जींद का किला-
सन 1775 में जगपत सिंह ने जींद को जीतकर यहां पर एक विशाल किला का निर्माण करवाया विजयनगर के पहले राजा बने थे आज भी इस ऐतिहासिक किले के भग्नावशेष मिलो दूर से दिखाई देती है
तावडू का किला-
सोहना से 17 किलोमीटर दूर पर्वतीय रास्ते से होते हुए हरियाणा राजस्थान मार्ग पर स्थित तावडू नामक ग्राम में स्थित एक प्राचीन किले के विभिन्न अवशेष से तावडू के इतिहास की जानकारी मिलती है इस किले के चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारें बनी हुई है इस समय तावडू स्थित इस किले को वहां का थाना बना दिया गया है
तोशाम की बारादरी-
भिवानी जिले में स्थित तो शाम की पहाड़ी पर यह बारादरी स्थित है लोकमानस में यह बारादरी पृथ्वीराज की कचहरी के नाम से प्रसिद्ध है इस बारादरी के निर्माण में चुने और छोटी ईंटों का प्रयोग किया गया है इस भवन की विशेषता यह है कि इसमें एक भी चौखट का प्रयोग नहीं किया गया है और इसमें 12 द्वार इस तरह से स्थापित किए गए हैं कि केंद्रीय कक्ष में बैठा हुआ व्यक्ति चारों ओर देख सकता है प्रत्येक कक्ष द्वारा 5 मीटर ऊंचा है और इसके चारों ओर बैठने के लिए एक चबूतरा बना हुआ है।
भाटिया किला,पलवल-
मुगल काल में पलवल में मटिया किला बनवाया गया था यह किला अब खंडहर में परिवर्तित हो चुका है शेरशाह सूरी के समय पलवल तहसील के ग्राम बुलवाना में बनावई गई मीनार तथा ग्राम अमरपुर में 150 वर्ष पुराना गोल मकबरा अफगान काल का घोतक है इस तहसील के ग्राम जैनपुर में पक्की ईंटों से बना एक तालाब भी है।
रंगमहल,बुडिया यमुनानगर-
यमुनानगर से 3 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में बड़ियां नामक प्राचीन कस्बे के समीप शाहजहां के शासनकाल में आबादी से दूर जंगलों में रंग महल का निर्माण करवाया था जो उस समय आमोद प्रमोद का प्रमुख स्थल रहा होगा उसी दीवारों पर बनाए गए भित्तिचित्र धूमिल हो रहे हैं।
महल की बावड़ी-
रोहतक जिले के महम कस्बे के दक्षिण-पूर्व छोर पर एक बावड़ी बनी हुई है यह मुगल स्थापत्य काल का नमूना है यह बावड़ी शाहजहां के शासनकाल में सैदू कलाल ने 656 ईस्वी में बनाई थी इस बावड़ी की लंबाई 275 फुट तथा चौड़ाई 95 फुट है इसकी चार मंजिलें है तथा अंदर जानेने
जाने के लिए 108 सीढ़ियां है इसके बाद चौक आता है और उसके बाद कुआं है।
महल, डीघल-
रोहतक से झज्जर मार्ग के पूर्व में बसे हुए डिघल ग्राम में बहुत साल पहले द्वारका और चौकी सेठ भाइयों ने एक दो मंजिला हवेली का निर्माण करवाया जो आज भी मौजूद है महल के नाम से प्रसिद्ध इस हवेली में ऊंचाई महसब सब देकर किले जैसी शैली का प्रवेश द्वार बनाया गया है
माधोगढ़ का किला, महेंद्रगढ़-
महेंद्रगढ़ से 15 किलोमीटर दूर सतनाली सड़क मार्ग पर अरावली पर्वत श्रंखला की पहाड़ियों के बीच सबसे ऊंची चोटी पर माधोगढ़ का ऐतिहासिक किला स्थित है पर्वत की तलहटी में मधु गढ़ ग्राम बसा है ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण राजस्थान के सवाई माधोपुर के शासन मधु सिंह ने करवाया था इस समय है किला अत्यंत जिणाअवस्था में है लगभग 800 वर्ग गज के क्षेत्र में फैले इस किले में 30 कोठियां बनी हुई है मुख्य किले से कुछ नीचे 12 कोठियां है जो चोटी पर स्थित तालाब के अंगोर में ग्रीष्म ऋतु में शरण लेने के लिए बनाई गई थी।
बागवाला तालाब, रेवाड़ी-
इस तालाब का निर्माण सन् 1807 में राय गुर्जर मल ने करवाया था वर्तमान में यह तालाब शुष्क हो चुका है।
