हरियाणा के प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध
महाभारत का युद्ध (लगभग 900 ईसा पूर्व) :-
इतिहास के विद्वानों के अनुसार महाभारत का युद्ध लगभग 900 ईसा पूर्व कुरू वंश के कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था | जिनमें भाई, बंधु, रिश्तेदार आपस में लड़कर मर गए थे |
इस युद्ध में कौरवों की पराजय हुई थी और पांडवों की विजय हुई थी | यह युद्ध हरियाणा राज्य के कुरूक्षेत्र जिलें में हुआ था |
तरावड़ी (तराई) का प्रथम युद्ध (सन् 1191 ईस्वी) :-
यह युद्ध सन् 1191 में दिल्ली व अजमेर के शासन पृथ्वीराज चौहान तृतीय उर्फ राय कोलाह पिथोरी।
उर्फ राय पिंजौरा (1177-1192 ईस्वी) और गजनी के शासन सुल्तानुल आजम मुइज्जुद्दीन वाउद्दीन अबुल मुजफ्फर मोहम्मद बिन साम उर्फ
मोहम्मद गौरी।
शहाबुद्दीन गौरी | (1186-1205 ईस्वी) की सेनाओं के बीच करनाल से 15 किलोमीटर उत्तर में जी.टी.रोड के पश्चिम में स्थित तरावड़ी कस्बे के निकट हुआ था इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई थी |
तरावड़ी (तराई) का दूसरा युद्ध (सन् 1192 ईसवी) :-
तरावड़ी का दूसरा युद्ध बी मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं के बीच में हुआ था अब की बार मोहम्मद गोरी अपनी पिछली हार से सबक लेकर पूरी तैयारी के साथ युद्ध करने के लिए आया था उसने सैनिक और कूटनीतिक दोनों तरह की तैयारी कर रखी थी
जब की पृथ्वीराज चौहान केवल जीत की गफलत में था बल्कि उसने अपने सरदारों वह सहयोगियों को पीड़ित करके नाराज भी कर दिया था इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हो गई और मोहम्मद गौरी विजय रहा |
तरावड़ी (तराई) का तीसरा युद्ध (सन् 1215 ईस्वी) :-
यह युद्ध सन् 1215 ईस्वी में सुल्तान अल्तमस उर्फ समसुद्दीन (1211-1236 ईस्वी) और ताजुद्दीन यलदौज के बीच में हुआ था | ताजुल मासीर में हसन निजामी ने इस युद्ध का दिन सोमवार 3 शव्वाल 612 हिजरी (जनवरी 1216) तथा बुद्ध प्रकाश ने इसको 25 जनवरी 1216 ईस्वी को हुआ बताया है |
हांसी का युद्ध (सन् 1193 ईस्वी) :-
यह युद्ध मोहम्मद गौरी के सेनापति वह हिंदुस्तान के सुल्तान बनने वाले कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ईस्वी ) और हांसी के निकट हुआ था हालांकि इस युद्ध में विजय कुतुबुद्दीन ऐबक की हुई थी परंतु जाट वान मालिक की बहादुरी के किस्से आज भी चलते हैं |
कैथल का युद्ध (1240 ईस्वी):-
यह युद्ध 13 अक्टूबर 1240 को दिल्ली (हिंदुस्तान) की सुल्तान रजिया बेगम (1239-1240 ईस्वी) और उसके बाप जय भाई मोइनुद्दीन बहराम शाह (1240-1242 ईस्वी) के बीच हुआ था
दरअसल , परिवार में सत्ता के संघर्ष की परिणीति इस युद्ध के रुप में हुई यह एक रोचक संघर्ष था। जिसमें मुख्य नायिका हिंदुस्तान की पहली सम्राज्ञी थी।
दोनों सेनाओं के बीच 13 अक्टूबर ,1240 को कैथल के निकट युद्ध हुआ, जिसमें सुल्तान रजिया और उसके पिता अल्तूनिया की पराजय हुई। परंतु युद्ध से बच निकले ।
सेना को पुनर गाठित करने के प्रयास किया पंरतु बहुत से तुर्क व सैनिक उन्हों छोड़कर विरोधियों से जा मिले। एक मत के अनुसार स्थानीय लोगों ने तुरंत बाद 24 अक्टूबर,1240 को उनकी हत्या कर दी
जबकि एक अन्य स्त्रोत्र के अनुसार उनकी हत्या डाकुओं ने की थी। इस युद्ध के परिणाम स्वरूप हिंदुस्तान की एक लोकप्रिय शासिक का अंत हो गया, और कैथल के पास उनका एक मकबरा बना दिया गया जिसे लोग रजीय सुल्तान का मकबरा कहते हैं।
सिरसा का युद्ध (अगस्त 1320 ईस्वी):-
यह प्रसिद्ध युद्ध 22 अगस्त,1320 को खिलजी वंश के अंतिम सुल्तान नसीरूद्दीन खुसरो शाह और दीपालपुर के (पंजाब) के तत्कालीन गवर्नर गाजी मलिक के बीच सिरसा (सरस्वती) में अंत और तुगलक वंश का उदय हुआ
पानीपत का युद्ध (1390 ईस्वी):-
दरअसल पानीपत के निकट सन् 1390 ईस्वी,1526 ईस्वी,1556 ईस्वी, और 1761 ईस्वी में चार युद्ध हुए हैं। पंरतु जिकर आखरी 3 युद्ध का ही होता है।
पानीपत का प्रथम युद्ध (सन् 1526 ईस्वी):-
यह प्रसिद्ध युद्ध 21 अप्रैल 1526 को फरगना के बादशाह जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर (1482-1530 ईस्वी) और हिंदुस्तान के सुल्तान इब्राहिम लोदी (1517-1526 ईस्वी) के बीच पानीपत के मैदान में लड़ा गया था। इस युद्ध पर इब्राहिम लोदी की हार हुई थी।
इस युद्ध के परिणाम स्वरूप लोदी वंश के साथ-साथ सल्तनत काल भी समाप्त हो गया और बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव डाल दी। दरअसल, बाबर की मां कुलिक निगार खानम”मंगोल थी। पारसी में मंगोल को मुगल कहते हैं, इसलिए इस वंश को मुगल वंश कहा गया है।
पानीपत का दूसरा युद्ध (सन् 1556 ईस्वी):-
यह प्रसिद्ध युद्ध 5 नवंबर ,1556 हेमू उर्फ महाराजा विक्रमादित्य और अकबर के बीच पानीपत में बाबर की विजय- स्थली के उत्तर- पश्चिम में 4 मील दूर मैदान में हुआ। इस युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व बैरम खान ने किया। इस युद्ध में हेमू की हार हुई।
पानीपत का तीसरा युद्ध (सन् 1761 ईस्वी):-
यह युद्ध अहमद शाह अब्दाली उर्फ दुर्रानी (1747-1773),जो अफगानिस्तान का शासन था, तथा मराठों , जिनका नेतृत्व विश्वास राव वह सदाशिव राव भाऊ कर रहे थे, के बीच में 14 जनवरी, 1761 को हुआ। इस युद्ध में मराठों की बुरी तरह से पराजय हुई।