्ल सोडियम हाइड्रोक्सॉइड जैसे क्षारक से अभिक्रिया करके लवण ( सोडियम एथेनोएट या सोडियम ऐसीटेट ) तथा जल बनाता है ।
कार्बोनेट एवं हाइड्रोजनकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया :- एथेनॉइक अम्ल कार्बोनेट एवं हाइड्रोजनकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया करके लवण , कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल बनाता है । इस अभिक्रिया में उत्पन्न लवण को सोडियम ऐसीटेट कहते हैं ।
साबुन और अपमार्जक :-
साबुन :- साबुन लंबी श्रंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम एवं पोटाशियम लवण होते है । साबुन केवल मृदु जल के साथ सफाई क्रिया करते हैं तथा कठोर जल के साथ प्रभावहीन होते है । साबुन के अणु में जलरागी एवं जलविरागी समूह होते हैं ।
अपमार्जक :- लम्बी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्ल के अमोनियम एवं सल्फोनेट लवण होते हैं । अपमार्जक मृदु तथा कठोर जल के साथ सफाई प्रक्रिया सकते है ।
जलरागी व जलविरागी :- साबुन के अणु ऐसे होते हैं जिनके दोनों सिरों के विभिन्न गुणधर्म होते हैं । जल में विलेय एक सिरे को जलरागी कहते हैं तथा हाइड्रोकार्बन में विलेय दूसरे सिरे को जलविरागी कहते हैं ।
मिसेल :- जल के अंदर अणुओं की एक विशेष व्यवस्था जिससे इसका हाइड्रोकार्बन सिरा जल के बाहर बना होता है । ऐसा अणुओं का बड़ा गुच्छा बनने के कारण होता है जिसमें जलविरागी पूँछ गुच्छे के आंतरिक हिस्से में होती है जबकि उसका आयनिक सिरा गुच्छे क सतह पर होता है । इस संरचना को मिसेल कहते हैं ।
साबुन की सफाई प्रक्रिया :- अधिकांश मैल तैलीय होता है तथा जलविरागी छोर इस मैल के साथ जुड़ जाता है । जल के अणु जलरागी छोर पर साबुन के अणु को घेर लेते है । फलस्वरूप साबुन के अणु मिसेली संरचना बनाते है । इस प्रक्रिया में साबुन के अणु और तैलिय मैल का पायस बनता है तथा विभिन्न भौतिक विधियों जैसे पटकना डंडे से पीटना , ब्रुश से रगड़ना आदि की सहायता से वस्त्र साफ होता है ।
अघुलनशील पदार्थ / स्कम :- कठोर जल में प्रयुक्त मैग्नीशियम तथा कैल्शियम के लवण साबुन के जलराग भार से अभिक्रिया करके अघुलनशील पदार्थ या स्कम बनाते हैं । जिसके कारण सफाई प्रक्रिया बाधित होती है ।
अपमार्जक के अणु का आवेशित सिरा कठोर जल में उपस्थित कैल्शियम एवं मैग्नीशियम आयनों को साथ अघुलनशील पदार्थ नहीं बनाते , फलस्वरूप सफाई प्रक्रिया प्रभावशाली रूप से संपन्न होती है ।
साबुन पूर्णतया जैव – निम्नकरणीय होते है । जबकि अपमार्जक नहीं । साबुन पर्यावरण हितैषी होते है लेकिन अपमार्जक नहीं ।