ध्वनि
ध्वनि :- यह ऊर्जा का एक रूप है , जो तरंगों के रूप में संचरित होती है । ध्वनि हमारे कानों में श्रवण का संवेदन उत्पन्न करती है । ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है जिससे हम सुन सकते हैं । ऊर्जा संरक्षण का नियम ध्वनि पर भी लागू होता है । ध्वनि का संचरण तरंगों के रूप में होता है ।
ध्वनि का उत्पादन :- ध्वनि तब पैदा होती है जब वस्तु कम्पन करती है या कम्पमान वस्तुओं से ध्वनि पैदा होती है । किसी वस्तु को कम्पित करके ध्वनि पैदा करने के लिए आवश्यक ऊर्जा किसी बाह्य स्रोत द्वारा उपलब्ध करायी जाती है ।
उदाहरण :- तबला या ड्रम की तनित झिल्ली पर हाथ से मारकर कम्पन पैदा करते हैं जिससे ध्वनि पैदा होती है ।
ध्वनि उत्पन्न के निम्नलिखित तरीके :-
कम्पन करते तन्तु से ( सितार ) कम्पन करती वायु से ( बाँसुरी ) कम्पन करती तनित झिल्ली से ( तबला , ड्रम ) कम्पन करती प्लेटों से ( साइकिल की घण्टी ) वस्तुओं से घर्षण द्वारा वस्तुओं को खुरचकर या रगड़कर
ध्वनि का संचरण :- वह पदार्थ जिसमें होकर ध्वनि संचरित होती है , माध्यम कहलाता है ।
माध्यम ठोस , द्रव या गैस हो सकता है । जब एक वस्तु कम्पन करती है , तब इसके आस पास के वायु के कण भी बिल्कुल वस्तु की तरह कम्पन करते हैं और अपनी सन्तुलित अवस्था से विस्थापित हो जाते हैं । ये कम्पमान वायु के कण अपने आस पास के वायु कणों पर बल लगाते हैं । अतः वे कण भी अपनी विरामावस्था से विस्थापित होकर कम्पन करने लगते हैं । यह प्रक्रिया माध्यम में तब तक चलती रहती है जब तक ध्वनि हमारे कानों में नहीं पहुँच जाती है । ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ माध्यम होकर गति करता है । ( माध्यम के कण गति नहीं करते हैं )
तरंग :- तरंग एक विक्षोभ है जो माध्यम में गति करता है तथा एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ऊर्जा ले जाता है जबकि दोनों बिन्दुओं में सीधा सम्पर्क नहीं होता है । ध्वनि यांत्रिक तरंगों के द्वारा संचरित होती है ।
सम्पीडन :- ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें हैं । जब एक वस्तु कम्पन करती है तब अपने आस – पास की वायु को संपीडित करती है । इस प्रकार एक उच्च घनत्व या दाब का क्षेत्र बनता है जिसे सम्पीडन ( C ) कहते हैं ।
संपीडन वह क्षेत्र है जहाँ माध्यम के कण पास – पास आकर उच्च दाब बनाते हैं । यह सम्पीडन कम्पमान वस्तु से दूर जाता है ।
विरलन :- जब कम्पमान वस्तु पीछे की ओर कम्पन करती है तब एक निम्न दाब क्षेत्र बनता है जिसे विरलन ( R ) कहते हैं ।
ध्वनि तरंग का बनना :- जब वस्तु आगे – पीछे तेजी से कम्पन करती है तब हवा में सम्पीडन और विरलन की एक श्रेणी बनकर ध्वनि तरंग बनाती है । ध्वनि तरंग का संचरण घनत्व परिवर्तन का संचरण है ।
ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है ?- ध्वनि तरंगें यांत्रिक तरंगें हैं , इनके संचरण के लिए माध्यम ( हवा , पानी , स्टील ) की आवश्यकता होती है । यह निर्वात में संचरित नहीं हो सकती है । चंद्रमा या बाह्य अंतरिक्ष में ध्वनि नहीं सुनाई देती , क्योंकि ध्वनि तरंग के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है । जबकि चंद्रमा या बाह्य अंतरिक्ष में वायुमंडल नहीं होता । अतः निर्वात में ध्वनि संचरित नहीं होती ।
