हरियाणा के सांस्कृति
हरियाणा के सांस्कृतिक जीवन में राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था के विभिन्न अवसरों की लय प्रतिबिंबित होती हैं और इसमें प्राचीन भारत की परंपराओं व लोककथाओं का भंडार है।
हरियाणा की एक विशिष्ट बोली है और उसमें स्थानीय मुहावरों का प्रचलन है। स्थानीय लोकगीत और नृत्य अपने आकर्षक अंदाज में राज्य के सांस्कृतिक जीवन को प्रदर्शित करतें हैं।
ये ओज से भरे हैं और सांस्कृति की विनोदप्रियता से जुड़े हैं। वसंत ऋतु में मौजमस्ती से भरे होली के त्योहार में लोग एक दूसरे पर गुलाल उड़ाकर और गीला रंग डालकर मनाते हैं,
इसमें उम्र या सामाजिक हैसियत का कोई भेद नहीं होता। भगवान कृष्ण के जन्मदिन, जन्माष्टमी का हरियाणा में विशिष्ट धार्मिक महत्त्व है, क्योंकि कुरूक्षेत्र ही वह रणभूमि थी, जहां कृष्ण ने योद्धा अर्जुन को भगवद्गीता (महाभारत का एक हिस्सा) का उपदेश दिया था।
सूर्यग्रहण पर पवित्र स्नान के लिए देश भर से लाखों श्रद्धालु कुरुक्षेत्र आते हैं। अग्रोह (हिसार के निकट) और पेहोवा सहित राज्य में अनेक प्राचीन तीर्थस्थल है।
अग्रोहा अग्रसेन के रूप में जाना जाता है,जो अग्रवाल समुदाय और उसकी उपजातियों के प्रमुख पूर्वज या प्रवर्तक माने जाते हैं। इसलिए अग्रोहा समूचे अग्रवाल समुदाय की जन्मभूमि है।
भारत के व्यापारी में एक चिकित्सा विछालय की स्थापना की। पवित्र नदी सरस्वती (वेदों के अनुसार ज्ञान और कला की देवी) के किनारे स्थित पेहोवा को पूर्वजों के श्राद्ध पिंडदान के लिए एक महत्वपूर्ण पवित्र स्थान माना जाता है।
अप्राकृतिक या प्राकृतिक, दोनों तरह की आत्मा की शांति के लिए पेहोवा में धार्मिक क्रियाएं की जाती है। विभिन्न देवताओं और संतों की स्मृति में आयोजित होने वाले मेले हरियाणा की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है।
अनेक स्थानों पर पशु मेले भी आयोजन किए जाते हैं। यह क्षेत्र अच्छे नस्ल के दुधारू पशुओं, खासकर भैंसों और खेति के काम में आने वाले पशुओं और संकलित पशुओं के लिए भी जाना जाता है।