मिर्जा अली जाॅं की बावड़ी, नारनौल-
नारनौल नगर को बावड़ी और तालाबों का नगर कहा जाता है यद्यपि नगर की बहुत सी प्राचीन बावडीयों का अस्तित्व अब नहीं रहा पंरतु मिर्जा अली जाॅं की बावड़ी आज भी जिणाअवस्था में विद्यमान है इस ऐतिहासिक बावड़ी का निर्माण मिर्जा अली जाॅं द्वारा 1650 ईस्वी के आसपास करवाया गया था।
राजा नाहर सिंह हवेली, बल्लभगढ़-
यह हवेली बल्लभगढ़ में दुर्गा प्राचीन के भीतर स्थित इस किले को बनवाने की योजना राजा बल्लू के शासनकाल में बनवाई गई थी जिसे उनके पुत्र किशन सिंह ने पूरा किया।
राय मुकुन्द दास का छत्ता ( बीरबल का छत्ता), नारनौल-
नारनौल की संघन आबादी के बीच इस ऐतिहासिक स्मारक का निर्माण शाहजहां के शासनकाल में नारनौल के दीवान राय मुकुंद दास माथुर ने करवाया था यह स्मारक नारनोल के मुगलकालीन एतिहासिक स्मारलों में सबसे बड़ा है यद्यपि यह बीरबल से छत्ते के नाम से भी प्रसिद्ध है किंतु इसके निर्माण में बीरबल से इसका कोई संबंध नहीं है।
राव तेजसिंह तालाब, रेवाड़ी-
यह रेवाड़ी के पुराने टाउन हॉल के समीप स्थित है यह कलात्मक तालाब का निर्माण राव तेज सिंह द्वारा सन् 1810 से 1815 के बीच करवाया गया था।
श्रीकृष्ण संग्रहालय, कुरूक्षेत्र-
श्री कृष्ण संग्रहालय की स्थापना कुरुक्षेत्र में की गई जो वर्ष 1991 में अपने वर्तमान भव्य और दर्शनिक समरूप में बनकर तैयार हुआ श्री कृष्ण संग्रहालय कुरूक्षेत्र पेहवा मार्ग पर ब्रह्रासरोवर और सन्निहित सरोवर के मध्य काली कमली वाले मैदान में स्थित है यह मुख्यत: श्री कृष्ण एवं महाभारत के चरित्रों के माध्यम से जनसाधारण में आध्यात्मिक चेतना के पुनर्जिगरण के साथ-साथ श्री कृष्ण के आदेशों प्रति लोकर्षण उत्पन्न करता है।
सलारजंग गेट, पानीपत-
पानीपत नगर के मध्य स्थित यह त्रिपोलिया दरवाजा प्राचीन आबादी का प्रवेश द्वार है जिसका निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था प्राचीन वस्तुकला का उत्कृष्ट नमूना कहलाने वाला यह दरवाज नवाब सालारजंग के नाम से जाना जाता है
सोहना किला-
जिला गुरुग्राम में स्थित सोना नगर 18 वी शताब्दी में सोहन सिंह नामक राजा द्वारा बसाया गया था भरतपुर के राजा जवाहर सिंह के समय यहां पर एक किले का निर्माण करवाया गया जो खंडहर के रूप में आज भी विद्यमान है
होडल की सराय, तालाब और बावड़ी-
होटल में भरतपुर के राजा सूरजमल ने एक सुंदर सराय तालाब को एक बावड़ी बनवाई थी आज भी इनके खंड हर यहां देखने को मिलता है मॉडल के रानी सती तालाब के समीप बलराम की स्मृति छतरी और दादी सती जसकोर की समाधि भी मौजूद है
बुआ का तालाब, झज्जर-
झज्जर में दिल्ली झज्जर मार्ग पर 300 साल पुराना बुआ का तालाब काफी प्रसिद्ध है यह जगह दो प्रेमियों के मिलने और बिछड़ने की दास्तां की गवाह है इस तालाब नेबुआ नाम की एक लड़की के प्रेम को परवान चढ़ते हुए भी देखा और उसे अपने प्रेमी के विरह की आग में जलते हुए भी देखा।
गरम जल का चश्मा,सोहना-
अरावली पर्वतीय श्रृंखला की गोद में बसा है हरियाणा के गुड़गांव जिले का विश्वविख्यात स्थान सोहन अपने गरम जल के स्रोतों के कारण यह स्थान आज अपनी पहचान दूर-दूर तक कायम कर चुका है
पुण्डरीक सरोवर, पुण्डरी-
यह सरोवर हरियाणा के पुण्डरी नामक कस्बे में स्थित है ऐसी मान्यता है कि सतयुग में आज तक इस विशाल और सरोवर का जल कभी समाप्त नहीं हुआ।