अतः ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है ।
अनुदैर्ध्य तरंग :- वह तरंग जिसमें माध्यम के कण आगे पीछे उसी दिशा में कम्पन करते हैं जिस दिशा में तरंग गति करती है , अनुदैर्ध्य तरंग कहलाती है ।
अनुप्रस्थ तरंगें का उत्पन्न :- जब तरंग स्लिंकी में गति करती है तब इसकी प्रत्येक कुण्डली ( छल्ला ) तरंग की दिशा में आगे – पीछे एक छोटी दूरी तय करती है । अतः अनुदैर्ध्य तरंग है ।
जब स्लिंकी के एक सिरे को आधार से स्थिर करके दूसरे सिरे को ऊपर नीचे तेजी से हिलाते हैं तब यह अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न करती हैं ।
ध्वनि तरंग के अभिलक्षण :- ध्वनि तरंग के अभिलक्षण है ,तरंग दैर्ध्य आवृत्ति आयाम आवर्तकाल तरंग वेग
तरंग दैर्ध्य :-
ध्वनि तरंग में एक संपीडन तथा एक सटे हुए विरलन की कुल लम्बाई को तरंग दैर्ध्य कहते हैं ।
दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों के मध्य बिन्दुओं के बीच की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं ।
एक पूर्ण दोलन में कोई तरंग जितनी दूरी तय करती है , उसे तरंग दैर्ध्य कहते हैं ।
तरंग दैर्ध्य को ग्रीक अक्षर लैम्डा ( λ ) से निरूपित करते है । इसका S.I. मात्रक मीटर ( m ) है ।
आवृत्ति :- एक सेकेण्ड में उत्पन्न पूर्ण तरंगों की संख्या या एक सेकेण्ड में कुल दोलनों की संख्या को आवृत्ति कहते हैं । एक सेकेण्ड में गुजरने वाले सम्पीडनों तथा विरलनों की संख्या को भी आवृत्ति कहते हैं ।
किसी तरंग की आवृत्ति उस तरंग को उत्पन्न करने वाली कम्पित वस्तु की आवृत्ति के बराबर होती है । आवृत्ति का S.I. मात्रक हर्ट्ज ( Hertz प्रतीक Hz ) है । आवृत्ति को ग्रीक अक्षर ( v ) प्रदर्शित करते हैं ।
हर्ट्ज :- एक हर्ट्ज , एक कम्पन प्रति सेकेण्ड के बराबर होता है ।
आवृत्ति का बड़ा मात्रक किलोहर्ट्ज है । KHz = 1000 Hz .
आवर्तकाल :- एक कम्पन या दोलन को पूरा करने करने में लिए गये समय को आवर्तकाल कहते हैं । दो क्रमागत संपीडन या विरलन को एक निश्चित बिन्दु से गुजरने में लगे समय को आवर्तकाल कहते हैं ।
आवर्तकाल का S.I. मात्रक सेकेण्ड ( S ) है । इसको T से निरूपित करते हैं । किसी तरंग की आवृत्ति आवर्तकाल का व्युत्क्रमानुपाती है । n = 1/T
आयाम :- किसी माध्यम के कणों के उनकी मूल स्थिति के दोनों और अधिकतम विस्थापन को तरंग का आयाम कहते हैं ।
आयाम को ‘ A ’ से निरूपित करते हैं । इसका S.I. मात्रक मीटर ‘ m ‘ है । ध्वनि से तारत्व , प्रबलता तथा गुणता जैसे अभिलक्षण पाये जाते हैं ।
तरंग वेग :- एक तरंग द्वारा एक सेकेण्ड में तय की गयी दूरी को तरंग का वेग कहते हैं ।
इसका S.I. मात्रक मीटर / सेकेण्ड ( ms⁻¹) है । वेग = चली गयी दूरी/लिया गया समय V = λ/T ध्वनि की तरंगदैर्ध्य है और यह T समय में चली गयी है । अतः V = λv ( = v nu ) वेग = तरंग दैर्ध्य × आवृत्ति
तारत्व :- ध्वनि का तारत्व ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर करता है । यह आवृत्ति के समानुपाती होता है ज्यादा आवृत्ति , ऊँचा तारत्व , कम आवृत्ति , निम्न तारत्व ।
