अध्याय 15 : हमारा पर्यावरण

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हमारा पर्यावरण

 

 

पर्यावरण का अर्थ :-  परि ( आस – पास ) + आवरण ( घेरे हुए ) । वह आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं या हमारे चारों ओर का वह वातावरण या परिवेश जिसमें हम रहते हैं , पर्यावरण कहलाता है ।

 

 पारितंत्र :- एक क्षेत्र के सभी जीव व अजैविक घटक मिलकर एक पारितंत्र का निर्माण करते हैं । इसलिए एक पारितंत्र जैविक ( जीवित जीव ) व अजैविक घटक ; जैसे :- तापमान , वर्षा , वायु , मृदा आदि से मिलकर बनता है ।

 

पारितंत्र के प्रकार :-  इसके दो प्रकार होते हैं ।

 

प्राकृतिक पारितंत्र :- पारितंत्र जो प्रकृति में विद्यमान हैं । प्राकृतिक पारितंत्र कहलाते हैं । उदाहरण :- जंगल , सागर , झील ।

मानव निर्मित पारितंत्र :– जो पारितंत्र मानव ने निर्मित किए हैं , उन्हें मानव निर्मित पारितंत्र कहते हैं । उदाहरण :- खेत , जलाशय , बगीचा ।

 

 पारितंत्र के घटक :- अजैविक घटक जैविक घटक

 

अजैविक घटक :- प्रकृति के वे घटक जिनमें जीवन नहीं है , किंतु जीवन को आधार प्रदान करती हैं अजैविक घटक कहलाते हैं । सभी निर्जीव घटक जैसे :- हवा , पानी , भूमि , प्रकाश और तापमान आदि मिलकर अजैविक घटक बनाते हैं ।

 

जैविक घटक :- प्रकृति के वे घटक जिनमें जीवन है , जैविक घटक कहलाते हैं । जैसे :- पशु – पक्षी , जन्तु , पेड़ – पौधे , सूक्ष्मजीव आदि ।

 सभी सजीव घटक जैसे :- पौधे , जानवर , सूक्ष्मजीव , फफूंदी आदि मिलकर जैविक घटक बनाते हैं ।

 आहार के आधार पर जैविक घटकों को उत्पादक , उपभोक्ता , अपघटक में बाँटा गया है ।

 

उत्पादक :-  सभी हरे पौधों एवं नील- हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है , इसी वर्ग में आते हैं तथा उत्पादक कहलाते हैं ।

 

उपभोक्ता :-  ऐसे जीव जो उत्पादक द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भर करते हैं , उपभोक्ता कहलाते हैं । उपभोक्ता को मुख्यतः शाकाहारी , मांसाहारी तथा सर्वाहारी एवं परजीवी में बाँटा गया है ।

शाकाहारी :- पौधे व पत्ते खाने वाले । जैसे :- बकरी , हिरण ।

माँसाहारी :- माँस खाने वाले । जैसे :- शेर , मगरमच्छ ।

सर्वाहारी :- पौधे व माँस दोनों खाने वाले । जैसे :- कौआ , मनुष्य ।

परजीवी :- दूसरे जीव के शरीर में रहने व भोजन लेने वाले । जैसे :- जू , अमरबेल ।

 

अपघटक :- फफूंदी व जीवाणु जो कि मरे हुए जीव व पौधे के जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में विघटित कर देते हैं । इस प्रकार अपघटक स्रोतों की भरपाई में मदद करते हैं ।

 

आहार श्रृंखला :- आहार श्रृंखला एक ऐसी शृंखला है जिसमें एक जीव दूसरे जीव को भोजन के रूप में खाते हैं । उदाहरण :- घास → हिरण → शेर

पोषीस्तर :- एक आहार श्रृंखला में , उन जैविक घटकों को जिनमें ऊर्जा का स्थानांतरण होता है , पोषीस्तर कहलाता है । एक आहार श्रृंखला में ऊर्जा का स्थानांतरण एक दिशा में होता है ।

सूर्य से प्राप्त ऊर्जा :- हरे पौधे सूर्य की ऊर्जा का 1 % भाग जो पत्तियों पर पड़ता है , अवशोषित करते हैं ।

ऊर्जा प्रवाह का 10 % नियम :- एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में केवल 10 % ऊर्जा का स्थानांतरण होता है जबकि 90 % ऊर्जा वर्तमान पोषी स्तर में जैव क्रियाओं में उपयोग होती है ।

 

आहार श्रृंखला के चरण :-  उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत ही कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है , अत : आहार श्रृंखला में सामान्यत : तीन अथवा चार चरण ही होते हैं ।

 

जैव आवर्धन :-  आहार श्रृंखला में हानिकारक रसायनों की मात्रा में एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में जाने पर वृद्धि होती है । इसे जैव आवर्धन कहते हैं ।  ऐसे रसायनों की सबसे अधिक मात्रा मानव शरीर में होती है ।

