अध्याय 3 – पृ्थ्वी की गतियाँ

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 पृथ्वी की गतियाँ :- 1. पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता है।

सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्ष में पृथ्वी की गति को परिक्रमण कहते हैं।

पृथ्वी सूर्य से प्रकाश प्राप्त करती है। पृथ्वी का आकार गोले के समान है , इसलिए एक समय में सिर्फ इसके आधे भाग पर ही रोशनी प्राप्त होती है। सूर्य की ओर वाले भाग में दिन होता है , जबकि दूसरा भाग जो सूर्य से दूर होता हैं वहाँ रात होती है।

ग्लोब पर वृत्त जो दिन तथा रात को विभाजित करता है उसे प्रदीप्ति वृत्त कहते हैं।

पृथ्वी अपने अक्ष पर चक्कर पूरा करने में लगभग 24 घंटे का समय लेती है।

घूर्णन के समय काल को पृथ्वी दिन कहा जाता। यह पृथ्वी की दैनिक गति है।

पृथ्वी की दूसरी गति जो सूर्य के चारों और कक्ष में होती है उसे परिक्रमण कहा जाता है।

पृथ्वी एक वर्ष या 365 1/4 दिन में सूर्य का चक्कर लगाती है। चार वर्षों में प्रत्येक वर्ष के बचे हुए 6 घंटे मिलकर एक दिन यानि 24 घंटे के बराबर हो जाते हैं।

इसके अतिरिक्त दिन को फरवरी के महीने में जोड़ा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक चौथे वर्ष फरवरी माह 28 के बदले 29 दिन का  होता है। ऐसा वर्ष जिसमें 366 दिन होते हैं उसे लिप वर्ष कहा जाता है।

 सामान्यत: एक वर्ष को चारऋतुओं में बाँटा जाता है। गर्मी , सर्दी , वंसत एवं शरद 

 

ऋतुओं में परिवर्तन सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण होता है।

21 जून को उत्तरी गोलार्ध सूर्य की तरफ झुका होता है जिसके कारण सूर्य की किरणे कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। जिससे उत्तरी गोलार्ध के बहुत बड़े भाग में सूर्य की रोशनी प्राप्त होती है , इसलिए विषुवत वृत्त के उत्तरी भाग में गर्मी का मौसम होता है।

21 जून को इन क्षेत्रों में सबसे लंबा दिन तथा सबसे छोटी रात होती है। पृथ्वी की इस अवस्था को उत्तर अयनांत कहते है।

 22 दिसंबर को दक्षिण ध्रुव के सूर्य की ओर झुके होने के कारण मकर रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। चूँकि , सूर्य की किरणें मकर पर लंबवत पड़ती है इसलिए दक्षिणी गोलार्ध के बहुत बड़े भाग में प्रकाश प्राप्त होता है। इसलिए , दक्षिणी गोलार्ध में लंबे दिन तथा छोटी रातों वाली ग्रीष्म ऋतु होती है।

 21 मार्च एवं 23 सितंबर को सूर्य की किरणें विषुवत वृत पर सीधी पड़ती हैं। इस अवस्था में कोई भी धुव सूर्य की ओर नहीं झुका होता , इसलिए पूरी पृथ्वी पर रत एवं दिन बराबर होते हैं। इसे विषुव कहा जाता है।

23 सितंबर को उत्तरी गोलार्ध मर शरद ऋतु होती है , जबकि दक्षिणी गोलार्ध में वसंत ऋतु होती है।

21 मार्च को स्थिति इसके विपरीत होती है जब उत्तरी गोलार्ध में वंसत ऋतु तथा दक्षिणी गोलार्ध में शरद ऋतु होती है।

 इस प्रकार , स्पष्ट है की पृथ्वी के घूर्णन एवं परिक्रमण के कारण दिन एवं रात तथा ऋतुओं में परिवर्तन होता है।

 

अध्याय 4 – मानचित्र