उदहारण :- औरतों की आवाज तीक्ष्ण होती है उसका तारत्व ज्यादा होता है जबकि पुरुषों की आवाज का तारत्व कम होने से उनकी आवाज सपाट होती है । क्योंकि औरतों की वोकल कार्ड की आवृति अधिक होती है अर्थात तारत्व ज्यादा होता है जिससे आवाज़ पतली होती है ।
उच्च तारत्व की ध्वनि में एक इकाई समय में बड़ी संख्या में सम्पीडन तथा विरलन एक निश्चित बिन्दु से गुजरते हैं ।
निम्न तारत्व – कम आवृत्ति ज्यादा तारत्व – ज्यादा आवृत्ति
प्रबलता :- ध्वनि की प्रबलता ध्वनि तरंगों के आयाम पर निर्भर होती है । कानों में प्रति सेकंड पहुँचने वाली ध्वनि ऊर्जा के मापन को प्रबलता कहते हैं ।
प्रबल ध्वनि → ज्यादा ऊर्जा → ज्यादा आयाम मृदु ध्वनि → कम ऊर्जा → कम आयाम
प्रबलता को डेसीबल ( db ) में मापा जाता है । ध्वनि की प्रबलता उसके आयाम के वर्ग की समानुपाती होती है । प्रबलता ∝ ( आयाम ) 2
गुणता :- किसी ध्वनि की गुणता उस ध्वनि द्वारा उत्पन्न तरंग की आकृति पर निर्भर करती है । यह संगीतमय ध्वनि का अभिलक्षण है । यह हमें समान तारत्व तथा प्रबलता की ध्वनियों में अन्तर करने में सहायता करता है ।
टोन :- एकल आवृत्ति की ध्वनि को टोन कहते हैं ।
स्वर :- अनेक ध्वनियों के मिश्रण को स्वर कहते हैं ।
शोर :- 80dB से ज्यादा प्रबलता की ध्वनि शोर कहलाती है । शोर सुनने में कर्णप्रिय नहीं होता है ।
संगीत :- संगीत सुनने में सुखद होता है , और इसकी गुणता अच्छी होती है ।
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल :- ध्वनि की चाल पदार्थ ( माध्यम के गुणों पर निर्भर करती है , जिसमें यह संचरित होती है । यह गैसों में सबसे कम द्रवों में ज्यादा तथा ठोसों में सबसे तेज होती है ।
ध्वनि की चाल तापमान बढ़ने के साथ बढ़ती है । हवा में आर्द्रता ( नमी ) बढ़ने के साथ ध्वनि की चाल बढ़ती है ।
प्रकाश की चाल ध्वनि की चाल से तेज है । इसीलिए आकाश में बिजली की चमक गर्जन से पहले दिखाई देती है । वायु में ध्वनि की चाल 22 ° C पर 344 ms⁻¹ है ।
ध्वनि बूम :-
प्रघाती तरंगें :- कुछ वायुयान , गोलियाँ तथा रॉकेट आदि पराध्वनिक चाल से चलते हैं । पराध्वनिक का तात्पर्य वस्तु की उस चाल से है , जो ध्वनि की चाल से तेज ( ज्यादा ) होती है । ये वायु में बहुत तेज आवाज पैदा करती है जिन्हें प्रघाती तरंगें कहते हैं । ध्वनि बूम प्रघाती तरंगों द्वारा उत्पन्न विस्फोटक शोर है ।
यह जबरदस्त ध्वनि ऊर्जा का उत्सर्जन करता है जो खिड़कियों के शीशे तोड़ सकती है ।
ध्वनि का परावर्तन :- प्रकाश की तरह ध्वनि भी जब किसी कठोर सतह से टकराती है तब वापस लौटती है । यह ध्वनि का परावर्तन कहलाता है ।
ध्वनि भी परावर्तन के समय प्रकाश के परावर्तन के नियमों का पालन करती है :-
( i ) आपत्ति ध्वनि तरंग , परावर्तित ध्वनि तरंग तथा आयतन बिन्दु पर खींचा गया अभिलम्ब एक ही तल में होते हैं । ( ii ) ध्वनि का आपतन कोण हमेशा ध्वनि के परावर्तन कोण के बराबर होता है ।
ध्वनि के परावर्तन के उपयोग :-
मेगाफोन या लाउडस्पीकर , हॉर्न , तुरही और शहनाई आदि । इस प्रकार बनाये जाते हैं कि वे ध्वनि को सभी दिशाओं में फैलाये बिना एक ही दिशा में भेजते हैं ।
इन सभी यंत्रों में शंक्वाकार भाग ध्वनि तरंगों को बार – बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर भेजता है । इस प्रकार ध्वनि तरंगों का आयाम जुड़ जाने से ध्वनि की प्रबलता बढ़ जाती है ।