 आहार जाल :- आहार श्रृंखलाएं आपस में प्राकृतिक रूप से जुड़ी होती हैं , जो एक जाल का रूप धारण कर लेती है , उसे आहार जाल कहते हैं ।

 

पर्यावरण की समस्याएं :-   पर्यावरण में बदलाव हमें प्रभावित करता है और हमारी गतिविधियाँ भी पर्यावरण को प्रभावित करती हैं । इससे पर्यावरण में धीरे – धीरे गिरावट आ रही है , जिससे पर्यावरण की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं । जैसे :- प्रदूषण , वनों की कटाई ।

 

ओजोन परत :-  ओजोन परत पृथ्वी के चारों ओर एक रक्षात्मक आवरण है जो कि सूर्य के हानिकारक पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित कर लेती हैं । इस प्रकार से यह जीवों की स्वास्थय संबंधी हानियाँ ; जैसे :- त्वचा , कैंसर , मोतियाबिंद , कमजोर परिरक्षा तंत्र , पौधों का नाश आदि से रक्षा करती है ।  मुख्य रूप से ओजोन परत समताप मंडल में पाई जाती है जो कि हमारे वायुमंडल का हिस्सा है । जमीनी स्तर पर ओजोन एक घातक जहर है ।

 

ओजोन का निर्माण : ओजोन का निर्माण निम्न प्रकाश – रासायनिक क्रिया का परिणाम है । O₂ पराबैंगनी विकिरण 0 + O ( अणु )  O₂ + O → 0₃ ( ओजोन )

 

ओजोन परत का ह्रास :-  1985 में पहली बार अंटार्टिका में ओजोन परत की मोटाई में कमी देखी गई , जिसे ओजोन छिद्र के नाम से जाना जाता है ।  ओजोन की मात्रा में इस तीव्रता से गिरावट का मुख्य कारक मानव संश्लेषित रसायन क्लोरोफ्लुओरो कार्बन ( CFC ) को माना गया । जिनका उपयोग शीतलन एवं अग्निशमन के लिए किया जाता है ।  1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ( यूएनईपी ) में सर्वानुमति बनी की सीएफसी के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए ( क्योटो प्रोटोकोल ) ।

 

कचरा प्रबंधन :- आज के समय में अपशिष्ट निपटान एक मुख्य समस्या है जो कि हमारे पर्यावरण को प्रभावित करती है । हमारी जीवन शैली के कारण बहुत बड़ी मात्रा में कचरा इकट्ठा हो जाता है ।

 

कचरे में निम्न पदार्थ होते हैं :- जैव निम्नीकरणीय पदार्थ :- पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों के कारण छोटे घटकों में बदल जाते हैं । उदाहरण :- फल तथा सब्जियों के छिलके , सूती कपड़ा , जूट , कागज आदि ।

अजैव निम्नीकरण पदार्थ :- पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों के कारण घटकों में परिवर्तित नहीं होते हैं । उदाहरण :- प्लास्टिक , पॉलिथीन , संश्लिष्ट रेशे , धातु , रेडियोएक्टिव अपशिष्ट आदि ।  सूक्ष्मजीव एंजाइम उत्पन्न करते हैं जो पदार्थों को छोटे घटकों में बदल देते हैं एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं । इसलिए सभी पदार्थों का अपघटन नहीं कर सकते हैं ।

 

कचरा प्रबंधन की विधियाँ :-

 

जैवमात्रा संयंत्र :- जैव निम्नीकरणीय पदार्थ ( कचरा ) इस संयंत्र द्वारा जैवमात्रा व खाद में परिवर्तित किया जा सकता है ।

 

सीवेज उपचार तंत्र :- नाली के पानी को नदी में जाने से पहले इस तंत्र द्वारा संशोधित किया जाता है ।

 

कूड़ा भराव क्षेत्र :- कचरा निचले क्षेत्रों में डाल दिया जाता है और दबा दिया जाता है ।

 

कम्पोस्टिंग :- जैविक कचरा कम्पोस्ट गड्डे में भर कर ढक दिया जाता है ( मिट्टी के द्वारा ) तीन महीने में कचरा खाद में बदल जाता है ।

 

पुन : चक्रण :- अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कचरा पुन : इस्तेमाल के लिए नए पदार्थों में बदल दिया जाता है ।

 

पुन : उपयोग :- यह एक पारंपारिक तरीका है जिसमें एक वस्तु का पुन : -पुनः इस्तेमाल कर सकते हैं । उदाहरण :- अखबार से लिफाफे बनाना ।

 

भस्मीकरण :- यह एक अपशिष्ट उपचार प्रक्रिया है जिसे थर्मल उपचार के रूप में वर्णित किया जाता है जो कचरे को राख में बदल देता है । मुख्य रूप से इसका उपयोग अस्पतालों से जैविक कचरे के निपटान के लिए उपयोग किया जाता है ।

 

 

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