प्रतिध्वनि :- ध्वनि तरंग के परावर्तन के कारण ध्वनि के दोहराव ( पुनः सुनना ) को प्रतिध्वनि कहते हैं ।
हम प्रतिध्वनि तभी सुन सकते हैं जब मूल्य ध्वनि तथा प्रतिध्वनि ( परावर्तित ध्वनि ) के बीच कम से कम 0.1 सेकेण्ड का समय अन्तराल हो । प्रतिध्वनि तब पैदा होती है जब ध्वनि किसी कठोर सतह ( जैसे ईंट की दीवार पहाड़ आदि ) से परावर्तित होती है । मुलायम सतह ध्वनि को अवशोषित करते हैं ।
अनुरणन :- किसी बड़े हॉल में , हॉल की दीवारों , छत तथा फर्श से बार – बार परावर्तन के कारण ध्वनि का स्थायित्व ( ध्वनि का बने रहना ) अनुरणन कहलाता है । अगर यह स्थायित्व काफी लम्बा हो तब ध्वनि धुंधली , विकृत तथा भ्रामक हो जाती है ।
किसी बड़े हॉल या सभागार में अनुरणन को कम करने के तरीके :-
सभा भवन की छत तथा दीवारों पर संपीडित फाइबर बोर्ड से बने पैनल ध्वनि का अवशोषण करने के लिए लगाये जाते हैं । खिड़की , दरवाजों पर भारी पर्दे लगाये जाते हैं । फर्श पर कालीन बिछाए जाते हैं । सीट ध्वनि अवशोषक गुण रखने वाले पदार्थों की बनायी जाती है ।
प्रतिध्वनि तथा अनुरणन में अन्तर :-
प्रतिध्वनि अनुरणन
ध्वनि तरंग के परावर्तन के कारण ध्वनि के दोहराव को प्रतिध्वनि कहते हैं । किसी बड़े हॉल में छत , दीवारों तथा फर्श से ध्वनि के बार बार परावर्तन के कारण ध्वनि के स्थायित्व को अनुरणन कहते हैं ।
प्रतिध्वनि एक बड़े खाली हॉल में उत्पन्न होती है । ध्वनि का बार बार परावर्तन नहीं होता है और ध्वनि स्थायी भी नहीं होती है । अनुरणन के ज्यादा लम्बा होने पर ध्वनि धुँधली , विकृत तथा भ्रामक हो जाती है ।
स्टेथोस्कोप :- यह एक चिकित्सा यंत्र है जो मानव शरीर के अन्दर हृदय और फेफड़ों में उत्पन्न ध्वनि को सुनने में काम आता है । हृदय की धड़कन की ध्वनि स्टेथोस्कोप की रबर की नली में बारम्बार परावर्तित होकर डॉक्टर के कानों में पहुँचती है ।
श्रव्यता का परिसर :- मनुष्य में श्रव्यता का परिसर 20 Hz से 2000 Hz तक होता है । 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे तथा कुत्ते 25 KHz तक की ध्वनि सुन लेते हैं ।
अवश्रव्य ध्वनि :- 20 Hz से कम आवृत्ति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं ।
कम्पन करता हुआ सरल लोलक अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करता है । गैण्डे 5 Hz की आवृत्ति की ध्वनि से एक – दूसरे से सम्पर्क करते हैं । हाथी तथा व्हेल अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं । भूकम्प प्रघाती तरंगों से पहले अवश्रव्य तरंगें पैदा करते हैं जिन्हें कुछ जन्तु सुनकर परेशान हो जाते हैं ।
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि :- 20 KHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों का पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहते हैं । कुत्ते , डॉलफिन , चमगादड़ , पॉरपॉइज़ ( शिंशुमार ) तथा चूहे पराध्वनि सुन सकते हैं । कुत्ते तथा चूहे पराध्वनि उत्पन्न करते हैं ।
श्रवण सहायक युक्ति :- यह बैटरी चालित इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो कम सुनने वाले लोगों द्वारा प्रयोग की जाती है । माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युत संकेतों में बदलता है जो एंप्लीफायर द्वारा प्रवर्धित हो जाते हैं । ये प्रवर्धित संकेत युक्ति से स्पीकर को भेजे जाते हैं । स्पीकर प्रवर्धित संकेतों को ध्वनि तरंगों में बदलकर कान को भेजता है जिससे साफ सुनाई देता है ।
पराध्वनि के अनुप्रयोग :- इसका उपयोग उद्योगों में धातु के इलाकों में दरारों या अन्य दोषों का पता लगाने के लिए ( बिना उन्हें नुकसान पहुँचाए ) किया जाता है । यह उद्योगों में वस्तुओं के उन भागों को साफ करने में उपयोग की जाती है जिन तक पहुँचना कठिन होता है जैसे :- सर्पिलाकार नली , विषम आकार की मशीन आदि ।
पराध्वनि का उपयोग मानव शरीर के आन्तरिक अंगों जैसे यकृत , पित्ताशय , गर्भाशय , गुर्दे और हृदय की जाँच करने में किया जाता है ।
इकोकार्डियोग्राफी :- इन तरंगों का उपयोग हृदय की गतिविधियों को दिखाने तथा इसका प्रतिबिम्ब बनाने में किया जाता है । इसे इकोकार्डियोग्राफी कहते हैं ।
अल्ट्रासोनोग्राफी :- वह तकनीक जो शरीर के आन्तरिक अंगों का प्रतिबिम्ब पराध्वनि तरंगों की प्रतिध्वनियों द्वारा बनाती है । अल्ट्रासोनोग्राफी कहलाता है ।
सोनार ( Sonar ) – ( Sound Navigation and Ranging ) :- सोनार एक युक्ति जो पानी के नीचे पिड़ों की दूरी , दिशा तथा चाल नापने के लिए प्रयोग की जाती है ।
सोनार की कार्यविधि :-
सोनार में एक प्रेषित तथा एक संसूचक होती है जो जहाज की तली में लगा होता है । प्रेषित्र पराध्वनि तरंगें उत्पन्न करके प्रेषित करता है । ये तरंगें पानी में चलती है , समुद्र के तल में पिण्डों से टकराकर परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती है और विद्युत संकेतों में बदल ली जाती है । वह युक्ति पराध्वनि तरंगों द्वारा जहाज से समुद्र तल तक जाने तथा वापस जहाज तक आने में लिये गये समय को नाप लेती है । इस समय का आधा समय पराध्वनि तरंगों द्वारा जहाज से समुद्र तल तक जाने में लिया जाता है । यदि पराध्वनि के प्रेषण और संसूचन का समय अन्तराल d है , समुद्र जल में ध्वनि की चाल v है तब तरंग द्वारा तय की गयी दूरी = 2d
2d = v × t यह विधि प्रतिध्वनिक परास कहलाती है ।
सोनार का उपयोग :- समुद्र तल की गहराई नापने , जल के नीचे चट्टानों , घाटियों , पनडुब्बी , हिम शैल तथा डूबे हुए जहाज का पता लगाने में किया जाता है ।
मानव कर्ण की संरचना :- कान संवेदी अंग है जिसकी सहायता से हम ध्वनि को सुन पाते हैं । मानव कर्ण तीन हिस्सों से बना है बाह्य कर्ण , मध्य कर्ण , अन्तःकर्ण
बाह्य कर्ण :-
बाह्य कान को कर्ण पल्लव कहते हैं , यह आस – पास से ध्वनि इकट्ठा करता है । यह ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है । श्रवण नलिका के अन्त पर एक पतली लचीली झिल्ली कर्ण पटह या कर्ण पटह झिल्ली होती है ।
मध्य कर्ण :-
मध्य कर्ण में तीन हड्डियाँ मुग्दरक , निहाई और वलयक एक – दूसरे से जुड़ी होती हैं । मुग्दरक का स्वतन्त्र हिस्सा कर्णपट्ट से तथा वलयक का अंतकर्ण के अण्डाकार छिद्र की झिल्ली से जुड़ा होता है ।
अंतःकर्ण :-
अंतःकर्ण में एक मुड़ी हुई नलिका कर्णावर्त होती है जो अण्डाकार छिद्र से जुड़ी होती है । कर्णावर्त में एक द्रव भरा होता है जिसमें तंत्रिका कोशिका होती है कर्णावर्त का दूसरा सिरा श्रवण तंत्रिका से जुड़ा होता है जो मस्तिष्क को जाती है ।